Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi – हरिवंश राय बच्चन की कविताएं

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हरिवंश राय बच्चन और उनकी कविताएं किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वह उत्तर छायावादी काल के प्रमुख कवियों में से एक थे। जिनकी कविताओं में एक अलग ही प्रकार की भाषा शैली देखने को मिलती है, जोकि उन्हें हिंदी जगत के अन्य कवियों से काफी अलग बनाती है।

उनके द्वारा रचित कविताओं ने सदैव ही जन मानस के मन में विश्वास और आशा का संचार किया। जिसके चलते हिंदी काव्य की दुनिया में हरिवंश राय बच्चन का नाम सदा के लिए अमर हो गया। ऐसे में आज हम उनके द्वारा लिखित कई लोकप्रिय कविताएं आपके लिए लेकर आए हैं। जोकि आपको अवश्य ही पसंद आएंगी।

अग्निपथ कविता हिंदी में – Agnipath Poem in Hindi

उपरोक्त कविता हरिवंश राय बच्चन जी की प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। जिसमें कवि ने एक व्यक्ति के संघर्षमय जीवन की व्यथा का वर्णन किया है। उन्होंने मनुष्य के दुर्गम जीवन को ही इसमें ”अग्निपथ” की संज्ञा दी है। साथ ही अपनी इस कविता के माध्यम से उन्होंने व्यक्ति को नित्य कर्म कर फल की इच्छा रखने का संदेश भी दिया है। जोकि इस प्रकार से है-

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

मधुशाला कविता हिंदी में – Madhushala poem in Hindi

साल 1935 में हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित “मधुशाला” उनकी सर्वोत्तम कृतियों में से एक है। जोकि उनकी अन्य रचनाओं मधुबाला और मधुकलश का ही एक हिस्सा है। इसमें बच्चन साहब ने शराब और मदिरालय की सहायता से मनुष्य जीवन की कठिनाइयों का तार्किक रूप से विश्लेषण किया है।

इसलिए इसे 20वीं सदी की सर्वश्रेष्ठ कविता कहा जाता है। बच्चन साहब की इस कविता के काफी सारे भाग हैं। जिनमें से कुछ पंक्तियां निम्न प्रकार से है-

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुबाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूंगा हाला,
एक पांव से साकी बनकर नाचूंगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूंगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, में तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण भर खाली होगा लाख पिएं, दो लाख पिएं,
पाठकगण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूं हाला,
भरता हूं इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूं,
अपने ही में हूं मैं साकी, पीने वाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से
चलता है पीने वाला,
किस पथ से जाऊं?
असमंजस में है वह भोलाभाला
अलग अलग पथ बतलाते सब
पर मैं यह बतलाता हूं
राह पकड़ तू एक चला चल
पा जाएगा मधुशाला।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला।
दूर अभी है पर कहता है हर पथ बताने वाला,
हिम्मत है न बढूं आगे को साहस है ना फिरू पीछे,
किंंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।

मुख से तू अवतरित कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।

सुन, कलकल, छलछल मधुघट से गिरती प्यालों का हाला,
सुन, रुनझुन, रुनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दूर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीने वाले, महक रही, ले, मधुशाला।

जल तरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रुनझुन साकीबाला,
डांट डपट मधु व्रिकेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।

मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीने वाले,
इंद्र धनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।

हाथों में आने से पहले नाज दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुबाला।

विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला,
यदि थोड़ी सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियां कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।

बड़े बड़े नाजों से मैंने पाली है साकीबाला,
किलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूं मधुशाला।।

देशभक्ति कविताएं – Deshbhakti Poem in Hindi by Harivansh ray bacchan

चल मरदाने Chal Mardane Poem by Harivansh Rai Bachchan in Hindi

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।

एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंजिल, हम किससे भयभीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।

हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची परेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।

जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुड़ेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।

आजादों का गीत – Azadon ka geet by Harivansh Rai Bachchan in Hindi

हम ऐसे आजाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजती गुड़िया,
इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियां,

इनसे सज धज बैठा करते
जो, हैं कठपुतले।
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं,
बेड़ी हथकड़ियां।

परंपरा पुरखों की हमने
जाग्रत की फिर से,
उठा शीश पर हमने रखा
हिम किरीट उज्जवल!
हम ऐसे आजाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजवा छाते,
जो अपने सिर पर तनवाते,
थे, अब शरमाते,

फूल कली बरसाने वाली
दूर गई दुनिया,
व्रजों के वाहन अंबर में,
निर्भय घहराते,

इंद्रायुध भी एक बार जो
हिम्मत से औड़े,
छत्र हमारा निर्मित करते
साठ कोटि करतल।
हम ऐसे आजाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
का हाथों में दंड,
चिह्न कभी का अधिकारों का
अब केवल पाखंड,

समझ गई अब सारी जगती
क्या सिंगार, क्या सत्य,
कर्मठ हाथों के अंदर ही
बसता तेज प्रचंड,

जिधर उठेगा महा सृष्टि
होगी या महा प्रलय
विकल हमारे राज दंड में
साठ कोटि भुजबल!
हम ऐसे आजाद, हमारा
झंडा है बदला!

भारत मां की जय बोलो – Bharat Maa ki Jay Bolo

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बंधाएं,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गवाएं,
किंतु शहीदों को आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसमें सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आजादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वामी उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनिया से लिखा लहू से जिसने अपने,
जोकि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके अमृत घोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नही होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
गैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गांठे लग जाती,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियां और हथकड़ियां हर्ष मनाओ मंगल गाओ,
किंतु यहां पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पांव बढ़ाओ,
आजादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आजादी का, वह है भारी जिम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल का तोलो,
और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

राष्ट्रीय ध्वज – Rashtriya Dhwaj Poem in Hindi

नागाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,
समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,
स्वदेश में जगह जगह गडी हुई,
अटल ध्वजा हरी, सफेद केसरी।

न साम दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वंद भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आस शत्रु शीश पर ठूकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी।

चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा इसे लिए हुए जिएं,
अमर सदा इसे लिए हुए मरें,
अजय ध्वजा हरी, सफेद केसरी।

शहीदों की याद में – Shahidon ki yaad main poem

सुदूर शुभ्र स्वप्न सत्य आज है,।स्वदेश आज पा गया स्वराज है,
महा कृतघ्न हम बिसार दें अगर
कि मोल कौन आज का गया चुका।

गिरा कि गर्व देश का तना रहे,
मरा कि मान देश का बना रहे,
जिसे ख्याल था कि सर कटे मगर
उसे न शत्रु पांव में सके झुका।

रुको प्रणाम इस जमीन को करो,
रुको सलाम इस जमीन को करो,
समस्त धर्म तीर्थ इस जमीन पर
गिरा यहां लहू किसी शहीद का।

मां पर हिंदी में कविता – Hindi Poem on Mother by Harivansh rai bachchan

शहीद की मां – Shahid ki Maa

इसी घर से एक दिन
शहीद का जनाजा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हजारों की भीड़ में।
कांधा देने की होड़ में
सैकड़ों के कुर्ते फटे थे,
पुठ्ठे छिले थे।

भारत माता की जय,
इंकलाब जिंदाबाद,
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद
के नारों में शहीद की मां का रोदन डूब गया था।

उसके आंसुओं की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी,
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से दिप गई थी।

इसी घर से तीस बरस बाद
शहीद की मां का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
केवल चार कांधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर
चर्चा है, बुढिया बेसहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत से छुई छुई।

मां पर कविता – Poem on Mother in Hindi by Harivansh Rai Bachchan)

आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
मां की ऊंगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया।

उंगलियां पकड़कर मां ने मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सोकर मां ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है।

मां की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है।
हाथों से मां के खाना खाने का जी चाहता है।

लगाकर सीने से मां ने मेरी मुझको दूध पिलाया है।
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है।

मेरी तकलीफ में मुझसे ज्यादा मेरी मां ही रोई है।
खिला पिला के मुझको मां मेरी, कभी भूखे पेट भी सोई है।

कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आंचल में छुपाया है।
गलतियां करने पर भी मां ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है।

मां के चरणों में मुझको जन्नत नजर आती है।
लेकिन मां मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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