अगर हिंदी के उपन्यास सम्राट की उपाधि से किसी को सम्मानित किया जाना चाहिए तो उसमें सर्वप्रथम नाम मुंशी प्रेमचंद का ही आता है। उनकी साहित्य के प्रति निष्ठा ही है जो उन्हें उपन्यासों का राजा बनाती है। आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद केवल एक लेखक नहीं बल्कि एक अच्छे समाज सुधारक भी थे।
उनका काम सिर्फ लिखना ही नहीं अपितु समाज की जो वास्तविकता है उससे लोगों को अवगत कराना था। यही कारण है कि एक समाज सुधारक के रूप में आज भी उन्हें उत्तम माना जाता है। अगर उनके वक्तव्य की बात करें तो उसके अनुसार लेखक का काम सिर्फ लिखना नहीं होता बल्कि समाज की वास्तविकता को लोगों के सामने लाना होता है जिससे लोगों में चेतना जाग सके।
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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 30 जुलाई 1980 में वाराणसी जिले के एक लम्हे नामक गांव में हुआ था। वहीं इनके पिताजी का नाम अजायब राय था जोकि गांव के पोस्ट मास्टर थे। वहीं की माता का नाम आनंदी देवी था। इनके दादा जी का नाम सहाय राय था और उनके दादा जी गांव के पटवारी थे। आपको बता दें कि बचपन से ही प्रेमचंद जी का जीवन एक संघर्षपूर्ण जीवन था।
दरअसल जब इनकी आयु 8 वर्ष की थी उस समय ही उनकी माता एक गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर चल बसीं। वही पिताजी ठहरे सरकारी नौकरी वाले तो उनका एक दिन गोरखपुर में तबादला हो गया और फिर उन्होंने दूसरी शादी कर ली। बचपन से ही प्रेमचंद जी को माता-पिता का प्यार ना मिल सका। वहीं उनकी सौतेली मां भी उनसे प्यार नहीं करती थीं।
कहा जाता है कि कुछ लोगों के गुण उनके बचपन में ही दिखाई देते हैं। ठीक उसी तरह प्रेमचंद जी भी बचपन से ही हिंदी के प्रति बहुत रूचि रखते थे। वही उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका साहित्य में जो योगदान है वो अभूतपूर्व है और इसी को देखते हुए बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार सरद चंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि दी।
बचपन से ही प्रेमचंद ने हर एक कठिनाई को हंसते-हंसते पार कर लिया। उन्होंने मैट्रिक से पूर्व ही उर्दू के महत्वपूर्ण उपन्यास पढ़ लिए थे उनकी इसी रुचि के कारण उन्होंने साहित्य में एक अलग ही परचम लहराया है, जिसके कारण आज भी हर युवा उन्हें साहित्य का देवता कहता है।
मुंशी प्रेमचंद पर 10 लाइन (10 Lines on Munshi Premchand in Hindi)
▪️मुंशी प्रेमचंद आधुनिक युग के एक प्रसिद्ध और अभूतपूर्व हिंदी उर्दू साहित्य के लेखक थे।
▪️उन्होंने गोदान नामक एक उपन्यास लिखा जिसे लिखकर उन्होंने इतिहास रच डाला।
▪️प्रेमचंद के साहित्य के लिए दिए हुए योगदान के कारण ही उन्हें उपन्यास सम्राट कहा जाता है।
▪️प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
▪️आपको बता दें मुंशी प्रेमचंद ने करीब 14 उपन्यास, ढाई सौ से 300 कहानियां और निबंध लिखे हैं।
▪️कई ऐसी विदेशी रचनाएं भी हैं जिनका हिंदी में अनुवाद प्रेमचंद जी ने किया है।
▪️आपको बता दें उनकी पहली पत्नी से तलाक होने के बाद एक विधवा औरत के साथ उन्होंने विवाह कर लिया था जिनका नाम था शिवरानी देवी।
▪️प्रेमचंद जी को बचपन से ही किताबों में अत्यधिक रुचि थी यही कारण है कि 13 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने अनेक उपन्यास पढ़ लिए थे।
▪️वाराणसी में मुंशी प्रेमचंद ने सरस्वती नामक एक प्रेस चलाया था।
▪️यही नहीं हिंदी फिल्म उद्योग में प्रेमचंद ने अपनी किस्मत आजमाने के लिए वे मुंबई गए थे जहां उन्होंने पटकथा लिखने की नौकरी स्वीकार कर ली थी।
मुंशी प्रेमचंद पर 10 लाइन (10 Lines on Munshi Premchand in Hindi)
▪️आपको बता दें कि हिंदी लिखने से पहले प्रेमचंद उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखा करते थे।
▪️वहीं 1960 में प्रेमचंद का प्रकाशित उपन्यास सोजे वतन को अंग्रेजों द्वारा जप्त कर लिया गया था यही नहीं उसकी लगभग 500 प्रतियां भी जला दी गई थी।
▪️उनकी जो पहली कहानी थी जिसका नाम था बड़े घर की बेटी 1910 में सरस्वती नामक पत्रिका से प्रकाशित की गई थी।
▪️प्रेमचंद द्वारा रचित गोदान एक सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के रूप में सामने आया साहित्य के जानकारों द्वारा इस उपन्यास को सराहा गया।
▪️इसके अलावा कर्मभूमि सेवा सदन निर्मला आदि उनकी जो प्रमुख रचनाएं हैं उनको भी लोगों ने बहुत पसंद किया।
▪️वही मुंशी प्रेमचंद जी ने हंस पत्रिका का भी काफी सुचारू रूप से संचालन किया।
▪️ प्रेमचंद की कुछ लघु कहानियों की बात करें तो उनमें नाम आता है –
बंद दरवाजा, राष्ट्र का सेवक, देवी, कश्मीरी सेब, बाबाजी का भोग आदि का।
▪️ आपको बता दें कि प्रेमचंद ने अपने पूरे जीवन में करीब 300 से अधिक निबंध हो को लिखा है और ऐसी कई अनेक कहानियों का भी निर्माण किया है वही इनका संपूर्ण संग्रह आपको मानसरोवर के 8 भागों में नजर आएगा।
▪️ वहीं अगर हम मुंशी प्रेमचंद जी के लिखने की शैली के विषय में बात करें तो उनकी शैली हिंदी तथा उर्दू भाषा में मिश्रित थी। उन्होंने अपनी सभी रचनाओं में कई तरह की शैलियों का प्रयोग किया है। वही देखा जाए तो प्रमुख रूप से अभिनयात्मक, विश्लेषणात्मक और व्यंगात्मक शैलियों का भी उन्होंने भरपूर प्रयोग किया है।
▪️ आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रेमचंद रचनाकार, लेखक, महाकवि तथा एक नाटककार का भी रोल अदा कर चुके हैं। इन्होंने अपने जीवन काल में तीन नाटकों का निर्माण किया जिसे मानसरोवर भाग-3 में रखा गया है, जिसमें इन्हें दर्शाया गया है- संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी।
मुंशी प्रेमचंद जी ने जीवन पर्यंत हमारे संपूर्ण देश के लिए साहित्यिक योगदान के साथ-साथ कई सामाजिक कार्य भी किए। यही कारण है कि आज भी हम उन्हें याद करके गौरवान्वित महसूस करते हैं। वही उनके कठोर जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि कठिनाई कितनी भी हो लेकिन दृढ़ निश्चय से व्यक्ति हर परेशानी का हल कर सकता है। आज के युवाओं को भी प्रेमचंद का अनुसरण करना चाहिए, जिससे देश को और भी कई ऐसे रत्न मिल सके।
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