जानिए महाभारत काल के बर्बरीक के बारे में जिन्हें मिला था तीन अद्भुत बाणों का वरदान

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महाभारत काल के इस युद्ध को हिंदू पौराणिक कथाओं के सबसे लंबे महाकाव्य के रूप में माना जाता है। महाकाव्य में ऐसे अनेक पात्र होते हैं जिनका विशाल युद्ध में कोई महत्वपूर्ण योगदान होता है।

ऐसा ही एक योद्धा महाभारत काल में था जो अत्यंत शक्तिशाली था और जिसे शिव जी से वरदान भी प्राप्त था। यदि वो चाहते तो एक क्षण में कुरुक्षेत्र का सबसे लंबा युद्ध समाप्त कर सकते थे। उनका नाम था बर्बरीक।

जिन्हें खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है। ये बचपन से ही एक महान योद्धा थे। इन्हे कल्यागी भगवान के रूप में भी सम्मानित किया जाता है। इनका बहुत ही भव्य और विशाल मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है।

बर्बरीक को मिला वरदान

बर्बरीक, भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक की आरंभ से ही धनुर्विद्या में बहुत रुचि थी। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में बर्बरीक की गिनती की जाती है। बर्बरीक भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे।

बहुत लंबे समय तक शिव जी की तपस्या और भक्ति करने के पश्चात भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और बर्बरीक को भगवान शिव ने ये वरदान दिया कि वो अपने तीन बाणों से ही तीनों लोकों को जीत सकते हैं।

भगवान शिव ने उन्हें इस वरदान के साथ तीन अमोघ बाण भी दिए थे। इन तीनों तीरों को अपनी ही एक विशेषता थी।

▪️पहला बाण दुश्मनों को चिह्नित करता है, जिन्हें वे नष्ट करना चाहते हों।

▪️दूसरा बाण उन लोगों को चिह्नित कार्य है, जिन्हें वे बचाना क्या चाहते हो।

▪️तीसरा बाण पहले वाले तीर से चिह्नित सभी चीजों को नष्ट कर देगा और अपने तुनीर में वापिस लौट जाएगा।

परन्तु उनके वरदान की एक शर्त भी थी। वो ये थी कि बर्बरीक अपने निजी प्रतिशोध के लिए अपने बाणों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। और वे उन बाणों को केवल हमेशा युद्ध क्षेत्र में कमजोर पक्ष की सहायता की लिए ही प्रयोग कर सकते थे।

महाभारत युद्ध के समय जब भगवान श्री कृष्ण सभी योद्धाओं से ये पूछा कि इस युद्ध को समाप्त करने के लिए कितने लग जायेंगे, तो सभी ने औसतन 15 से 20 दिन का समय बताया। लेकिन बर्बरीक ने जवाब दिया कि वो अपने 3 बाणों से एक क्षण में ही युद्ध समाप्त कर देंगे।

बर्बरीक के लिए ये तीन बाण ही काफी थे जिसके द्वारा वो कौरवों और पांडवों की पूरी सेना का जड़ से समाप्त कर सकते थे।

महाभारत के युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिंदु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और ये घोषणा कर दी कि मैं उस पक्ष की ओर से लड़ूंगा जो युद्ध में हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से भगवान श्री कृष्ण थोड़े चिंतित हो गए।

बर्बरीक के सामने जब भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन उसकी वीरता को देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का एक छोटा सा नमूना मात्र ही पेश किया।

श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि ये जो वृक्ष है, इसके सारे पत्तों को यदि तुम एक ही तीर से छेड़ने में सफल हुए तो मैं मान जाऊंगा। श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर बर्बरीक ने तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।

बर्बरीक के द्वारा छोड़ा गया वो तीर जब एक एक करके पेड़ के सभी पत्तों को छेदता जा रहा था उसी समय हवा के कारण एक पत्ता टूट कर नीचे गिर पड़ा। श्री कृष्ण ने उस पत्ते पर पैर रखकर उसे छिपा लिया।

उन्होंने सोचा कि अब इस पत्ते में छेद होने से रह जाएगा। परंतु सभी पत्तों को छेदता हुआ वो तीर भगवान श्री कृष्ण के चरणों के पास आकर ठहर गया।

तब बर्बरीक ने हाथ जोड़कर श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु आपके चरणों के नीचे एक पत्ता दबा हुआ है। कृपया करके अपना चरण हटा लीजिए क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दी है आपके चरणों को छेदने की नहीं।

बर्बरीक के इस चमत्कार को देखकर भगवान श्री कृष्ण बहुत ही चिंतित हो गए। वे ये बात जानते थे कि क्यूंकि बर्बरीक ने अब प्रतिज्ञा कर ली है तो वो अपनी प्रतिज्ञा के वश होकर हारने वाले का साथ अवश्य ही देगा।

यदि उसे कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए एक बहुत बड़ा भारी संकट उत्पन्न हो जाएगा। और यदि पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वो पांडवों का साथ देगा।

इस तरह से तो वो दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से समाप्त कर देगा। यदि बर्बरीक ने चाहा तो वो दोनों पक्ष की सेना को अपने एक तीर से ही तहस नहस कर देगा।

भगवान श्री कृष्ण ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि कोई भी तीसरा इस तरह से महाभारत युद्ध में प्रवेश करे जिससे को युद्ध में प्रलय ही आ जाए। इस महाभारत के युद्ध से श्री कृष्ण का उद्देश्य केवल अधर्म पर धर्म की विजय थी।

जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा की बर्बरीक अपनी प्रतिज्ञा को लेकर दृढ़ है, तब उन्होंने ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह-सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और उससे दान मांगने लगे। बर्बरीक द्वार पर आए ब्राह्मण का तिरस्कार नहीं कर सकते थे।

वे ब्राह्मण प्रेमी थे। ब्राह्मणों का बहुत सम्मान करते थे। बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से कहा मांगू ब्राह्मण आपको क्या चाहिए। तब ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने कहा कि मैं जो चाहता हूं वो तुम ना दे सकोगे ? ऐसा करते करते धीरे धीरे बर्बरीक श्री कृष्ण के जाल में फस गया और फिर श्री कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया।

बर्बरीक के द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय के लिए स्वेच्छा के साथ उसने अपना शीश बिना देर लगाए बिना कुछ सोचे बिना कुछ हम तुरंत उन ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण को दान कर दिया।

बर्बरीक के इस निष्ठा और बलिदान को देखकर दान लेने के पश्चात श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वरदान दे दिया आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। ये वो  स्थान है, जहां श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश रखा था, उस स्थान का नाम खाटू है।

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