रामायण युग की वास्तविकता का प्रतिबिंब है ‘रामसेतु’, जानिए क्या है इसके होने का सच?

ramsetu bridge

रामायण काल में कैसे हुआ था रामसेतु का निर्माण?

सर्वविदित है कि भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम ने त्रेतायुग में अवतार लिया था। इस युग को रामायण काल भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस युग में जब लंकापति नरेश माता सीता का हरण करके उन्हें लंका ले गया था।

तब भगवान श्री राम अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण करने के लिए गए थे। इस दौरान बीच में उन्हें एक बहुत बड़ा समुद्र मिला था, जिसे पार करने के बाद ही वह (भगवान श्री राम) लंका पहुंच सकते थे।

लेकिन समुद्र की विशाल लहरें भगवान श्री राम और उनकी वानर सेना के लिए चुनौती बनी हुई थी। जिस कारण भगवान श्री राम ने वरुण देवता का आह्वान करके उनसे समुद्र की लहरों को शांत करने के लिए कहा। लेकिन वरुण देवता ने उनकी एक न सुनी।

जिसके बाद भगवान श्री राम ने क्रोधित होकर धनुष बाण उठा लिया। तभी वहां समुद्र देवता प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि आप इस समुद्र पर पुल का निर्माण कराइए, और पत्थरों पर भगवान श्री राम लिखवाएं।

माना जाता है कि इस पुल को पार करने के लिए नल और नील नामक विश्वकर्मा देवपुत्रों ने पत्थरों पर जय श्री राम लिखा और वानरों ने उन पत्थरों को समुद्र में डाला। इस प्रकार, पत्थरों पर भगवान श्री राम का नाम लिखकर एक विशाल पुल का निर्माण किया गया।

जिसके निर्माण के दौरान आश्चर्य की बात ये थी कि भगवान श्री राम का नाम लिखने के बाद पत्थर पानी में डूब नहीं रहे थे, बल्कि यह पुल सारे पत्थरों को मिलाकर बिना किसी वैज्ञानिक तकनीक के तैयार किया गया था। जिसे ‘रामसेतु’ (Ramsetu) के नाम से जाना जाता है।


क्या वास्तव में रामसेतु है रामायण काल की वास्तविकता का प्रतीक? कहां मौजूद है रामसेतु

वर्तमान में, रामसेतु भारत और श्रीलंका को आपस में जोड़ने का काम करता है, या कहा जा सकता है कि भारत और श्रीलंका के बीच ही रामसेतु पुल के अवशेष भी पाए गए हैं। जो इस बात को और अधिक पुख्ता करते हैं, कि रामायण युग वास्तव में था, जिसमें भगवान श्री राम अवतरित हुए थे।

रामसेतु भारत देश के दक्षिण पूर्व स्थित रामेश्वरम में मौजूद है, जबकि श्रीलंका में यह पूर्वोत्तर दिशा में मन्नार द्वीप के मध्य चूने की चट्टानों सा पाया गया है।  जिसकी लंबाई करीब 48 किलोमीटर आंकी गई है। बात करें पुल की गहराई के बारे में, तो इसकी गहराई कहीं कहीं 3 फुट तो कहीं 30 फुट तक है।

नासा के वैज्ञानिकों ने, अंतरिक्ष से 14 दिसंबर साल 1966 को जेमिनी 11 उपग्रह की सहायता से भारत के दक्षिण और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम के बीच भू-भाग में मौजूद चट्टानों (पुल की भांति) का एक चित्र लिया था। जिसे साल 1993 में दुनिया के समक्ष रखा गया।

जिसे ही रामसेतु के  तौर पर जाना जाने लगा। फिर करीब 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने रामेश्वरम, तमिलनाडु व जाफना द्वीपों के मध्य एक भू भाग का चित्र लिया गया, जोकि अमेरिकी चित्र से काफी मिलता जुलता था।

साल 1917 में अमेरिकी टीवी पर  साइंस का एक शो Ancient land bridge आया। जिसमें हिंदुओं की आस्था से जुड़े रामायण काल के धार्मिक तथ्यों को हटाकर इस मानव निर्मित बनाया गया। इस शो में इस बात को रखा गया कि दोनों देशों के मध्य चट्टानों की एक लंबी रेखा मौजूद है। वैज्ञानिकों की मानें तो ये चट्टानें करीब 7000 साल पुरानी हो सकती है।

हालंकि माना ये भी जाता है कि समय के साथ समुद्र का ये भू-भाग काफी क्षत विक्षत भी हुआ है। जिसे ही हिंदू धर्म के लोग आज ‘रामसेतु’ के नाम से जानते हैं।

आधुनिक वैज्ञानिक रामसेतु के मिले अवशेषों को super human achivement मानते हैं। उनके अनुसार, दोनों देशों के बीच पाई गई बालू और पत्थर की चट्टानें रामसेतु के तथ्य को सच साबित करती है। जिसकी उम्र और प्राचीनता को लेकर शोध आज भी जारी है।

जानकारी के लिए बता दें कि रामसेतु पुल की उम्र को लेकर ASI (आर्किलॉजिस्ट सर्व ऑफ इंडिया) और NIO (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी) शोध करेंगे। जिसके लिए आधुनिक तकनीक जैसे, रेडियोमैट्रिक और थर्मोलुमिनेसेंस डेटिंग को प्रयोग में लाया जाएगा।

रामसेतु विवाद क्या है?

साल 2005 से ही श्रीलंका के मन्नार द्वीप के मध्य समुद्र में मिली एक छिछला पानी की पथरीली जगह आज भी विवादों में है। यानि रामसेतु के मिले अवशेषों को लेकर लोग अनेक मत प्रस्तुत करते हैं। जिस कारण कई लोग रामसेतु को इंसान निर्मित बताते हैं, जोकि कहीं ना कहीं हिंदुओं की आस्था को भ्रमित करता है, यही कारण है कि जब कांग्रेस सरकार में सेतुसमुद्रम परियोजना चलाई गई थी, तब उसका काफी विरोध हुआ था।

क्योंकि इस योजना के तहत समुद्र की खुदाई इत्यादि होनी थी, लेकिन हिंदू धर्म के अनुयायियों को ये आस्था और श्रद्धा के खिलाफ लगने लगे, जिस कारण रामसेतु को लेकर राजनीतिज्ञ और धार्मिक तथ्यों को लेकर काफी मतभेद देखने को मिलते हैं।

इतना ही नहीं, जब साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने रामसेतु को मानव निर्मित घोषित कर दिया था, तब हिंदू धर्म के लोगों की धार्मिक भावनाएं काफी आहत हुई थी। यही कारण है कि रामसेतु के मिले अवशेषों के चलते जहां हिंदू धर्म के लोग इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करवाना चाहते हैं, तो कई लोग इस पर टिप्पणी करने से अब भी कतराते हैं।

रामसेतु है हिंदुओं की आस्था का प्रतीक

भारत के दक्षिण में मिले चट्टानों के ये सबूत इस बात को साबित करते हैं कि रामसेतु और रामायण काल केवल हिंदू धर्म की सच्ची आस्था का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि इनके असल में होने के प्रमाण भी मौजूद हैं।

जिसे श्रीलंका के मुस्लिम निवासी आदम पुल कहा करते थे, जबकि पश्चिमी सभ्यता के अनुयायियों ने इसे एडम ब्रिज कहकर संबोधित किया, लेकिन हिंदुओं के लिए ये उनकी आस्था के तौर पर जाना जाता है। जिसे वे भगवान श्री राम की आधारशिला मानते हैं।

हिंदू धर्म के अनुयायियों के मुताबिक, कालांतर में ये पुल प्राकृतिक आपदाओं और चक्रवातों के चलते डूब गया होगा, जिसके अवशेष अब अनेक वैज्ञानिकों के शोध के बाद मिल रहे हैं। कहा जाता है कि 15वीं सदी के दौरान इस पुल पर चढ़कर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक आसानी से जाया जा सकता था। लेकिन धीरे-धीरे समुद्र के उच्च जल स्तर के कारण ये पुल समुद्र में छिप गया।

धार्मिक स्रोतों के अनुसार, रामसेतु पुल का निर्माण रामायण काल में उसी स्थान पर हुआ था, जहां से वर्तमान में भारत और श्रीलंका का आपस में जुड़ाव देखने को मिलता है। वाल्मीकि जी की रामायण में वर्णित है कि समुद्र के आसपास जिस स्थान पर भगवान श्री राम ने क्रोध में आकर धनुष बाण चलाया था, उसे धनुषकोटि के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान में धनुषकोटि तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप के दक्षिण में मौजूद है। इसी के समीप रामसेतु पुल का निर्माण भगवान श्री राम की वानर सेना के द्वारा किया जाता था। जबकि कई लोगों का मानना है कि रामसेतु पुल का निर्माण धनुष आकार में हुआ, इसलिए पुल के समीप इस जगह को धनुषकोटि कहा गया।

जिसका धार्मिक पुस्तकों में नाम नलसेतु लिखा गया है, क्योंकि पुल के निर्माण में विश्वकर्मा जी के पुत्र नील की तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। पुल के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इस पुल को बनाने में लगभग 5 दिन का समय लगा था। 

वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, जिसके निर्माण में उन पत्थरों का प्रयोग किया गया था, जिनका निर्माण ज्वालामुखी के फटने से हुआ था। कहा जाता है कि ये पत्थर पानी में नहीं डूबते थे। जबकि धार्मिक मान्यताएं इसे भगवान श्री राम के नाम का चमत्कार कहती हैं। यही कारण है कि रामसेतु के बारे में वाल्मीकि की रामायण, वेदव्यास की महाभारत, कालिदास की रघुवंश, 

विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण आदि में उल्लेख मिलता है। 

इस प्रकार, रामसेतु मानव निर्मित है इस बात को लेकर आज भी कई मतभेद हैं, लेकिन अगर आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखेंगे तो वे रामसेतु को मानव निर्मित मानते हैं, जिसके लिए वे अनेकों तथ्य प्रस्तुत भी करते हैं, जबकि धार्मिक अनुयायियों और हिंदुओं के अनुसार, इस भव्य और विशाल रामसेतु का निर्माण रामायण काल में ही हो गया था, जोकि प्राकृतिक आपदाओं के चलते अपनी पहचान खो चुका है, जिसे दुबारा स्थापित करना हमारा परम कर्तव्य है, क्योंकि युगों-युगों 

में उल्लेखित ये रामसेतु पुल हिंदू धर्म की प्राचीन मान्यताओं और संस्कृति का आधार माना जाता है। जिसके होने पर ही युग और उससे जुड़े समय की कल्पना की जा सकती है।

आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और सनातन संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।

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अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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