हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये।।
अर्थात – हिमालय में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति अपने पूर्व में किए गए पापों से मुक्त हो जाता है।
धार्मिक दृष्टि से देखें तो भारत देश में कुल 64 ज्योतिर्लिंग है। जिनमें से 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। यह भारत देश के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं और यहां खासकर भगवान शिव की आराधना की जाती है। ज्योतिर्लिंग में ज्योति शब्द से तात्पर्य प्रकाश स्रोत और र्लिंगम का तात्पर्य भगवान शिव की शक्ति से है।
इस प्रकार देश में स्थापित समस्त ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के समस्त रूपों और शक्तियों को प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं ज्योतिर्लिंग की महत्ता के बारे में प्राचीन शास्त्रों में भी उल्लेख मिलता है। ऐसे में आज हम भारत देश के उत्तराखंड राज्य में स्थित केदारनाथ मंदिर के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान जानकारी प्राप्त करेंगे।
महाद्रिपाश्चे च तट रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे।।
अर्थात् जिन्हें हिमालय पर्वत के समीप केदार घाटी के तट पर मुनियों द्वारा पूजा जाता है। इतना ही नहीं जिनको असुरों, देवताओं और महान् सापों द्वारा भी पूजा जाता है। मैं उन कल्याणकारी भगवान केदारनाथ की स्तुति करता हूं।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर हिमालय की गोद में बसा है। पिछले हजार वर्षों से केदारनाथ मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल रहा है। हालांकि इसका निर्माण किस काल में हुआ था, इसके प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन हिंदी के महान् साहित्यकार राहुल सांकृत्यान के अनुसार केदारनाथ का निर्माण 12-13 वीं शताब्दी में हुआ था।
तो वहीं ग्वालियर में खुदाई से प्राप्त एक राज भोज स्तुति के मुताबिक, केदारनाथ मंदिर का निर्माण वर्ष 1076-99 में मौजूद लोगों की देख रेख़ में हुआ था। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। हालांकि अभी तक किसी भी प्रमाण पर मोहर नहीं लगाई गई है क्योंकि माना जाता है कि आदि शंकराचार्य से पहले भी कई लोग इस मंदिर में आया करते थे।
ऐसी में मान्यता यह भी है कि पांडव वंश के जनमेजय ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। इस प्रकार कहा जा सकता है केदारनाथ के निर्माण को अनेकों मत प्रचलित है जिनसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका इतिहास काफी प्राचीन है। ऐसे में वर्तमान दौर में शिव भक्तों के लिए केदारनाथ मंदिर सच्ची आस्था का प्रतीक है।
केदारनाथ मंदिर की कहानी
केदारनाथ मंदिर की स्थापना के पीछे हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई सारी कहानियां वर्णित है। जिसके अनुसार माना जाता है कि जब पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी होकर वापस लौटे थे। तब उन्हें युद्ध में अपने ही भाई बंधुओं का खून बहाने का काफी अफसोस था। ऐसे में वह भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे और इस पाप से मुक्त होना चाहते थे। जिसके लिए पांचों पांडव भाई भगवान शंकर से मिलने काशी पहुंचे।
इतना ही नहीं वह भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए हिमालय तक आ गए लेकिन भगवान शिव पांडवों से नहीं मिलना चाहते थे। जिसके कारण वह केदार पर्वत पर जाकर अन्तर्ध्यान करने लगे परन्तु पांडव भाई भी भगवान शिव को ढूंढते हुए केदार पर्वत आ गए। जहां भगवान शिव ने बैल का भेष धारण कर लिया लेकिन पांडवों को जब शक हुआ। तब गदाधारी भीम ने विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। जिसके नीचे से बैल रूप भगवान शिव निकलने को तैयार नहीं हुआ। जिस पर पांडव भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ को बलपूर्वक पकड़ लिया। ऐसे में भगवान शिव पांडव भाइयों की भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्हें पाप मुक्त कर दिया। कहते है तभी से भगवान शिव की बैल की पीठ की आकृति पिंड को केदारनाथ मंदिर में पूजा जाने लगा।
केदारनाथ मंदिर की बनावट
हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम हिमालय की केदार चोटी पर बना हुआ है जोकि तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। यह मंदिर लगभग 85 फुट ऊंचा, 187 फिट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। साथ ही केदारनाथ मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी है। इसके अलावा मंदिर के पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग पद्धति का इस्तेमाल किया गया है।
मंदिर की दीवारों को भूरे रंग से रंगा गया है। तो वहीं मंदिर के तीनों छोर में से पहले छोर पर 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरे छोर पर 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड समेत तीसरे छोर पर 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड स्थित है। इतना ही नहीं केदारनाथ मंदिर में पांच नदियों का संगम है। जोकि निम्न है – मंदाकिनी, क्षीरगंगा, मधुगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गौरी आदि।
इसके अलावा दर्शन के हिसाब से मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है। जिसमें पहला गर्भ गृह, दूसरा दर्शन मंडप और तीसरा सभा मंडप है। जानकारी के लिए बता दें की मंदिर के अंदर भगवान शिव के अलावा भगवान गणेश, ऋद्धि सिद्धि, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव आदि की मूर्तियां भी मौजूद हैं।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण एक 6 फीट उन्हें चौकोर चबूतरे पर हुआ है। जिसके चारों ओर प्रदक्षिणा मार्ग भी है। तो वहीं मंदिर प्रांगण के बाहर नंदी बैल विराजमान हैं।इसके अलावा केदारनाथ मंदिर की समुन्द्रतल से ऊंचाई करीब 3584 मीटर है, ऐसे में यहां पहुंचना अत्यधिक कठिन है। साथ ही जब भक्त केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते हैं तो उन्हें वहां पाली भाषा में लिखे गए शिलालेख देखने को मिलते हैं। साथ ही मंदिर के निर्माण में प्रयोग किए गए पत्थरों में कत्यूरी शैली अपनाई गई है।
केदारनाथ मंदिर के निकटवर्ती महत्वपूर्ण स्थल
केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने आने वाले भक्तों को आदि शंकराचार्य के समाधि स्थल के दर्शन के लिए भी अवश्य जाना चाहिए। साथ ही मंदिर के करीब 19 किलोमीटर की दूरी पर सोनप्रयाग स्थित है। जोकि प्रायः बासुकी और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल माना जाता है। तो वहीं केदारनाथ मंदिर से 8 किलोमीटर की दूरी पर वासुकी तालाब है।
इसके अलावा केदारनाथ मंदिर की अलकनंदा नदी की घाटी के समीप ही केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य मौजूद है। साथ ही केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों को गुप्तकाशी के दर्शन भी करने चाहिए। जहां भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप को देखा जा सकता है। केदारनाथ मंदिर के कुछ ही दूरी पर भैरवनाथ मंदिर स्थापित है। साथ ही केदारनाथ मंदिर में मौजूद गौरी कुंड प्रमुख तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए यहां कड़ी तपस्या की थी।
केदारनाथ की यात्रा का उचित समय
वैसे तो केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्तगणों को मई के महीने से लेकर अक्टूबर के महीने में जाना उचित रहता है। बाकी यदि आप बर्फबारी के शौकीन है तो जाड़ों के मौसम में भी केदारनाथ बाबा के दर्शन के लिए जा सकते हैं। हालांकि केदारनाथ मंदिर के द्वार दिवाली पर्व के अगले दिन यानि पड़वा वाले दिन बंद कर दिए जाते है।
इस दौरान करीब 6 माह तक यहां दीपक जलता रहता है। इतना ही नहीं मंदिर के पुरोहित मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भगवान शिव के विग्रह और दंडी को भी अपने साथ पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाया करते हैं। तत्पश्चात् मई के महीने में केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि हर साल केदारनाथ मंदिर को खोलने को तिथि ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा निर्धारित की जाती है। जोकि हर साल अक्षय तृतीया और महाशिव रात्रि के दिन तय की जाती है। इसके अलावा केदारनाथ धाम की यात्रा हिंदुओं के पवित्र धामों बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा में सम्मिलित है।
केदारनाथ बाबा के दर्शन का समय
केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव के सदाशिव रूप की पूजा की जाती है। साथ ही मंदिर के भीतर केदारनाथ बाबा के दर्शन दीपक के सहारे किए जाते हैं। जहां शिव भक्त पहले तो शिवलिंग पर जल और फूल इत्यादि चढ़ाते हैं। उसके बाद भगवान शिव को घी अर्पित करते हैं। इसके अलावा प्रात काल में भगवान शिव के प्राकृतिक रूप को स्नान करवाकर उनपर घी का लेपन किया जाता है। फिर दीपक जलाकर उनकी आरती की जाती है।
इस दौरान भक्तगण भगवान शिव का विधि विधान से पूजन करते हैं। तो वहीं संध्या के समय भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा केदारनाथ के कपाट सुबह 6 बजे आम जनता के लिए खोल दिए जाते हैं। फिर दोपहर तीन बजे से पांच बजे तक वहां विशेष पूजा होती है। इसके अतिरिक्त शाम को 7:30 बजे से 8:30 तक नियमित आरती होती है। साथ ही केदारनाथ बाबा के दर्शन के लिए जनता से शुल्क लिया जाता है और फिर पूजा आरती होने के बाद प्रसाद गृहण किया जाता है।
केदारनाथ मंदिर में पूजा
हिंदुओं के पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ मंदिर में मैसूर के जंगम ब्राह्मण विधि विधान से पूजा करते हैं। इस दौरान प्रात काल से महाभिषेक, रूद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन,संपूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि संपन्न कराया जाता है।
केदारनाथ त्रासदी
साल 2013 में उत्तराखंड राज्य में भारी बारिश के चलते काफी जान माल का नुकसान हुआ था। इतना ही नहीं चौराबाड़ी ग्लेशियर के पिघलने से मंदाकिनी नदी उफान पर आ गई थीं। जिसके बाद बारिश के पानी से सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ में मची। लाखों लोग बारिश के पानी में बह गए थे। इतना ही नहीं पानी का बहाव इतना तेज था कि लाखों लोगों के घर डूब गए और इस त्रासदी में करीब 5000 लोगों की मौत हो गई थी। कहा जा सकता है कि 1000 वर्ष पुराना केदारनाथ मंदिर इस त्रासदी के बाद पूरी तरह से बिखर गया था। जिसे पुनः करोड़ों की लागत लगाकर बनाया गया है।
केदारनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
1. एक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने असुरों का विनाश करने के लिए बैल का रूप धारण किया था तो उन्होंने असुरों को मारकर उन्हें मंदाकिनी नदी में फेंक दिया था। इस दौरान भगवान शिव ने असुरों को मारने से पहले एक वाक्य बोला था, कोदारम। कहते है इसके बाद ही इस जगह का नाम केदारनाथ प्रचलित हुआ।
2. केदारनाथ के मुख्य पुजारी को रावल कहकर पुकारा जाता है। जोकि वीराशैवा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। साथ ही केदारनाथ के मंदिर में मुख्य पुजारी स्वयं पूजा नहीं करते हैं।
3. कहा जाता है कि हिमालय की केदार श्रृंखला में जब भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। तब भगवान शिव ने उन्हें वहां सदैव ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का आशीर्वाद प्रदान किया।
4. माना जाता है कि जब भगवान शिव ने बैल का रूप धारण किया था तब उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू, भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। जिसके बाद केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।
5. केदारनाथ मंदिर की रक्षा स्वयं भैरों बाबा किया करते हैं। इसलिए शिव भक्त केदारनाथ बाबा के दर्शन से पहले भैरों बाबा के मंदिर जाते हैं।
6. प्राचीन स्कन्द पुराण में भी केदारनाथ शिवलिंग को महत्वपूर्ण बताया गया है। उपयुक्त भूमि की पवित्रता के बारे में, भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा था कि यह क्षेत्र इतना पुराना है जितना मैं खुद। यह भूमि मेरे लिए स्वर्ग की भांति है।
7. मान्यता है कि केदारनाथ जाते वक्त यदि रास्ते में किसी की मौत हो जाती है तो उस व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।
8. केदारनाथ मंदिर में दर्शन के दौरान जो शिव भक्त वहां का जल ग्रहण कर लेता है, उसे दुबारा जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
9. कहा जाता है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ की घाटी में नर और नारायण दो पर्वत है। यदि वह पर्वत मिल जाएं तो यह तीर्थ लुप्त हो जाएंगे।
10. केदारनाथ में भगवान शिवजी के बैल रूप में पीठ की त्रिकोणात्माक आकृति पिंड को पूजा जाता है। तो वहीं मंदिर के कपाट बंद होने के बाद वहां दीपक निरन्तर जलता रहता है और वैसी ही सफाई रहती है जैसी कपाट बंद होने से पहले हुई थी।
केदारनाथ मंदिर का महत्व
कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर के दर्शन किए बिना चारों धामों की यात्रा निष्फल रह जाती है। साथ ही केदारनाथ की यात्रा के बाद व्यक्ति के समस्त पापों का अंत हो जाता है। इतना ही नहीं केदारनाथ की यात्रा व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करती है। इसके अलावा व्यक्ति को जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे में यदि आप वास्तव में स्वर्ग सी धरती को देखना चाहते हैं तो आपको केदारनाथ जाकर स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कर सकते हैं।
