जानिए भगवान शंकर की पूजा में तुलसी दल का प्रयोग क्यों वर्जित है, जानिए वजह

भारतीय संस्कृति में सभी देवी-देवताओं से संबंधित बहुत सी आकर्षक और दिलचस्प कहानियां और मान्यताएं पढ़ने व देखने को मिलती हैं। प्राचीन पुराणों के अनुसार हिंदू परंपरा में कुल तैंतीस कोटि के देवी-देवता हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सभी देवताओं में सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के तहत आकर्षक कहानियां न केवल दिलचस्प हैं बल्कि उनके पास साझा करने के लिए हमेशा एक संदेश छिपा हुआ होता है। यहां तक ​​कि जब हम पूजा कर रहे होते हैं या अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा कर रहे होते हैं, तो इसके पीछे भी कोई न कोई वैज्ञानिक कारण या पौराणिक मान्यता अवश्य ही होती है।

जब भक्त अपने दीनबंधु भगवान से प्रार्थना करते हैं तो वे आमतौर पर प्रार्थना के दौरान उन्हें ढेर सारा प्रसाद चढ़ाते हैं। ये प्रसाद अपने भगवान को प्रभावित करने की आशा और इच्छा के साथ किया जाता है ताकि वे हमें आशीर्वाद दें और हमारे जीवन में एक सकारात्मक मार्गदर्शक प्रकाश के साथ हमें प्रबुद्ध करें।

तुलसी दल का प्रयोग देवी-देवताओं को अर्पित की जाने वाली सभी पवित्र और शुद्ध चीजों में अपना पवित्र स्थान है। तुलसी के पत्ते एक पवित्र पौधा भगवान गणेश, शिवलिंग और देवी दुर्गा को छोड़कर या कहें तो शिव जी के पूरे परिवार को छोड़ कर बाकी 8सभी देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को शिवलिंग पर तुलसी के पत्तों का चढ़ावा पसंद नहीं है।

वृन्दा से तुलसी बनने की कहानी

एक पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नाम का एक राक्षस था। उसकी एक बहुत ही सुंदर, गुणवान और पतिव्रता पत्नी वृंदा थी। वृंदा भगवान विष्णु की बहुत बड़ी परम भक्त थी। वे अपने राक्षस पति जालंधर से बेहद प्रेम करती थी और उसका सम्मान भी करती थी। वृंदा एक पति परायणा स्त्री थी। 

जालंधर बहुत ही क्रूर और दैत्यों का राजा था उसे दैत्य राज जालंधर के नाम से संबोधित किया जाता था। उसने देवी और देवताओं के जीवन को नरक बना दिया था। लेकिन पतिव्रता होने के कारण वृंदा की प्रार्थनाएं बहुत शक्तिशाली थीं जिससे उनके पति की रक्षा हुई और इसलिए देवी-देवता जालंधर का कभी कुछ नहीं कर पाए।

सभी देवी-देवता ने बहुत प्रयास किया लेकिन उस दैत्य को मारने का कोई भी उपाय नहीं सूझा, इसलिए वे भगवान शिव के पास एक रास्ता खोजने के लिए गए। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने चालाकी से दानव जालंधर और उसकी पत्नी वृंदा के खिलाफ एक योजना बनाई। भगवान विष्णु ने वृंदा के पति जालंधर का रूप लेकर अपनी वफादार भक्त वृंदा के साथ छल किया। 

वृंदा ने भगवान विष्णु को अपना पति समझकर उनके  चरण स्पर्श किये। जैसे ही उसने भगवान विष्णु के चरण स्पर्श किए। जालंधर रूपी भगवान विष्णु के चरण स्पर्श करते ही उनका पतिव्रता धर्म नष्ट हो गया। भगवान विष्णु को स्पर्श करते ही वे पहचान गयीं कि ये मेरे पति नही हैं, किसी ने मेरे साथ छल किया है। 

जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वो भगवान विष्णु से बहुत क्रोधित हुयीं और अपनी भक्ति को सच्चा मानकर उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने भी उस श्राप को सम्मान के साथ ग्रहण किया। इसके बाद अपना पतिव्रता धर्म नष्ट हो जाने के कारण वृंदा ने अपनी जान दे दी। 

इसके बाद भगवान शिव और  जालंधर के बीच घमासान युद्ध शुरू हुआ। इस बार जालंधर परास्त हो गया क्यों कि अब उसे बचाने वाली शक्ति नष्ट हो गई थी। वृंदा के सतित्व के कारण ही अभी तक इस दैत्य की विजय होती आयी थी। इसलिए, भगवान शिव ने जालंधर राक्षस को बहुत ही आसानी से मार डाला।

वृंदा के द्वारा भगवान विष्णु को दिया गया श्राप व उसका परिणाम

वृंदा समझ गई थी कि उसने अपने पति के पैर नहीं छुए हैं और भगवान विष्णु को अपने मूल रूप में आने के लिए कहा। अपना पतिव्रता धर्म नष्ट हो जाने पर वृंदा पूरी तरह से टूट गई और उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर में बदलने का श्राप दिया, जिसे पुराणों में सालिग्राम के रूप में जाना जाता है।

राक्षस जालंधर की मृत्यु से सभी देवी-देवताओं की समस्या का समाधान हो गया। भगवान विष्णु ने वृंदा को पवित्र तुलसी के रूप में पुनर्जन्म लेने का वरदान दिया था। वृंदा ये बात जानती थी कि उनके पति की मृत्यु भगवान शिव के हांथों से होना तय है इसलिए उसने शिव को अपने किसी भी हिस्से के साथ पूजा करने से मना कर दिया।

यही कारण है कि पवित्र तुलसी या तुलसी के पत्ते भगवान शिव को नहीं चढ़ाए जाते हैं, जबकि भगवान विष्णु को दी जाने वाली पूजा तभी पूरी होती है जब पूजा के दौरान तुलसी दल प्रत्येक भोग आदि में प्रयोग की जाती है।

भगवान शिव को अन्य पसंद और नापसंद वस्तुयें

▪️भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष भगवान शिव की पसंदीदा वस्तुयें हैं, जो उनके लिए पूजा करते समय बहुत ही आवश्यक हैं।

▪️शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते, कुमकुम, हल्दी पाउडर, नारियल पानी, केतकी का फूल और चंपा का फूल चढ़ाना वर्जित है।

भगवान भोले नाथ को कैसे प्रसन्न करें

▪️भगवान शिव की पूजा करने से पहले आपको भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।

▪️दिन में एक बार मंत्र जाप या पूजा करके भगवान शिव की पूजा करें। 

▪️सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे उत्तम दिन है।

▪️भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से सोमवार के दिन ठंडा दूध, बेल पत्र और अनाज चढ़ाएं।

▪️रोज 5 दोहे ही सही लेकिन घर पर रामायण का पाठ करें। इससे शिव जी बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं। 

भगवान शिव के आराध्य श्री राम हैं और श्री राम के आराध्य महादेव जी हैं इसलिए जब आप शिव जी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शिव जी के समक्ष श्री राम जी का गुणगान गायें अर्थात श्री रामचरितमानस का नित्य पाठ अवश्य ही करें।

शिवलिंग पर क्या क्या चढ़ा सकते हैं?

शिवलिंग पर धतूरे का फूल, बेल पत्र, भांग, भस्म, चंदन का लेप और ठंडा दूध चढ़ाना चाहिए। इसमे भी यदि कोई वस्तु घर पर सहजता से उपलब्ध ना हो तो कम से कम बेल पत्र अवश्य ही चढ़ाने चाहिए। इससे भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करना कठिन नहीं है। उनका नाम ही भोले नाथ है वो अपने भक्तों पर बहुत ही जल्दी कृपा करते हैं।

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