अंग्रेज़ी पढ़कर यद्यपि सब गुन होत प्रवीन,
पे निज भाषा ज्ञान के, रहत हीन के हीन !!
हिंदी कवि रहीम के दोहे में मातृभाषा हिंदी के महत्व को दर्शाया गया है। उनके अनुसार आप अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त करके समूचे विश्व में नाम रोशन कर सकते हैं लेकिन मातृभाषा के ज्ञान के बिना सारा ज्ञान व्यर्थ है।
इस प्रकार, हिंदी भारतीय नागरिकों द्वारा बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषा है। आज विश्व भर में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी को चौथा स्थान प्राप्त है। ऐसे में आज हम आपके लिए हिंदी भाषा से जुड़ी शब्दावली जैसे व्याकरण, वर्ण, अक्षर, वर्णमाला, स्वर, व्यंजन इत्यादि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेकर आए हैं।
हिंदी व्याकरण
हिंदी भाषा सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान होना जरूरी है। हिंदी भाषा को शुद्ध लिखने,पढ़ने और बोलने के लिए व्याकरण अति आवश्यक है। जिसके अंतर्गत भाषा को समझने संबंधी आवश्यक नियमों के बारे में जानकारी दी गई होती है। ऐसे में भाषा की शुद्धता और सुंदरता को व्याकरण के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
वर्ण या अक्षर
हिंदी भाषा में वर्ण सबसे छोटी इकाई है। जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। हिंदी वर्णों की अपनी लिपि होती है। इस प्रकार हिंदी भाषा में लेखन के आधार पर 52 और उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण होते हैं। जिनको 11 स्वर और शेष व्यंजन के आधार पर बांटा जाता है।
वर्णमाला – Hindi Varnamala
हिंदी भाषा में वर्णों या अक्षरों के समूह को वर्णमाला कहा जाता है। हिंदी भाषा की तरह अन्य भाषाओं की भी अपनी अलग वर्णमाला होती है। ये निम्न हैं –
स्वर
जिन वर्णों का उच्चारण करने के दौरान अन्य किसी वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है। उन्हें स्वर कहते हैं। सामान्यतः इनके उच्चारण के समय व्यक्ति को होंठ और तालू का उपयोग नहीं करना पड़ता है। हिंदी भाषा में 11 स्वर हैं, जिनको मूल्यता तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1. हृस्व स्वर – जिन स्वर वर्णों को बोलते समय कम समय लगता है, उनको हृस्व स्वर की श्रेणी में रखा जाता है।
अ – अनार
आ – आम
उ – उल्लू
ऋ – ऋषि
2. दीर्घ स्वर – जिन स्वर वर्णों का उच्चारण करने में अधिक समय लगता है, वह दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
आ – आलू
ई – ईख
ऊ – ऊन
ए – एड़ी
ऐ – ऐनक
ओ – ओखली
औ – औरत
3. प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व और दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता हो, उसे प्लुत स्वर कहते हैं।
अं – अंत, अ:
व्यंजन
हिंदी भाषा के जिन वर्णों को बिना स्वर की सहायता के उच्चारित नहीं किया जा सकता, उन्हें व्यंजन कहा जाता है। व्यजनों के मुख्यता तीन भाग होते हैं।
1. स्पर्श व्यंजन
क- कबूतर, ख – खरगोश, ग – गमला, घ – घर, ड – डमरू
च – चम्मच, छ – छतरी, ज – जहाज,झ – झाड़ू, ञ – रंञ्ञन
ट – टमाटर, ठ – ठेला, ड – डाल, ढ – ढोलक, ण – घण्टा
त – तारा, थ – थरमस, द – दरवाजा, ध – धनुष, न – नाक
प – पानी, फ – फल, ब – बंदर, भ – भालू, म – मच्छर
2. अन्तस्थ व्यंजन
य – यात्रा, र – राजा, ल – लालच, व – वर्ग
3. उष्म व्यंजन
श – शहर, ष – षष्ठ, स – सब्जी, ह – हंस
4. संयुक्त व्यंजन
क्ष – क्षत्रिय, त्र – त्रिकोणमिति, ज्ञ – यज्ञ, श्र – आश्रय
अन्य विशेष परिभाषाएं
मात्रा – किसी भी व्यंजन के अंत में स्वरों के बदले हुए रूपों में जिन सांकेतिक चिन्हों का प्रयोग होता है, उसे मात्रा कहते हैं।
हलंत – किसी व्यंजन को जब स्वर रहित प्रयोग में लाया जाता है तो उसके नीचे एक रेखा (्) का प्रयोग किया जाता है, उसे ही हलंत कहा जाता है।
चन्द्रबिन्दु – किसी स्वर का उच्चारण जब नासिका और मुख दोनों के माध्यम से किया जाता है तो वहां चन्द्र बिंदु का इस्तेमाल किया जाता है।
विसर्ग – सामान्यता किसी वर्ण के अंत में इसका उच्चारण ह् के तौर पर किया जाता है। इसका चिह्न (:) होता है।
इस प्रकार हिंदी भाषा में उपयुक्त शब्दावली के अर्थ निम्नलिखित हैं। जिनको हिंदी भाषा के इस्तेमाल के दौरान उपयोग में लाते हैं।
