द्वापरयुग को महाभारत काल के नाम से भी जाना जाता है। इस युग में भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस युग में भगवान श्री कृष्ण ने समुन्द्र तट के समीप द्वारिका नगरी बसाई थी, जोकि वर्तमान में गुजरात के निकट स्थित है।
ऐसे में वर्षों बाद मिले द्वारिका नगरी के अवशेष इस बात को सत्य सिद्ध करते हैं कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्वारिका नगरी की स्थापना की गई थी और महाभारत का युग भी काल्पनिक नहीं था।
हमारे आज के इस लेख में हम आपको द्वारिका नगरी और उसकी वास्तविकता से ही परिचित कराने वाले हैं। जिससे आपको ना केवल द्वारिका नगरी बल्कि महाभारत काल के होने का सच भी मालूम पड़ जाएगा।
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वैज्ञानिक खोज में मिले थे द्वारिका नगरी के अवशेष

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, द्वारिका नगरी जिसे भगवान श्री कृष्ण ने बसाया था, इसका सबसे पहले नाम कुशस्थली था। जिस पर भगवान श्री कृष्ण और यदुवंशियों ने करीब 36 सालों तक शासन किया और इसका नाम द्वारिका रखा। कहा जाता है अनेक द्वार होने के चलते इस नगरी का नाम द्वारिका रखा गया।
जिसके वर्तमान युग में सबसे पहले अवशेष वायुसैनिकों ने खोज निकाले थे। जिसके बारे में जामनगर के गजेटियर में वर्णन किया गया है। उसके बाद प्रो. राव और उनकी पुरातत्व टीम ने मिलकर वर्ष 1979-80 में द्वारिका नगरी की करीब 560 मीटर लंबी दीवार ढूंढ निकाली।
इसके बाद वर्ष 2005 में नौसेना के गोताखोरों ने द्वारिका नगरी के अवशेष खोज निकाले। इस दौरान उन्होंने नगरी से जुड़े 200 नमूनों को एकत्रित किया था। द्वारिका के अवशेष नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियनोग्राफी ने भी समुद्र के अंदर पाए, जिनके आधार पर ये अनुमान लगाया जाता है, कि द्वारिका नगरी वास्तव में महाभारत काल के दौरान बसाई गई थी।
आधुनिक समय में जहां द्वारिका के अवशेष पाए गए हैं, वह जगह अरब सागर के द्वीप पर गुजरात के काठियावाड़ में स्थित है। जहां समुद्र में द्वारिका नगरी की अनेक लंबी दीवारें पाई गई हैं। साथ ही इसके आसपास करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन भी मिले हैं। जोकि 1528 ईसा पूर्व से लेकर 3000 ईसा पूर्व तक माने जाते हैं।
आपको बता दें कि द्वारिका नगरी के अवशेषों की खोज डेक्कन कॉलेज पुणे और गुजरात सरकार के साथ मिलकर डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी ने भी वर्ष 1963 में की थी। जिसके बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की अंडर वाटर विंग को समुद्र के भीतर तांबे के पुराने सिक्के, चूना पत्थर और ग्रेनाइट भी मिले थे। इसके अलावा, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के शोध में भी ये बात सामने आई कि समुद्र के भीतर हजारों साल पुराने पत्थर, हड्डियां और लकड़ियां मौजूद हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, समुद्र की 130 फीट तक गहराई में जाकर जो लकड़ी की वस्तुएं मिली है, वह द्वारिका का ही हिस्सा हैं। उनका ये भी मानना है कि द्वारिका के अब तक 250 से अधिक अवशेष सूरत से लेकर कच्छ तक प्राप्त होते हैं। रिपोर्ट की मानें तो द्वारिका नगरी करीब 9000 हजार वर्षों से समुद्र में डूबी हुई है और ये करीब 32000 वर्ष पुरानी है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आप भी द्वारिका नगरी के अवशेषों को करीब से देख सकते हैं। जिसके लिए आप समुद्र में 60 से लेकर 80 फीट नीचे तक स्कूबा डाइविंग कर सकते हैं। इस दौरान आप समुद्र में विभिन्न प्रकार की मछलियों, कलाकृतियों और प्रतिमाओं के भी अद्भुत नजारे देख सकते हैं।
अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वारिका नगरी श्राप के चलते तीन भागों में बंटकर समुद्र में डूब गई थी। कहा जाता है कि इन्हीं में से एक भाग में स्थित भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में मीराबाई ध्यानमग्न रहते हुए समा गई थी।
द्वारिका नगरी की महत्ता
द्वारिका सम्पूर्ण भारतवर्ष के 7 प्राचीन शहरों में से एक थी। जिसको द्वारावती, आनर्तक, गोमती द्वारिका, चक्र तीर्थ, वारि दुर्ग आदि नामों से भी जाना जाता है। वर्तमान में द्वारिका गुजरात राज्य के पश्चिम में स्थित 4 धामों में से एक है, जबकि 7 प्रसिद्ध पुरियों में एक पवित्र पुरी है।
जिनमें से एक द्वारिका गोमती द्वारिका धाम कहलाती है, जबकि दूसरी बेट द्वारिका पुरी। जहां वर्तमान में द्वारिकाधीश का बहुत अद्भुत मंदिर मौजूद है। जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इस प्रकार द्वारिका, धार्मिक दृष्टि से विशेष स्थान है, जिसका महत्व वर्तमान समय में भी दृष्टिगोचर होता है।
द्वारिका नगरी के उजड़ने का प्रमुख कारण थे ये दो श्राप
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् जब माता गांधारी का संपूर्ण कौरव वंश समाप्त हो गया था। तब उन्होंने श्री कृष्ण को श्राप दिया था कि जिस तरह से वे (माता गांधारी) अपने वंश की समाप्ति पर आंसू बहा रही है। ठीक उसी प्रकार से, द्वारिका नगरी भी समुद्र में डूब जाएगी।
यही कारण है कि अपने अंत समय में द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गई थी।
दूसरे श्राप को सच मानें तो एक बार की बात है जब भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब अपने मित्रों के साथ द्वारिका नगरी में खेल रहे थे। तब वहां ऋषि विश्वामित्र और ऋषि कण्व पहुंचे। जिन्हें देखकर सांब और उनके मित्रों ने ऋषियों से एक व्यंग किया। उन्होंने सांब को एक स्त्री की भांति तैयार कर दिया और ऋषियों से कहा कि ये स्त्री गर्भवती है, आप इसका गर्भ देखकर ये बताएं कि इसकी कोख से कौन जन्म लेगा?
दोनों ही ऋषि इस बात को जानते थे कि सांब और उनके मित्र ऋषियों से हंसी टिटोली कर रहे हैं। जिससे क्रोधित होकर दोनों ही ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि इस स्त्री (सांब) के गर्भ से एक मूसल जन्म लेगा, जोकि तुम्हारे कुल का नाश कर देगा।
ऐसे में जब श्री कृष्ण को ऋषियों के इस श्राप के बारे में मालूम पड़ा। तब उन्होंने सांब के गर्भ से मूसल उत्पन्न कराकर उसे समुन्द्र में फिंकवा दिया। साथ ही नगरवासियों को आदेश दे दिया कि कोई भी व्यक्ति घर में मदिरा पान नहीं करेगा और न मदिरा बनाएगा। लेकिन ऋषियों का श्राप व्यर्थ कैसे जा सकता था। ऐसे में जब श्री कृष्ण ने दोनों ही श्रापों से बचने के लिए सारे यदुवंशियों को तीर्थ पर जाने को कहा। तो सारे यदुवंशी रास्ते में ही लड़ने झगड़ने लगे।
इतना ही नहीं, लड़ाई इतनी बढ़ गई कि वह सभी एक दूसरे के प्राणों के प्यासे हो गए। कहते हैं यदुवंशियों के इस झगड़े के अंत में केवल भगवान श्री कृष्ण, सारथी दारुक और बलराम बचे थे। बलराम जिन्होंने भी यदुवंशियों के कुल का नाश होते ही देह त्याग दिया, जबकि श्री कृष्ण ने भी जरा नामक एक शिकारी का बाण पैर में लगते ही मानव देह त्याग दिया।
उधर, द्वारिका नगरी की महिलाओं, बच्चों और शेष नागरिकों को पांडव अर्जुन अपने साथ हस्तिनापुर ले गए और फिर द्वारिका नगरी पूरी तरह से समुद्र में समा गई। जिसके वर्तमान में मिले अवशेष इस बात को सिद्ध करते हैं कि द्वापरयुग में द्वारिका नगरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के माध्यम से ही हुआ था और महाभारत का युग हिंदू धर्म में बताए गए चारों युगों में से द्वापरयुग का ही परिचायक था। जोकि साधारण मनुष्यों के लिए अधर्म पर धर्म की जीत का वास्तविक प्रतिबिंब था।
आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और सनातन संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।
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