महाभारत की कथा के दौरान आपने द्रौपदी के बारे में अवश्य सुना होगा। द्रौपदी पांचों पांडव (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) की धर्मपत्नी थी।
यानि द्वापरयुग में जन्मी द्रौपदी पांच पुरुषों की पत्नी थी, लेकिन आधुनिक समाज में किसी महिला को एक से अधिक पति रखने का अधिकार नहीं है।
ऐसे में द्वापरयुग में बहुविवाह की यह परंपरा केवल द्रौपदी की वजह से चलन में नहीं आई थी, बल्कि प्राचीन भारत में कई सारी ऐसी अद्भुत नारियों हुईं, जिनका भी एक से अधिक पुरुषों से विवाह हुआ था।
उपरोक्त नारियां भी द्रौपदी की तरह देव कन्याएं थी, जिनका बहुविवाह भी किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कराया गया था।
हमारे आज के इस लेख में हम आपको प्राचीन इतिहास की उन्हीं महिलाओं के बारे में बताने वाले हैं, जिनका भी द्रौपदी की तरह बहुविवाह हुआ था।
लेकिन उससे पहले हम आपको द्रौपदी के बहुविवाह की कहानी के बारे में बताएंगे।
द्रौपदी का बहुविवाह था उनके पूर्व जन्म का फल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापरयुग में अग्नि से उत्पन्न हुई द्रौपदी ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव की अनन्य भाव से भक्ति की थी। जिसके बाद महादेव ने द्रौपदी से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा।
इस दौरान द्रौपदी ने महादेव से एक ऐसे वर की कामना की, जो धर्म और सत्य का प्रतीक हो, हनुमान जी की तरह बलशाली हो, परशुराम की भांति श्रेष्ठ धनुर्धर हो, वह सुंदर और सहनशील भी हो।
हालांकि भगवान शिव ने द्रौपदी से कहा था कि ये सारे गुण एक ही व्यक्ति में होना असम्भव है, लेकिन द्रौपदी की जिद के आगे महादेव भी कुछ ना कर सके और उन्हें द्रौपदी को मनचाहा वरदान देना पड़ा।
इस दौरान द्रौपदी ने महादेव से एक ऐसे वर की कामना की, जो धर्म और सत्य का प्रतीक हो, हनुमान जी की तरह बलशाली हो, परशुराम की भांति श्रेष्ठ धनुर्धर हो, वह सुंदर और सहनशील भी हो।
हालांकि भगवान शिव ने द्रौपदी से कहा था कि ये सारे गुण एक ही व्यक्ति में होना असम्भव है, लेकिन द्रौपदी की जिद के आगे महादेव भी कुछ ना कर सके और उन्हें द्रौपदी को मनचाहा वरदान देना पड़ा।
ऐसे में पूर्व जन्म में मिले वरदान के आधार ही द्रौपदी महाभारत युग में पांच पांडवों की पत्नी कहलाई। हालांकि ये संयोग भी एकदम से घटित नहीं हुआ था, बल्कि इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।
महाभारत काल में जब पांचाल नरेश द्रुपद द्वारा अपनी पुत्री द्रौपदी के विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की गई।
तब वहां पांडू पुत्र अर्जुन ने अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन करके द्रौपदी स्वयंवर जीत लिया था। जिसके बाद जब पांडव अर्जुन द्रौपदी को माता कुंती के पास मिलाने ले गए।
इस दौरान अर्जुन के मुख से निकल गया कि माता देखिए…आज हम भिक्षा में क्या लाए हैं!
अर्जुन ने उस दौरान ऐसा इसलिए कहा क्योंकि अर्जुन समेत पांचों पांडव भाई और उनकी माता कुंती उस समय गरीब ब्राह्मण की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे और भिक्षा मांगकर ही जीवन बसर कर रहे थे।
यही कारण था कि अर्जुन ने बिना आगे का परिणाम जाने अपनी माता से अट्टहास करते हुए द्रौपदी को भिक्षा बता दिया।
जिस पर माता कुंती ने बिना देखे अर्जुन से ये कह दिया… कि भिक्षा को पांचों भाइयों में बांट लो।
इस प्रकार, द्रौपदी के पूर्व जन्म के वरदान का फल उन्हें द्वापरयुग में मिला और इस तरह से वह पांचों पांडव भाइयों की अर्धांगनी कहलाई।
हालांकि कुछ लोग द्रौपदी को पांच पांडवों की धर्मपत्नी होने के कारण पंचाली कहते हैं, लेकिन असल में द्रौपदी पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री थी, इसलिए उन्हें पांचाली कहा गया।
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द्रौपदी की तरह इन नारियों का भी हुआ था बहुविवाह
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में जन्मी द्रौपदी ही केवल पांच पुरुषों से नहीं बियाही गई थी, बल्कि इन नारियों का भी विवाह एक से अधिक पुरुषों के साथ हुआ था।
जिसमें सबसे पहला जिक्र आता है ब्रह्मा जी के 10 मानष पुत्रों का। जिनको प्रचेता कहा जाता है। जिनका विवाह यक्ष की बहन मारिषा से हुआ था।

इनके विवाह का मुख्य उद्देश्य सृष्टि के संचालन कार्य को आगे बढ़ाना था, जिसके लिए ही ये बहुविवाह कराया गया था।
ब्रह्मा जी के इन्हीं 10 मानष पुत्रों और मारिषा से प्रजापति दक्ष जन्मे। जिनकी भी 10 कन्याओं का विवाह धर्म से, 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से और 1 पुत्री सती का विवाह स्वयं भगवान शिव के साथ हुआ था।
इसके बाद अब हम आपको बताएंगे प्राचीन भारत में जन्मी जटिला नामक स्त्री के बहुविवाह की कहानी। जिन्होंने गौतम ऋषि के युग में जन्म लिया था।
गौतम ऋषि को न्यायिक सूत्रों का जन्मदाता कहा गया है। इनके ही कुल में जन्मी एक कन्या जटिला का विवाह 7 ऋषियों से हुआ था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गौतम ऋषि के ही वंशज श्वेतकेतु ने समाज में विवाह व्यवस्था की शुरुआत की थी। इस दौरान उन्होंने ही स्त्री और पुरूष को एक दूसरे का पूरक बताते हुए समाज में विवाह का प्रचलन किया था।
इनके अतिरिक्त चंद्रवंशी राजा ययाति की पुत्री माधवी का भी अनेक पुरुषों से विवाह हुआ था। साथ ही पंचकन्या के तौर पर जानी जाने वाली तारा का भी बहुविवाह हुआ था।
हालंकि उनके पहले पति महाराज बलि की मृत्यु के बाद उनका दूसरा विवाह सुग्रवी के साथ हुआ था। ठीक ऐसे ही रावण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी मंदोदरी विभीषण की पत्नी कहलाई।
ये विवाह बहुविवाह या पुनर्विवाह के प्राचीन उदाहरण के तौर पर जाने जाते हैं। इसके अलावा, बृहस्पति देव की पत्नी तारा भी दो पतियों यानि चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी कहलाई।
प्राचीन धार्मिक पुराणों के अनुसार, देवी उषा और अप्सरा रंभा का भी बहुविवाह हुआ था। रंभा यक्ष नलकुबेर और गंधर्व तुमबुरु की पत्नी थी।
उधर, महाभारत काल में भी माता कुंती ने पांच देवताओं का आह्वान करके पांच पांडू पुत्रों को जन्म दिया था। जबकि माता सत्यवती भी ऋषि पराशर के बाद राजा शांतनु से विवाह के बंधन में बंध गई थीं।
अगर बात करें महाराज पांडू और धृतराष्ट्र की माता अंबिका और अंबालिका की, तो इन्होंने भी अपने पति चित्रांगद और विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद ऋषि व्यास के आशीर्वाद से गर्भ धारण किया था।
इस प्रकार, द्रौपदी के अलावा इन देव कुल स्त्रियों ने कभी संतानोपत्ति, तो कभी सृष्टि के संचालन के उद्देश्य से बहुविवाह किया।
Featured image source: herzindagi
