समय-समय पर प्रत्येक युग में कई सारे महान् पुरुषों ने जन्म लिया है। जिनकी वीरता और साहस से भरी कहानियां ना केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती हैं।
हमारे आज के इस लेख में भी हम आपको त्रेतायुग में जन्मे एक ऐसे ही वीर पुरुष राजा मुचुकुंद (Raja muchkund) के बारे में बताने जा रहे हैं।
जिनके साहस और शौर्य के आगे स्वर्ग लोक के देवता भी नतमस्तक हो जाया करते हैं।
हिंदू धर्म में वर्णित चार युगों में से एक युग था त्रेतायुग। जिसमें भगवान विष्णु के अवतार श्री राम ने जन्म लिया था। त्रेतायुग को द्वितीय युग भी कहा जाता है, जिसकी अवधि करीब 12,28,000 साल थी।
इसी युग में एक इक्ष्वाकु वंशी राजा मंधाता हुए। जिनके तीन पुत्र थे। उनके नाम क्रमश: अमरीष, पुरू और मुचुकुंद थे। इनमें से राजा मुचुकुंद जोकि सबसे शक्तिशाली थे और उनकी वीरता के चर्चा तीनों लोकों में हुआ करते थे।
इतना ही नहीं, राजा मुचुकुंद के पराक्रम के आगे बड़े-बड़े शूरवीरों ने भी घुटने टेक दिए थे।
ऐसे में हमारे आज के इस लेख में हम आपको त्रेतायुग में जन्मे राजा मुचुकुंद की वीरता और साहस से जुड़ी कहानी बताने जा रहे हैं।
जब राजा मुचुकुंद ने की थी देवताओं की रक्षा
एक बार की बात है जब देवलोक में असुरों का आतंक बढ़ गया था। जिससे भयभीत होकर समस्त देवतागण देवराज इंद्र के पास मदद मांगने पहुंचे।
तब देवराज इंद्र ने राजा मुचुकुंद को सेनापति नियुक्त करके उन्हें देवलोक की सुरक्षा का कार्यभार सौंप दिया। जिसके बाद राजा मुचुकुंद ने सम्पूर्ण देवलोक को असुरों से बचाने के लिए काफी लंबे समय तक युद्ध किया और असुरों को परास्त कर दिया।
हालांकि इस दौरान राजा मुचुकुंद पल भर के लिए भी नहीं सोए। इसके बाद भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को राजा मुचुकुंद की जगह सेनापति बनाकर उन्हें सेवामुक्त कर दिया गया।
युद्ध समाप्ति के बाद जब राजा मुचुकुंद ने देवराज इंद्र के समक्ष धरती पर वापिस लौटने की इच्छा व्यक्त की। तब देवराज इंद्र ने उन्हें बताया कि आप करीब एक साल से स्वर्ग में हैं और अब धरती पर एक युग बीत चुका है।
ऐसे में अब वहां आपका कोई भी परिचित जीवित नहीं बचा है। देवराज इंद्र के मुख से यह बात सुनकर राजा मुचुकुंद काफी दुःखी हो गए।
फिर उन्होंने देवराज इंद्र से वरदान मांगा कि अब आप मुझे चिरकाल तक विश्राम या नींद का वरदान दे दीजिए और जो भी मेरी नींद में बाधा बने, वह तुरंत ही भस्म हो जाए।
देवराज इंद्र जोकि राजा मुचुकुंद के सेवाभाव से अत्यधिक प्रसन्न थे, उन्होंने राजा मुचुकुंद को मांगा हुआ वरदान दे दिया।जिसके बाद राजा मुचुकुंद श्यामाष्चल पर्वत की एक गुफा में जाकर गहरी नींद में सो गए।
माना जाता है जिस गुफा में राजा मुचुकुंद विश्राम के लिए गए थे, वह आज उत्तर प्रदेश के ललितपुर में मौजूद है। जिसे मौनी सिद्ध बाबा की गुफा के नाम से भी जाना जाता है।
राजा मुचुकुंद ने द्वापरयुग में खोली आंखें
हिंदू धर्म में बताए गए चारों युगों में तीसरे स्थान पर द्वापरयुग आता है। जिसका अवधि काल 8,64,000 वर्षों तक माना गया, इस युग में भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राजा मुचुकुंद त्रेतायुग से लेकर द्वापरयुग के आरंभ तक विश्राम की अवस्था में ही रहे। इसके बाद जब भगवान श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए मगध नरेश जरासंध ने मथुरा पर आक्रमण किया।
तब उसके साथ म्लेक्ष्छ (यवन) देश का राजा कालयवन भी मौजूद था। जोकि जरासंध का परम मित्र था, जिसे भगवान शिव से किसी भी युद्ध में अजय का वरदान मिला हुआ था।
ऐसे में जब कालयवन भगवान श्री कृष्ण को युद्ध में मारने के लिए उनके पीछे-पीछे गया। तब भगवान श्री कृष्ण मथुरा से करीब सवा सौ की दूरी पर स्थित उसी गुफा में जाकर छुप गए।
जहां राजा मुचुकुंद सो रहे थे। इतना ही नहीं, भगवान श्री कृष्ण ने कालयवन को भ्रमित करने के लिए अपनी पीतांबरी राजा मुचुकुंद के ऊपर डाल दी और स्वयं गुफा के पीछे जाकर छिप गए।
जिसके बाद कालयवन ने राजा मुचुकुंद को श्री कृष्ण समझकर उनको विश्राम से जगा दिया, लेकिन राजा मुचुकुंद जिन्हें देवराज इंद्र का वरदान मिला हुआ था, कि जो कोई भी उनकी नींद में खलल डालेगा, वह तुरंत भस्म हो जाएगा।

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ऐसे में कालयवन के ऊपर जैसे ही राजा मुचुकुंद की दृष्टि पड़ी, वह वहीं भस्म हो गया। इस तरह से राजा मुचुकुंद ने त्रेतायुग में असुरों से देवताओं की रक्षा की और द्वापरयुग में उन्होंने कालयवन नाम के राक्षस का वध किया।
जिससे प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अपने असली रूप अर्थात् भगवान विष्णु के अवतार में दर्शन दिए।
जिसके बाद राजा मुचुकुंद ने भगवान श्री विष्णु से कहा कि हे! प्रभु, मैं अब अपने जीवन से मुक्ति चाहता हूं, कृपया मुझे मोक्ष का रास्ता दिखाएं।
जिस पर भगवान श्री विष्णु ने राजा मुचुकुंद को पांच कुंडीय यज्ञ करने को कहा। जिसकी पूर्णाहुति होने के बाद राजा मुचुकुंद गंधमादन नामक पर्वत पर तपस्या करते हुए मोक्ष को प्राप्त हो गए।
तो इस प्रकार, राजा मुचुकुंद ने एक साधारण राजा की योनि में जन्म लेकर अपने वीर और पराक्रम के बल पर स्वर्गलोक के अनेक देवी-देवताओं की रक्षा की।
साथ ही कई सारे राक्षसों का वध करके अधर्म का नाश किया। जिनके बारे में हिंदू धर्म के विभिन्न पुराणों और शास्त्रों में वर्णन मिलता है।
जिनका जीवन चरित्र सम्पूर्ण विश्व के व्यक्तियों के लिए प्रेरणादायी और जानने योग्य है।
उम्मीद करते हैं आपको यह धार्मिक और पौराणिक कहानी अवश्य पसंद आई होगी। इसी तरह की धर्म से जुड़ी कथाओं और रोचक कहानियों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर आना ना भूलें।
