अगर ऐसा हुआ तो हमेशा के लिए बंद हो जाएगा ब्रदीनाथ धाम जाने का मार्ग !

badrinath narsingh mystery

जब भी हमारे मस्तिष्क में उत्तराखंड की पवन भूमि का विचार उत्पन्न होता है या कभी जब इस पतितपावन देव भूमि के अनुपम सौंदर्य का वर्णन होता है, तो हमारे ह्रदय में सर्वप्रथम भगवान सदाशिव के अनोखे और मन को शांति प्रदान करने वाले उत्तम धाम का चित्रण स्वयं ही हो जाता है।

भगवान शंकर तथा अनेकों देवी-देवताओं के अलौकिक मंदिरों से सुसज्जित यह भूमि वास्तव में मोक्ष प्रदान करने वाली है। वहीँ इस पावनि भूमि में भगवान श्री विष्णु का भी एक विशाल मंदिर स्थापित है, जहाँ दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। चमोली के जोशीमठ में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार भगवान नरसिंह का है।

भगवन विष्णु के नरसिंह अवतार की कहानी

श्रीमदभागवत महापुराण में मिलता है की प्रभु ने नरसिंह अवतार हिरण्यकश्यपु के संघार तथा बालक प्रह्लाद के भक्तिवश होकर लिया था। प्रह्लाद जन्म से ही भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे परन्तु उनके पिता हिरण्यकश्यपु को यह तनिक भी स्वीकार नहीं था।

यही कारण था कि हिरण्यकश्यपु ने अपने ही पुत्र को मारने के अनेकों प्रयत्न किये परन्तु यह प्रह्लाद की पावन भक्ति ही थी जिसके कारण हिरण्यकश्यपु उसे कोई हानि न पहुंचा सका। उसने कभी प्रह्लाद को बांधकर नदी में फ़िकवाया तथा कभी अपनी बहन होलिका के साथ अग्नि में जलने को छोड़ दिया फिर भी वह अपने हर प्रयत्न में असफल रहा। 

फिर जब हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र से कहा कि कहाँ है तुम्हारा भगवान तो भक्त प्रह्लाद ने बड़े ही शांति भाव से कहा कि हर कण में भगवान उपस्थित हैं तब हिरण्यकश्यपु बोला क्या इस खम्बे में है तुम्हारे भगवन तो उनसे कहो कि प्रकट हो कर दिखाये

तब भगवन नरसिंह ने खम्बे से प्रकट होकर अपने उग्र स्वरुप क्र दर्शन दिए तथा हिरण्यकश्यपु से युद्ध किया तथा उसका अंत कर दिया। नरसिंह अवतार को भगवान विष्णु का उग्र स्वरूप माना जाता है । नरसिंह अवतार में प्रभु के शरीर का आधा भाग सिंह रूप में है तथा आधा मानव रूप में है।

नृसिंह मंदिर की स्थापना

दरअसल 1200 हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन इस नरसिंह मंदिर की स्थापना से सम्बंधित अनेकों मत देखने को मिलते हैं जो कि निम्न प्रकार हैं :

• एक मत के अनुसार, पांडवो ने अपने स्वर्गारोहण की यात्रा के समय इस मंदिर की नींव रखी थी।

• एक अन्य मत के अनुसार, आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भगवान विष्णु के शालिग्राम की स्थापना की थी। आपको बता दें कि मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर के निर्मित है ।

• कुछ स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि यहाँ पर नरसिंह भगवन की प्रतिमा स्वयं ही प्रकट हुई थी।

नरसिंह प्रतिमा का सौन्दर्य

Narsingh Bhagwan Temple

अलौकिक सौंदर्य को धारण किये हुए भगवान नरसिंह की प्रतिमा अत्यंत ही मनोहरणीय है। मंदिर में बद्रीनाथ, कुबेर और उद्धव जी की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं। मंदिर परिसर में नरसिंह भगवान की दायीं ओर भगवान श्रीराम, माता सीता, बजरंगबली हनुमान जी और गरुड़ की मूर्तियाँ तथा बायीं ओर माँ काली की प्रतिमा स्थापित है।

भगवान नरसिंह की प्रतिमा 10 इंच की है। इस प्रतिमा में नरसिंह भगवान कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। देखने को मिला है कि भगवान नरसिंह की बायी भुजा समय के साथ घिस रही है।

नृसिंह भुजा के खंडित होने पर क्या होंगे परिणाम

भगवन नरसिंह की भुजा की घिसने की गति को विश्व में बढ़ते पापों और दुराचारों से भी कई लोग जोड़ते हैं। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में ऐसा मिलता है कि जिस दिन भुजा खंडित हो जाएगी उस दिन विष्णु प्रयाग के निकट पटमिला नामक स्थान पर नर और नारायण पर्वत (जय और विजय पर्वत) ढह जाएंगे और

बद्रीनाथ धाम का मार्ग हमेशा के लिए बंद हो जायेगा। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित लगभग 23 किमी की दूरी पर भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे। सप्त बद्री में से एक होने के कारण इस मंदिर को नारसिंघ बद्री या नरसिम्हा बद्री के नाम से भी जाना जाता है।

नरसिंह मंदिर तथा बद्रीनाथ धाम

जब शीतकाल में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, तो बद्रीनाथ धाम के पुजारी नरसिंह मंदिर में चले जाते है और यहाँ भी बद्रीनाथ की पूजा जारी रखते हैं। नरसिंह मूर्ति के साथ ही मंदिर में बद्रीनाथ की एक प्रतिमा भी है।

कैसे पहुंचे नरसिंह मंदिर

नरसिंह मंदिर तक का मार्ग अत्यन्त ही सरल है। देहरादून, ऋषिकेश से कैब लेकर जोशीमठ पहुंचकर इस अनुपमा मंदिर के दर्शन के लिए आ सकते हैं।

इसके अलावा यदि आप रेल या हवाई मार्ग द्वारा पहुंचना चाहते हैं तो रेल से देहरादून या ऋषिकेश तक ही यात्रा कर सकेंगे वहीँ देखा जाये तो दूसरी ओर हवाई यात्रा देहरादून हवाई अड्डे तक ही है। यहाँ आराम से कैब या बस सुविधा उपलब्ध हो जाएगी।

अपने साथ अनेखों रहस्यों को समेटे हुए यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही साथ अपने आकर्षक वातावरण से देश -विदेश के लोगों को आकर्षित करता आया है। ये सभी मंदिर हमारे भारत वर्ष की अमूल्य धरोहर हैं। हमारा ये कर्तव्य है कि हम उनकी महिमा और अखंडता का समस्त संसार में गान करें।

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फोटो साभार: upvartanews

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