गुरु पूर्णिमा – पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

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गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था महर्षि वेदव्यास का जन्म, जिन्होंने किए हिंदू धर्म पर कई उपकार।

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्म परायण:।
तत्त्वेभय: सर्व शास्त्र्तार्थादेशको गुरुरुच्यते।।

अर्थात् जो व्यक्ति धर्म को जानने वाला है, धर्म के अनुसार आचरण करता है, शास्त्रों का ज्ञाता है और इसमें मौजूद तत्वों को लेकर अपने अनुयायियों को आदेश देता है, वह गुरु कहलाता है।

सनातन धर्म में गुरु को माता पिता से भी सर्वोच्च माना गया है। यहां गुरु को ईश्वर के समतुल्य दर्जा दिया गया है। गुरु की महत्ता को स्वीकार करते हुए भारतीय समाज में हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।

गुरु पूर्णिमा के दिन भारतीय शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में शीश झुकाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। साथ ही उनके द्वारा दी गई शिक्षा और दिखाए गए सन्मार्ग के लिए उनको कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।


गुरु पूर्णिमा का दूसरा महत्व यह भी है कि इस दिन सनातन धर्म के परम ज्ञानी महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। जिन्हें हिंदू धर्म के पवित्र महाकाव्य महाभारत को लिखने का श्रेय दिया जाता है। इसके अतिरिक्त महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों और महापुराणों का भी विस्तार किया है।

माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने सम्पूर्ण विश्व में अपने ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानता रूपी अंधेरे को मिटा दिया। इसलिए उन्हें समस्त मानव जाति के परम गुरु की संज्ञा दी जाती है।

महर्षि वेदव्यास के जन्म की पौराणिक कथा

महर्षि वेदव्यास का जन्म लगभग 3000 ईसा पूर्व हुआ था। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था। जोकि सप्त ऋषियों में से एक महर्षि वसिष्ठ के पौत्र थे। एक बार की बात है जब ऋषि पराशर जंगल में भ्रमण कर रहे थे। तभी उनकी भेंट निषादाज नामक एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती से हुई।

आपने महाभारत की कथा में रानी सत्यवती का जिक्र अवश्य सुना होगा, जोकि महाराज शांतनु की पत्नी थी। जिनके रूप को देखकर ऋषि पराशर उनपर मोहित हो गए थे और उन्होंने उनके साथ समागम करने की बात कही थी।

हालांकि सत्यवती उस समय कुंवारी थी और उन्होंने पहले तो ऋषि पराशर को साफ इंकार कर दिया था। लेकिन बाद में उन्होंने ऋषि पराशर के आगे शर्त रखी कि वह उनकी बात तभी मानेगी। जब वह उनकी उपरोक्त शर्तें मानेंगे।

जिस पर ऋषि पराशर ने सत्यवती को वचन दिया कि वह उनकी प्रत्येक शर्त को मानेंगे। जिसपर राजकुमारी सत्यवती ने कहा कि वह उनके साथ समागम तभी करेंगी जब….

ऐसा करते हुए उन्हें कोई अन्य न देख पाए। दूसरा, समागम के पश्चात् भी उनकी कौमार्यता बनी रहे। साथ ही उनके शरीर से जो मछली की सुगंध आ रही है, वह तुरंत ही फूलों की खुशबू में बदल जाए।

ऋषि पराशर द्वारा सत्यवती की समस्त शर्तों की पूर्ति हो गई। जिसके बाद ऋषि पराशर और सत्यवती के समागम से कृष्णद्वैपायन ने जन्म लिया। जोकि आगे चलकर महाभारत युद्ध के साक्षी बने। साथ ही सनातन धर्म के चारों वेदों में विस्तार करने के उपरांत इनका नाम महर्षि वेदव्यास पड़ा।

इस प्रकार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत काल के समय जन्म लिया। जिनके जन्म के दौरान ही उनके पिता ने यह भविष्यवाणी कर दी थी, कि यह बालक समस्त वेदों और शास्त्रों को जानने वाला एक महान् ज्ञानी होगा। तो चलिए अब हम महर्षि वेदव्यास से जुड़े अन्य तथ्य जानते हैं।


महर्षि वेदव्यास से जुड़े रोचक तथ्य

  1. महर्षि वेदव्यास को वाद नारायण भी कहा जाता है, क्योंकि इनका अधिकतर समय वनों में व्यतीत हुआ करता था।

  2. माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु का ही रूप थे, जोकि वेदों के विस्तार के लिए व्यास जी का अवतार लेकर धरती पर आए थे।

  3. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास आज भी जीवित हैं और धर्म की रक्षा करने वाले व्यक्तियों पर अपनी कृपा बनाए रहते हैं।

  4. महर्षि वेदव्यास ने हिंदू धर्म के वेदों को विस्तार पूर्वक लिखा था। इसके साथ ही महाकाव्य महाभारत, 18 पुराणों और ब्रह्म सूत्र की रचना का श्रेय भी इन्हें ही दिया जाता है।

  5. हिंदुओं की पवित्र महाभारत कहानी के मुख्य पात्र के रूप में महर्षि वेदव्यास सदैव सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए पूजनीय रहेंगे।


गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त [2021]

गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा का मुहूर्त 23 जुलाई 2021 ( सुबह 10 बजकर 43 मिनट ) से लेकर 24 जुलाई 2021 ( सुबह 8 बजकर 6 मिनट ) तक रहेगा।


गुरु पूर्णिमा पर कैसे करें पूजा?

  1. इस दिन प्रात:काल में जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।

  2. इसके बाद अपने पूजाघर में एक चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। जिस पर 12-12 रेखाएं खींचकर व्यास पीठ बनाएं। उसके ऊपर गुरु की प्रतिमा स्थापित करें।

  3. तत्पश्चात् गुरु मंत्रों का जाप करें। जोकि निम्न प्रकार हैं-

    ॐ गुरुभ्यो नम:।
    ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
    ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
    ॐ वेदाहि गुरु देवाय विदमहे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
    गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु: गुरु देर्वो महेश्वर:। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

  4. पूजा की थाली में गुलाल, रोली, फूल और प्रसाद रखें। आप प्रसाद की जगह पंचामृत, मेवा और मिठाई का भी भोग लगा सकते हैं।

  5. गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के आगे नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। साथ ही इस दिन गुरु को भोजन कराकर और उन्हें दक्षिणा प्रदान कर उनकी सेवा करें।

इस प्रकार, हम आशा करते हैं कि आपको गुरु पूर्णिमा का पर्व मानने की कथा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी। ऐसे ही सनातन धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं को जानने के लिए हमें फॉलो करना न भूलें।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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