हिन्दू धर्म में कई सारे पवित्र धार्मिक ग्रंथ हैं। जिनमें से रामायण हिंदुओं का काफी महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। जहां बताया गया है कि कैसे अधर्म का नाश करने के लिए साक्षात् भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लिया था। इसके अतिरिक्त रामायण में भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन संघर्षों को विस्तार से वर्णित किया गया है। ऐसे में धार्मिक स्रोतों के आधार पर, आज हम आपको बताएंगे कि क्यों भगवान श्री राम को 14 वर्षों का ही वनवास मिला था ? इसके पीछे निम्न कारण थे-
माता कैकेयी का वरदान
भगवान श्री राम महाराजा दशरथ और रानी कौशल्या के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके तीन भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। इसके अलावा राजा दशरथ की दो अन्य रानियां थी, जिनके नाम क्रमशः सुमित्रा और कैकेयी था। रामायण की कहानी के अनुसार, रानी कैकेयी को दिए एक वचन के आधार पर राजा दशरथ ने भगवान श्री राम को वनवास भेज दिया था क्योंकि एक बार देवासुर से युद्ध के दौरान जब राजा दशरथ के रथ के पहिए की कील निकल गई थी।
तब रानी कैकेयी ने अपनी बज्र उंगली को कील के स्थान पर लगा दिया था जिससे राजा दशरथ की जान बच गई थी। जिसके बाद राजा दशरथ ने रानी कैकेयी को तीन वरदान मांगने को कहा। समय आने पर रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से श्री राम को 14 वर्षों के लिए वनवास पर भेजने और भरत को गद्दी सौंपने का वचन मांग लिया। हालांकि राजा दशरथ ने रानी कैकेयी के वचन स्वीकार कर लिए थे, लेकिन पुत्र वियोग के दुख में राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए थे। जिस पर सम्पूर्ण दुनिया रानी कैकेयी को बुरा भला कहने लगी।
देवताओं की पूर्वयोजना
भगवान राम के 14 वर्षीय वनवास को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि रानी कैकेयी से ऐसा देवलोक के देवताओं ने करवाया था क्योंकि देवतागण जानते थे कि यदि रावण को हराना है तो व्यक्ति को अपनी पांच ज्ञानेंद्रियों (कान, जीभ, त्वचा, आंख, नाक) समेत पांच कमेंद्रियों (वाक, पाणी, पायु, पाद, उपस्थ) और मन, बुद्धि, चित और घमंड पर नियंत्रण करना होगा। गोचर दशा के अनुसार, प्राचीन समय में शनि महाराज की चाल के आधार पर भी साल और वर्ष का निर्धारण किया जाता था। ऐसे में हम कह सकते है कि रामायण की कथा में यह सब पहले से ही रचित था, जिसके तहत भगवान श्री राम को 14 वर्षों का वनवास दिया गया।
रावण का जीवनकाल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लंका नरेश रावण की अमरत्व जिंदगी के 14 वर्ष ही शेष बचे थे और यह बात रानी कैकेयी भलीभांति जानती थी। साथ ही रानी कैकेयी को यह भी ज्ञात था कि रावण के प्रकोप से दुनिया को राम जी ही बचा सकते हैं इसलिए उन्होंने भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास दिया।
दासी मंथरा की वाणी
भगवान राम को 14 वर्षों के लिए वनवास पर भेजने की योजना देवी सरस्वती ने देवलोक से ही दासी मंथरा की वाणी में कह दी थी। जिसके चलते दासी मंथरा के कहने पर ही रानी कैकेयी ने श्री राम को 14 वर्ष के वनवास पर भेजा था।
चौदह भुवनों का राज पाठ
रानी कैकेयी श्री राम को सबसे अधिक प्रेम करती थी लेकिन भगवान श्री राम को वनवास पर भेजने के बाद दुनिया ने उन्हें एक बुरी स्त्री मानना शुरू कर दिया था। कुछ लोगों का यह तक मानना है कि रानी कैकेयी ने अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजपाठ मिल जाने के मोह में भगवान राम को 14 वर्षों के वनवास पर भेज दिया था क्योंकि 14 साल बाद कोई भी अपने शासन को दुबारा पाने के योग्य नहीं रह जाता है।
हालांकि रानी कैकेयी जानती थी कि यदि श्री राम का यश और मान सम्मान चौदह भुवनों में फैलाना है तो उन्हें 14 वर्षों का कठिन तप करना होगा। जिसके बाद ही वह सम्पूर्ण विश्व के सर्वश्रेष्ठ राजा बनकर उभरेंगे। जिसके लिए रानी कैकेयी ने सबकी नज़रों में बुरा बनने के बाद भी अपने सबसे प्रिय पुत्र राम को 14 वर्षों के लिए वनवास पर भेज दिया।
इस प्रकार भगवान श्री राम ने अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए अयोध्या का समस्त राजपाठ त्याग दिया और अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनों में जीवन व्यतीत किया।
