अर्जुन के गुरु द्रोण थे दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी, जानिए इनके जन्म की अनोखी कहानी

dronacharya

महाभारत काल में कई सारे महान् व्यक्तियों ने जन्म लिया था, जिनमें से एक थे गुरु द्रोणाचार्य। जिन्हें प्राचीन भारत के सर्वश्रेष्ठ गुरु का दर्जा दिया जाता है।

गुरु द्रोण देव गुरु बृहस्पति का अवतार थे, जिन्हें पांडवों व कौरवों के गुरु के तौर पर जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुरु द्रोण का जन्म कैसे हुआ था?

क्योंकि ये किसी साधारण बालक की तरह नहीं जन्मे थे, बल्कि इनका जन्म काफी विचित्र तरीके से हुआ था।

हमारे आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की अनोखी कहानी के बारे में ही बताने वाले हैं, जोकि आम जनमानस के लिए बेहद ही आश्चर्यजनक साबित होने वाली है। 

गुरु द्रोण के जन्म से पहले हम उस तकनीक या विधि के बारे में जानेंगे। जिसके माध्यम से गुरु द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था। आधुनिक समय में विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है।

ऐसे में जो दंपति संतान का सुख प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, उनको टेस्ट ट्यूब बेबी की सुविधा दी जाती है। जिसके माध्यम से निसंतान दंपतियों को औलाद का सुख मिलता है।

कुछ इसी प्रकार की तकनीक या विधि के माध्यम से गुरु द्रोणाचार्य का भी जन्म हुआ था।

कहने का तात्पर्य यह है कि वर्षों पहले यानि महाभारत काल के समय भी तकनीक का ज्ञान धरती पर मौजूद था,

जिसको आधार मानकर ही कई तरह के वैज्ञानिक आविष्कार वर्तमान में किए जा रहे हैं। तो चलिए अब हम गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की कहानी को विस्तार से जानेंगे।

गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की अनोखी कहानी

Birth of dronacharya


गुरु द्रोण का जन्म आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व द्वापरयुग में हुआ था। जिस युग को महाभारत काल  के नाम से भी जाना जाता है। इस युग में एक महान् ऋषि हुए, जिनका नाम ऋषि भरद्वाज था।

जिनके द्वारा हिंदू धर्म के कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ और पुराण रचित किए गए हैं, जोकि वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं। 

एक बार की बात है जब ऋषि भरद्वाज यज्ञ करने के पश्चात् अन्य ऋषियों के साथ गंगा घाट पर स्नान करने गए थे।

तब वहां उन्होंने एक अप्सरा को देखा, जोकि गंगा नदी से स्नान करके बाहर निकली थी। वह अप्सरा बेहद ही खूबसूरत और मनमोहक थी।

उस अप्सरा का नाम घृताची था। जिसे देखते ही ऋषि भारद्वाज अपनी काम इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए और तभी उनका वीर्य स्खलित हो गया।

जिसे ऋषि भरद्वाज ने द्रोण नामक एक यज्ञ पात्र में रख दिया। आगे चलकर इसी पात्र से गुरु द्रोण का जन्म हुआ।

गुरु द्रोण के जन्म की इसी पद्धति को आधुनिक टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का प्राचीन रूप माना जाता है।

जबकि अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि भरद्वाज ने घृताची नामक अप्सरा के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए थे।

लेकिन उस अप्सरा की योनि का मुख द्रोण कलश के मुख के समान था। जिस कारण जन्म लेने के बाद इनका नाम द्रोण रखा गया।

अब हम गुरु द्रोणाचार्य के जीवन के बारे में बात करेंगे, क्योंकि गुरु द्रोण भले ही अस्त्र-शस्त्र और वेदों के ज्ञाता थे, लेकिन उन्होंने अपना जीवन काफी अभावों और परेशानियों में व्यतीत किया था।

ऐसे में हम मनुष्यों के लिए गुरु द्रोण का जन्म ही नहीं, अपितु उनका सम्पूर्ण जीवन भी प्रेरणा का विषय है। जिसे जानना हमारे लिए अति आवश्यक है।

गुरु द्रोणाचार्य का आरंभिक जीवन


गुरु द्रोणाचार्य के पिता ऋषि भरद्वाज जोकि एक ऋषि थे। उनके पास अधिक धन संपदा नहीं थी, जिस कारण गुरु द्रोण ने अपना बचपन झोपड़ी में ही व्यतीत किया था।

बचपन में गुरु द्रोण के परम मित्र राजा द्रुपद हुआ करते थे। उन दोनों ने एक ही जगह से शिक्षा ग्रहण की थी।

एक बार बचपन में द्रुपद ने गुरु द्रोण से कहा था, कि जब वह बड़े होकर राजा बन जाएंगे, तो गुरु द्रोण को अपनी आधी संपत्ति दे देंगे।

ऐसे में आगे चलकर जब गुरु द्रोण का परिवार आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था, तब गुरु द्रोण अपने परिवार समेत राजा द्रुपद के राज्य में पहुंचे और उन्हें उनके बचपन का वचन याद दिलाया।

लेकिन राजा द्रुपद ने उनका उपहास उड़ाकर उन्हें वहां से लौटा दिया। जिसके बाद गुरु द्रोण ने राजा द्रुपद से बदला लेने को ही अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य बना लिया था।

आपको बता दें कि गुरु द्रोणाचार्य का विवाह शारदान पुत्री और कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हुआ था। जिनसे इनका पुत्र अश्वथामा हुआ, जोकि आज भी धरती पर जीवित है।

गुरु द्रोणाचार्य थे कौरवों और पांडवों के आचार्य

Arjun Learning from Dronacharya
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भीष्म पितामह ने गुरु द्रोण की लोकप्रियता और ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें कुरु वंश के राजकुमारों का गुरु नियुक्त कर दिया था।

जिसके बाद गुरु द्रोण ने राजा द्रुपद से बदला लेने के लिए पांडव अर्जुन को उन्हें बंदी बनाकर लाने को कहा। अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए अर्जुन ने राजा द्रुपद को युद्ध में हराकर उन्हें बंदी बना लिया।

तभी से अर्जुन गुरु द्रोण के प्रिय शिष्य हो गए और उनसे शिक्षा पाकर ही अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी कहलाए।

गुरु द्रोणाचार्य ने जब ठुकराई एकलव्य और कर्ण की शिष्यता

Eklavya offering his thumb
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गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा पाने के लिए एक बार जब सूत पुत्र कर्ण उनके आश्रम पहुंचा। तब गुरु द्रोण ने उसे यह कहकर लौटा दिया कि उन्हें केवल हस्तिनापुर के राजकुमारों की शिक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।

उधर, राजा निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र एकलव्य जब गुरु द्रोण के पास धनुर्विद्या की शिक्षा लेने पहुंचे, तब गुरु द्रोण ने उन्हें शिक्षा देने से पहले ही उनसे गुरु दक्षिणा मांग ली।

गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के तौर पर उनका अंगूठा मांग लिया, क्योंकि गुरु द्रोण केवल अर्जुन को ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनते देखना चाहते थे,

जिस कारण उन्होंने एकलव्य और कर्ण जैसे महान शिष्यों को अपनी शरण में लेने से मना कर दिया।

गुरु द्रोणाचार्य थे परम ज्ञानी


गुरु द्रोण को चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त था। साथ ही उन्होंने परशुराम से धनुर्विद्या और अग्निवेश्य से आग्नेयास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था।

गुरु द्रोणाचार्य महाभारत काल के प्रमुख पात्र थे, लेकिन कुरु वंश से जुड़े होने के कारण उन्होंने महाभारत का युद्व कौरवों की ओर से लड़ा था।

जिसमें उन्होंने अपनी धनुर्विद्या और बुद्धि कौशल से पांडव सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

जब गुरु द्रोण ने त्यागे अपने प्राण


महाभारत युद्ध के 11वें दिन जब गुरु द्रोण को कौरवों का सेनापति बनाया गया। उसके बाद गुरु द्रोणाचार्य को परास्त करने के लिए पांडवों ने श्री कृष्ण के कहने पर एक योजना बनाई।

जिसके बाद युद्ध के दौरान ये अफवाह फैला दी गई कि अश्वथामा मारा गया, हालांकि ये बात गुरु द्रोण के बेटे के संदर्भ में कही गई थी,

लेकिन असल में तब एक अश्वथामा नाम का हाथी युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हुआ था।

ऐसे में जब अपने बेटे की मृत्यु का समाचार गुरु द्रोण को मिला, तब उन्होंने अपने अस्त्र छोड़ दिए और शोक की अवस्था में चले गए। 

तभी राजा द्रुपद के बेटे धृष्टड्यूम ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए शस्त्ररहित गुरु द्रोण के सिर को धड़ से अलग कर दिया और तब गुरु द्रोण हमेशा के लिए परलोक सिधार गए।


इस प्रकार, गुरु द्रोणाचार्य का प्रेरणादायक जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिनके बारे में जानना प्रत्येक मनुष्य के लिए काफी गौरव का विषय है।

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अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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