श्रीमद भगवद् गीता का सार – Bhagwat Geeta in Hindi

Bhagwat Geeta in Hindi

Bhagwat Geeta in Hindi

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्र विस्तरै:।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनिसृत:।।

उपयुक्त श्लोक से तात्पर्य है कि गीता का अध्ययन करने से व्यक्ति का जीवन महान् बनता है। साथ ही मानव जीवन को संपन्न बनाने के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता पड़ती है, वह सब गीता में निहित हैं।

गीता का सामान्य परिचय – Bhagwat Geeta Introduction

श्रीमदभागवत गीता हिन्दूओं के पवित्र धार्मिक ग्रंथों में से एक है। जिसकी रचना आज से लगभग 5000 साल पहले हुई थी। गीता  का उपदेश महाभारत के युद्ध के समय स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। हालांकि धार्मिक स्रोतों के अनुसार, गीता का ज्ञान अर्जुन से पहले भगवान श्री कृष्ण ने सूर्य देव को दिया था। ऐसे में हम कह सकते हैं कि गीता एक अति प्राचीन धार्मिक ग्रंथ है।

हिन्दू धर्म में वर्णित चारों वेदों का सार उपनिषदों के रूप में मौजूद है और उपनिषदों का सार गीता में देखने को मिलता है इसलिए इसे गीतोपनिषद भी कहा गया है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान इसलिए दिया था क्योंकि महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन के सामने जब उनके भाई बंधू खड़े थे तब वह उन पर प्रहार करने से पीछे हट रहे थे। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण द्वारा रचित श्रीमदभागवत  गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक मौजूद हैं। जिनमें से 574 श्लोक भगवान श्री कृष्ण के  द्वारा, 85 श्लोक अर्जुन के द्वारा, 40 श्लोक संजय के द्वारा और 1 श्लोक राजा धृतराष्ट्र के द्वारा कहा गया था।

गीता का महत्व – Geeta Gyan in Hindi

श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार, सृष्टि की रचना एक ही ब्रह्म ईश्वर द्वारा की गई है और गीता के माध्यम से ही मनुष्य को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है। गीता में सृष्टि की रचना से लेकर मानव जीवन के विकास क्रम, धर्म, कर्म, संस्कार, वंश, नीति, कुल, राजनीति, नियम, प्रबंध इत्यादि के बारे में जिक्र किया गया है। यदि कोई व्यक्ति श्रीमद् भागवत गीता का अध्ययन करता है तो उसके जीवन में मौजूद सभी दुखों का अंत हो जाता है। इतना ही नहीं गीता के प्रवचन सुनने मात्र से ही व्यक्ति को अपनी समस्त परेशानियों का हल मिल जाता है।श्रीमदभागवत गीता को पढ़ने के बाद व्यक्ति अपने जीवन में आसानी से सही और गलत का चुनाव कर लेता है।

साथ ही जिन व्यक्तियों के जीवन में चिंता और तनाव अधिक है उन्हें नियमित तौर पर श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करना चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें निकट भविष्य में सफ़लता प्राप्त होती है। गीता के अनुसार, जीवन में सफल होने के लिए व्यक्ति को अपने कर्मों पर भरोसा करना चाहिए। गीता में यह भी लिखा है कि यदि व्यक्ति को अपने जीवन में खुश रहना है तो उसे अपने वर्तमान से संतुष्ट होना होगा। अन्यथा वह कभी खुश नहीं रह सकता है।

Geeta ke 18 Adhyay

गीता का पहला अध्याय

गीता का पहला अध्याय अर्जुन विषाद योग कहलाता है। जिसमें महाभारत युद्ध के समय अर्जुन की मनोस्थिति का वर्णन किया गया है। युद्ध भूमि में अर्जुन के सामने भाई और गुरु दोनों ही मौजूद थे जिसके चलते उनका मनोबल टूट चुका था। ऐसे में अर्जुन के सामने यह चुनौती थी कि वह युद्ध करें या नहीं। जिस पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया।

गीता का दूसरा अध्याय

गीता का दूसरा अध्याय सांख्ययोग कहलाता है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यह उपदेश देते है कि इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध भूमि पर मोह त्याग कर एक वीर की भातिं व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही वह अर्जुन से कहते हैं कि व्यक्ति को फल की इच्छा ना करके कर्म पर ध्यान देना चाहिए। उपरोक्त अध्याय में ही भगवान श्री कृष्ण यह उपदेश देते हैं कि जो व्यक्ति अपनी तमाम इन्द्रियों पर काबू पा लेता है। वह अपने जीवन में उन्नति पाता है। इस प्रकार श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के अलावा गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने स्थिर व्यक्ति के गुणों का व्याख्यान किया है।

गीता का तीसरा अध्याय

गीता के तीसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म की महत्ता स्पष्ट की है। उनके अनुसार, इस संसार में कोई भी व्यक्ति कर्म से पीछे नहीं हट सकता है और यदि कोई कर्म ना करने की इच्छा जाहिर करता है तो उसके जीवन में अन्न तक की उपलब्धता नहीं होती है। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि चाहे दैवीय लोक हो या मानव लोक। बिना कर्म के कहीं भी जीवन संभव नहीं है। इसके अलावा उपरोक्त अध्याय में श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति के लक्षणों के बारे में जानकारी दी है।

गीता का चतुर्थ अध्याय

गीता के चतुर्थ अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है कि जब धरती पर अधर्म में बढ़ोतरी होती है तब मैं धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेता हूं। उपरोक्त अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि वह इससे पहले गीता का ज्ञान भगवान सूर्य को दे चुके हैं। इस प्रकार गीता के चतुर्थ अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म, अकर्म और विकर्म का ज्ञान प्रदान दिया है।

गीता का पांचवा अध्याय

गीता के पांचवे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है कि जो व्यक्ति जीवन में किसी एक लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयासरत रहता है वहीं सफल हो पाता है। दूसरी ओर, जो व्यक्ति अपने जीवन में सभी कर्मों को समर्पित करके एक शीर्ष बिंदु पर पहुंच जाता है उस पर किसी भी अवस्था का प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार उपरोक्त अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने संसार के समस्त जीवों को एक समान बताया है।

गीता का छठा अध्याय

गीता के छठे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन में आत्मसंयम का महत्व बताया है। उनके अनुसार, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो व्यक्ति को अपने जीवन में आत्म संयम रखना चाहिए। साथ ही जो व्यक्ति काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह आदि समस्त इन्द्रियों पर काबू पा लेता है वहीं विजयी कहलाता है।

गीता का सांतवा अध्याय

गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अपने अनेक अवतारों के बारे में चर्चा की है। उपयुक्त अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है कि इस समस्त सृष्टि का सृजन मेरे द्वारा किया गया है, ऐसे में इसके विनाश की जिम्मेदारी भी मेरी है और जो मनुष्य मेरी भक्ति करते है वह मेरी शक्ति को समझते हैं। दूसरी ओर जो व्यक्ति अज्ञानी है वह मुझे सामान्य व्यक्ति समझते हैं।

गीता का आंठवा अध्याय

गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि सृष्टि की रचना के लिए एक ही ब्रह्म है। दूसरी ओर, धरती पर मौजूद जीव और शरीर के मिलन को ही अध्यात्म कहा जाता है और इस भौतिक देह में जीव, ईश्वर और भूत तीनों शक्तियां मिलती हैं जिसे अधियज्ञ कहते हैं।

गीता का नौंवा अध्याय

गीता के नौवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अध्यात्म रूपी विद्या के महत्व का वर्णन किया है। साथ ही भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है कि इस संसार में इंसान के समस्त गुण और अवगुण ईश्वरीय शक्तियों से ही उत्पन्न हुए हैं। भगवान श्री कृष्ण ने   आगे बताया है कि इस संसार में कोई व्यक्ति नदी को पूजता है, समुन्द्र को पूजता है तो कोई पीपल को पूजता है। उपरोक्त सभी में देवी देवताओं की छवि देखने को मिलती है।

गीता का दसवां अध्याय

गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया है कि इस संसार में सर्वत्र देवी देवताओं का निवास है, इसलिए धरती पर मौजूद समस्त स्थान श्रेष्ठ हैं। साथ ही जो प्राणी बल युक्त हैं उन सबमें ईश्वर का अंश विद्यमान है।

गीता का ग्यारहवां अध्याय

गीता का ग्यारहवां अध्याय विश्वरूप दर्शन कहलाता है। उपरोक्त अध्याय में पांडव अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के विराट रूप के दर्शन किए थे। साथ ही भगवान श्री विष्णु ने अपने चतुर्भुज रूप को सबके सामने रखा। तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण के विराट रूप को देखकर अर्जुन ने उनसे विनती कि वह अपने उस रूप में वापस आ जाएं जो मनुष्य प्रवृत्ति को समझ में आ सके।

गीता का बारहवां अध्याय

गीता के बारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को भक्ति मार्ग की महत्ता के बारे में बताते हैं और ईश्वरीय भक्ति से जुड़ी मान्यताओं के बारे में ज्ञान देते हैं। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि भक्ति मार्ग में भक्त के पास ईश्वर का एक भौतिक रूप मौजूद है जिसके आधार पर वह जीवन की नैय्या पार लगाते हैं।

गीता का तेहरवां अध्याय

गीता के तेहरवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भौतिक देह की महत्ता के बारे में स्पष्टीकरण दिया है। साथ ही अर्जुन को बताया है कि इस संसार में जानने योग्य चीज़ों के बारे में ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। जिसे जानकर व्यक्ति को परमानंद की प्राप्ति होती है।

गीता का चौदहवां अध्याय

गीता के चौदहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने रजो तमो गुण का व्याख्यान किया है। साथ ही अर्जुन को उपदेश दिया है कि जिन मनुष्यों के गुण सात्विक होते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो व्यक्ति रजो गुण धारण किए हुए हैं वह इंसानी जन्म पाते हैं। तो वहीं जो व्यक्ति तमो गुण लिए हुए हैं वह आलसी और निद्रामयी प्रवृत्ति के होते हैं। जिन्हें नीच योनि में जन्म मिलता है।

गीता का पंद्रहवा अध्याय

गीता के पंद्रहवें अध्याय को पुरुषोत्तम युग के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त अध्याय में विश्व के अश्वत्थ रूप को वर्णित किया गया है। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, एक ब्रह्म शक्ति के द्वारा इस संसार का जन्म हुआ है और उसके द्वारा है सूर्य और चंद्रमा अस्तित्व में आए हैं। इस प्रकार मानवीय चेतना और ब्रह्म द्वारा सृष्टि की रचना एक अनसुलझा रहस्य है।

गीता का सोलवां अध्याय

गीता के सोलवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि सृष्टि के निर्माण में अच्छा बुरा, सत्य असत्य, प्रकाश अंधकार सब आवश्यक हैं क्योंकि इन्हीं से धरती पर जीवन संभव है। दूसरी ओर धरती पर आसुरी और दैवीय शक्तियों का वर्चस्व सदा से ही रहा है जिनके बारे में हमें पवित्र ग्रंथों और पुराणों से पता चलता है।

गीता का सत्रहवां अध्याय

गीता के सत्रहवें अध्याय को श्रद्धा
मय योग के नाम से जाना जाता है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि व्यक्ति के जीवन में रज, तम और सत गुणों के आधार पर ही उसके कर्मों का निर्धारण होता है और व्यक्ति की निष्ठा वैसी ही बनने लग जाती है। गीता के उपरोक्त अध्याय में आहार संबंधी तीन भेदों के बारे में जानकारी दी गई है।

गीता का अठारहवां अध्याय

गीता के अठारहवें अध्याय में सनातन धर्म के समस्त उपनिषदों का सार बताया गया है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि इंसानी दुनिया और स्वर्ग लोक के देगी देवताओं में से ऐसा कोई नहीं है जो प्रकृति के उपरोक्त रजो, तमो और सतो गुण के प्रभाव से बच पाए हो। दूसरा, व्यक्ति को जीवन की हर परिस्थिति में बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि विवेकशील बुद्धि ही व्यक्ति को अधर्म से बचाती है और यही मानवीय सफलता है।

इस प्रकार श्रीमद् भगवत गीता में मानव जीवन से जुड़े समस्त प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं जोकि मानव को उन्नति के पथ पर अग्रसरित करने में मदद करते हैं।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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