भारत के प्राचीन इतिहास पर गौर करें तो पाएंगे कि वर्तमान में देश-दुनिया में जो भी वैज्ञानिक प्रगति हो रही है। उसका संबंध कहीं ना कहीं प्राचीन भारत से रहा है। हमारा भारत देश जोकि प्राचीन समय में विश्व गुरु की पदवी धारण किए हुए था।
उसके पीछे का कारण ये था कि हमारे समाज में अनेक ऐसे लोग हुए, जिन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। फिर चाहे वह क्षेत्र सामाजिक हो, धार्मिक हो या वैज्ञानिक। उस दौर में हमारे समाज के कई बुद्धिजीवी और प्रतिभावान व्यक्तियों द्वारा की गई खोजों और आविष्कारों पर आज भी दुनिया भर के वैज्ञानिक आश्चर्य प्रकट करते हैं।
ठीक इसी तरह से, आधुनिक खगोलशास्त्री ब्रह्मांड के जिन रहस्यों को वर्तमान में मानव समाज के सामने लाकर रख रहे हैं, आज से लाखों वर्ष पहले ही ब्रह्मांड के उन अनोखे रहस्यों को भारत के प्राचीन आविष्कारकों द्वारा खोजा या स्थापित किया जा चुका है।
जिनमें से एक है सूर्य सिद्धांत ग्रंथ की रचना। इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों, खोजों और नियमों को उजागर किया गया है। जिन पर आधुनिक वैज्ञानिक या खगोलशास्त्री पूर्णतया विश्वास भी करते हैं।
हमारे आज के इस लेख में हम आपको सूर्य सिद्धांत ग्रंथ और उससे जुड़ी समस्त बातों के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। ताकि आपको ये यकीन हो सके कि प्राचीन भारत के महान व्यक्ति केवल धार्मिक आधार पर ही नहीं, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिकों की भांति खगोलीय जानकारियों को लेकर भी काफी जागरूक थे।
सूर्य सिद्धांत क्या है? ( Surya Sidhhant )
सूर्य सिद्धांत भारतीय खगोलशास्त्र से जुड़ा एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। जिसमें ब्रह्मांड से जुड़ी सारी नियमावली का सार सहित वर्णन किया गया है। सामान्य शब्दों में, वर्तमान में दुनिया भर के वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में लगे हुए हैं।
सूर्य सिद्धांत नामक प्राचीन भारतीय ग्रंथ में इस बारे में पहले से ही वर्णित है कि मंगल ग्रह पर पानी और लोहा मौजूद है। यही कारण है कि आधुनिक वैज्ञानिक भी सूर्य सिद्धांत में लिखी बातों को तर्कपूर्ण और आधारशील मानते हैं। हालांकि सूर्य सिद्धांत में अन्य किन बातों की जानकारी दी गई है, इस बारे में आगे हम आपको विस्तार से बताएंगे। पहले जान लेते हैं क्या है सूर्य सिद्धांत और किसने की थी इसकी रचना।
वराह मिहिर कौन थे? (Varaha Mihira)
सूर्य सिद्धांत नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना ‘वराह मिहिर’ ने की थी, जोकि एक महान् खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे। ये चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के राजदरबार में नवरत्नों में शामिल थे। इनका जन्म 499 ईसवी में उज्जैन के कपिथा नामक गांव में हुआ था। वराह मिहिर बचपन से ही प्रतिभाशाली थे।
यही कारण था कि इन्होंने बचपन में ही अपने पिता आदित्यदास, जोकि सूर्यदेव के उपासक थे, से ज्योतिष और गणित जैसे जटिल विषयों का ज्ञान लेना आरंभ कर दिया था।
आगे चलकर वराह मिहिर ने इन्हीं विषयों पर शोध किया। जिसके पीछे उनका उद्देश्य था कि वह गणित और विज्ञान को जन-जन के लिए सुलभ बनाना चाहते थे।अपने विभिन्न शोधों के आधार पर ही उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला था कि ब्रह्मांड में मौजूद सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से हुई है।
और जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म में सूर्यदेव को प्रमुख देवता की संज्ञा दी जाती है। यही कारण है कि ब्रह्मांड के समस्त रहस्य वराह मिहिर के सूर्य सिद्धांत में मौजूद हैं। हालंकि वराह मिहिर ने बृहज्जातक, बृहत्संहिता और पंच सिद्धांतिका नामक तीन प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी थी। जिनमें सूर्य सिद्धांत पंच सिद्धांतिका का ही भाग है, जोकि इसके अन्य चार भागों से अधिक प्रचलित है। जोकि निम्न प्रकार हैं..
पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत और पितामह सिद्धांत।
हालांकि कम ही लोगों को ज्ञात है कि वराह मिहिर ने संख्या सिद्धांत नामक ग्रंथ की भी रचना की थी। जिसमें उन्होंने अंकगणित और त्रिकोणमिति आदि विषयों पर कथन प्रस्तुत किए हैं।
सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया है और श्लोक के माध्यम से ब्रह्मांड के जटिल रहस्यों की गुत्थी सुलझाई है।
इस सिद्धांत में कुल 14 अध्याय (ग्रहों की चाल, ग्रहों की स्थिति, दिशा स्थान व समय, चंद्रमा ग्रहण, सूर्य ग्रहण, ग्रहणों का पूर्वानुमान, ग्रहों का संयोग, तारों का उदय या अस्त, चंद्रमा का उदय या अस्त, ब्रह्मांड का निर्माण, सूर्य घड़ी का दंड, विभिन्न लोकों की गति, मानवीय क्रियाकलाप, सूर्य व चंद्रमा के अहितकारी पक्ष) दिए गए हैं, जिनमें 500 से अधिक श्लोक मौजूद हैं।
इसके अलावा..
- इन्होंने ही समय मापन के घटयंत्र का आविष्कार किया था।
- वराह ने सूर्य सिद्धांत में मंगल ग्रह के अर्धव्यास की गणना भी की थी, जोकि वर्तमान में नासा द्वारा की
गई गणना के समान ही है। - वराह मिहिर ने ही महाभारत युग में इंद्रप्रस्थ में लौह स्तंभ और वेधशाला का निर्माण कराया था।
- आज भी सूर्य सिद्धांत में मौजूद सूत्रों और समीकरणों के आधार पर ही हिंदू पंचांग की गणना की जाती है।
- गणित की सबसे प्रचलित शाखा त्रिकोणमिति, जिसमें त्रिभुज और त्रिभुज से निर्मित बहुभुजों के बारे में पढ़ाया जाता है। इसमें पढ़ाए जाने वाले sign और cosine की उत्पत्ति सूर्य सिद्धांत में वर्णित ज्या और कोटिज्या से ही हुई है।
- सूर्य सिद्धांत में ब्रह्मांड के समस्त नौ ग्रहों के व्यास की भी गणना की जा चुकी है।
- सूर्य सिद्धांत इस थ्योरी की भी परिकल्पना करता है कि हम जिस ब्रह्मांड में रहते हैं, वह गोल है। इसे सूर्य सिद्धांत में इस श्लोक के माध्यम से दर्शाया गया है।
सर्वत्रैव महीगोले स्वस्थानम् उपरि स्थितम्।
मन्यन्ते खे यतो गोलस् तस्य कोर्धवम् क्क वाध।।
- सूर्य सिद्धांत में दिन-रात का गणना चक्र, सौर मास, तिथियां, राहु केतु की चाल, ऋतुएं, पर्व, नाड़ी, मुहूर्त, राहुकाल, दिवस, सूर्य चंद्रमा का उदय और अस्त, तारों का प्रकाश, ग्रहों का संयोग, सूर्य की गति, चंद्रमा की चाल, दूरी, आयाम, ग्रहण, पृथ्वी की रेखाएं और ध्रुवों आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
- वराह मिहिर ने पंच सिद्धांतिका में अयनांश का मान 50.32 बताया है।
- न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से पहले वराह मिहिर ने बता दिया था कि ब्रह्मांड में कोई ऐसी शक्ति मौजूद है, जोकि चीजों को धरती से चिपकाए रखती है।
- इन्होंने शून्य, स्थानीय मान और बीजगणित संबधी गुणाकों को भी अपनी रचना में परिभाषित किया है।
- इसके अलावा, वराह ने त्रिकोण, सांयोजिकी, परावर्तन, प्रकाशिकी और अपवर्तन की भी व्याख्या की है।
- सूर्य सिद्धांत इस बात की भी प्रामाणिकता सिद्ध करता है कि सूर्य एक तारा है और ब्रह्मांड में अनेक तारें मौजूद हैं, जोकि एक समय बाद परम ब्रह्म में लीन हो जाएंगे।
- मिहिर के इस सिद्धांत में केवल 6 ग्रहों (बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि) को आवश्यक माना गया है। जिनपर ही सप्ताह के 7 दिनों का नाम रखा गया है। साथ ही वराह ने अपने सिद्धांत में ये भी बताया है कि सारे ग्रहों पर समयकाल अलग-अलग होता है।
- सूर्य सिद्धांत में ग्रहों की चाल, व्यास और दूरी के आधार पर 108 और 9 अंक को शुभ माना गया है।
इस प्रकार, ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने के चलते वराह मिहिर को भारतीय खगोलशास्त्र में उसी प्रकार का दर्जा दिया जाया है, जो महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट, राजनीति शास्त्र में कौटिल्य और चाणक्य, शल्य चिकित्सा में आचार्य सुश्रुत और व्याकरण में पाणिनि को मिला है। इनके द्वारा रचित सूर्य सिद्धांत के नियमों और सूत्रों को आधुनिक वैज्ञानिक भी सत्य और प्रभावी मानते हैं।
जिसे वराह मिहिर ने सूर्य देव के आदेश और स्वयं के शोधों के आधार पर कालांतर में लिपिबद्ध किया था। कहा जाता है कि सूर्य सिद्धांत के लेखों को नष्ट करने के लिए मुगल आक्रांताओ ने भारत पर आक्रमण करके इसे जला दिया था, या चोरी कर लिया था, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी मौजूद है।
Featured image: jeevan-mantra
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