भाषा किसी भी सभ्य समाज में मनुष्य द्वारा विचारों का आदान प्रदान करने का साधन होती है। ऐसे में हिंदी भाषा को सीखने के लिए हमें हिंदी व्याकरण का अध्ययन करना पड़ता है। जिसके माध्यम से हम हिंदी भाषा को आसानी से लिखना, पढ़ना और बोलना सीखते हैं।
हिंदी व्याकरण पढ़ते समय हमारा परिचय सर्वप्रथम वर्णों से कराया जाता है क्योंकि हिंदी भाषा को बिना वर्णों की सहायता के ना ही ठीक प्रकार से लिखा जा सकता है और ना बोला जा सकता है। दूसरी ओर, वर्ण के माध्यम से ही आगे चलकर हिंदी भाषा में प्रयोग किए जाने वाले अनेकों शब्दों और वाक्यों का निर्माण हुआ है।
वर्ण क्या है? – Varn Kya hai
वर्ण (Alphabet) हिंदी भाषा की वह मूल ध्वनि होते हैं जिन्हें खंडों में विभाजित नहीं किया जा सकता है। सामान्य शब्दों में, हिंदी भाषा में उल्लेखित वर्ण लिखित भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है, जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए – ‘नाम’ शब्द से हमें चार प्रकार की मूल ध्वनियां (न् + आ + म् + अ ) मिलेंगी। यह मूल ध्वनियां ही वर्ण कहलाती हैं। प्रत्येक वर्ण की अपनी लिपि होती है। हिंदी भाषा में कुल 52 वर्ण होते है। जिनके व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहा जाता है।
वर्ण के प्रकार – Varn ke Bhed
हिंदी व्याकरण के आधार पर वर्ण दो प्रकार के होते हैं – स्वर और व्यंजन।
स्वर
जिन वर्णों को मुख से बोलते समय अन्य वर्णों की जरूरत नहीं पड़ती है या जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है, वह स्वर (Vowel) कहलाते हैं।
हिंदी भाषा में मौजूद 52 वर्णों में से 13 वर्णों को स्वर कहा गया है। जिनमें से 11 वर्ण मानक स्वर कहलाते हैं। जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
अं, अ: उपयुक्त स्वरों को आम बोलचाल की भाषा में कम प्रयोग किया जाता है, ऐसे में यह अयोगवाह स्वर की श्रेणी में आते हैं।
स्वर के प्रकार
हिंदी वर्णमाला में स्वर व्यंजनों से पहले लिखे और उच्चारित किए जाते हैं। ऐसे में उच्चारण और व्युत्पत्ति के आधार पर इनका विश्लेषण कई प्रकार से किया गया है।
उच्चारण के आधार पर-
1. ह्स्व स्वर – जिन स्वरों का उच्चारण करते वक्त कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर की श्रेणी में रखते हैं। यह मुख्यता चार प्रकार के होते हैं – अ, आ, उ, ऋ।
2. दीर्घ स्वर – जिन स्वरों को मुख से उच्चारित करते समय ह्स्व स्वरों से अधिक समय लगता है वह दीर्घ स्वर कहलाते हैं। यह मुख्यता सात प्रकार के होते हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
3. प्लुत स्वर – जिन स्वरों का उच्चारण करते समय सबसे अधिक समय लगता है वह प्लुत स्वर कहलाते हैं। इनका प्रयोग हिंदी की आदि जननी संस्कृत में अधिक हुआ है। जैसे – राऽऽम, ओऽऽम् आदि।
व्युत्पत्ति के आधार पर-
इसके आधार पर स्वरों को मूल स्वर और संधि स्वर में विभाजित किया गया है। जिसमें मूल स्वर के अंतर्गत अ, इ, उ, ऋ आदि आते है और संधि स्वर के अंतर्गत उपरोक्त मूल स्वर से अन्य स्वर वर्णों का निर्माण होता है। जैसे-
(अ + अ =आ)
(इ + इ = ई)
(उ + उ = ऊ)
(अ + इ = ए)
(अ + ए = ऐ)
(अ + उ = ओ)
(अ + ओ = औ)
उच्चारण स्थान के आधार पर-
उपरोक्त शीर्षक के अंतर्गत स्वरों को मुख से उच्चारित करने के आधार पर बांटा गया है। जैसे-
अ, आ = कंठ से कहे गए
इ, ई = तालु से कहे गए
उ, ऊ = होंठ से कहे गए
ऋ = मूर्धन्य से कहा गया
ए, ऐ = कंठ और तालु के द्वारा कहा गया
ओ, औ = कंठ और होंठ के द्वारा कहा गया
मात्रा के आधार पर-
संबंधित शीर्षक के अंतर्गत स्वरों को मात्रा के आधार पर व्यवस्थित क्रम में बांटा गया है। सुविधा की दृष्टि से मात्राओं को समझाने के लिए ‘क’ का प्रयोग किया है।
अ (अमात्रिक)
आ (का)
इ (कि)
ई (की)
उ (कु)
ऊ (कू)
ऋ (रि)
ए (के)
ऐ (कै)
ओ (को)
औ (कौ)
जीभ के प्रयोग के आधार पर-
जब स्वरों का उच्चारण मुख से होता है तो हमारी जीभ वर्णों के उच्चारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिए इस आधार पर भी स्वरों का वर्गीकरण किया गया है। जैसे-
इ, ई, ए, ऐ आदि अग्र स्वर कहलाते हैं क्यूंकि इनके उच्चारण में जीभ का आगे का भाग प्रयोग होता है।
अ के उच्चारण के दौरान जीभ का मध्य भाग प्रयोग में आता है।
आ, उ, ऊ, ओ, औ आदि के उच्चारण के समय हमारी जीभ का सबसे पीछे वाला भाग प्रयोग में लाया जाता है।
इस प्रकार उपरोक्त आधार पर स्वर को हिंदी वर्णमाला में शीर्ष स्थान प्राप्त है।
व्यंजन
हिंदी वर्णमाला में मौजूद जिन वर्णों को बिना स्वर की सहायता के नहीं बोला जा सकता है, वह व्यंजन कहलाते हैं। इस प्रकार सभी 52 वर्णों में 13 स्वरों को हटाकर कुल 39 व्यंजन होते हैं। जोकि निम्न प्रकार हैं।
क, ख, ग, घ, डं, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
व्यंजन के प्रकार
स्वरों की तरह व्यंजन के भी तीन भेद होते हैं। जिनको मात्राओं और उच्चारण के आधार पर हिंदी वर्णमाला में क्रमबद्ध किया गया है।
1. स्पर्श व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते वक्त जीभ मुख में मौजूद कंठ, दांत, होंठ, तालु, मूर्धन्य आदि से जाकर मिलती है तो वह स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। जैसे-
क, ख, ग, घ, डं, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म आदि।
2. अंतस्थ व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वह मुख के किसी भी भाग से नहीं मिलते हैं या वह मुख के भीतर ही रहते हैं। वह अंतस्थ व्यंजन कहलाते हैं। जैसे-
य, र, ल, व आदि।
3. ऊष्म व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से शुष्क वायु का प्रवाह होता है वह ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। जैसे-
श, ष, स, ह आदि।
4. संयुक्त व्यंजन – यह व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों को मिलाकर बनते हैं। जैसे-
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र आदि।
इसके अलावा स्वर और व्यजनों को अन्य भी कई प्रकार से बांटा गया है।
स्वर के अन्य भेद
1. संवृत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण के दौरान मुख थोड़ा ही खुलता है वह संवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – इ, ई, उ, ऊ आदि।
2. अर्द्ध संवृत स्वर – यदि स्वरों के उच्चारण के समय मुख अपेक्षाकृत अधिक खुलता है तब उसे अर्द्ध संवृत स्वर कहते हैं। जैसे – ए, ओ आदि।
3. विवृत स्वर – स्वरों के उच्चारण में जब पूरा मुख खुलता है तब वह विवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – आ।
4. अर्द्ध विवृत स्वर – जब स्वर उच्चारण के दौरान आधा मुख खुलता है तब उसे अर्द्ध विवृत स्वर कहते हैं। जैसे – अ, ऐ, औ आदि।
5. वृत्ताकार स्वर – जब स्वरों के उच्चारण के दौरान होंठ वृत्त आकार के बन जाते हैं तो उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ आदि।
6. अवृत्ताकार स्वर – जब स्वर उच्चारित करते समय होंठों की आकृति अवृत्ताकार बन जाती है तो उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे – इ, ई, ए, ऐ आदि।
व्यंजन के अन्य भेद
1. लुण्ठित व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण के दौरान जीभ लपटती है, वह लुण्ठित व्यंजन की श्रेणी में आते हैं। जैसे – र्।
2. जिह्ममूलीय व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण जीभ के मुख्य भाग के द्वारा होता है वह जिह्ममूलीय व्यंजन कहलाते हैं।
हल् की परिभाषा
प्रत्येक व्यंजन स्वर की सहायता से ही बोले जाते हैं लेकिन यदि किसी व्यंजन के नीचे हल् का प्रयोग किया जाए तब वह स्वर रहित हो जाते हैं। इस प्रकार जिन शब्दों के अंत में हल् चिन्ह का प्रयोग किया जाता है, वह बिना स्वर के व्यंजन कहलाते हैं। जैसे – जगत्, सन्, अहम्, अंतर्। यह सब शुद्ध व्यंजन कहलाते हैं।