आपने अक्सर देखा होगा कि जब भी सांप अपनी जीभ बाहर निकलता है तो हमें वह दो भागों में कटी हुई दिखाई पड़ती है। अब आप यह सोच रहे होंगे कि यह कौन सी बड़ी बात है? क्योंकि संसार में मौजूद समस्त जीव जंतुओं की शारीरिक संरचना अलग-अलग होती है।
ऐसे में सांप की जीभ का दो भागों में कटा होना कौन से आश्चर्य की बात है? इसके पीछे तो जीव विज्ञान विद्यमान है। परंतु यदि हम आपसे कहें कि सांप की जीभ का दो भागों में कटा होना धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना गया है। तो क्या आप हमारी इस बात पर विश्वास करेंगे।
यदि नहीं तो हम आपको हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ महाभारत का आधार देकर इस बात की पुष्टि करेंगे। जी हां! महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में सांप की जीभ के दो भागों में कटे होने के बारे में बताया गया है। जिसकी कहानी निम्न प्रकार से है….
महाभारत ग्रंथ के अनुसार, यह कहानी महर्षि कश्यप से आरंभ होती है। जोकि हिंदू धर्म के प्रसिद्ध सप्तऋषियों में से एक थे। जिनकी तेरह पत्नियां थी। महर्षि कश्यप की एक पत्नी जिनका नाम कद्रू था। समस्त नाग उनके ही पुत्र माने जाते थे।
महर्षि कश्यप की एक अन्य पत्नी जिनका नाम विनता था। वह गरुड़ पक्षी की माता थी। एक बार की बात है जब महर्षि कश्यप की दोनों पत्नियां जंगल में विचरण करने गई। तब वहां उन्हें एक सफेद घोड़ा दिखाई दिया। जिसे देखकर महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काले रंग की है।
जबकि महर्षि कश्यप की दूसरी पत्नी विनता ने कहा कि नहीं घोड़े की पूंछ का रंग सफेद है। अब दोनों ने इस बात की पुष्टि करने के लिए शर्त लगाई। शर्त के मुताबिक जिसकी बात गलत निकली वह दूसरे की दासी बनना स्वीकार करेगी।
जिसके बाद महर्षि की पत्नी कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि यदि तुम लोग अपना आकार छोटा करके घोड़े की पूंछ पर लटक जाते हो, तो उसकी पूंछ काली नजर आने लगेगी। अपनी माता के मुख से यह सब सुनकर काफी सारे नाग पुत्र ऐसा पाप करने से मना कर देते हैं, लेकिन अपनी माता के श्राप और गुस्से से बचने के लिए वह यह काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
जिसके बाद सभी नाग पुत्र घोड़े की पूंछ से लटक जाते हैं और उसकी सफेद पूंछ काली लगने लगती है। ऐसे में महर्षि की पत्नी विनता शर्त हार जाती है और उन्हें कद्रू की दासी बनना पड़ता है।
फिर जब गरुड़ को यह बात पता चलती है कि नाग पुत्रों और माता कद्रू ने उसकी माता को दासी बना लिया है। तब वह अपनी माता को दासता से मुक्त कराने के लिए नाग पुत्रों के पास जाता है। और उनसे अपनी माता विनता को दासत्व से मुक्त करने को कहता है। जिसपर नाग पुत्र उसे इसके बदले में स्वर्ग से अमृत लाने को कहते हैं।
ऐसे में अपनी माता के लिए गरुड़ स्वर्ग से अमृत लाकर एक प्रकार की धारदार घास पर रखकर नाग पुत्रों को दे देता है। उधर, नाग पुत्र अमृत पाकर बहुत खुश हो जाते हैं और उसे पीने से पहले स्नान पर चले जाते हैं।
तभी इंद्र देवता वहां आकर अमृत से भरा कलश उठाकर अपने साथ स्वर्ग ले जाते हैं। जिसे देख नाग पुत्र जिस घास पर अमृत कलश रखा होता है, उसे यह सोचकर चाटने लगते हैं कि शायद इस पर अमृत का अंश बचा होगा। जिस पर उनकी जीभ उस धारदार घास के संपर्क में आते ही बीच से कट जाती है। कहते हैं इसलिए सांपों की जीभ अग्र भाग से कटी हुई होती है।
शिक्षा – इस प्रकार हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी आगे बढ़ने के लिए झूठ का सहारा या किसी दूसरे के साथ छल कपट नहीं करना चाहिए। अन्यथा आपको भविष्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
आशा करते हैं कि आपको यह धार्मिक कहानी पसंद आई होगी। ऐसी ही सनातन धर्म से जुड़ी धार्मिक कहानियां पढ़ने के लिए Gurukul99 पर दुबारा आना ना भूलें।
