विमानों को अक्सर हमने आसमान में उड़ते हुए देखा है, जोकि अनेक प्रकार के होते हैं।
वर्तमान वैज्ञानिक युग में आज यह विमानों की बदौलत ही संभव हो पाया है कि हमने चंद समय में ही धरती से आसमान की दूरी तय कर ली है।
इतना ही नहीं, चांद समेत सौर मंडल के अन्य ग्रहों पर भी विमानों के माध्यम से ही पहुंचा जा सका है। विमानों की सहायता से ही युद्ध आदि आपात परिस्थितियों में शत्रुओं से निपटा जाता है।
हालांकि यदि हम वर्तमान परिदृश्य की बात ना करें तो पाएंगे कि उस दौर में भी विमान हुआ करते थे जब सनातन धर्म के अनुसार, धरती पर साधारण मनुष्यों का नहीं बल्कि स्वर्गलोक के देवी-देवताओं का वास हुआ करता था।
जिसकी जानकारी हमें हमारे धार्मिक और पौराणिक स्त्रोतों से मिलती है। इन्हीं प्राचीन ग्रंथों और महाकाव्यों से हमें पुष्पक विमान, शकुना विमान, रुकमा विमान जैसे कई तरह के अद्भुत विमानों के बारे में पता चलता है, जिससे ज्ञात होता है कि उस दौर में भी विमान आविष्कारों की शैली उन्नत हुआ करती थी।
जिसका प्रयोग देवी-देवताओं द्वारा किया जाता था। जैसे:- त्रेतायुग में रावण माता सीता का हरण करके जिस विमान से उन्हें लंका ले गया था, वह पुष्पक विमान था।
तो वहीं द्वापरयुग में भी विष्णुरथ, शकुनी, रुक्मा आदि विमानों का प्रयोग महाभारत काल के दौरान किया गया था।
ऐसे में हमारे आज के इस लेख में हम आपको प्राचीन विमानों के उद्गम के बारे में बताने वाले हैं कि क्या वास्तव में विमान तब भी हुआ करते थे,
जब विज्ञान की खोज तक नहीं हुई थी और अगर हां! तो उस दौर में विमान और उनके निर्माण की विधि क्या थी और साथ ही विमान संचालित कैसे किए जाते थे?
उपरोक्त समस्त प्रश्नों के उत्तर हमें ऋषि भरद्वाज की महान रचना ‘वैमानिक शास्त्र’ से जानने को मिलेंगे। जोकि सनातन धर्म का एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथ है।
विषय सूची
वैमानिक शास्त्र का सामान्य परिचय

इस महान ग्रंथ को महर्षि भरद्वाज ने सालों पहले ही रचित कर दिया था और आज 21वीं सदी के इस युग में जब देश विदेश में आधुनिक विमानों का आविष्कार करके शक्ति प्रदर्शन किया जा रहा है।
तो ऐसे में इस प्राचीन भारतीय वैमानिक शास्त्र और इसमें वर्णित विमानों के बारे में आम जनमानस को पता लगना बेहद आवश्यक हो जाता है।
वैमानिक शास्त्र की आधुनिक प्रासंगिकता को पंडित सुब्बाराय शास्त्री ने भी वर्गीकृत किया है। हालांकि कई बार वैमानिक शास्त्र के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह भी लगा,
लेकिन यह प्रमाणित हो चुका है कि इसमें वर्णित विमान और उसकी निर्माण प्रक्रिया काल्पनिक या मनगढ़त नहीं है, ये शास्त्र पूर्ण तरीके से व्यावहारिकता पर आधारित हैं।
क्योंकि हमारे ऋषि मुनि जिन्होंने अपना जीवन भले ही जंगलों और पेड़ों के नीचे व्यतीत किया हो, लेकिन अपनी बौद्धिक क्षमता के बल पर ही वह महान तपस्वी और श्रेष्ठ वैज्ञानिक कहलाए।
साथ ही जिनकी रचनाएं आज भी विश्व के मस्तक पटल पर स्थापित होकर सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन कर रही हैं।
इसके अलावा, सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसकी पावन भूमि पर अनेक ऋषि मुनियों ने जन्म लिया है।
इन ऋषि मुनियों ने ना केवल मनुष्यों को संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से परिचित कराया, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान-विज्ञान से रूबरू कराने के लिए अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों और ग्रंथों की भी रचना की।
एक ऐसा ही प्राचीन भारतीय ग्रंथ है वैमानिक शास्त्र अर्थात् विमानों का विज्ञान। जिसमें प्राचीन विमानों के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई है।
तो चलिए अब जानते हैं वैमानिक शास्त्र और उसमें बताए गए विभिन्न अद्भुत विमानों के बारे में…..
ऋषि भरद्वाज ने विमान को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है कि…
वेग संयत् विमानो अण्डजानाम्।।
अर्थात् आसमान में उड़ने वाले पक्षियों की भांति वेग के चलते इसे विमान कहा जाता है।
जानकारी के लिए बता दें कि वैमानिक शास्त्र, जोकि ऋषि भरद्वाज के ‘यंत्र शास्त्र’ नामक ग्रंथ का ही एक भाग है, इसे संस्कृत भाषा में करीब 400 वर्ष पूर्व लिखा गया था।
जिसमें कुल 8 अध्याय और 3000 श्लोक मौजूद हैं। इस शास्त्र को अब तक हिंदी, अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है।
जिसको पुस्तक के रूप में संपादित करने का श्रेय पंडित सुब्बाराय शास्त्री जी को दिया जाता है।
वैमानिक शास्त्र में बताए गए विमान संबंधी रहस्य और निर्माण प्रक्रिया
वैमानिक शास्त्र में कई सारे ऐसे विमानों और उनसे जुड़ी निर्माण प्रक्रिया के बारे में बताया गया है, जिनकी तर्ज पर ही आधुनिक विमानों का आविष्कार किया जा रहा है।
इतना ही नहीं, वैमानिक शास्त्र में करीब 32 रहस्य भी बताए गए हैं, जिनको जान लेने के बाद ही कोई विमान चालक विमान चलाने में निपुणता हासिल कर सकता है। ये रहस्य निम्न हैं:-
अंतराला, गुडा, तमोनय, प्रलय, विमुख, ज्योतिर्भाव, रूपांतर, विमोहन, लंगना, चपलारा, क्रियाग्रहन, दिक्प्रदर्शन, जलादा रूप, स्तब्धक, कर्षण, सुरूपा, दृश्य, परोक्ष, अपरोक्ष, विस्रिता, विरुपा पराना, आकाशाकार, महाशवबदा, अद्रिश्य, सनोचका आदि। वैमानिक शास्त्र में विमान चालक को रहस्य ज्ञानाधिकारी कहकर संबोधित किया गया है।
वैमानिक शास्त्र में विमान चालक को दिए गए दिशा निर्देश
इतना ही नहीं, वैमानिक शास्त्र में यह भी लिखा गया है कि विमान चालक को कभी खाली पेट विमान नहीं उड़ाना चाहिए। साथ ही जब कोई शत्रु विमान आप पर आक्रमण करे,
तब आपको कृत्रिम बादलों के बीच छिप जाना चाहिए, या तामस यंत्र का प्रयोग करके अंधकार कायम कर लेना चाहिए।
यदि आपके विमान को शत्रु घेर ले तो आप द्विचक कीली का प्रयोग करके शत्रु विमानों को भस्म कर सकते हैं। इतना ही नहीं, युद्ध आदि परिस्थितियों में आप शत्रु सैनिकों पर विमान से शब्द संगण का इस्तेमाल कर सकते हैं।
जिससे शत्रु सेना की हृदय गति रुक सकती है। विमान उड़ाने के दौरान चालक को किस तरह की वेशभूषा पहनी चाहिए?
इसका वर्णन भी वैमानिक शास्त्र में किया गया है। इसके साथ ही विमानों में लगे यंत्रों, दर्पण और धातुओं का उत्पादन और प्रयोग भी बताया गया है।
वैमानिक शास्त्र में बताई गई विमान संबंधी निर्माण प्रक्रिया
इसके अलावा, वैमानिक शास्त्र में मुख्य रूप से 500 प्रकार के विमान और उनकी निर्माण प्रक्रिया का जिक्र किया गया है। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं:-
- भूतवाह: इस तरह के विमान आग, पानी और हवा से चलते थे।
- शीकोद्गम: ये विमान तेल और पारे से चलने वाले होते थे।
- मणिवाह: इन्हें चंद्र और सूर्य मनियों से चलाया जाता था।
- शक्त्युद्गम: ये विमान बिजली से चलते थे।
- अंशवाह: इनको सूर्य की किरणों से चलाया जाता था।
- धुमयान: ये विमान गैस से चलते थे।
- मरुत्सखा: इस प्रकार के विमान वायु से चलते थे।
- तारामुख: इन विमानों को चुंबक की सहायता से चलाया जाता था।
वैमानिक शास्त्र में कुल 56 तरीकों से विमानों के निर्माण की प्रक्रिया बताई गई है। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार से बनाए गए थे:-
शकुना विमान:

इनका आकार पक्षियों की भांति हुआ करता था। जिसकी लंबाई 80 फुट और चौड़ाई 50 फुट होती थी। इसके निर्माण में पंपों, सिलेंडर, गियर, हीटर, इंजन, बोर्ड इत्यादि का इस्तेमाल किया गया था।
साथ ही इसको बनाने में लोहा समेत अनेक मिश्रित धातुओं का प्रयोग हुआ था।
सुंदर विमान:

ये विमान वर्तमान रॉकेट के आकार के होते थे, यानि इनका आकार बेलनाकार होता था। इनमें एक हीटर, बिजली जेनरेटर और इंजन लगा होता था।
साथ ही ये विमान बिजली का उत्पादन करने के लिए भी जाने जाते थे, जोकि घर्षण, सौर ऊर्जा और जल शक्ति के माध्यम से बिजली बनाते थे।
रूकमा विमान:

त्रिपुर विमान:

इनका आकार तीन मंजिला विमानों या अंडाकार विमानों की भांति होता था। ये विमान आसमान में उड़ने के साथ ही जमीन और पानी में भी चलने में सक्षम होते थे।
ये विमान सौर ऊर्जा और विद्युत के माध्यम से चलते थे, जिनमें पहिए भी लगे होते थे। इनकी लंबाई 100 फुट और चौड़ाई 24 फुट होती थी, साथ ही इन विमानों की ऊंचाई 30 फुट होती थी।
त्रिपुर विमान प्रकाश और अग्नि मिश्रित धातु से मिलकर बने होते थे।
वैमानिक शास्त्र में उन यंत्रों का भी जिक्र किया गया है, जिनके माध्यम से किसी भी विमान को आसानी से संचालित किया जा सकता है। जोकि निम्न प्रकार से हैं:-
- गुह गर्भ यंत्र: विस्फोटक खोजने में सहायक।
- चुंबक मणि: विमानों के लिए आवश्यक धातु।
- दिशा दर्शी यंत्र: दिशा निर्देश के लिए प्रयोग किया जाने वाला यंत्र।
- विश्व क्रिया दर्पण: विमान के आसपास होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए।
- परिवेष क्रिया यंत्र: स्वचालित विमान में प्रयुक्त यंत्र।
- वक्र प्रसारण यंत्र: विमान के पीछे मुड़ने के समय सहायक।
- तमोगर्भ यंत्र: युद्ध या आपात स्थिति में विमान को लुप्त करने में सहायक।
- अपस्मार यंत्र: विषैले गैसों का निष्पादन।
- शब्दाकर्षण या ध्वन्तप्रम्पक यंत्र: आवाज सुनकर दुर्घटना इत्यादि के दौरान विमान को सहायता देना।
उपरोक्त शास्त्र के मुताबिक, जहां मांत्रिक विमानों का प्रयोग सतयुग और त्रेतायुग में किया जाता था, जिनकी संख्या करीब 25 थी।
जैसे:- आजमुख, बृजस्वत, ज्योतिर्मुख, उज्वांगा, कोलाहल, त्रिपुरा, पुष्पक आदि। तो वहीं द्वापरयुग में 56 प्रकार के विमान प्रयोग में लाए गए थे।
जिनमें भैरव, नंदक, वटुक, विष्णुरथ, बृहथ्युंजय, रुक्मा, शकुना, पद्मक, पुष्कर, मंडल आदि तंत्रिका विमान प्रमुख हैं। जबकि कलियुग में 25 प्रकार कृतिका विमान प्रचलित हैं।
मांत्रिक विमान को मंत्रों और परम सिद्धियों के माध्यम से संचालित किया जाता था। जिसका उदाहरण था पुष्पक विमान।
जबकि तांत्रिक विमान वह विमान हुआ करते थे, जोकि शक्तिमय पदार्थों के प्रयोग से नियंत्रित हुआ करते थे। जैसे रुक्मा विमान, शकुना विमान आदि।
जबकि कृतिका विमानों को बल,धातु, सौर ऊर्जा, ईंधन, विद्युत और पानी की सहायता से नियंत्रित किया जाता है।
- इसके अलावा, वैमानिक शास्त्र में हमें तीन रथ वाले वाहनों का भी उल्लेख मिलता है, जिसे प्राचीन राजाओं, क्षत्रियों और देवताओं के द्वारा इस्तेमाल किया जाता था।
इनमें त्रितल, त्रिपुर, विद्युत और त्रिचक्र आदि रथ विमानों की भांति उड़ाए जाते थे। जिनके निर्माण की विधि का भी वर्णन वैमानिक शास्त्र में किया गया है। - बात करें अति प्रसिद्ध पुष्पक विमान की, जिसका प्रयोग लंकापति रावण द्वारा किया गया था, तो इसको बनाने का श्रेय अगस्त्य मुनि को दिया जाता है।
जोकि मंत्रों और सिद्धियों की मदद से नियंत्रित किया जाता था। इसके अलावा, विभिन्न तरह के अग्नियानों के निर्माण का उल्लेख भी हमें अगस्त्य मुनि की अगस्त्य संहिता में मिलता है। - हिंदुओं के प्रमुख वेद ऋग्वेद में भी हमें विमान के बारे में पढ़ने को मिलता है। जिसमें त्रिभुज, तिमंजिला और तीन पहिए वाले विमानों के निर्माण और प्रयोग की विधि का वर्णन किया गया है।
जिनको प्राय: धातु और विद्युत के प्रयोग से बनाया गया है। साथ ही वैमानिक शास्त्र में सौर ऊर्जा के बल पर भी विमानों को नियंत्रित करने की विधि का वर्णन किया गया है।
वर्ष 1929 में दयानंद सरस्वती की एक रचना ऋग्वेद भाष्य भूमिका प्रकाश में आई थी, जिसमें मुख्य रूप से उड़ने वाली मशीनों और विमानों की कार्य प्रणाली का ही जिक्र किया गया है। - इसके साथ आधुनिक समय में जो फाइटर विमान प्रयोग में लाए जाते हैं, उनका वर्णन कौटिल्य ने सम्राट अशोक के लेखों में ‘आकाश युद्धिनाह’ के तौर पर किया है। इसके अतिरिक्त, प्राचीन ग्रंथ समरंगन: सूत्रधारा में भी विमानों के आकार, निर्माण और दुर्घटना से बचाव संबंधी बातों का वर्णन किया गया है। जिसमें उल्लेखित विमानों का प्रयोग स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश समेत यमराज, कुबेर आदि के द्वारा किया जाता है।
- साल 2009 में अमेरिकी सेना को एक विमान मिला था, जिसके सक्रिय होने पर वहां मौजूद 8 अमेरिकी सैनिक गायब हो गए थे। इस विमान को चरमपंथी अफगानों ने रुक्म विमान कहा था, जिसका प्रयोग महाभारत काल में हुआ था।
इस प्रकार, प्रसिद्ध वैमानिक शास्त्र में कई तरह के विमान और उनको तैयार करने की निर्माण प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।
जिससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों मे विश्व को ना केवल मंत्रों और सिद्धियों से परिचित कराया। बल्कि आधुनिक आविष्कारों और प्रमुख यंत्रों की उपयोगिता और महत्ता पर भी प्रकाश डाला।
जिनके आधार पर ही वर्तमान वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की जा रही हैं।
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