गणेश पुराण – Ganesh Puran in Hindi

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Ganesh Puran in Hindi

वर्कतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

हे ! विघ्न विनाशक आप घुमावदार सूंड, बड़े शरीर वाले और करोड़ों सूर्य के समान शक्तिशाली भुजाओं वाले हैं, इसलिए आप मेरे समस्त कार्यों को विघ्न रहित संपन्न करें।

हिन्दू समाज के लोग किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश जी की आराधना के साथ करते हैं क्योंकि सनातन धर्म में किसी भी धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान से पहले विघ्नहर्ता गणपति जी का स्मरण करना आवश्यक माना गया है। ऐसे में गणपति जी की महत्ता स्वीकार करते हुए आज हम आपके लिए गणेश पुराण का विस्तार पूर्वक वर्णन लाए हैं। जिसमें विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी के बाल्यकाल से लेकर चिरकाल तक की सर्वश्रेष्ठ लीलाओं का वर्णन किया गया है।

गणेश पुराण

हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण हैं। जिन्हें महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित किया गया है। पुराणों में हिन्दू देवी देवताओं के जीवन से जुड़े किस्सों कहानियों के बारे में बताया गया है। ठीक उसी प्रकार से, गणेश पुराण में भगवान गणेश जी की विभिन्न कथाओं और कहानियों का उल्लेख मिलता है। 

गणेश पुराण मुख्यता पांच खंडों में विभाजित किया गया है। जिनमें पहला खंड आरंभ खंड के नाम से जाना जाता है। दूसरे में खंड का परिचय, तीसरे में माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का वर्णन, चतुर्थ में युद्ध खंड और पांचवा खंड महादेव की कथा पर आधारित है।

1. आरंभ खंड
प्रस्तुत खंड में बताया गया है कि समस्त सृष्टि की रचना किस प्रकार हुई है और भगवान गणेश का प्रादुर्भाव कैसे हुआ। प्रथम खंड में भगवान गणेश के जन्म की कहानी, प्रथम पूजा अधिकारी और विश्व परिक्रमा की प्रतियोगिता का वर्णन किया गया है। साथ ही उपयुक्त खंड में चन्द्र देवता को भगवान गणेश जी द्वारा दिए गए अभिशाप का वर्णन भी किया गया है। 

2. खंड का परिचय
प्रस्तुत खंड में भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी कहानियों का वर्णन किया गया है। साथ ही भगवान गणेश के मस्तक छेदन के बारे में भी बताया गया है। उपरोक्त खंड में भगवान शिव और गणेश के बीच शक्ति प्रदर्शन का भी वर्णन किया गया है। इसके अलावा खंड के अंत में माता पार्वती की शक्तियों का जिक्र भी किया गया है।

3. माता पार्वती खंड
प्रस्तुत खंड में माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का वर्णन किया गया है। साथ ही कार्तिकेय के जन्म की कहानी के बारे में भी बताया गया है। इसके अलावा माता पार्वती के इस खंड में भगवान शिव द्वारा गजराज के धड़ को अलग करके गणपति जी के सिर की जगह जोड़ने वाली कथा के बारे में भी बताया गया है। 

4. युद्ध खंड
प्रस्तुत खंड में मत्सर, तारक आदि दैत्यों के जन्म और विनाश संबंधी कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही उपरोक्त खंड में माता तुलसी द्वारा गणपति बप्पा को श्राप देने वाली कथा बताई गई है और प्रस्तुत खंड में परशुराम जी द्वारा भगवान शिव की आराधना की गई है।

5. महादेव खंड
प्रस्तुत खंड में सतयुग, त्रेता युग, और द्वापर युग की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इसके अलावा खंड के अंत में तारकासुर की कथा बताई गई है। साथ ही पाताल लोक के बारे में भी बताया गया है। प्रस्तुत खंड में अनेकों दानवों के अंत की कहानियों का जिक्र किया गया है। इसके अलावा उपरोक्त खंड में भगवान शिव का कैलास पर्वत से पलायन की कथा के बारे में भी बताया गया है।

गणेश पुराण का सार संक्षिप्त में

धार्मिक स्रोतों के आधार पर वर्णित कहानी के अनुसार, एक बार नैमिषारण्य में सूत जी पधारे। जिनका सभी ऋषि मुनियों से जोरदार स्वागत किया और उनसे मंगल कथाओं की पेशकश करने की विनती की। जिस पर सूत जी ने कहा कि मुझे इतना सम्मान देने के लिए आपका आभार। अब मैं आपको मंगलकारी कथाओं के बारे में बताने जा रहा हूं। उन्होंने बताया कि सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्म के तीन रूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तौर पर विद्यमान हैं। जिनकी मैं स्वयं वंदना करता हूं।

उपरोक्त तीन शक्तियों में से भगवान विष्णु इस संसार के पालनहार कहे जाते हैं जो ब्रह्मा द्वारा रचित दुनिया का पालन करते हैं। कहते है कि भगवान ब्रह्मा ने ही संसार में दैत्य, सज्जन और असुर प्रवृत्ति के लोगों को जन्म दिया है। दूसरी ओर भगवान शंकर सम्पूर्ण संसार में अपनी शक्तियों के आधार पर चमत्कारी परिवर्तन दृश्यों के लिए जाने जाते हैं। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने मिलकर ही सृष्टि का सृजन किया है।

भगवान ब्रह्मा ने जब संसार की रचना की तब तामसी और फिर राजसी युग की स्थापना की। जिसके बाद ही संसार में धर्म – अधर्म, प्रसन्नता, शोक और सुख – दुख की उत्पत्ति हुई और जन्म मृत्यु का चक्र व्यवस्थित रूप से संसार में लागू हुआ। भगवान ब्रह्मा ने ही मनुष्य के शरीर को दो रूपों में विभाजित किया। जिसे हम स्त्री और पुरूष के तौर पर देखते हैं।

भगवान ब्रह्मा ने स्त्री का नाम शतरूपा रखा जिसने स्वयंभू मनु को अपना जीवनसाथी चुना और जीवन व्यतीत करने लगी। आगे चलकर शतरूपा ही रति कहलाई और तभी भगवान ब्रह्मा जी की कृपा से विराट की उत्पत्ति हुई। जिससे वैराज मनु प्रकट हुए। तत्पश्चात् वैराज मनु और शतरूपा के मिलन से प्रियव्रत और उत्तनुपात नाम के दो बालकों ने जन्म लिया।

इनके साथ ही दो बालिकाओं आपूति और प्रसूति ने धरती पर जन्म लिया। कहते है यहीं से धरती पर प्रजा बढ़ने लगी थी। फिर वैराज मनु ने अपनी कन्या प्रसूति को दक्ष को दे दिया था और रुचि प्रजापति को आपूति सौंप दी थी। इसके बाद यज्ञ और दक्षिणा ने जन्म लिया। आगे चलकर दक्षिणा के बारह पुत्रों को याम कहा गया। जिन्होंने आगे चलकर सृष्टि पर जीवन को दिशा दी। इसके बाद निर्कति, अनिरुद्ध, नीलरोहित, निरुप आदि ने सृष्टि पर जन्म लिया जो आगे जाकर सृष्टि पर वंश वृद्धि में सहायक हुए। ऐसे में हम कह सकते हैं कि ब्रह्मा जी ने मानव के दो रूपों स्त्री पुरुष की उत्पत्ति के पश्चात् प्रजा का निर्माण करना बंद कर दिया था।

उपरोक्त धार्मिक कथा को सुनने के पश्चात् मौजूद ऋषि मुनियों ने सूतजी से पूछा कि महाराज आपके मुख से विशाल सृष्टि के निर्माण की कथा सुनकर हम भाव विभोर हो गए हैं। कृपया सब हम मनुष्यों को ऐसे देवता से परिचित कराइए जोकि मानव समाज का कल्याण करें। जिस पर सूतजी ने कहा कि समस्त विश्व का कल्याण करने वाले, मानव जीवन को सफल बनाने वाले और प्रथम पूजा अधिकारी देवता इस संसार में एक ही हैं वह है भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश जी। 


इस प्रकार गणेश पुराण में भगवान गणेश के सम्पूर्ण काल का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया गया है। उपरोक्त कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए आप गणेश पुराण का पूर्ण अध्ययन कर सकते हैं।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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