सुंदर सुंदर सोने के गहने, साड़ीयों के अलावा, सुहागन स्त्रियों के सोलह श्रृंगार आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता हैं। हिंदू और जैन महिलाओं के द्वारा पहने जाने वाले सबसे विशेष स्तर पर ज्ञात शरीर के श्रृंगार में से एक है बिंदी, जोकि माथे पर दोनों भौंहों के बिल्कुल मध्य लगायी जाने वाली लाल बिंदु है।
“बिंदी” शब्द का जन्म संस्कृत के बिंदू शब्द से होता है, जिसका अर्थ होता है बूंद या फिर कण। पूरे भारत में बोली जाने वाली कई भिन्न भिन्न प्रकार की भाषाओं और बोलियों के कारण, ये ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है कि बिंदी को भी अलग अलग स्थानों पर कई अन्य नामों से जाना जाता है। जिनमें कुमकुम, सिंदूर, टीप, टिकली और बोट्टू आदि शामिल हैं।
लगभग तीन हजार ई. पू. ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की थी। जिसमें उन्होंने चक्रों नामक केंद्रित ऊर्जा के क्षेत्रों के अस्तित्व का वर्णन किया है। सात मुख्य चक्र होते हैं जो शरीर के केंद्र के साथ चलते हैं। इनमें से जो छठा चक्र (जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है, “भौं चक्र” या “तीसरा नेत्र चक्र”) ठीक वहीं होता है जहां बिंदी लगायी जाती है।
संस्कृत में, आज्ञा का अर्थ “आदेश” या “अनुमान” के रूप में किया जाता है और इसे बुद्धि की आंख माना जाता है। वेदों के अनुसार हमें स्वप्न में जब कोई वस्तु दिखाई देती है तो वो भी आज्ञा से ही दिखाई देती है। इस प्रकार, बिंदी का उद्देश्य इस चक्र की शक्तियों को और अधिक बढ़ाना है।
विशेष रूप से ये चक्र अपने आंतरिक ज्ञान या गुरु तक पहुंचने की क्षमता को सुविधाजनक बनाकर, उन्हें दुनिया को देखने और चीजों को एक सच्चे, निष्पक्ष तरीके से व्याख्या करने के साथ-साथ अपने अहंकार को त्यागने की इजाजत देता है।
हिंदू परंपरा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की एक तीसरी आंतरिक आंख होती है। बाहरी दुनिया को देखने के लिए तो दो भौतिक आंखों का उपयोग किया जाता है। जबकि हमारी तीसरी आन्तरिक आँख ईश्वर की ओर हमारा ध्यान केंद्रित करती है।
जैसे, लाल बिंदु ईश्वर को अपने विचारों के केंद्र में रखने के लिए एक निरंतर ध्यान के रूप में सेवा करने के साथ-साथ पवित्रता का भी प्रतीक है।
बिंदी, विशेष रूप से लाल रंग की होती है। परंतु आज के वर्तमान समय में तो ये हर रंग में उपलब्ध हो गयी हैं। लाल बिन्दी विवाह के शुभ संकेत के रूप में भी काम करती है। जब भी कोई हिंदू दुल्हन अपने पति के घर की दहलीज पर कदम रखती है,
तो उसकी लाल बिंदी उस घर की समृद्धि की शुरूआत करती है और उसे परिवार के सबसे नए सदस्य के रूप में स्थान प्रदान करती है। कुछ समुदायों में, महिलाएं अपने पति की मृत्यु के बाद बिंदी लगाना बंद कर सकती हैं।
हालांकि आज के आधुनिक समय में, बिंदी के प्रतीकवाद का अब सख्ती से पालन नहीं किया जाता है। बिंदी अब सभी आकार और रंगों में आने लगी हैं। अब ये बड़े पैमाने पर सौंदर्य सहायक उपकरण के रूप में उपयोग की जाती हैं न की सुहागन होने के प्रतीक के रूप में।
ये सांस्कृतिक विनियोग के प्रश्न को उत्पन्न करता है, क्योंकि कई अन्य विशेष समुदाय की स्त्रियों ने भी फैशन के रूप में बिंदी लगाना शुरू कर दिया है। जहां पारंपरिक बिंदी-पहने संस्कृतियों वाले कुछ व्यक्ति इस अधिनियम की आलोचना करते हैं, वहीं कुछ अन्य लोग इसे भारतीय संस्कृति को अपनाने के प्रयास के रूप में देखते हैं।
यदि आप अपने माथे पर बिन्दी और आभूषण के पीछे के धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ के बारे में गहन ज्ञान रखते हैं, तो हर तरह से उस बिंदी का प्रदर्शन करें। लेकिन यदि आप डॉट के पीछे के प्रतीकवाद को नहीं जानते हैं या इसके बारे में जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं,
तो आपके लिए इसे पहनने का कोई मतलब नहीं है। जैसा कि सिद्ध है कि बिंदी सिर्फ एक लाल बिंदु से कहीं अधिक है। बिन्दी केवल भारतीय संस्कृति की पहचान ही नही है बल्कि इसको धारण करने के बहुत से साइनटिफिक फायदे भी होते हैं।
फोटो साभार : jagran