Chaitanya Mahaprabhu ki Jivani
भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में स्थान रखने वाले चैतन्य महाप्रभु को इनके अनुयायियों ने कृष्ण का अवतार माना है। कहते हैं कि यदि चैतन्य महाप्रभु नहीं होते तो वृंदावन का कोई अस्तित्व आज हमारे सामने नहीं होता।
चैतन्य महाप्रभु ने ना केवल धार्मिक आधार पर बल्कि सामाजिक तौर पर भी जात पात और ऊंच नीच को गलत ठहराते हुए समाज का मार्गदर्शन किया। इतना ही नहीं इन्हें हिन्दू मुस्लिम एकता को बल देने का भी श्रेय प्राप्त है। साथ ही इन्होंने भजन गायन में एक नई प्रकार की शैली को रचित किया था।
चैतन्य महाप्रभु का जन्म – Chaitanya Mahaprabhu Birth
साल 1486 की 18 फरवरी को फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के समय चैतन्य महाप्रभु का जन्म पश्चिम बंगाल के नादिया नामक गांव में हुआ था। इनके पिता जगन्नाथ मिश्र और माता शची देवी थी। तो वहीं इनके बचपन का नाम निमाई था। क्यूंकि माना जाता है कि ये नीम के पेड़ के नीचे मिले थे। कुछ लोग गोरा होने की वजह से इन्हें गौरांग, गौर हरि और गौर सुंदर भी बुलाते थे।
साथ ही इनके जन्म के समय चन्द्र ग्रहण ब्राह्मणों ने इनकी जन्मकुंडली देखकर यह भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी कि यह बालक भविष्य में हरि नाम का प्रचार करेगा। नीमाई बहुत ही कम उम्र में व्याकरण के न्याय रीतियों में काफी निपुण हो गए थे।
और बाल्यावस्था के दिनों में जब बालक खेल और मस्ती आदि किया करते थे, नीमाई ने खुद को राम और कृष्ण की भक्ति में लीन कर लिया था।
हालांकि मात्र 16 साल की उम्र में इनका विवाह हो गया था लेकिन सांप के दंश की वजह से इनकी पत्नी लक्ष्मी प्रिया की मृत्यु हो गई और आगे वंश को चलाने के लिए इन्हें सनातन धर्म के पंडित की पुत्री विष्णु प्रिया से दूसरा विवाह करना पड़ा।
कहा जाता है अपने पिता की मृत्यु के पश्चात नीमाई जब उनका श्राद्ध करने तट के समीप पहुंचे। तो उनकी मुलाकात ईश्वरपुरी नामक एक संत से हुई। कहते है तभी से नीमाई कृष्ण भक्ति को अपना संसार बना बैठे।
चैतन्य महाप्रभु और उनके असंख्य अनुयायी
भगवान कृष्ण की भक्ति और उनके प्रति असीम लगाव के चलते चैतन्य महाप्रभु को काफी लोग मानने लगे थे। माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के शिष्य बनने के बाद नित्यानंद प्रभु और अद्वेताचार्य महाराज ने इनके भक्ति कार्य को गति प्रदान की।
और बहुत ही कम समय में कई लोग चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी बन गए। चैतन्य महाप्रभु और उनके शिष्य मिलकर ढोलक, मंजीरे आदि के माध्यम से कृष्ण भक्ति गीत गाया करते थे और हरि नाम भजन कीर्तन किया करते थे।
लोगों का मानना है कि जब चैतन्य महाप्रभु भजन कीर्तन किया करते थे तो लगता था जैसे वह ईश्वर का आह्वान करते हो। अपनी इसी कृष्ण भक्ति के चलते मात्र 24 वर्ष की आयु में नीमाई ने गृहस्थ आश्रम का त्याग कर संस्यासी जीवन को गले लगा लिया और नीमाई नाम का युवक कृष्ण चैतन्य देव के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
कहते है कि एक बार जब चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर पहुंचे तो वह भगवान की मूर्ति देख भाव विभोर में डूब गए और एकाएक मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े।
मानते है कि उस दौरान जो पंडित इन्हें अपने घर लेकर आए। वह बाद में इनके शिष्य सार्वभौम भट्टाचार्य कहलाए। जिन्होंने ही चैतन्य महाप्रभु के श्लोकों को चैतन्य शतक में सार समेत संगृहीत किया।
चैतन्य महाप्रभु और उनकी कृष्ण भक्त
चैतन्य महाप्रभु ने संन्यास लेने के बाद देश के कोने कोने में जाकर प्रभु श्री कृष्ण के नाम को फैलाया। साथ ही इन्होंने साल 1515 में वृंदावन जाकर श्री कृष्ण का महिमा मंडन किया। कहते है उस दौरान जंगल के बड़े बड़े जानवर जैसे शेर, बाघ और हाथी इनके आगे झुककर नाचने लगे थे। और ऐसे में आज भी वृंदावन में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को गौरांग का आगमनोत्सव के रूप में मनाते है।
इतना ही नहीं उड़ीसा के सूर्यवंशी सम्राट समेत गजपति महाराज रूद्रदेव ने इन्हें कृष्ण भगवान का अवतार मान लिया था। और तो और इन्होंने हरिद्वार, काशी, द्वारिका और मथुरा आदि धार्मिक स्थलों पर जाकर कृष्ण भक्ति का एलान किया।
जिसके चलते जगन्नाथ पूरी के राजा तक इनकी कृष्ण भक्ति के कायल हो गए थे। कहते है कि चैतन्य महाप्रभु के कारण ही नाम जाप को वैश्णव धर्म माना गया, जिसमें भगवान श्री कृष्ण को मुख्य वरीयता दी गई।
चैतन्य महाप्रभु के सामाजिक कार्य
धार्मिक कार्यकुशलता के साथ ही चैतन्य महाप्रभु ने समाज में उत्पन्न भेदभाव के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद की। इसके साथ ही उन्होंने कुष्ठ और दलितों की काफी सेवा की और वह हमेशा एकता और भाईचारे का ही संदेश दिया करते थे।
उन्होंने मानवता को धार्मिक पहलू से जोड़कर एक सुसंस्कृत समाज की स्थापना का स्वप्न देखा था। और इसके साथ ही वह सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी करते थे। वह मानते थे कि ईश्वर एक है। उनका एक मुक्ति सूत्र काफी प्रचलित है-
कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव पहियाम।
राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्षयाम।।
चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु
माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन के अंतिम दिनों को जगन्नाथपुरी में रहकर ही व्यतीत किया। और कृष्ण भक्ति का यह अनमोल पुजारी मात्र 47 वर्ष की उम्र में साल 1533 में श्री कृष्ण के चरणों में खुद को समर्पित कर गया।
चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं
चैतन्य महाप्रभु के अनुसार जीवन से मुक्ति का एक मार्ग है और वह है कृष्ण की भक्ति। उनके मुताबिक इस संसार में दो प्रकार के प्राणी है एक नित्य मुक्त और दूसरे नित्य संसारी। नित्य मुक्त व्यक्तियों पर माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जबकि नित्य संसारी व्यक्ति मोह माया में ही उलझे रहते हैं। ऐसे में चैतन्य महाप्रभु सदैव अपने भक्तों और अनुयायियों को कृष्ण भक्ति का पालन करने को कहते है और उन्हें बताते हैं कि-
- कृष्ण ही सर्वश्रेष्ठ परम सत्य है।
- कृष्ण ही सभी ऊर्जा को प्रदान करते हैं।
- सभी जीव भगवान के ही अंश हैं।
- पूर्ण और शुद्ध मन से की गई श्रृद्धा ही जीव का सबसे उत्तम अभ्यास है
- कृष्ण का प्रेम ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
- अपने तटस्थ स्वभाव के कारण ही जीव मुश्किल में पड़ जाते हैं।
- कृष्ण ही रस और प्रेम के सागर हैं।
साथ ही चैतन्य महाप्रभु को लोग राधा रानी की छवि मानते हैं। क्यूंकि इन्होंने जीवन पर्यन्त कृष्ण भक्ति और हरि नाम का प्रचार प्रसार किया। हालांकि चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं के बारे में बताते कई ग्रन्थ उपलब्ध है लेकिन श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत चैतन्य महाप्रभु के कार्यों और धार्मिक विचारों को जग जाहिर करती है।
Chaitanya Mahaprabhu ki Jivani – एक दृष्टि में
पूरा नाम | चैतन्य महाप्रभु |
लोकप्रियता | भक्तिकाल के प्रमुख कवि, भगवान श्री कृष्ण का अवतार, वैष्णव धर्म के प्रचारक |
जन्म वर्ष | 18 फरवरी 1486 |
जन्म स्थान | नादिया गांव, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु वर्ष | 1533 |
मृत्यु स्थान | जगन्नाथपुरी |
पिता का नाम | जगन्नाथ मिश्र |
माता का नाम | शची देवी |
बचपन का नाम | निमाई |
अन्य नाम | गौरंग, गौर हरि, गौर सुंदर |
भक्त | भगवान श्री राम और कृष्ण भक्त |
जीवनसाथी | लक्ष्मीप्रिया और विष्णु प्रिया |
शिष्य | नित्यानंद प्रभु, सार्वभौम भट्टाचार्य और अद्वेताचार्या महाराज |
संन्यासी नाम | निमाई |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | वृंदावनदास द्वारा रचित चैतन्य भागवत |
Chaitanya Mahaprabhu – महत्वपूर्ण वर्ष
1486 | पश्चिम बंगाल में जन्म |
1510 | संन्यास की शिक्षा श्री पाद केशव भारती से ग्रहण की |
1515 | भगवान श्री कृष्ण के नाम का प्रचार प्रसार |
1533 | शरीर त्याग दिया |
इसके साथ ही – Chaitanya Mahaprabhu ki Jivani समाप्त होती है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आयी होगी। ऐसे ही अन्य कई जीवनी पढ़ने के लिए हमारी केटेगरी – जीवनी को चैक करें।

2 thoughts on “चैतन्य महाप्रभु की जीवनी – Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi”
हाँ आप लिखते रहिए हम पढते रहेंगे ।। बहुत बहुत धन्यवाद ।।
Very nice