भाषा मानव विचारों के आदान प्रदान का साधन मात्र नहीं है। बल्कि वह दो भिन्न संस्कृतियों, धर्म और समुदाय को मानने वालों के मध्य व्यवहारिक कुशलता को अंजाम देती है। कुछ बुद्धिजीवी तो भाषा को ईश्वर की देन मानते है। जबकि कुछ लोग इसे मानव जीवन के सतत विकास का परिणाम मानते हैं।
भाषा हमारे मुख से निकले उन शब्दों और वाक्यों के समूह से निर्मित होती है, जिनके माध्यम से हम अपने मन मस्तिष्क की बात दूसरों तक पहुंचाते हैं। सरल शब्दों में, भाषा के माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों को लिखित और मौखिक रूप में सामने वाले व्यक्ति को बता सकता है।
इसलिए हम यह कह सकते हैं कि भाषा मानव अभिव्यक्ति के परस्पर आदान प्रदान की प्रक्रिया है। और यह किसी भी राष्ट्र की अस्मिता का आवश्यक पहलू है। तो चलिए आज हम आपको “भाषा क्या है?” इसके बारे में विस्तार से बताते चलते हैं।
विषय सूची
भाषा का अर्थ
भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की भाष् धातु से हुई है। जिसका अर्थ बोलने या कहने से लगाया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में अनेकों भाषाएं बोली जाती हैं। यह क्षेत्रीय, स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय होती हैं। और भाषा कभी भी केवल एक व्यक्ति से संबंधित नही होती है, बल्कि यह विश्व की आखिरी सरहद तक व्यक्ति के विचारों को एक दूसरे से जोड़े रखने का कार्य करती है।
दूसरा, हमें भाषा को बोलने के लिए ध्वनियों और लिखने के लिए प्रायः लिपियों का इस्तेमाल करना पड़ता है। जिसके द्वारा ही हम अपनी प्रत्येक बात, इच्छा या अन्य किसी प्रकार के उद्देश्य को अन्य व्यक्ति के समक्ष प्रस्तुत कर पाते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि भाषा मानव के विचारों के विनिमय का एक माध्यम है। जिसका विकास भी मानव सभ्यता के विकास की भांति धीरे धीरे होता रहा है।
भाषा की परिभाषा
सम्पूर्ण संसार के विभिन्न विद्वानों ने भाषा की निम्न परिभाषाएं दी हैं-
- प्रो. पॉट के अनुसार, भाषा के वास्तविक रूप में आज तक कोई परिवर्तन नहीं कर पाया है, केवल उसके बाह्य रूप में बदलाव हुए हैं। इसलिए हम वह बोल रहे हैं जो शब्द मनुष्य के मुख से निकले हैं।
- जैक्सन – डेविस के अनुसार, भाषा एक आंतरिक, सार्वजनिक, स्वाभाविक और आदिम साधन है। जिसके उद्देश्य में कोई प्रगति संभव नहीं है, क्योंकि उद्देश्य तो अखंड और एकरस होते हैं।
- महान् दार्शनिक प्लेटो के अनुसार, भाषा और विचार में केवल इतना अंतर होता है। कि विचार आत्मा की मूक बातचीत होती है। जोकि शब्दों में रूपांतरित होकर और ध्वनि रूप में बदलकर भाषा बन जाते हैं।
- स्वीट के अनुसार, ध्वन्यात्मक शब्दों के माध्यम से विचारों को व्यक्त करना ही भाषा कहलाता है।
- वेन्द्रीय के अनुसार, भाषा एक प्रकार के चिह्न की तरह है। जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने विचार दूसरों तक पहुंचाता है। ये चिह्न नेत्रग्राह्य, श्रोतग्राह्य और स्पर्शग्राह्य होते हैं। जिनमें से भाषा के लिए श्रोतग्राह्य सर्वश्रेष्ठ चिह्न होता है।
- रामविलास शर्मा के अनुसार, भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो से अधिक भाषाओं की लिपि भी एक हो सकती है। भाषा किसी भी देश की संस्कृति का वाहन और अंग दोनों है।
- डॉ. श्याम सुंदर दास के अनुसार, मनुष्यों के मध्य अपने मन के विचारों को व्यक्त करने के लिए जिन ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें भाषा कहते हैं।
- दंडी के अनुसार, मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास के लिए भाषा एक वरदान है।
- पतंजलि के अनुसार, जिस वाणी में वर्णों के माध्यम से भाव व्यक्त होते हैं, वे ही वाक् यानि भाषा होते हैं।
- डॉ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार, जो ध्वनि चिह्न मनुष्यों के परस्पर विचार विनिमय का कार्य करते हैं, उनके सम्पूर्ण रूप को भाषा कहते हैं।
भाषा के प्रकार
भाषा के मुख्यता तीन प्रकार होते हैं-
1. लिखित भाषा – जब कोई व्यक्ति अपने मन के भावों या विचारों को दूसरे व्यक्ति के सामने लिपि और चिन्हों के माध्यम से लिखकर व्यक्त करता है, तब उसे लिखित भाषा कहते हैं। जैसे:- लेख, पत्र, कहानी, जीवनी, पत्रिका आदि।
2. मौखिक भाषा – कोई व्यक्ति जब अपने विचारों को दूसरे व्यक्ति से कहकर या बोलकर व्यक्त करता है, तो उसे मौखिक भाषा कहते हैं। जैसे:- भाषण, वाद विवाद, सामूहिक वार्तालाप, टेलीविजन, रेडियो आदि।
3. सांकेतिक भाषा – प्राय: जब कोई गूंगा व्यक्ति इशारों और संकेतों के द्वारा अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करता है, तब उसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है।
इसके अलावा किसी भी देश में भाषा के तीन स्तर होते हैं। यानि जब कोई भाषा किसी देश में प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने के उद्देश्य से प्रयोग में लाई जाती है। तो उसे राज्यभाषा कहते हैं। तो वहीं देश के समस्त राज्यों की विधानसभा कई भाषाओं या एक भाषा को राजभाषा भी घोषित कर सकती हैं।
भाषा को इसके अलावा जो भाषा अधिकांश लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, उसे राष्ट्रभाषा कहते हैं। और भाषा के कई रूप भी विद्यमान है:- जैसे, बोलचाल की भाषा, मानक भाषा और संपर्क की भाषा आदि।
जानकारी के लिए बता दें कि भारत की कोई राष्ट्र भाषा नही हैं। जबकि हिंदी को मातृभाषा और राजभाषा का दर्जा दिया गया है।
भाषा की विशेषताएं
1. परिवर्तनशील – भाषा का स्तर प्रत्येक व्यक्ति और जगह के आधार पर बदलता रहता है। जो व्यक्ति जिस समुदाय और परिवेश से संबंध रखता है। उसकी भाषा में वैसी ही झलक दिखाई पड़ती है।
2. याद्य्च्छिकता – किसी भी भाषा का किसी शब्द के साथ सहज संबंध नहीं होता है। बल्कि वह व्यक्ति की इच्छानुसार संबंधों में बंध जाती है। जैसे:- पानी को हिंदी में जल और अंग्रेजी में वॉटर कहा जाता है।
3. सृजनात्मकता – विश्व में मौजूद सभी भाषाओं में किसी भी शब्द की कोई सीमा नहीं होती है। प्रत्येक भाषा प्रतिदिन नए नए शब्दों को सृजित और ग्रहीत करती है।
4. अनुकरण ग्राह्ता – भाषा प्राय: किसी भी व्यक्ति को जन्म से नहीं आती है। बल्कि वह जब इस धरती पर जन्म लेता है, तब वह अपने आस पास के परिवेश में रहकर भाषा को सीखता और समझता है।
5. मौलिक श्रव्यता– कोई भी व्यक्ति जब अपने मुख से अपने भावों को व्यक्त करता है, तब उसे दूसरे व्यक्ति द्वारा कानों के माध्यम से सुना जाता है। इस प्रकार भाषा में मौलिक श्रव्यता का गुण पाया जाता है।
भाषा का प्रयोग करते समय बरती जाने वाली सावधानियां
1. हमें सदैव ही स्पष्ट और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही किसी भी भाषा पर पकड़ बनाने के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है।
2. भाषा का इस्तेमाल करते समय हमें सदा सार्थक भाषा का उपयोग करना चाहिए। अन्यथा सामने वाले तक हम अपनी बात पहुंचाने में असमर्थ हो जाते हैं।
3. यदि आप एक सुसज्जित भाषा का इस्तेमाल करते हैं तभी आप सज्जन व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं। अन्यथा आपको भाषा के विशुद्ध प्रयोग के चलते कई बार लज्जित भी होना पड़ता है।
4. मुख्य रूप से हमें छोटे बच्चों की भाषा पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ताकि वह बोलते समय किसी गलत शब्द का प्रयोग ना करें।
5. भाषा में विराम चिह्नों का सही प्रयोग करना आवश्यक है। अन्यथा आपका मत काफी लंबा और अनावश्यक प्रतीत होने लगता है।
भारत में भाषा का अनुपात
भारत देश में भी अनेकों भाषाओं का प्रचलन है। लेकिन मातृ भाषा होने के कारण हिंदी भाषी लोग अधिक है। यहां हिंदी बोलने वालों का प्रतिशत कुल जनसंख्या का 40% है। जबकि बंगला 8.3%, तेलुगु 7.6%, मराठी 7.5%, तमिल 6.3%, उर्दू 5.2%, गुजराती 4.9%, कन्नड़ 3.9%, मलयालम 3.6%, ओड़िया 3.4%, पंजाबी 2.8%, असमिया 1.6%, संथाली 0.6%, कश्मीरी 0.5%, नेपाली 0.3%, मणिपुरी 0.2%, कोंकणी 0.2%, डोगरी 0.2%, सिंधी 0.3%, बोडो 0.1%, संस्कृत 0.1 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती है।
विश्व में प्रयोग की जाने वाली भाषाएं
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, सम्पूर्ण विश्व में कुल 6809 भाषाएं बोली जाती हैं। जिनमें चीन की मंडारिन भाषा विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। इसलिए उसे समस्त भाषाओं में पहला स्थान प्राप्त है। दूसरे नंबर पर अंग्रेजी और तीसरे नंबर पर अपनी मातृभाषा हिंदी आती है। उसके बाद स्पेनिश, रूसी, अरबी, बंगाली, पुर्तगीज,मलय इंडोनेशियन, फ्रेंच भाषाएं विश्व में काफी लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
भाषा परिवार के बारे में
विश्व की समस्त भाषाओं को कुल 12 भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है। जिनमें भारत की समस्त भाषाएं भारोपीय, द्रविड़, आस्ट्रिक और चीनी तिब्बती भाषा परिवारों में आती हैं। और हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है। तो वहीं विश्व की अन्य भाषाएं अमेरिकी, आग्रेय, सेमेटिक, सूडानी, काकेशस, चीनी, बुशमैन, हेमेटिक, बांटू, यूराल आदि भाषा परिवारों का हिस्सा है।
इस प्रकार, हमारा यह लेख यहीं समाप्त होता है। उम्मीद है कि आपको हमारा यह लेख – Bhasha Kya hai पसंद आया होगा।
