प्राचीन भारतीय समाज का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। हमारे प्राचीन भारतीयों ने सम्पूर्ण विश्व को ना केवल अध्यात्म बल्कि ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्रदान की है।
जिसमें आयुर्वेद की खोज, शून्य का आविष्कार, प्लास्टिक सर्जरी का सूत्रपात, गणितीय सिद्धांत जैसे, बाइनरी संख्याएं, दशमलव प्रणाली, अंक सूचनाएं आदि भारतीय समाज की ही देन हैं। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे गणित के फिबोनाची नंबर (Fibonacci Numbers) के बारे में… माना जाता है कि उपरोक्त नंबर की खोज भी भारतीय समाज में हुई थी।
जिसका सबसे पहले प्रयोग पिंगला ने अभियोदन में संस्कृत परंपरा के तौर पर किया था। इसके अलावा, गणितज्ञ विरहंका में भी इन संख्याओं को गठित करने की प्रक्रिया का वर्णन किया जा चुका है।
लेकिन बाद में इसे सत्यापित करने का श्रेय इटली के जाने माने गणितज्ञ फिबोनाची को दिया जाने लगा, जिन्होंने यूरोपीय गणित के तौर पर इन संख्याओं को प्रस्तुत किया था। हालांकि फिबोनाची भी इसे भारतीय गणित का ही हिस्सा मानते हैं।
तो फिर क्यों इन गणितज्ञ सूत्रों को फिबोनाची के नाम से जाना जाता है, हमारे आज के इस लेख में हम आपको यही बताएंगे। जिसके बाद आप जान पाएंगे कि इन फिबोनाची संख्याओं का संबंध भारतीय गणित से कैसे रहा है?
फिबोनाची नंबर क्या है? (What is Fibonacci Numbers)
सबसे पहले जान लेते हैं कि क्या है फिबोनाची संख्याएं। फिबोनाची संख्याओं की उत्पत्ति आज से करीब 200 ईसा पूर्व भारतीय गणित की लिपियों में हुई थी।
जबकि आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार, लगभग 12वीं सदीं के दौरान इटली के पीसा शहर में रहने वाले महान गणितज्ञ लियोनार्डो पिसानो बोगोलो (फिबोनाची) ने फिबोनाची संख्याओं का सूत्रपात किया था। जिनके नाम पर ही इन संख्याओं का नाम फिबोनाची पड़ा।
फिबोनाची संख्याएं गणित की संख्याओं का वह क्रम कहलाती हैं, जोकि शून्य से आरंभ होती है और फिर आगे हर संख्या का जोड़ बनती चली जाती हैं।
जैसे..
0,1,1,2,3,5,8,13,21,34,55,89,144,233,377,610, 987….
उपरोक्त संख्याओं में देखें तो 0+1= 1, 1+1= 2, 1+2= 3, 2+3= 5, 3+5= 8, 5+8= 13, 13+21= 54 आदि।
फिबानोची संख्याओं में आगे वाली संख्या का पिछली संख्या से भाग करने पर 1.618 अनुपात प्राप्त होता है।
जैसे..
13/8= 1.618
21/13= 1.618 आदि।
इसी तरह से जब पहले वाली संख्या को आगे वाली संख्या से भाग किया जाता है..तब
89/144= 0.618 जिसे प्रतिशत में 61.8% माना गया।
इसके अलावा, अगर पहले वाली संख्या को एक संख्या के बाद वाली संख्या से भाग किया जाए…तब
21/55= 0.382 जिसे प्रतिशत में 38.2% माना गया।
फिर अगर, पहले वाली संख्या को दो संख्या आगे से भाग किया जाए….तब
21/89= 0.236 जिसे प्रतिशत में 23.6% माना गया।
उपरोक्त समस्त प्रतिशतों का प्रयोग शेयर मार्केट में शेयर चार्ट के दौरान किया जाता है। इस प्रकार, फिबोनाची संख्याओं के माध्यम से शेयर मार्केट में रीट्रेसमेंट स्तर को देखने के दौरान इनका प्रयोग किया जाता है, जोकि फिबोनोची संख्याओं के गणितीय गुणों को प्रदर्शित करता है।
फिबोनाची संख्याएं अनंत प्रकार की नंबर सीरीज हैं, जोकि कभी खत्म नहीं होती हैं। फिबोनाची संख्याओं को आपने आम बोलचाल में कुछ इस तरह से इस्तेमाल किया होगा..जैसे विदेशों में तारीख लिखने से पहले महीने का नाम लिखा जाता है।
जैसे, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की तारीख 9/11 लिखी जाती है, लेकिन अमेरिका समेत अनेक देश इसे 11/23 लिखते हैं, जोकि एक फिबोनाची संख्या है और इसी दिन को फिबोनाची संख्या दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
जिसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है..1,1,2,3 आदि। इस तरह से, फिबोनाची संख्याएं आकाशगंगा के रहस्यों से लेकर, विभिन्न तरह की इमारतों के निर्माण आदि में प्रयोग में लाई जाती हैं।
फिबोनाची संख्याओं का क्या है भारतीय संबंध?
इन संख्याओं को इटली के जाने माने गणितज्ञ फिबानोची के नाम से जाना जाता है। लेकिन इन फिबानोची संख्याओं का आधार भारत से जुड़ा रहा है।
जिसकी जानकारी खुद फिबानोची ने दी थी, उनका कहना था कि जब वह अपने पिता के साथ बाहर देशों की यात्राओं पर जाया करते थे, तब उन्हें भारतीय लोगों से ही हिंदू अरेबिक संख्याओं के बारे में पता चला था।
इसका जिक्र उन्होंने कई बार अपने लेखों में किया है कि भारत की संख्या पद्वति की मदद से ही उन्होंने इन फेबोनाची संख्याओं का विस्तार किया है या प्रयोग में लाया है। साथ ही उन्होंने सम्पूर्ण दुनिया के लिए कैलकुलेशन के आसन तरीकों का भी इजाद किया है, यही कारण है कि वह दुनिया के महान गणितज्ञों में से एक कहे जाते हैं।
ऐसे में फेबोनाची जब भारतीय व्यापारियों के संपर्क में आए, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि हिंदू अरेबिक संख्याएं कितनी फायदेमंद हैं, तब जाकर फिबोनाची ने अपनी किताब लिबर अबाची में फिबोनाची संख्याओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।
इसी में उन्होंने बताया कि ये फिबोनाची संख्याएं भारतीय गणितज्ञों की खोज है, जिसे उन्होंने केवल दुबारा अपनी किताब में लिख दिया है। दिबोनाची कहते हैं कि…
“मैंने गणित के समस्त सिद्धांतों को भारतीय तकनीक के आधार पर लिखा है। इन्हीं में फिबोनाची संख्याएं भी मौजूद हैं, जिनको मैंने पूर्णतया भारतीय गणितीय पद्धति से लिया है”
इस प्रकार, फिबोनाची संख्याओं की खोज भारतीय गणितज्ञों ने की है। जिसे फिर बाद में फिबोनाची ने संग्रहित करके दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया।
इन संख्याओं को 200सदी के दौरान आचार्य पिंगल ने, 6वी सदी के दौरान आचार्य विरहंका ने, वर्ष 1135 में आचार्य गोपाल और वर्ष 1150 में हेमचंद्र ने अपनी गणित की पुस्तकों में फिबोनाची से पहले ही उल्लेखित कर दिया था।
जिन्हें हेमचंद ने हेमचंद श्रेणी का नाम भी दिया था। साथ ही भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो आचार्य पिंगल ने फेबोनाची संख्याओं का सूत्रपात किया था, जोकि आचार्य पाणिनि के छोटे भाई थे।
जिन्होंने फिबोनाची संख्याओं के संदर्भ में बताया था कि तीसरी संख्या पहली दो संख्याओं का योग है, जिसे छंद सूत्रम के नाम से जाना जाता है। इसे आगे चलकर पश्चिमी देशों में इस तरह से प्रदर्शित किया गया…
F (n) = F (n+1) + F (n+2)
उपरोक्त बातों से ये निष्कर्ष निकलता है कि फिबोनाची संख्याएं भारतीय गणितज्ञों की ही देन है, जिन्हें भी उसी तरह भुला दिया गया।
जैसे वर्तमान में अनेक वैज्ञानिक रहस्यों और खोजों को आधुनिक समाज की देन माना जाता है, लेकिन वह सब भारतीय पृष्ठभूमि से जुड़े रहे हैं, ठीक उसी तरह से फिबोनाची संख्याएं भी भारतीय लोगों ने ही खोजी, जिनको इटली के गणितज्ञ फिबोनाची के आविष्कार के तौर पर जाना जाने लगा।
