भगवान शिव के माथे पर क्यों विराजित है चंद्रमा?
सनातन धर्म में मौजूद धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि की रचना के लिए तीन देव प्रमुख माने गए हैं। जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से जाना जाता है। जहां भगवान ब्रह्मा को सृष्टि का रचियता और भगवान विष्णु को जगत का पालनहार माना गया है। तो वहीं भगवान शंकर को सृष्टि का संहारकर्ता माना गया है।
क्योंकि वह सदैव दुष्टों, राक्षसों और दानवों का संहार करते हैं। और अपने भक्तों के समस्त दुखों का निवारण करते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में आरंभ से ही देवों के देव महादेव को समस्त देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ऐसे में आज हम भगवान शंकर के रूप की चर्चा करेंगे।
जहां हमने सदैव ही भगवान शंकर के गले में रुद्राक्ष की माला, नाग देवताओं की उपस्थिति और हाथों में त्रिशूल देखा हैं। तो वहीं उनके माथे पर जटाओं के समीप अर्द्ध चंद्रमा स्थापित होता है। तो क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर के मस्तक पर आधा चंद्रमा क्यों विराजित रहता है? यदि नहीं, तो आज हम आपको इसके पीछे का रहस्य बताने वाले हैं।
भगवान शिव ने चंद्र देवता को बचाया था एक श्राप के प्रभाव से
धार्मिक पुराणों के अनुसार, चंद्र देवता का विवाह महाराज दक्ष की 27 नक्षत्री कन्याओं के साथ हुआ था। जिनमें से चंद्र देवता को रोहिणी अत्यधिक प्रिय थी। ऐसे में राजा दक्ष की अन्य कन्याएं काफी चिंतित रहने लगीं। उन्हें चंद्र देव का रोहिणी के अत्यधिक समीप रहना बिल्कुल पसंद नहीं था।
इसलिए वह अपनी इस समस्या का समाधान पाने के लिए अपने पिता राजा दक्ष के पास पहुंची। राजा दक्ष अपनी कन्याओं के दुख को सुनकर काफी क्रोधित हुए। और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र देवता को क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया।
जिसके कारण धीरे धीरे चंद्र देवता की सारी शक्ति कमजोर पड़ने लगी। जिसपर चन्द्र देवता ने नारद जी से इसका उपाय पूछा। तब नारद जी ने उन्हें भगवान शिव की उपासना करने को कहा। भगवान शिव ने चंद्र देवता की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें दुबारा जीवित होने का वरदान दे दिया।
जिसके पश्चात् पूर्णमासी के दिन चंद्र देवता के पूर्ण दर्शन सुलभ हुए। कहते है इसी दौरान भगवान शिव ने चंद्र देवता के अर्द्ध भाग को अपनी जटाओं में स्थान देकर उन्हें राजा दक्ष के श्राप के प्रभाव से मुक्ति दिलाई।
भगवान शिव के विषपान और चन्द्र देवता की शीतलता से जुड़ी कहानी
धार्मिक कथा के अनुसार, समुन्द्र मंथन के दौरान अमृत के साथ साथ विष भी निकला था। जिसे भगवान शिव ने धरती की सुरक्षा की खातिर पी लिया था। ऐसे में भगवान शिव का सम्पूर्ण शरीर नीला पड़ गया था। इसलिए भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा था।
और इसी दौरान चंद्र देवता ने भगवान शिव से आग्रह किया कि भगवान शिव उन्हें अपने मस्तक पर धारण करके स्वयं को शीतलता प्रदान करें। हालांकि भगवान शिव यह जानते थे कि चंद्र देव विष को सहन नहीं कर पाएंगे। परन्तु समस्त देवताओं के कहने पर उन्होंने चंद्र देवता को अपने मस्तक पर विराजित कर लिया। कहते हैं कि भगवान शिव की जटाओं में स्थान पाने के पश्चात् से ही चंद्र देवता सम्पूर्ण संसार को शीतलता पहुंचा रहे हैं।
इस प्रकार, भगवान शिव सदैव अपने भक्तों की रक्षा के लिए उन्हें वरदान दिया करते हैं। और सृष्टि का कल्याण करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को दिखाने के उद्देश्य से उनके भक्त उन्हें प्रेम से भोलेनाथ, महादेव, भोले भंडारी, कैलाशी, त्रिनेत्र आदि नामों से पुकारते हैं। अगर आपको भगवान शिव और चंद्र देवता की यह धार्मिक कहानी अच्छी लगी तो आप हमारी वेबसाइट Gurukul99 पर दुबारा आना ना भूलें।
