ॐ शब्द के उच्चारण मात्र से ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दुनिया में बोले जाने वाले सभी मंत्रो का केंद्र ॐ है।
ॐ को ही संपूर्ण ब्राह्मण का प्रतीक कहा जाता है। धर्मों में कहें जाने वाले मंत्रों में ॐ का कोई अर्थ नहीं होता लेकिन ॐ का उच्चारण विशेष होता है।
यूं तो ॐ ध्वनि के 100 से ज्यादा अर्थ दिए गए हैं, परंतु यह अनादि, अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। भारतीय सभ्यता की शुरुआत से ही अधिकतर लोग ॐ के महत्व से परिचित हैं।
हालांकि ॐ को समझना इतना सरल नहीं है, लेकिन फिर भी हम आज के लेख के माध्यम से आपको बताने का प्रयास करेंगे कि ॐ क्या है? और हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के आधार पर ॐ क्या है?
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ॐ (ओम) क्या है?
“तस्य वाचकः प्रणवः”
अर्थात् उस ईश्वर का वाचक प्रणव ‘ॐ’ है। ॐ का दूसरा नाम प्रणव (परमेश्वर) है। इस प्रकार ॐ और ब्रह्म यानि परमेश्वर में कोई भेद नहीं है।
ॐ एक ऐसा एकाक्षरी मंत्र है, जो ‘अ’ से आकर, ‘उ’ से उकार एवं ‘म’ से मकार ‘नाद’ और ‘बिंदु’ इन पांच अवयवों से मिलकर बनता है।
यह ॐ शब्द जिन तीन ध्वनियों – अ, उ, म, से मिलकर बना है, उनका अर्थ उपनिषदों में भी स्पष्ट होता है। यह तीन ध्वनियां ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक हैं। साथ ही यह भू लोक, भूवः लोक और स्वर्ग लोक का प्रतीक भी है।
ॐ की उत्पत्ति
ओम् हिन्दू धर्म की प्रतीक चिन्ह है। यह हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र शब्द अथवा मंत्र है। ओम् शब्द की उत्पत्ति को समझना सरल नहीं है, वेदों में ओम् शब्द को ईश्वर का नाम कहा गया है।
इसी ॐ में समस्त संसार की शक्ति समाहित है। यदि ओम शब्द पर गंभीरता से विचार किया जाए तो देखा जाएगा कि सभी इसके रूपांतर मात्र है।
प्राचीन काल में जब ऋषि, मुनियों द्वारा ध्यान की विधि अपनाई जाती थी तो उनका ध्यान वातावरण में मौजूद ध्वनि पर रहता था।
उनकी शांत अवस्था में ओम् की ध्वनि परिलक्षित होती थी, जिसके चलते ॐ का समाजिक स्तर पर मुनियों ने विस्तार किया।
इसके अलावा वेदों, पुराणों, कथाओं में ओम् के विषय में यह बताया जाता है कि भगवान शिव ने ओम् का शब्द राम नाम से संबधित माना है।
शिवजी कहते हैं, समस्त सृष्टि ओम् से है और ओम् राम नाम से उत्पन्न शब्द है। व्याकरण के मुताबिक भी राम से ओम् अर्थात् ॐ उत्पन्न होता है।
ॐ और राम का संबंध
कि जिस तरह ॐ ब्रह्मा,विष्णु व शिव अर्थात् विधि, हरि व हर मय है उसी तरह राम भी विधि हरि, हर मय है।
देवो के देव शिव शंकर भी ॐ का नहीं राम नाम का जप करते है, लेकिन जो अहंकार या आलोचना के विचारों से राम नाम का परित्याग करते हैं, उनका इस अहंकार से ॐ जप करने पर भी विनाश संभव होता है।
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विवेचना
ॐ का यह ‘ॐ’ चिन्ह बेहद अद्भुत है। ॐ को ‘ओम’ लिखना एक मज़बूरी है, क्योंकि ॐ के उच्चारण के लिए इसे शब्दों में व्यक्त करना आवश्यक है।
माना जाता है कि ओम अत्यन्त पवित्र और शक्तिशाली होता है। किसी भी मंत्र की शुरुआत में जब ॐ जुड़ जाता है, वह पूर्णतः शुद्ध और शक्ति संपन्न हो जाता है।
चूंकि ॐ ब्रह्म का स्वरूप है, इसलिए किसी भी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मन्त्रों के पहले ॐ लगाया जाता है। जैसे – शिव मंत्र- ॐ नमः शिवाय, ॐ रामाय नमः, ॐ विष्णवे नमः आदि।
ओम् के बिना कोई भी मंत्र हितकारी नहीं माना जाता है। हम यह भी कह सकते हैं कि मंत्रों के उच्चारण के लिए मात्र ॐ का उच्चारण ही पर्याप्त है।

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ‘ॐ’
विभिन्न हिन्दू पुराणों, धर्मशास्त्रों व आगम साहित्यों में ॐ की महिमा सर्वत्र व्याप्त है। छान्दोग्योपनिषद् में ऋषियों ने गाया है, ॐ इत्येतत् अक्षरः (अर्थात् ॐ अविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है।)
ॐ एक ऐसा अक्षर है जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरषार्थों को प्रदान करने वाला है। एक मात्र ॐ के जप से ही विभिन्न साधकों ने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति की है।
पुराणों में लिखा है कि कोशीतकी ऋषि के कोई संतान नहीं थे, संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सूर्य का ध्यान करते हुए ॐ का जाप किया।
जिसके लाभ से उन्हें संतान के रूप में पुत्र संतान की प्राप्ति हुई थी। इसके अलावा, श्रीमद्भगद्गीता में ॐ के शब्द को कई बार कई रूपों में प्रदर्शित किया है।
श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय में ॐ को परिलक्षित करते हुए लिखा गया है कि जब कोई व्यक्ति शरीर त्यागते हुए ब्रह्म समान ॐ अक्षर का उच्चारण करता है तो वह व्यक्ति परम गति को प्राप्त होता है।
गोपथ ब्राह्मण ग्रंथ में ॐ का कुछ इस प्रकार उल्लेख हुआ है कि जो लोग पूर्व की ओर मुख रखकर ‘कुश’ के आसन पर बैठकर अपने मुख से ॐ अक्षर मंत्र का उच्चारण करते हैं तो उनके सभी कार्य सफल होते हैं।
ओम् अक्षर का महत्व
भारतीय सभ्यता के आरंभ से ही ओम् के महत्व से सभी परिचित हैं। सनातन धर्म ही नहीं बल्कि भारत में मौजूद अन्य धर्म, दर्शनों ने भी ॐ को महत्व प्रदान किया है।
बौद्ध-दर्शन में “मणिपद्मेहुम” का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए होता है। इस मंत्र के अनुसार ॐ को “मणिपुर” चक्र में अव्यवस्थित माना जाता है। वहीं जैन धर्म में भी ॐ की महत्वता का उल्लेख किया गया है।
ॐ की ध्वनि मन, तन और बुद्धि को स्वच्छ करने वाली है। यह ब्राह्मण का नाद है और मनुष्य के अन्दर स्थित ईश्वर का प्रतीक है।
गुरु नानक ने एकमात्र ॐ के महत्व को प्रतिपादित करते हुए लिखा है, “एक ओंकार सतनाम कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्तयानी” अर्थात् ॐ सत्यनाम जपनेवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं “अकाल-पुरुष के” समान हो जाता है।
महात्मा संत कबीर ने भी ओम् की शक्ति को स्वीकारा और इस पर विशेष साखियां भी लिखीं जिनमें से कुछ इस प्रकार है,
ॐ ओंकार आदि मैं जाना।
लिखि औ मेटें ताहि ना माना,
ॐ ओंकार लिखे जो कोई,
सोई लिखि मेटणा न होई।
वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषियों के अनुसार, ओम्, एकाक्षरी मंत्र का पाठ करने में दाँत, नाक, जीभ का उपयोग होता है, जिसके चलते हार्मोनल स्राव कम होता है।
ग्रंथि स्राव को कम करके यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा तथा शरीर के सात चक्र (कुंडलिनी) को जागृत करता है। पद्मासन में बैठ कर ॐ का जप करने से मन को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है। ऋषि, मुनियों ने भी ॐ का ध्यान करना बेहद लाभकारी बताया है।
आशा करते हैं कि आपको ॐ के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी।
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