Gayatri Mantra ka Arth | Gayatri Mantra Meaning in Hindi

Gayatri Mantra Meaning in Hindi

भारतीय संस्कृति तथा भारतीय ग्रंथों में मन्त्रों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। मंत्र वैज्ञानिक गणना की सहायता से निर्मित, एक विशेष ताल में गाये जाने वाले स्वरों तथा व्यंजनों के समूह को कहा जाता है, जिनके सटीक उच्चारण से विशेष ध्वनि तरंगों की उत्पत्ति होती है जो आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह का कारण बनती हैं। ऐसे ही मन्त्रों में से सबसे प्रसिद्ध है गायत्री मंत्र। आज के इस उल्लेख में हम गायत्री मंत्र के सही अर्थ को जानने और समझने का प्रयास करेंगे। साथ ही हम गायत्री मंत्र के विषय में कुछ और जानकारियाँ भी प्राप्त करेंगे।

ॐ भूर्भुवः स्व:।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यधीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्।।

गायत्री मंत्र की उत्पत्ति 

विश्व को गायत्री मंत्र की भेंट ऋषि विश्वामित्र ने दी थी। वाल्मीकि रचित रामायण के प्राथमिक खंड बाल कांड में ऋषि विश्वामित्र की संपूर्ण जीवनी का बखान किया गया है, जो राजा जनक के मंत्री शतानंदजी द्वारा श्री राम को सुनायी गई थी। साधु रूप धारण करने से पूर्व विश्वामित्र, कुश राजवंश के बहादुर राजा हुआ करते थे। इसी कारण से उन्हें कौशिक: नाम से भी संबोधित किया जाता था। अपने राज काल में वे बहुत बड़ी अक्षौहिणी सेना का नेतृत्व किया करते थे। एक समय वे ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में अतिथि बनकर आए और आतिथ्य सम्मान स्वीकार किया। तभी उन्होंने वहाँ शबला नामक गौ देखी जो आश्रम में दुग्ध संबंधित पोषाहार की मुख्य स्त्रोत थी।

उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से इस गाय को बेचने का अनुरोध किया परंतु ऋषि वशिष्ठ नहीं माने और उन दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया जिसमें विश्वामित्र को हार का सामना करना पड़ा। इस पराजय के पश्चात ऋषि वशिष्ठ से प्रतिशोध लेने के लिए विश्वामित्र ने स्वयं ब्रह्म ऋषि बनने की ठान ली। उनके पथभ्रष्ट होने के कारण उन्हें बहुत से दुखों व कष्टों का सामना करना पड़ा। परंतु बहुत सालों के घोर तपस्या के पश्चात उन्हें ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई जिसने उनके मन से प्रतिशोध के विचार को निकाल दिया। ब्रह्मज्ञान पाने के बाद उन्होंने गायत्री मंत्र का निर्माण करके विश्व को उपहार प्रदान किया। 

गायत्री मंत्र की विशेषताएँ 

गायत्री मंत्र में छुपे रहस्यों की इतनी सारी परतें मस्तिष्क को अचंभित कर देने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं। गायत्री मंत्र चैबीस बीजाक्षरों  से निर्मित है जिन्हें तीन पंक्तियों में विभाजित किया गया है और हर पंक्ति में आठ ध्वनियाँ हैं। गायत्री मंत्र के शब्दों द्वारा ब्रह्माण्ड के विभिन्न तत्वों तथा मानवीय शारीर के तत्वों वर्णन किया गया है। गायत्री मंत्र में सूर्य देवता जो ब्राह्मण के निर्माण में पुरुष ऊर्जा के प्रतीक हैं तथा पृथ्वी पर जीवन प्रदान करने वाले हैं, उनकी प्रतिभा व दीप्ति का वर्णन करते हुए उन्हें नमन किया गया है। साथ ही इस मंत्र के द्वारा सर्व देव स्वरूपिणी माँ गायत्री, जिन्हें सम्पूर्ण ब्राह्मण को जन्म देने वाली देवी का रूप माना जाता है, उन्हें नमन किया गया है।

मंत्र के साथ एक यंत्र सम्मिलित है जिसमें काली, लक्ष्मी और सरस्वती नामक तीन देवियों को संबोधित करती तीन विशेष ध्वनियाँ हैं। गायत्री मंत्र का उल्लेख वेद, उपनिषद, देवी भागवतम् , श्रीमद्भागवत गीता आदि जैसे बहुत से प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है। गायत्री मंत्र को प्रतिदिन की आराधना में, यज्ञों में तथा ध्यान करते समय उपयोग में लाया जाता है। एक मुख्य गायत्री मंत्र के सिवा, विभिन्न देवी-देवताओं के संबोधित करते हुए अलग अलग गायत्री मन्त्रों का निर्माण भी किया गया है।

गायत्री मंत्र का अर्थ | Gayatri Mantra Meaning in Hindi

यह सत्य है कि लंबे समय तक मन्त्रों का अशुद्ध उच्चारण करना तथा यंत्रों का गलत तरीके से प्रयोग करना हानिकारक परिणामों का कारण बनता है। अतः मन्त्रों का सही उच्चारण और उनका अर्थ जानना बहुत आवश्यक है। 

गायत्री मंत्र का अर्थ समझने के लिए सबसे पहले मुख्य रूप से तीन मूल शब्दों का अर्थ समझना महत्वपूर्ण है। ये तीन शब्द हैं- विद्महे (अर्थात हमें ज्ञात है) , धीमहि (अर्थात हम ध्यान करते हैं) और प्रचोदयात् (अर्थात संचरण या आगे बढाने की प्रक्रिया)। 

गायत्री मंत्र के शब्दों को अलग अलग किया जाये तो वे कुछ इस प्रकार प्रतीत होते हैं,

मौलिक ध्वनि है जो ब्राह्मण की उत्पत्ति, संरक्षण तथा विनाश को संबोधित करती है 
भू:इस शब्द से भू लोक अर्थात धरती को संबोधित किया है, यानी वो भौतिक संसार जहा हम निवास करते हैं
भुवःयह शब्द अंतरिक्ष लोक को संबोधित करता है अर्थात वह अंतरिक्ष जिसमें भौतिक संसार का वास है
स्व:अर्थात स्वर्ग लोक
तत्परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितु:जिस दैवीय प्रतिभा ने संपूर्ण ब्राह्मण को जन्म दिया है 
वरेण्यम्पूजनीय
भर्गःअज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्यज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहिअर्थात हम सभी ध्यान करते हैं 
धियो बुद्धि को
योजो परमात्मा
नःहमें
प्रचोदयात्प्रेरित करें

ॐ भू: भुवः स्व: तत् सवितु: वरेण्यम् भर्ग: देवस्य धीमहि धिय: य: न: प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र के दीर्घ संस्करण में भू:, भुवः, और स्व: के सिवा जीव अस्तित्व के चार चरणों का विवरण है जो हैं- मह:, जन:, तप:, सत्यम् । यह सभी सात चरण, ब्राह्मण के तत्वों को संबोधित करने के साथ ही, मानवीय शारीर के सात चक्रों को भी संबोधित करते हैं।

गायत्री मंत्र का दीर्घ संस्करण के अंत निम्नलिखित शब्दों से होता है, 

ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् 

अर्थात- जल, रस, अमृत, ब्रह्म एवं तीनों लोकों का वास ॐ की ध्वनि में है।

गायत्री मंत्र के इस दीर्घ संस्करण का उल्लेख यजुर्वेद के गायत्री अरण्यका में किया गया है, जिसका उपयोग संध्या वंदन और प्राणायाम के दौरान किया जाता है। गायत्री मंत्र के लघु रूप का उपयोग जाप करने तथा उच्चारण के लिए उपयोग किया जाता है। 

सारांश

गायत्री मंत्र का प्राचीन काल से आराधना, ध्यान, वंदना तथा प्राणायाम हेतु प्रयोग किया जाता रहा है। परंतु इसके जाप के लिए इस मंत्र का अर्थ तथा सही उच्चारण जान लेना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी मंत्र का गलत उच्चारण से हानिकारक परिणाम देता है, इसलिए मन्त्रों का उपयोग सिर्फ़ किसी ज्ञानी गुरु की प्रेरणा से प्रारंभ करना लाभकारी होता है।

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