छंद की परिभाषा – Chhand Ki Paribhasha
हिंदी व्याकरण में जब वर्णों को काव्य रचना के दौरान क्रमानुसार, मात्रानुसार, यति गति और व्याकरण सम्बन्धी नियमों के आधार पर नियोजित किया जाता है, तब वह छंद कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, छंद काव्य रचनाओं में मौजूद छोटी बड़ी ध्वनियों, लघु दीर्घ उच्चारणों और मात्राओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हैं।
छंद (Chhand) चद् धातु से मिलकर बने होते हैं। जिनका अर्थ होता है आह्रादित करना। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जब वाक्य में वर्णों और मात्राओं के नियमन या विन्यास के दौरान आह्राद उत्पन्न होता है, तब वहां छंद मौजूद होते हैं। साथ ही छंदों की गति, रचना और गुण अवगुण आदि का अध्ययन कराने वाले शास्त्र को छंद शास्त्र कहते हैं। छंद मुख्यता किसी वाक्य में लय को बताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
छंद के भाग – Chhand ke Bhag
- चरण – छंद में मौजूद समस्त पंक्तियों को चरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में, चरण छंद के चतुर्थाश भाग कहलाते हैं। प्रायः छंद के दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं। तो वहीं छंद के पहले और तीसरे चरण को विषम चरण कहते हैं।
- वर्ण – मुख से निकलने वाली ध्वनि को सूचित करने के लिए जो चिह्न निर्धारित किए गए हैं, वह वर्ण कहलाते हैं। यह मुख्यता दो प्रकार के होते हैं-
2.1 लघु वर्ण – जिन वर्णों को बोलने में कम समय लगता है, वह लघु वर्ण कहलाते हैं। इसको (|) से प्रदर्शित करते हैं।
2.2 गुरु वर्ण – जिन वर्णों के उच्चारण में लघु वर्ण से अधिक समय लगता है, वह गुरु वर्ण कहलाते हैं। जिन्हें (S) से प्रदर्शित करते हैं। - मात्रा – छंद में लघु और गुरु वर्ण को प्रदर्शित करने के लिए जिन चिह्ननों का प्रयोग होता है, वह मात्रा कहलाते हैं। जैसे – लघु वर्ण (|) और गुरु वर्ण (S) आदि।
- यति – छंद को पढ़ते या उच्चारित करते समय जिन स्थानों पर विराम लेना पड़ता है, वह यति कहलाते हैं।
- गति – छंद को पढ़ते समय मन में एक निश्चित प्रवाह की अनुभूति होती है, उसे ही छंद की गति कहते है।
- तुक – किसी भी छंद के अंत में वर्णित अक्षरों में जब समानता पाई जाती है, तब उसे तुक कहते हैं। यह तुकांत और अतुकांत दो प्रकार की होती है।
- गण – छंद में लघु – गुरु के क्रमानुसार तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। यह मुख्यतया आठ प्रकार के होते हैं।
छंद के भेद – Chhand ke Bhed
हिंदी व्याकरण में चार प्रकार के छंद मौजूद है। जिनके कई भाग होते हैं।
- वर्णिक छंद – जब छंद के सभी चरणों की संख्या समान होती है, तब वहां वर्णिक छंद होता है। यह दो प्रकार के होते हैं – साधारण और दंडक।
- वर्णिक वृत छंद – जिन छंदों में वर्णों की गणना होती है, वह वर्णिक वृत छंद होते हैं।
- मात्रिक छंद – जिन छंदों में मौजूद चरणों की सभी मात्राओं की संख्या समान होती है, वह मात्रिक छंद कहलाते हैं। इनमें चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा आदि मुख्य हैं।
- मुक्त छंद – जब छंद में मौजूद वर्णिक और मात्रिक में किसी प्रकार का प्रतिबंध ना हो, तब वहां मुक्त छंद होते हैं।
सर्वाधिक प्रयोग में लाए जाने वाले छंद
1. दोहा छंद – दोहा एक सम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 13 व दूसरे और चौथे चरण में 11 मात्राएं होती हैं। इस प्रकार दोहे में कुल 48 मात्राएं होती हैं। उदाहरण-
लंबा मारग दूरि घर,
बिकट पंथबहु मार।
कहौ संतों क्यूं पाइए,
दुर्लभ हरी दीदार।।
2. सोरठा छंद – सोरठा छंद दोहे का उल्टा होता है। यह एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद कहलाता है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 और दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएं होती है। उदाहरण-
चक्खि न लिया साव,
कबीर प्रेम न चक्खिया।
ज्यूं आया त्यूं जाव,
सूने घर का पाहुना।।
3. रोला छंद – यह एक सम मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। जिसमें प्रत्येक में 24 मात्राएं होती हैं। साथ ही 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। उदाहरण-
उठो उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
4. चौपाई छंद – गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में चौपाई छंद का अधिकतम प्रयोग किया है। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं, कुल मिलाकर 64 मात्राएं होती हैं। साथ ही यह भी एक सम मात्रिक छंद है। उदाहरण-
रामचरित मानस को ताका।
तुलसी की लहराय पताका।।
शास्त्री जी की कक्षा कर लो।
छंदों का रस दिल में भर लो।।
5. कुंडलियां छंद – इसके प्रारंभ के दो चरण दोहा और अंत के दो चरण उल्लासा कहलाते हैं। यह एक विषम मात्रिक छंद है। जिसमें कुल 6 चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं। उदाहरण-
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान
लगा रोपने खेत में, आशाओं के धान
आशाओं के धान, मधुर स्वर कोयल बोले
लिए प्रेम संदेश, मेघ सावन के डोले
ठकुरेला काविराय, लगा सबको मनभावन
मन में भरे उमंग, झूमता गाता सावन।।
उपरोक्त के अलावा, हिंदी व्याकरण में गीतिका, हरिगीतिका, उल्लाला, बरवै, आल्हा, छप्पय, रूपमाला आदि छंद मौजूद हैं।
