सिकंदर कहे जाने वाले अलेक्जेंडर का विश्व विजय के संकल्प का यदि किसी ने हौसला तोड़ा तो वो मगध के महाराजा चन्द्रगुप्त मौर्य थे। कहावतों में भले ही सिकंदर को जीता हुआ कहा जाता है, लेकिन सिकंदर के विश्व विजय के संकल्प को भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य ने तोड़ दिया था।
वो पूरे भारत को अपने आधीन करने आया था। लेकिन कुछ राज्यों को ही जीत पाया। बाहरी देशों में सिकंदर ने ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, गाझा पर जीत हासिल की थी, तो वहीं भारत में तक्षशिला और पंजाब पर ही जीत हासिल कर सका। जबकि तक्षशिला के राजा अंबी ने तो सिकंदर के डर से उससे संधि कर ली थी।
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आचार्य चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य और राजा पुरु को प्रोत्साहन
आचार्य चाणक्य के होनहार शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के सामने ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर दी थी कि उसे विश्वविजय का अपना सपना त्यागना पड़ा और वो अपने देश को वापस लौट गया। ग्रीक इतिहासकारों ने सिकंदर के विषय में जो कुछ भी बातें लिखी हैं वे सभी सत्य नही हैं।
ग्रीस इतिहास में ऐसा लिखा गया है कि अपनी मृत्यु से पहले सिकंदर ने दुनिया की 50 प्रतिशत भूमि पर अपना अधिकार जमा लिया था, परंतु सत्य बात तो ये है कि वो पृथ्वी के केवल 5 प्रतिशत भाग को ही जीत पाया था।
राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के अलावा सिकंदर के विजय रथ को रोकने में पोरस के राजा पुरु का भी बहुत बड़ा योगदान था। राजा पुरु बहुत ही बुद्धिमान और युद्ध नीति में बहुत ही निपुण थे। देश के राजा पुरु को चन्द्रगुप्त मौर्य के राजनीतिक गुरु चाणक्य ने ही सिकंदर से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था।
चाणक्य की सूझबूझ और चाणक्य नीति से ही राजा पुरु ने सिकंदर से युद्ध लड़ा। हालांकि इस युद्ध में राजा पुरु की हार हुई थी लेकिन राजा पुरु और उनकी विशाल सेना की बहादुरी और युद्ध नीति को देखकर सिकंदर दंग रह गया था। जिसके बाद सिकंदर ने राजा पुरु को उनका राज्य वापिस लौटा दिया था।
सिकंदर की सेना को धन का लालच देकर उनमें फूट डालना
महाराजा पुरु को उनका राज्य लौटाने के बाद सिकंदर की सेना में एवं देश से आए सैनिकों के अलावा जिन राज्यों पर उसकी सेना ने विजय हासिल की थी, उन देशों के भी सैनिक शामिल थे।
हारे हुए देशों और राज्यों के सैनिकों को सिकंदर की सेना में धन का लालच देकर रखा गया था। चंद्रगुप्त मौर्य और उनके आचार्य चाणक्य को ये बात बखूबी पता थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसी वजह से अपने सैनिकों में देशभक्ति की ज्वाला भरने का काम किया।
तक्षशिला विश्वविद्यालय के माध्यम से आचार्य चाणक्य पूरे भारत देश में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला का संचार कर रहे थे। ताकि लोग अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य को न भूलें। ये देश हमारा है और हम ही इसके रक्षक हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य के आचार्य की चाणक्य नीति
चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर की सेना को भड़काना और उनके बीच फूट डालना शुरू किया। चंद्रगुप्त ने अपनी समझदारी से सिकंदर की सेना को ये सोचने मजबूर कर दिया कि वो किसके लिए लड़ रहे हैं और क्या सिकंदर की सेना की ओर से लड़ने में उन्हें सम्मान मिलेगा?
मजबूरी और धन के लालच में आकर सिकंदर की सेना की ओर से लड़ रहे सैनिकों को ऐसे चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा उठाए गए इन सवालों ने हिलाकर रख दिया। इसके पश्चात सिकंदर की सेना में आपस में ही विद्रोह हो गया। भारतीय सैनिकों ने ग्रीस के सैनिकों की हत्या कर दी।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के मन में ये बात बैठा दी कि अगर वो जीते हुए राज्यों को पीछे छोड़कर ऐसे ही आगे बढ़ता रहा तो उसके द्वारा पीछे छोड़े देशों एवं राज्यों में विद्रोह हो जाएगा और ऐसा उस समय हो भी रहा था।
आखिरकार चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के विश्व विजय के सपने पर लगाया पूर्ण विराम
जैसे ही जैसे सिकंदर देशों पर विजय करता हुआ आगे बढ़ रहा था, वैसे ही वैसे जीते हुए पीछे के सभी देशों में विद्रोह शुरू हो गया था। जिसके बाद सिकंदर अपने सेनापति सेल्यूकस के भरोसे सब छोड़ कर भारत से वापिस अपने देश को लौटने लगा था।
सिकंदर, स्थल मार्ग से 325 ईसा पूर्व में भारत से वापिस लौटा और 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में मात्र 33 वर्ष की आयु में मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
सिकंदर की मृत्यु के पश्चात चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंद्रगुप्त मौर्य ने दो बार सेल्युकस को हरा दिया यानी दो बार उसे बंधी बनाकर छोड़ दिया।
इस हार के पश्चात जब सेल्यूकस ने देखा की वो चंद्रगुप्त मौर्य को हरने में सक्षम नहीं है तो उसने चंद्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली थी। राजा चन्द्रगुप्त मौर्य से अत्यधिक प्रभावित होकर बाद में सेल्यूकस ने अपनी बेटी हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त से करा दिया था।
चंद्रगुप्त मौर्य के तीन विवाह हुए थे। उनका पहला विवाह उनकी बचपन की मित्र दुर्धरा के साथ हुआ था। जिससे की उनके बिंदुसार नामक एक पुत्र हुआ। उनका दूसरा विवाह सेल्युकस की बेटी यूनानी की राजकुमारी हेलेना के साथ हुआ था।
जिससे की उनके जस्टिन नाम का एक पुत्र हुआ। उनका तीसरा विवाह नंदनी के साथ संपन्न हुआ था।
पहले चाणक्य और पोरस के सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने मात्रा 25 वर्ष की आयु में ही धनानंद को हराकर मगध के सिंहासन पर अपना अधिकार किया।
इसके पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की सहायता से पोरस ने सिकंदर के विरुद्ध बहुत ही धैर्यता और आत्मसम्मान के साथ युद्ध किया। सिकंदर ने छल से राजा पुरु को युद्ध में जरा तो दिया था लेकिन इसके पश्चात भी उन्होंने अपनी हार नही मानी थी।
ये सब देखकर सिकंदर राजा पुरु से बहुत प्रभावित हुआ एवं उसने उनका राज्य उन्हें वापिस कर दिया और भारत छोड़कर वापिस अपने देश लौट गया।
भारत जयतु
पहले राजा पुरु की बहादुरी ने सिकंदर को अपना राज्य नही हड़पने दिया और फिर बाद में सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को चंद्रगुप्त मौर्य ने दो बार हरा दिया था। इन यवनों को कभी भी हमारे देश के पराक्रमी राजाओं ने भारत देश पर हावी नहीं होने दिया।
भारत के वीर रक्षक हमेशा ही भारत पे उठने वाले हाथों को तोड़ देते थे। इन वीर राजाओं के होते हुए कभी भी ये यवन हमारे भारत देश पर कब्जा नहीं कर पाए हैं। इन देशभक्त राजाओं के माध्यम से ये भारत हमेशा विजयी रहा है।
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