Ved Kya Hai
वेद भारतीय सनातन संस्कृति में प्रचलित सबसे प्राचीन और लिखित ग्रंथ है। जिसका शाब्दिक अर्थ ज्ञान से लगाया जाता है। वेदों को प्राय: ईश्वर की रचना माना गया है। धार्मिक स्त्रोतों के अनुसार, परमपिता परमेश्वर ने वेदों का ज्ञान सबसे पहले अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक महर्षियों को दिया था।
जिसके बाद उन्होंने यह ज्ञान सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा को सुनाया। इसलिए वेदों को श्रुति यानि सुना हुआ ज्ञान भी कहा जाता है। वेदों में सम्पूर्ण संसार का ज्ञान-विज्ञान निहित है। साथ ही इसमें मानव जीवन की हर समस्या का समाधान भी देखने को मिलता है।
वर्तमान में वेदों की लगभग 28 हजार पांडुलिपियां मौजूद हैं। जिनमें से अधिकतर पांडुलिपियों को यूनेस्को ने धरोधर के तौर पर सांस्कृतिक सूची में स्थान दिया है। ऐसे में आज हम वेदों का अर्थ, महत्व और प्रकार के बारे में विस्तार से जानेंगे।
वेद का अर्थ – Ved ka Arth
वेद संस्कृत भाषा की विद् ज्ञाने धातु से मिलकर बना है। जिससे ही विद्या, विद्वान और विदित इत्यादि शब्दों का निर्माण हुआ है। वेदों की उत्पत्ति को लेकर अधिकांश लोगों का मानना है कि वह सृष्टि की रचना के समय से ही प्रचलन में हैं।
जिस आधार पर इनको 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 117 साल पुराना माना गया है। तो वही कुछ लोग इसे प्राचीन काल के ऋषि मुनियों के गहन शोध से अवतरित बताते हैं।जिसके अनुसार वेद आज से लगभग 5000 से 7000 वर्ष पहले लिखे गए हैं।
दूसरी ओर, वेदों की उत्पति का संबंध द्वापर युग से है। जहां भगवान कृष्ण द्वैपायन ने वेदों को रचित किया था। जिसको बाद में ऋषि वेदव्यास ने अध्ययन की सुविधा के आधार पर चार भागों में बांट दिया।
वेदों के प्रकार – Vedon Ke Prakar
ऋग्वेद
वेदों में प्रथम ऋग्वेद में कुल 10 अध्याय, 1028 सूक्त और 11 हजार मंत्र समाहित है। ऋग्वेद में ऋक से तात्पर्य स्थिति और ज्ञान से लगाया जाता है। साथ ही इसमें शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडुकायन आदि 5 शाखाएं हैं।
जिसमें मुख्य रूप से देवताओं, देवलोक, जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, दवाइयों आदि का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद के ही गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। साथ ही इसमें मानव के चार वर्णों का महत्व भी बताया गया है। ऋग्वेद के श्लोकों का पाठ करने वाले ऋषि को होतृ कहा जाता है। इस प्रकार, ऋग्वेद वेदों में पहला पद्यात्मक वेद है।
यजुर्वेद
जिस वेद में मंत्रों के उच्चारण संबंधी नियमों और विधियों का उल्लख मिलता है, वह यजुर्वेद कहलाता है। जिसकी सूक्तियों का पाठ करने वाले व्यक्ति को अध्वर्यु कहा गया है। इसमें कुल 1975 गद्यात्मक मंत्र समाहित है। यजुर्वेद का संधि विच्छेद करने पर यत् + जु निकलकर आता है।
जिसका अर्थ गतिशील आकाश से लगाया जाता है। मुख्य रूप से इस वेद की दो शाखाएं विद्यमान हैं। पहली कृष्ण और दूसरी शुक्ल। जिसमें ऋषि वैशम्पायन कृष्ण शाखा से संबंधित हैं। तो वहीं याज्ञवल्क्य ऋषि शुक्ल शाखा से जुड़े हैं। इस प्रकार, यजुर्वेद एक ऐसा वेद है जिसमें गद्य और पद्य दोनों प्रकार की विधाएं देखने को मिलती हैं।
सामवेद
इस वेद को मुख्यता भारतीय संगीत का जनक माना जाता है। इसमें मौजूद साम का शाब्दिक अर्थ गान से लगाया जाता हैं। यानि इस वेद में ऋषियों और मुनियों द्वारा कही गई सूक्तियों को गीतमय तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं।
जिनमें से अधिकतर मंत्रों को ऋग्वेद से लिया गया है। सामवेद में सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं का वर्णन किया गया है। और इसका पाठ करने वाले को उद्रातृ कहा जाता है।
अर्थववेद
यह वेद उपरोक्त तीनों वेदों से थोड़ा अलग परिभाषित किया गया है। अर्थववेद में मानव जीवन से जुड़े रहस्यों, कार्यों और मूल रूप से अंधविश्वासी पाखंडों को दर्शाया गया है। जिसमें कुल 5977 मंत्र हैं।
साथ ही इसमें व्यक्ति को कर्म में लगे रहकर ईश्वर की उपासना करने से जीवन के अंत में मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताया गया है। यहां अर्थव का शाब्दिक अर्थ अकंपन और थर्व का अर्थ कंपन है।
वेद का महत्व और प्रसार
सम्पूर्ण विश्व में जो व्यक्ति भारतीय वेदों का अध्ययन कर लेता है, उसे काफी विद्वान समझा जाता है। भारतवर्ष में ऋषि वशिष्ठ, वेदव्यास, पराशर, कात्यानन आदि को वेदों का ज्ञाता माना जाता है। तो वहीं आधुनिक भारत में राजा राम मोहन राय और दयानंद सरस्वती जी ने वेदों की ओर लौटने का नारा दिया था।
ऐसे में वेद का केवल धार्मिक ही नही अपितु इतिहास के आधार पर भी विशेष महत्व है। हालांकि वेदों को पढ़ाने के लिए प्राचीन समय से ही शिक्षा, कल्प, छंद, व्याकरण, निरुक्त और ज्योतिष का अध्ययन आवश्यक है।
साथ ही छः शास्त्रों जैसे न्याय, योग, सांख्य, पूर्व मीमांसा, वैशेषिक और दसों उपनिषदों को पढ़ने के पश्चात् ही वेदों का अध्ययन अध्यापन किया जाता है। दूसरा, वेदों के माध्यम से ही आर्य समाज से जुड़े लोगों की संस्कृति और सभ्यता को जानने का अवसर मिला।
साथ ही अनेकों प्रकार की जड़ी बूटियों, आयुर्वेद, योग, संगीत, गणित, ब्रह्मांड और जन्म मरण इत्यादि से जुड़े रहस्य हमें वेदों से ही ज्ञात हुए। इसलिए वर्तमान समय में भी यह सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रासंगिक हैं। लेकिन अनेकों धर्म से जुड़े लोग वेदों से अधिक महत्व अन्य माध्यमों को देते हैं।
जिनमें से कुछ के लिए अहिंसा, देवतागण, ईष्ट देवता और निराकार ईश्वर वेदों के महत्व से बढ़कर है। परंतु सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए वेद आज भी महत्वपूर्ण है। इसलिए हमें सनातन धर्म की संस्कृति से जुड़े वेदों की उपयोगिता को अवश्य ही बनाए रखने की आवश्यकता है। ताकि आने वाली पीढ़ी को प्राचीन वैदिक काल के बारे में पढ़ाया और सुनाया जा सके।
आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख वेद क्या है? [Ved in Hindi] पसंद आया होगा। ऐसे ही सनातन धर्म से जुड़े अन्य विषयों को जानने के लिए Gurukul99 को जरूर फॉलो करें।
