हिंदी व्याकरण के अध्ययन के दूसरे अध्याय में आज हम शब्द के अर्थ और प्रकार आदि के बारे में पढ़ेंगे।
शब्द का अर्थ – Shabd ka Arth
शब्द हिंदी व्याकरण में वर्ण के बाद दूसरी सबसे छोटी इकाई होते हैं जोकि दो या दो से अधिक प्रकार के वर्णों के सहयोग से बनते हैं।
इस प्रकार, शब्द वर्णों के ऐसे व्यवस्थित समूह को कहते हैं, जिनका कोई अर्थ मौजूद हो। शब्द वर्णों की सहायता से मिलकर तैयार होते हैं और इनका अपना सार्थक प्रयोग और अर्थ व्याकरण में शामिल होता है। जैसे – किताब, मकान, कमल, आम आदि।
शब्द के प्रकार – Shabd ke Bhed
हिंदी व्याकरण में मौजूद शब्द उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोग के आधार पर कई प्रकार के होते हैं।
अर्थ के आधार पर
1. सार्थक शब्द – जिन शब्दों का अर्थ स्पष्ट होता है और उन्हें साधारण बोल चाल की भाषा में इस्तेमाल किया जा सकता है, वह सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे :- कलम, मोबाइल, बैग, लकड़ी, मेज, कपड़ा आदि।
2. निरर्थक शब्द – हिंदी व्याकरण में जिन शब्दों का कोई अर्थ स्पष्ट या मौजूद नहीं होता है, वह निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे :- वानी, काजा, साना आदि।
परिवर्तन के आधार पर
1. विकारी शब्द – जिन शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करने के दौरान वह लिंग, वचन और कारक के अनुसार बदल जाते हैं, वह विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे – राम पढ़ता है, सीता गाती है आदि।
विकारी शब्द निम्न प्रकार के हैं-
1. संज्ञा
2. सर्वनाम
3. विशेषण
4. क्रिया
2. अविकारी शब्द – जिन शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करने के पश्चात् भी उनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है, वह अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे – अरे, वाह, किन्तु, लेकिन आदि।
अविकारी शब्द निम्न प्रकार के हैं-
1. क्रिया विशेषण
2. संबंध बोधक
3. समुच्चय बोधक
4. विस्मयादि बोधक
उत्पत्ति के आधार पर
1. तत्सम शब्द – हिंदी की आदि जननी संस्कृत भाषा के शब्दों को हिंदी भाषा में इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें ही तत्सम शब्द कहते हैं। तत्सम का संधि विच्छेद करने पर तत् + सम निकलकर आता है, जिसका तात्पर्य होता है उसके समान। यानि जिन शब्दों को संस्कृत भाषा में प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार से हिंदी में शब्द प्रयुक्त होते हैं। वह तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे – आम्र, चन्द्र, पुष्प, घोटक आदि।
2. तद्भव शब्द – जिन शब्दों का प्रादुर्भव संस्कृत और प्राकृत भाषा से हुआ है, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलाते हैं। यानि जो शब्द संस्कृत से निकलकर और अपना रूप बदलकर हिंदी भाषा में मिल गए हैं उन्हें तद्भव शब्दों की श्रेणी में रखा जाता है। इनका संधि विच्छेद करने पर तद + भाव आता है जिसका अर्थ होता है उससे होना। जैसे – दुग्ध – दूध, हस्त – हाथ, अक्षि – आंख, अंधकार – अंधेरा आदि।
3. देशज शब्द – देशज का संधि विच्छेद करने पर देश + ज होता है, जिसका तात्पर्य होता है देश में जन्मा। यानि जो शब्द देश के अलग अलग क्षेत्रों से निकलकर हिंदी भाषा में मिल जाते हैं। वह देशज शब्द कहलाते हैं। जैसे – ठुमरी, खखरा, खिचड़ी, खिरकी, पगड़ी आदि।
4. विदेशज शब्द – जो शब्द भारत के बाहर अन्य देशों में जन्मे होते हैं लेकिन वह हिंदी भाषा में इस कदर शामिल होते हैं कि वह इसी से उत्पन्न हुए लगते हैं। वह विदेशज शब्द कहलाते हैं। जैसे – पेन, कॉपी, लीची, टेलीफोन, ड्राफ्ट आदि।
5. संकर शब्द – जिन शब्दों का निर्माण दो भाषाओं के मिलने से होता है वह संकर शब्द कहलाते हैं। जैसे – रेलगाड़ी, लाठी चार्ज, टिकटघर आदि।
व्युत्पत्ति के आधार पर
1. रूढ़ शब्द – जिन शब्दों में किसी भी प्रकार के अन्य शब्द शामिल नहीं होते हैं, वह रूढ़ शब्द कहलाते हैं। साथ ही जिनका अर्थ रूढ़ होता है और उनको वर्णों में तोड़ने के बाद कोई अर्थ प्राप्त नहीं होता है, वह रूढ़ शब्द की श्रेणी में आते हैं। जैसे – भैंस, गाय, बकरी आदि।
2. यौगिक शब्द – जो शब्द अन्य शब्दों के योग से मिलकर बने होते हैं, वह यौगिक शब्द कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, संधि, समास, उपसर्ग और प्रत्यय आदि के मेल से निर्मित शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। जैसे – घुड़ सवार, डाक घर, विद्या आलय, आग बबूला आदि।
3. योगरूढ़ शब्द – जो शब्द विभिन्न प्रकार के योग से मिलकर बनते हैं और एक विशेष अर्थ के लिए जाने जाते हैं वह योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे – गजानन, दशानन, चक्रपाणि आदि।
अर्थ के आधार पर
1. वाचक शब्द – जो शब्द वाक्य प्रयोग के दौरान अपने सांकेतिक अर्थ को प्रदर्शित करते हैं, वह वाचक शब्द कहलाते हैं। जैसे – भैंस दूध देती है, दिल्ली हमारा घर है आदि।
2. लक्षक शब्द – जो शब्द वाक्य प्रयोग के समय अपने अर्थ से विपरित अर्थ को प्रदर्शित करता है, वह लक्षक शब्द कहलाते हैं। जैसे – विजय गधा है – विजय मूर्ख है। सीता गाय है – सीता एक सीधी लड़की है आदि।
3. व्यंजक शब्द – जो शब्द वाक्य प्रयोग के दौरान अलग अलग अर्थ प्रकट करते हैं वह व्यंज़क कहलाते हैं। जैसे – पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।। उपरोक्त उदाहरण में पानी शब्द को तीन अर्थों में प्रयोग किया गया है।
इस प्रकार हिंदी व्याकरण में शब्द के माध्यम से वाक्य और आगे प्रयोग की जाने वाली शैली का निर्माण होता है।
