Yajurved in Hindi
यजुर्वेद ऋग्वेद के बाद हिन्दू धर्म का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण वेद माना गया है। हालांकि इसके अधिकांश मंत्र ऋग्वेद और अथर्ववेद से लिए गए हैं। लेकिन फिर भी यजुर्वेद अन्य वेदों से काफी भिन्न है। यजुर्वेद के मंत्र गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में लिखे गए हैं। और इसके गद्यात्मक मंत्रों को यजुस कहा जाता है। यजुर्वेद की रचना का काल वैसे तो 1400 से 1000 ईसा पूर्व माना जाता है। लेकिन इसे लेकर काफी विद्वान एकमत नहीं है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यजुर्वेद की रचना का स्थान कुरुक्षेत्र माना गया है। ऐसे में आज हम युजर्वेद से जुड़े रोचक तथ्यों और इसके महत्व का अध्ययन करेंगे।
यजुर्वेद का अर्थ
यजुर्वेद में यजु से तात्पर्य यज्ञ आदि से होता है। यानि कि यजुर्वेद में मुख्य रूप से वैदिक यज्ञ से जुड़ी विधियों और मंत्रों का उल्लेख किया गया है। जिस कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहा जाता है। यजुर्वेद में लगभग 40 अध्याय, 1975 कांडिकाए और 3988 मंत्र समाहित हैं। जिसको महर्षि वेदव्यास जी ने रचित किया था। साथ ही इसमें आर्यों के धार्मिक और सामाजिक जीवन को भी दर्शाया गया है। यजुर्वेद के विषय में कहा जाता है कि यह त्रेतायुग का प्रचलित वेद था। जिसमें वर्णित मंत्रों और सूक्तियों के आधार पर ही उस युग में हवन और यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते थे।
यजुर्वेद की शाखाएं
मूल रूप से यजुर्वेद की दो शाखाएं प्रचलित हैं। जिसको हम शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद के नाम से जानते हैं। जहां मूल मंत्रों की उपस्थिति के चलते प्रथम यजुर्वेद को शुक्ल यजुर्वेद कहा गया है। तो वहीं मंत्रों के साथ विनियोग और व्याख्या के चलते द्वितीय यजुर्वेद को कृष्ण यजुर्वेद कहा गया है।
शुक्ल यजुर्वेद की वैसे तो करीब 15 शाखाएं हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 2 शाखाएं ही विद्यमान है। जिनके नाम वाजसनेयि माध्यान्दिन संहिता और काण्व संहिता हैं। इनमें कुल मिलाकर लगभग 40 अध्याय हैं। शुक्ल यजुर्वेद का 40वां अध्याय ईशोपनिषद के नाम से विख्यात है। दूसरी ओर, कृष्ण यजुर्वेद की कुल चार शाखाएं हैं। जिनको तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठक और कठ कपिष्ठल आदि नामों से जानते हैं।
यजुर्वेद से जुड़े रोचक तथ्य
- सनातन धर्म में प्रचलित गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र यजुर्वेद से ही लिए गए हैं।
- वैदिक समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख भी हमें यजुर्वेद में देखने को मिलता है।
- समस्त यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ अश्वमेघ यज्ञ की जानकारी भी हमें इसी वेद से प्राप्त हुई है। इसके अलावा अग्निहोत्र, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय, अग्नि चयन आदि यज्ञों के बारे में भी हमें यजुर्वेद से मालूम चलता है।
- यजुर्वेद में मौजूद मंत्रों का उच्चारण जिसके द्वारा किया जाता है, उसे अध्वुर्य कहा जाता है। साथ ही ईश, मुण्डक, प्रश्न, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतर आदि उपनिषद भी यजुर्वेद से ही संबंधित हैं।
- सनातन धर्म में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान किए जाने वाले यज्ञ, मंत्रों या हवनों से जुड़ी समस्त प्रक्रियाओं के बारे में हमें यजुर्वेद से ही ज्ञात होता है।
इस प्रकार, यजुर्वेद में वर्णित मंत्र और तमाम धार्मिक विधियों का प्रयोग आज भी हिंदू धर्म में प्रासंगिक है। फिर चाहे वह यज्ञ हो, हवन हो या फिर कोई अन्य धार्मिक कार्यक्रम। यजुर्वेद में प्रचलित मंत्रों को आज भी सनातन धर्म के अनुयायी उच्चारित करते हैं और हमारे सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन में उनका विशेष महत्व है।
यजुर्वेद में समस्त उपयोगी मंत्रों को वर्णित किया गया है, जोकि धार्मिक दृष्टि से आज भी लाभकारी सिद्ध होते हैं। इसलिए हमें यजुर्वेद का भी अध्ययन अवश्य करना चहिए। ताकि हम हमारी वैदिक संस्कृति और उससे जुड़े लोगों के विषय में अधिक से अधिक जान सकें।
इसी उम्मीद के साथ कि आपको हमारा यह लेख [Yajurveda in hindi] पसंद आया होगा, यह लेख यही समाप्त होता है। इसी प्रकार से हिंदू धर्म में मौजूद अन्य वेदों के बारे में जानने के लिए Gurukul99 पर दुबारा आना ना भूलें।
