महाभारत युद्ध के बाद क्या हुआ था? जानिए पांच चरणों में अंत की पूरी कहानी

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महाभारत, प्राचीन भारत का एक महायुद्ध है। जो कि वर्तमान भारत के राज्य कुरूक्षेत्र में लड़ा गया था। यह इतिहास के सबसे भयावह युद्धों में से एक था जिसके विषय में धर्म ग्रंथ कहते हैं कि, 18 दिनों तक चलने वाले महाभारत के इस युद्ध में लगभग 80 प्रतिशत भारतीय पुरुषों की मृत्यु हो गई थी।

वहीं महाभारत ग्रंथ के एक चौथाई से भी अधिक हिस्से में महाभारत के युद्ध का वर्णन मिलता है।सर्वविदित है कि महाभारत का युद्ध कौरवों तथा पांडवो के बीच होता था।

जिसमें कौरवों की संख्या अधिक तथा पांडवों की संख्या कम थी। लेकिन इसके बाबजूद महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत हुई, जिसका कारण उनके धर्म परायण कर्म को माना गया। लेकिन अधिकतर लोग महाभारत की कहानी के अंतिम छोर से अनभिज्ञ हैं। 

हम सभी यह बात जानते हैं कि महाभारत का युद्ध पांडवों की जीत के बाद समाप्त हो गया। लेकीन क्या आप यह बात जानते हैं कि इस युद्ध के पश्चात् राज्य में क्या हुआ? या किस राजा का राजतिलक किया गया?

पांडवों तथा श्री कृष्ण कब तक हस्तिनापुर में रहे? द्रौपदी तथा अन्य पांडवों का क्या हुआ? द्वापरयुग का अंत कैसे हुआ?

यह अत्यन्त मुश्किल ही होगा कि आपको महाभारत युद्ध के बाद की कहानी कहीं सुनने को मिले, इसलिए आज हम आपको इस लेख के जरिए महाभारत युद्ध के बाद की कहानी बताने जा रहे हैं..

After Mahabharat Yudh


पांडवों ने किया हस्तिनापुर पर शासन (36 साल तक शासन)

18 दिवसीय महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत हुई। युद्ध के बाद पांडवों में सर्वश्रेष्ठ पांडव युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। युधिष्ठिर के नेतृत्व में पांडवों ने हस्तिनापुर पर 36 साल तक शासन किया।

युधिष्ठिर के राजतिलक के समय गांधारी ने कौरवों की हार व मृत्यु के लिए श्री कृष्ण को दोषी माना। गांधारी के अनुसार, भगवान कृष्ण के पास युद्ध को रोकने की दिव्य शक्ति थी और किसी एक पक्ष में जाने का विकल्प।

मगर, उन्होंने युद्ध होने दिया। ऐसे में कौरवों के नाश के लिए श्री कृष्ण को दोषी मानते हुए गांधारी ने उन्हें श्राप दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है, उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

श्री कृष्ण के वंश का हुआ अंत

पांडवों के युद्ध में जीत हासिल करने के बाद युधिष्ठिर को राजा बनाने का निर्णय लिया गया। इसके बाद युधिष्ठिर के राजतिलक के समय गांधारी ने जो श्री कृष्ण को श्राप दिया था, उसका असर यदुवंशी पर पड़ने लगता है।

श्राप के असर से पूरा यदुवंश आपस में लड़ने लगा। श्री कृष्ण की द्वारिका की हालत बिगड़ने लगी थी। हर यदुवंश एक दूसरे के खून का प्यासा हो गया। ऐसे में यदुवंश का अंत हुआ, जिसके अंत में श्री कृष्ण, बलराम, दरुका ओर व्रभू ही शेष रह गए।

श्री कृष्ण का स्वर्गवास

जब भगवान श्री कृष्ण ने प्रभास नरसंहार किया। उसके बाद भगवान कृष्ण ने वन में ध्यानमग्न होने का निर्णय लिया। जब वह वन में ध्यान में लीन थे, तो जारा नामक एक शिकारी ने वन में हिरण का शिकार करते समय तीर चलाया, जो कृष्ण के पैर में जा लगा।

तीर लगने के बाद भगवान कृष्ण ने शिकारी के सामने ही विष्णु का रूप धारण किया और नश्वर शरीर को त्याग दिया। इस प्रकार धरती से श्री कृष्ण चले जाते हैं।

कहा जाता है कि जिस दिन भगवान श्री कृष्ण बैकुंठ को वापस आएं उसी दिन से कलियुग का आगमन हो गया था। श्री कृष्ण के जाने के बाद युधिष्ठिर अपने परपोते परीक्षित का राजतिलक करने का निर्णय लेते हैं।

स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ना

इसके बाद पांडवों को एक ऋषि द्वारा सलाह दी जाती है, कि उनका उद्देश्य पूरा हो चुका है अब वे हिमालय की ओर प्रस्थान कर सकते हैं। पांडव अर्जुन के पौत्र परीक्षित को राज पाठ सौंप कर द्रौपदी संग अंतिम प्रस्थान पर चल दिए। 

पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कीं। लेकिन स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने के दौरान धीरे-धीरे सभी लोग युधिष्ठिर का साथ छोड़ने लगे। स्वर्ग की सीढ़ी पर चढ़ने की शुरुआत द्रौपदी से हुई और अंत में भीम का निधन हो गया।

कहा जाता है कि  सिर्फ युधिष्ठिर ही कुत्ते के साथ  स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके। बाकी सब बीच में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए।

युधिष्ठिर को मिला स्वर्ग

स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़ते समय जब अंत में युधिष्ठिर स्वर्ग के दरवाजे पहुंचते हैं तब उनका स्वागत दरवाजे पर इंद्र द्वारा किया जाता है। युधिष्ठिर के साथ अंत तक आने वाला कुत्ता, जो कि एक यमराज था। वह अंत तक गायब हो गए।

वहां द्रौपदी और अपने बाकी भाइयों को देख युधिष्ठिर काफी उदास हुए, तब भगवान इंद्र ने कहा कि अपने कर्मों की सजा पूर्ण कर वे भी जल्द ही स्वर्ग में दाखिल होंगे। जिसके बाद युधिष्ठिर को राहत मिली।

इस प्रकार गांधारी के श्राप वश यदुवंशी का अंत निश्चित हुआ फिर राजा परीक्षित जिसको हस्तिनापुर का राज्य सौंपा गया था, वह भी धीरे धीरे अपना राज पाठ खोने लगे थे, चूंकि भगवान श्री कृष्ण और पांडवों ने धरती से स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर किया था।

इसी कारण राज्य धर्म कर्म से अनभिज्ञ हो गया था, जिसके फलस्वरूप कलियुग का आगमन हुआ। वर्तमान में अब कलियुग चल रहा है, जिसमें हम महाभारत के युद्ध के विषय में पढ़ते हैं। जानकारों के अनुसार, कलियुग को अब तक पांच हजार साल पूरे हो चुके हैं।

हालांकि इस पर अलग अलग मत भी प्रकट होते रहते हैं। ऐसे में कलियुग की निश्चित संख्या कहना थोड़ा मुश्किल है।

उम्मीद करते हैं कि आपको उपरोक्त लेख के माध्यम से महाभारत के युद्ध के बाद की कहानी के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। इसके माध्यम से आपको कलियुग के आरंभ का भी कुछ अंश ज्ञात होता है। जिस युग में हम वर्तमान में भ्रमण कर रहे हैं। इसी प्रकार के धर्म कर्म विषयों से जुड़े लेख पढ़ने के लिए हमें फॉलो करते रहें।

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अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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