मंत्रों के विषय में कहा गया है कि….
“मननात त्रायते यस्मात्तस्मान्मंत्र उदाहृत:”
यानि जिनका चिंतन, मनन और जप करने से सांसारिक दुःख दूर हो जाते है, वहीं मंत्र है। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और विभिन्न धार्मिक अवसरों पर मंत्रों आदि का जप किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन ये मंत्र कहां से आए?
धार्मिक प्रयोजन के दौरान विभिन्न प्रकार के मंत्रों का जप क्यों किया जाता है और इन मंत्रों के पीछे का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है?
यदि आपको भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो आज हम आपको मंत्रों के सम्पूर्ण रहस्य के बारे में बताने वाले है।
विषय सूची
मंत्र का अर्थ क्या है?
मंत्र का संधि विच्छेद मन+त्र है, जिससे तात्पर्य एक ऐसी ध्वनि या विशेष शब्दों की श्रृंखला से है, जिसका उच्चारण या जप करने से व्यक्ति के मन या इच्छाशक्ति का विकास होता है।
हालांकि मंत्र का कोई स्पष्ट अर्थ मौजूद नहीं है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां और सिद्धियां मंत्रों में ही पाई जाती है। जिस कारण इसे किसी एक प्रकार से परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
लेकिन हमारे प्राचीन वेदों और पुराणों में मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जोकि विशेष शब्दों के संयोजन से मिलकर बने हैं और इनके माध्यम से व्यक्ति आध्यात्मिक अनुभूति कर सकता है।
लेकिन आम जनमानस की सुविधा के लिए ऐसा कहा जाता है कि मंत्र का जप व्यक्ति को कर्म, धर्म और मोक्ष की शक्ति प्रदान करता है। साथ ही ईश्वर की कृपा पाने के लिए भी मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
व्यक्ति के मन को तारने वाली शक्ति भी इन्हीं मंत्रों में निहित होती है। इतना ही नहीं, अगर आप सांसारिक मोह माया के बंधन से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो अनेक मंत्रों का जप करने से ऐसा संभव है।
मंत्रों के प्रभाव से बुरी शक्तियों या तंत्र की शक्ति को भी निष्क्रिय किया जा सकता है। मंत्रों का उच्चारण करने से व्यक्ति न केवल तन मन की शुद्धि, बल्कि गंभीर रोगों, शोक, भय, चिंता से भी छुटकारा मिल जाता है।
या यूं समझिए कि मंत्र व्यक्ति के दुःख दर्द को कम करके उन्हें शांति, समृद्धि और सुख चैन प्रदान करते हैं। मंत्रों का जप करने से व्यक्ति को दीर्घायु और पारिवारिक शांति मिलती है।
किसी भी व्यक्ति पर मंत्रों का प्रभाव कैसे पड़ता है?
कहा जाता है कि मंत्रों के प्रत्येक शब्द में विशेष प्रकार के रंग और तरंगे मौजूद होती है, जोकि जिस व्यक्ति के रंग और तरंग से मिल जाए, वह उसे लाभ पहुंचाना शुरू कर देती है।
अर्थात् जब व्यक्ति मंत्रों का उच्चारण या जप करता है, तो जैसी उसकी नीयत होती है, मंत्र भी उसी आधार पर उसे लाभ और हानि प्रदान करते है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंत्रों का जप आपको ईष्ट देवता की कृपा दिलवाता है। साथ ही दिव्य शक्तियों को पाने के लिए भी मंत्र अचूक उपाय के तौर पर प्रयोग में लाए जाते है।
इतना ही नहीं, मंत्रों का उच्चारण करके व्यक्ति गुप्त शक्तियों से भी रूबरू हो जाता है। व्यक्ति मंत्रों का नित्य और विधि विधान से जप या उच्चारण करने के पश्चात् ही अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय पा सकता है।
मंत्र कितने प्रकार के होते है?
हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक अवसरों पर अनेक प्रकार के मंत्रों का जप किया जाता है।
बात करें उच्चारण के आधार पर, तो मंत्र दो प्रकार के होते हैं, एक वह जिसे साधारण मनुष्य भी उच्चारित कर सकते हैं, जबकि अन्य मंत्र ऐसे होते हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा ही कहे जाते है।
हिंदू धर्म में अनेक देवी देवताओं का ध्यान करने के लिए अनेक प्रकार के मंत्रों का जप किया जाता है। जिनमें बीज मंत्र जिन्हें मंत्रों का प्राण कहा जाता है, इससे मंत्र जप की शुरुआत की जाती है।
जिसके बाद गायत्री मंत्र, सूर्य मंत्र, भोजन मंत्र, दुर्गा मंत्र, सूर्य मंत्र, सिद्धि मंत्र, चमत्कारी मंत्र, हनुमान मंत्र, गुरु मंत्र समेत अनेक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
हमारे प्राचीन पुराणों, वेदों और उपनिषदों में अनेकों मंत्र और श्लोकों का वर्णन किया गया है, जिनका जप या उच्चारण अत्यंत शुभ माना जाता है।
इन मंत्रों को हमारे प्राचीन विद्वानों ने रचित किया है, जिन्हें वेदों या पुराणों से रचित काव्य भी कहा जा सकता है। ॐ का उच्चारण समस्त मंत्रों की धुरी है, कहने का तात्पर्य यह है कि समस्त मंत्रों की उत्पत्ति ॐ से हुई है।
ॐ को परम ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है, जिसके एकमात्र उच्चारण से ही व्यक्ति को ईश्वर का साक्षात हो सकता है।
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मंत्रों का जाप करने से क्या लाभ होते है?
मंत्रों का जप करने पर सबसे पहले व्यक्ति के शरीर, फिर मन और उसके बाद आत्मा पर उसका लाभदायक प्रभाव देखने को मिलता है।
कहा जाता है, ज्योतिष शास्त्र के रत्नों को धारण करने पर भी उतने लाभों की प्राप्ति नहीं होती, जितनी मंत्रों के जप से होती है।

मंत्रों के उच्चारण या जप की सही विधि या तरीका क्या है?
मंत्रों का जप करने से पहले व्यक्ति को सर्वप्रथम स्थान, आसान और समय का चुनाव कर लेना चाहिए।अगर आप प्रात: मंत्र उच्चारण करने की सोच रहे हैं, तो हाथों को नाभि के पास उत्तान करके बैठे।
मध्यकाल में हाथों को हृदय के पास ले जाकर सीधी अवस्था में मंत्र जप करें। जबकि सायं के समय हाथों को नीचे करके मुंह के समांतर मंत्रों का उच्चारण करें।
कहा जाता है कि अगर आप मंत्र उच्चारण के लिए किसी अच्छे दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो आने वाली पूर्णिमा या अमावस्या को मंत्र जप के लिए चुन सकते है।
वैसे मंत्रों का जप करने के लिए पंचमी, द्वितीया, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी आदि भी उत्तम मानी गई हैं।
वहीं बात करें, माह की तो मंत्र उच्चारण के लिए कार्तिक, अश्विन, वैशाख, मार्गशीर्ष, फाल्गुन, श्रावण आदि सर्वोत्तम माने गए है।
मंत्र जप के लिए रविवार, शुक्रवार, बुधवार और गुरुवार का दिन अच्छा माना जाता है, जबकि मंत्रों का उच्चारण करने के लिए शुभ चंद्रमा देखना अति आवश्यक है।
मंत्रों का जप करने के लिए नक्षत्रों का शुभ होना भी आवश्यक है। आप पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, श्रवण रेवती, अनुराधा, रोहिणी आदि नक्षत्रों में मंत्र उच्चारण कर सकते हैं।
मंत्रों का जप करते समय आसान काला या सफेद रंग का ही होना चाहिए। जोकि कुशासन, ऊन, बाघम्बर या मृग की खाल से बने हुए होने चाहिए।
आप चाहे तो चटाई, लकड़ी की चौकी पर बैठकर भी मंत्रों का उच्चारण कर सकते है। मंत्रों का उच्चारण करने के दौरान आपके हाथ में रुद्राक्ष की माला का होना शुभ माना जाता है।
इसके अलावा आप जयंती माला, स्फटिक, लाल मूंगा, चंदन, तुलसी, हाथी दांत और कमल की 108 दानों की माला को भी मंत्र जाप के समय प्रयोग में ला सकते है।
मंत्र जप करते समय प्रयोग की जाने वाली माला को कपड़े से ढक लेना चाहिए। इसको घुमाने के लिए अनामिका उंगली और अंगूठे का ही इस्तेमाल करना चाहिए। सिर से कभी भी माला नहीं घूमानी चाहिए।
मंत्रों का उच्चारण करने के करीब 15 मिनट बाद तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए।मंत्र उच्चारण के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे उचित माना गया है। साथ ही मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए, तभी उसका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
दिन के समय मंत्र जप करते समय अपना मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें। जबकि रात्रि के दौरान उत्तर दिशा में ही मुख करके मंत्र जप करें। मंत्रों का जप करने के लिए सबसे जरूरी है, कि आपका तन और मन स्वच्छ होना चाहिए।
किसी प्रकार का क्रोध, बुरी भावना, गलत बोलना या मंत्र जप के दौरान हिलने डुलने से आपको इसका पूर्णतया लाभ नहीं मिलता है। मंत्र का मुख से उच्चारण मुख्य रूप से तीन प्रकार से किया जाता है, वाचिक, उपांशु और मानसिक।
वाचिक जप प्राय: धीरे धीरे बोलकर किया जाता है, जबकि उपांशु जप ऐसे करना चाहिए, ताकि कोई दूसरा न सुन सके, जबकि मानसिक जप के दौरान आपकी जीभ और ओंठ नहीं हिलते है।
ये तीनों ही विधियां एक दूसरे से श्रेष्ठ मानी जाती है। इस प्रकार, हिंदू धर्म में मौजूद अनेक मंत्र विभिन्न प्रकार के लाभ देने वाले है।
माना जाता है कि जो व्यक्ति स्वच्छ तन और मन से मंत्रों का जप या उच्चारण करते हैं, वह सदा के लिए जन्म और मृत्यु के भय से छुटकारा पा लेता है।
साथ ही मंत्रों का उच्चारण करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ, शत्रुओं पर विजय, तन मन की शुद्धि, सात्विक भाव और अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है।
मंत्रों के फलदायी प्रभाव को लेकर कहा गया है कि….
किसी व्यक्ति द्वारा घर में मंत्र जप करने से एक गुना, गोशाला में सौ गुना, किसी वन और बगीचे या तीर्थ में हजार गुना, किसी पर्वत या पहाड़ी पर दस हजार गुना, नदी के समीप लाख गुना, देवालय के समीप करोड़ गुना और शिव या शिवलिंग के निकट बैठकर करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है।
