ऋग्वेद हिन्दु धर्म के प्रमुख चार ग्रंथों में सर्वोच्च और सबसे प्राचीन ग्रंथ है। जिसमें मंत्रों की कुल संख्या 10552 है। यह समस्त वेदों में सर्वाधिक लोकप्रिय इसलिए है क्योंकि इसमें सनातन धर्म के प्रसिद्ध देवी-देवताओं की स्तुति की गई है। ऋग्वेद एक पद्यात्मक ग्रंथ है।
माना जाता है इसकी रचना सप्त सैंधव प्रदेश में हुई थी। हालांकि इसकी रचना अनेक ऋषियों द्वारा अलग अलग समय और युगों में की गई है। इसलिए किसी एक ऋषि या विद्वान को ऋग्वेद की रचना का श्रेय नही दिया जा सकता है। तो वहीं ऋग्वेद के समयकाल को लेकर भी विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं।
जहां तिलक के अनुसार ऋग्वेद की रचना 6000 ईसा पूर्व, मैक्समूलर के अनुसार 1200-1000 ईसा पूर्व, मान्य मत के अनुसार 1500-1000 ईसा पूर्व और विंटर नित्स 1500-1000 ईसा पूर्व को ऋग्वेद की रचना का काल मानते हैं।
साथ ही इसकी 30 पांडुलिपियों को यूनेस्को ने लगभग 1800 से 1500 ईसा पूर्व सांस्कृतिक धरोहर की मुख्य सूची में शामिल कर लिया था। इस प्रकार, ऋग्वेद का ना केवल धार्मिक अपितु ऐतिहासिक, राजनैतिक और चिकित्सा की दृष्टि से भी काफी महत्व है। ऐसे में आज हम ऋग्वेद का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
ऋग्वेद का सामान्य परिचय
ऋग्वेद में ऋक से तात्पर्य स्थिति और ज्ञान से है। यानि ऐसा वेद जो पूर्ण रूप से ऋचाओं और स्तुतियों पर आधारित हो। ऋग्वेद को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले भाग में 10 मंडल हैं, जिसे मंडलक्रम कहा जाता है।
हालांकि प्रथम मंडल को अनेक ऋषियों, द्वितीय मंडल को गृत्समय, तृतीय मंडल को विश्वासमित्र, चतुर्थ मंडल को वामदेव, पंचम मंडल को अत्रि, छठे मंडल को भारद्वाज, सांतवे मंडल को वसिष्ठ, आंठवे मंडल को कण्व और अंगिरा व नौवां, दसवां मंडल अनेक ऋषियों द्वारा रचित किया गया है। और इसमें कुल 85 अनुवाक, 1028 सूक्त और करीब 10552 मंत्र है।
ऋग्वेद के पहले भाग का पहला और आखिरी मंडल अन्य मंडलों से काफी बड़ा हैं। साथ ही पहले और आंठवे मंडल में काफी समानताएं देखने को मिलती है। साथ ही इसके नौवें मंडल में सोम देवता का वर्णन किया गया है। जोकि आंठवे मंडल से ही प्रेरित है।
ऋग्वेद के दसवें मंडल में कई प्रकार की दवाइयों का जिक्र किया गया है। और प्रत्येक मंडल में मुख्य रूप से वायु, सोम, वरुण, इंद्र, अग्नि, प्रजापति, सूर्य, उषा, पूषा, रुद्र, विश्वदेव, मारूत और सविता आदि देवताओं की स्तुति की गई है।
साथ ही इसके दूसरे भाग को आठ अष्टकों में बांटा गया है। जिसे अष्टक क्रम कहा जाता है। प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय होते हैं। जोकि कुल 2024 वर्ग पर आधारित है और जिसमें मंत्रों की व्याख्या की गई है। तो वहीं ऋग्वेद में ऐतरेय ब्राह्मण और कौषीतकि नामक दो ब्राह्मण ग्रंथ उपलब्ध हैं।
साथ ही ऐतरेय और सांख्य दो अरण्यक ग्रंथ भी मौजूद हैं। ऋग्वेद में वैसे तो 21 शाखाएं हैं लेकिन मुख्य केवल पांच हैं। जोकि निम्न प्रकार से हैं-
शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन और मंडुकायन आदि।
इसके अलावा आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद माना जाता है। ऋग्वेद के 10 उपनिषद भी निम्न हैं-
ऐतरेय, निर्वाण, आत्मबोध, अक्षमाया, त्रिपुरा, सौभाग्य लक्ष्मी, नादबिंदू, कौषीतकि, मूद्र्ल , बह्यरुका आदि।
ऋग्वेद से जुड़े रोचक तथ्य
ऋग्वेद में हिंदू धर्म के 33 कोटि देवी देवताओं की स्तुति की गई है। जिनमें 12 आदित्य(अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पुषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्तव, विष्णु), 8 वसु (आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, प्रत्युष, प्रभाष), 11 रुद्र(मनु, मन्यु, शिव, मेहत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्र तेरस, काल, वामदेव, भव, धृत ध्वज), इंद्र और प्रजापति आदि हैं।
इसके प्रत्येक मंडल में लगभग 24 भारतीय नदियों का जिक्र मिलता है। जिसमें गंगा नदी का प्रयोग 1 बार और यमुना का 3 बार हुआ है। ऋग्वेद के अनुसार सरस्वती सबसे पवित्र नदी है और सिंधु नदी का प्रयोग बारम्बार किया गया है।
ऋग्वेद के मुताबिक इंद्र देवता सबसे शक्तिशाली देवता हैं। साथ ही इसमें अग्नि को घृत लोम, आशीर्षा, घृतमुख और घृत पृष्ठ कहकर संबोधित किया गया है।
इसमें अनेक ऐसी कन्याओं का भी जिक्र किया गया है, जोकि अनंतकाल तक अविवाहित रही। जिन्हें अमाजू कहकर पुकारा जाता है। आपको बता दें कि ऋग्वेद की अनेक सूक्तियों की रचना में पौलोमी, शची, घोषा, लोपामुद्रा, कांक्षावृत्ति आदि स्त्रियों का अहम योगदान रहा।
उपरोक्त वेद में कृषि शब्द का प्रयोग 24 बार हुआ है। इसके अलावा वस्त्र, वास, वसन, जनपद, जन, सूत, रथकार, कर्मार, हिमालय पर्वत आदि का भी जगह जगह पर प्रयोग किया गया है।
इसमें गाय के लिए अहन्या, जुलाहा के लिए वाय, ग्राम के लिए विश, देवताओं के चिकित्सक के लिए भिषक, करघा के लिए ततर, जनों के प्रधान के लिए राजा, आर्य निवासियों के लिए सप्त सिंधव आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है।
प्राचीन समय में राजा के पद वंशानुगत हुआ करते थे। इसके बारे में भी हमें ऋग्वेद से मालूम चलता है। साथ ही इसमें प्राचीन समय के कई युद्धों के बारे में भी बताया गया है।
असतो मा सदगमय समेत गायत्री मंत्र की प्राप्ति भी हमें ऋग्वेद से ही हुई है।
जानकारी के लिए बता दें कि ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। जिसमें बहुदेववाद, एकात्मवाद और एकेश्वरवाद को समझाया गया है।
ऋग्वेद के अनुसार विदथ सबसे प्राचीन संस्था है। जिसके बारे में ऋग्वेद में लगभग 112 बार बताया गया है।
इस प्रकार, ऋग्वेद विश्व भर में प्रचलित समस्त ग्रंथों में आज भी काफी विशेष है। ऋग्वेद को ऋक संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए यदि आप सनातन धर्म को जानने की चेष्टा रखते हैं तो आपको ऋग्वेद का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। और अन्य वेदों के बारे में जानने के लिए आप Gurukul99 को फॉलो जरूर करें।