जानिए क्या है नई शिक्षा नीति और इससे जुड़े कुछ मुख्य बदलाव | National Education Policy

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भारत की नई शिक्षा नीति को भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया था। सन 1986 में जारी शिक्षा नीति के बाद ये भारत की शिक्षा नीति पहला नया परिवर्तन किया गया।

आपको बता दें कि ये शिक्षा नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

नई शिक्षा नीति की मुख्य बातें

▪️भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को 100% तक लाना है।

▪️अब मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम बदल के पुनः शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

▪️इस नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद के 6% हिस्से के सार्वजनिक खर्च का लक्ष्य रखा गया है।

▪️अब से पांचवी कक्षा तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय भाषा, या वहां की क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने पर जोर दिया गया है। साथ ही साथ मातृभाषा को कक्षा 8 और आगे की भी शिक्षा के लिए प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

▪️पूरे भारतवर्ष के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए भारतीय उच्च शिक्षा परिषद नामक एक नियामक की परिकल्पना की गई है।

▪️भारत की शिक्षा नीति में ये पहला परिवर्तन बहुत पहले ही लिया गया था। लेकिन इसे जारी 2020 में किया गया था।

भारतीय शिक्षा नीति का आरंभ

भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि 6 वर्ष से लेकर के 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए भारत में अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन सन् 1948 में डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में किया गया था।

इस समय से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण होना भी शुरू हुआ था। कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित सन 1968 में पहली बार एक महत्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में पारित हुआ था।

अगस्त, सन 1985 में शिक्षा की चुनौती नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया था। जिसमें भारत के भिन्न भिन्न वर्गों (बौद्धिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यावसायिक, प्रशासकीय आदि) ने अपनी शिक्षा संबंधी सुझाव दिए। भारत सरकार ने सन 1986 में नई शिक्षा नीति 1986 का प्रारूप तैयार किया था।

इस नीति की सबसे अधिक महत्वपूर्ण विशेषता ये थी कि इसमें पूरे देश के लिए एक समान शैक्षिक ढांचे को स्वीकार किया गया था। अधिकतर राज्यों ने 10+2+3 की संरचना को अपनाया लिया था। इस नीति को राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में जारी किया गया था।

इस नीति में पुनः से संशोधन सन 1992 में किया गया था। फिर 2014 के आम चुनाव में बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्र में एक नए एक नए शिक्षा नीति बनाने का विषय शामिल किया गया था।

2019 में इसका नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय से बदलकर पुनः शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। 2019 में ही सरकार के द्वारा नई शिक्षा नीति के लिए आम जनता से सलाह लेना भी शुरू कर दिया गया था।

नई शिक्षा नीति में हुए मुख्य परिवर्तन

2020 में आई इस नई शिक्षा नीति में मानव संसाधन मंत्रालय का नाम पुनः से बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने का फैसला लिया गया। इसमें सभी उच्च शिक्षा (कानूनी एवं चिकित्सीय शिक्षा को छोड़कर) के लिए भारत में  उच्च शिक्षा आयोग का गठन करने का प्रावधान किया गया है।

संगीत, खेल, और योग आदि को सहायक पाठ्यक्रम में न रखकर मुख्य पाठ्यक्रम में ही जोड़ा गया। इस शिक्षा तंत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का कुल 6% खर्च करने का लक्ष्य तय किया गया है। जो कि वर्तमान समय में 4.43% है।

एम फिल को समाप्त कर दिया जाएगा। अब से अनुसंधान में जाने के लिए 3 साल के स्नातक डिग्री के बाद 2 साल स्नातकोत्तर करके पीएचडी में प्रवेश लिया जा सकता है।

इस नई नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर भी विशेष जोर दिया गया है। पूर्ण रूप से सुधार करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षक और अन्य सभी शिक्षा कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों एवं कालेजों के स्तर पर शामिल करने की सिफारिश की गई है।

अभी तक प्राइवेट स्कूलों में अपने मनमाने ढंग से फीस मांगने और हर वर्ष बढ़ाने को भी रोकने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा। पहले समूह के अनुसार विषय चुने जाते थे। परंतु अब उसमें भी बदलाव किया गया है जो छात्र छात्राएं इंजीनियरिंग कर रहे हैं वे अब संगीत को भी अपने विषय के साथ पढ़ सकते हैं।

नेशनल साइंस फाउंडेशन की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन लाई जाएगी। इससे पाठ्यक्रम में विज्ञान के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान को भी शामिल किया जाएगा।

इस नई नीति में पहले और दूसरे कक्षा में गणित और भाषा एवं चौथी और पांचवी कक्षा के बालकों के लेखन क्रिया पर विशेष रूप से जोर देने की बात का जिक्र किया गया है।

अभी तक सभी स्कूलों व कॉलेजों में 10+2 फॉर्मेट का ही प्रावधान था। परंतु अब इसके स्थान पर 5+3+3+4 इस नए फॉर्मेट को शामिल किया जाएगा। इसके अंतर्गत पहले 5 साल में प्री प्राइमरी स्कूल के 3 साल और कक्षा एक और कक्षा दो सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल किए जायेंगें।

पहले जहां सरकारी स्कूल की शुरुआत कक्षा एक से होती थी वहीं अब शुरुआत के 3 साल प्री प्राइमरी के बाद फिर कक्षा 1 शुरू होगी। इसके बाद कक्षा 3 से 5 के 3 साल शामिल हैं। फिर 3 साल का मिडिल स्टेज आएगा।

यानी कि कक्षा 6 से 8 तक की कक्षा चौथा स्टेज जो कि कक्षा 9 से 12वीं तक का 4 साल का होगा। पहले 11वीं कक्षा से छात्रों को विषय चुनने की आजादी थी। वहीं अब नौवीं कक्षा से ही छात्र अपने मनपसंद विषय चुन सकेंगे।

इस नई नीति में लोगों को प्रतिक्रियाएं

नई शिक्षा नीति की घोषणा के बाद कई बुद्धिजीवियों, आम जनता, और शिक्षा जगत में मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ लोगों द्वारा मुख्य रूप से इसमें घोषित बदलावों का स्वागत किया गया परंतु साथ ही साथ इसके कई लक्ष्यों को पूरा होने पर संदेह भी जताया गया।

कुछ ने कहा कि नई शिक्षा नीति को भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जो बहुत ही श्रेष्ठ है। अब छात्र केमिस्ट्री के साथ म्यूजिक और फिजिक्स के साथ फैशन डिजाइनिंग भी पढ़ सकेंगे। कई लोगों ने बजट पर भी चिंता व्यक्त की है।

अलग अलग विचारधारा रखने वाले लोगों के द्वारा भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं देखने को मिली है।शुरुआत करनी पड़ती थी। परंतु अब नई शिक्षा नीति के अनुसार यदि वे पहले वर्ष में कोर्स को छोड़ते हैं तो उन्हें प्रमाण पत्र दूसरे वर्ष पर छोड़ने पर डिप्लोमा और तीसरे वर्ष पर छोड़ने पर डिग्री देने का प्रावधान है।

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