गद्य – Gadya in Hindi

गद्य की परिभाषा – Gadya ki Paribhasha

अध्ययन की दृष्टि से हिंदी साहित्य को मुख्यता दो भागों में बांटा गया है। गद्य और पद्य। आमतौर पर गद्य का संबंध हमारे विचारों से होता है जबकि पद्य में भावों को प्रधानता दी जाती है। गद्य हिंदी साहित्य की एक ऐसी रचना है जो प्रायः छंद, ताल, लय आदि से मुक्त होती है। इसके विपरित इसमें विचारों का प्रवाह होता है। जिसे बिना अलंकार, रस और छंद के प्रयोग के साधारणतया पढ़ा जा सकता है। गद्य दो शब्दों गद् +  यत से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है बोलना या कहना। जहां गद्य व्यक्ति के मस्तिष्क से संबंधित होता है तो वहीं पद्य का जुड़ाव व्यक्ति के मन से होता है।

हालांकि पद्य साहित्य गद्य साहित्य से कहीं अधिक पुरानी विधा है। लेकिन आम बोलचाल की भाषा में काव्य की तुलना में गद्य अधिक प्रभावी है। इसका मुख्य उद्देश वक्ता के विचारों को सहजकर उसे सामान्य भाषा शैली के माध्यम से सबके सामने प्रस्तुत करना है। हिंदी भाषा में गद्य की उत्पत्ति से ही साहित्य का विकास हुआ है और इसने आत्मकथा, भाषा, कहानी, व्यंग, निबंध, संस्मरण, जीवनी, उपन्यास, पत्र, लेख और नाटक आदि के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया है। गद्य में व्यक्ति के चिंतन मनन, तर्क वितर्क आदि को अधिक प्रधानता दी जाती रही है।

गद्य के प्रकार – Gadya ke Prakar

1. कहानी – कहानी हिंदी गद्य की वह रचना है जिसमें किसी विषय पर ह्रदयस्पर्शी और रुचिपूर्ण ढंग से लेखक के विचारों को प्रस्तुत किया जाता है। कहानी के अंतर्गत मानव जीवन से जुड़े किसी पहलू को मनभावन होकर लिखा जाता है। हिंदी गद्य में मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय, यशपाल, जैनेन्द्र आदि कई प्रकार के कहानीकार हुए हैं।

कहानी के कई तत्व होते हैं-

  • कथानक
  • संवाद
  • चरित्र चित्रण
  • देशकाल
  • भाषा शैली
  • उद्देश्य

2. उपन्यास – यह दो शब्दों से मिलकर बना है, उप + न्यास। यानि जब लेखक द्वारा किसी विधा को ऐसे लिखा जाए कि वह अपनी कहानी सी प्रतीत होने लगे तो वह उपन्यास कहलाता है। उपन्यास का अर्थ व्यक्ति जीवन के प्रतिबिंब से लगाया जाता है। इसमें नायक से जुड़े दृश्य और नाटकों को सजीवता से दर्शाया जाता है। साथ ही हिंदी साहित्य की यह विधा सर्वधिक लचीली होती है। जिसमें मानव चरित्र का बड़ी ही रोचकता से चित्रण किया गया होता है।

इसके मुख्य तत्व होते हैं – पात्र, चरित्र चित्रण, संवाद, वातावरण, भाषा शैली, जीवन दर्शन आदि।

3. संस्मरण – यह हिंदी साहित्य की ऐसी विधा है जिसमें किसी व्यक्ति और विषय के संबंध में स्मृति के आधार पर लिखा जाता है। संस्मरण लिखने के लिए आवश्यक है कि लेखक ने उपरोक्त व्यक्ति का साक्षात्कार लिया हो। इसके जरिए लेखक अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करता है। इस प्रकार, यदि लेखक अपने बारे में संस्मरण लिखता है तो वह आत्मकथा विधा के अत्यधिक निकट होता है। दूसरा, यदि लेखक किसी अन्य व्यक्ति को लेकर संस्मरण लिखता है तो वह जीवनी कहलाती है।

संस्मरण के अनेकों तत्व हैं – अतीत की स्मृति, आत्मीय और श्रृद्धापूर्ण अंतरंग संबंध, प्रामाणिकता, वैयक्तिकता आदि। हिंदी साहित्य में रामवृक्ष बेनीपुरी, देवेंद्र सत्यार्थी, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर आदि कई साहित्यकारों ने संस्मरण विधा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया है।

4. आत्मकथा – जब लेखक स्वंय के जीवन की घटनाओं के बारे में लिखता है तो उसे आत्मकथा कहते हैं। आत्मकथा में लेखक अपने अनुभवों, महत्वपूर्ण घटनाओं का विश्लेषण आदि का जिक्र करता है। इसे तटस्थ दृष्टि से लिखा जाता है। यह मुख्यता आत्मनिष्ठ होती है। आत्मकथा में अनुभवों के आधार पर लेखन किया जाता है।

हिंदी साहित्य में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, श्याम सुंदर दास, देवेंद्र सत्यार्था आदि आत्मकथा विधा के प्रमुख लेखकों में से एक हैं।

5. जीवनी – लेखक जब किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन चरित्र के बारे में लिखता है, तब उसे जीवनी कहते हैं। जीवनी में किसी व्यक्ति के बारे में प्रभावी और निष्पक्ष तरीके में लिखा जाता है। यहां किसी भी व्यक्ति के यथेष्ट जीवन के सार को लेखन के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

जीवनी के कई प्रकार होते हैं – आत्मीय जीवनी, लोकप्रिय जीवनी, ऐतिहासिक जीवनी, मनोवैज्ञानिक जीवनी, व्यक्तिगत जीवनी, कलात्मक जीवनी आदि।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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