Philosophy Kya Hai? Philosophy in Hindi

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Philosophy kya hai

दर्शन क्या है?

पृथ्वी पर मनुष्य के आगमन के साथ ही उसने जीवित रहने अर्थात भोजन तथा जल की व्यवस्था करने और स्वयं को सुरक्षित रखने के तरीके खोज लिए थे। कई वर्ष बीतने के पश्चात उसने परिवार, गावों और मोहल्लों जैसी सभ्यताएँ बनाईं जिसके प्रमाण स्वरुप हड़पन्न सभ्यता जैसी कई सभ्यताओं की निशानियाँ प्राप्त हुई हैं।

कुछ समय बाद आपसी बात-चीत और विचार-विमर्श के लिए भाषाओं का निर्माण किया। और फिर जब मानव जाति के पास जीवन व्यतीत करने के लिए पर्याप्त सुविधाएँ आ गयीं तब उसने दूसरी चीज़ों एवं विभिन्न क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचना शुरू किया। और कुछ इसी प्रकार सामाज में दर्शन या फिलॉसफी का प्रारंभ हुआ। 

इस उल्लेख में हम अपने आपको यह बताने और समझाने का प्रयास करेंगे कि दर्शन का वास्तविक अर्थ क्या है। और साथ ही हम अपनी ओर से अपने पाठकों का विभिन्न प्रकार के दर्शनों और दार्शनिकों से परिचय कराने का पूर्ण प्रयास करेंगे। अगर आपकी इस मस्तिष्क को चुनौती देने वाले विषय में तनिक भी रुचि है तो इस लेख अवश्य ही पूरा पढ़िएगा। 

दर्शन का अर्थ 

फिलॉसफी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जो हैं “philo” अर्थात प्रेम और “sophia” अर्थात ज्ञान यानि ज्ञान से प्रेम ही फिलॉसफी है। फिलॉसफी शब्द का प्रयोग आम तौर पर संस्कृत शब्द दर्शन के अनुवाद हेतु किया जाता है। किंतु इन दो शब्दों में थोड़ा अन्तर है। दर्शन शब्द का निर्माण धातु शब्द दृश्य से हुआ है जिसका अर्थ होता है देखना। अतः दर्शन अर्थात वह जो अप्रत्यक्ष को देखने की क्षमता रखता हो। संस्कृत में कहा गया है कि “दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन” अर्थात जिसके द्वारा यथार्थ तत्व को अनुभव किया जा सके वही दर्शन है। 

दर्शन का महत्व 

ब्रह्माण्ड और प्रकृति में छुपे अलग-अलग प्रकार के समस्त रहस्यों को सुलझाने का प्रयास करने वाले दार्शन शास्त्र का मानवीय जीवन में अत्यंत प्रभाव एवं महत्व माना जा सकता है। मनुष्य को चेतना मिलने का एक प्रयोजन यह भी है कि वह अपने आस-पास घटित हो रही क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं को या भूतकाल में हो चुकी घटनाओं को समझने का प्रयास करे। जब मनुष्य प्रशिक्षण करता है तब उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। और जीवन में इसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए दर्शन शास्त्र की शुरुआत की गयी थी। 

दर्शन के प्रकार 

मुख्यतः दर्शन दो प्रकार के हैं- भारतीय दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन। भारतीय दर्शन को मुख्यतः छह भागों में विभाजित किया गया है और इसलिए इन्हें षटदर्शन कहा जाता है। भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध सभ्यता है। और यही कारण है कि दुनिया में अगर दर्शन की बात सबसे पहले कहीं की गयी तो वह क्षेत्र भारत है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों में दर्शन की अतुल्य समृद्धि दिखाई पड़ती है। भारत में निम्नलिखित भाँति-भाँति के दर्शनों का अपार भंडार मिलता है। 

दर्शन नाम  –    रचयिता

1) सांख्य दर्शन  –  कपिल मुनि

2) योग दर्शन  –  पतंजलि ऋषि 

3) न्याय दर्शन  –  गौतम ऋषि 

4) वैशेषिक दर्शन  –  कणाद ऋषि 

5) पूर्व मीमांसा  –  जैमिनी ऋषि 

6) उत्तर मीमांसा (अद्वैत, वेदांत दर्शन)  –  बादरायण ऋषि 

इन छह दर्शनों को षटदर्शन कहा जाता है। 

ऊपर दिए गए दर्शन बहुत पुराने समय के ज्ञानियों द्वारा दिए गए हैं। इनके बाद भी भारत में दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में कई व्यक्तित्व जुड़े जिनके नाम नीचे दिए गए हैं। 

दर्शन नाम  –  रचयिता

7) जैन दर्शन  –  महावीर

8) बौद्ध दर्शन  –  गौतम बुद्ध

9) चारवाक दर्शन (लोकायात या भौतिकतावादी दर्शन)  –  वृहस्पति 

भारतीय दर्शन की झलक पाने के बाद अब हम पाश्चात्य दर्शन की ओर बढ़ेंगे। पाश्चात्य देशों में भारत की तुलना में बहुत समय बाद दर्शन के बारे में सोचा गया। किन्तु दर्शन शास्त्र में पाश्चात्य देशों के ज्ञानियों की भी बहुत भागीदारी रही है। प्रमुख पाश्चत्य दर्शन निम्नलिखित हैं – 

दर्शन नाम  –  रचयिता

1) प्लेटो – सद्गुण

2) अरस्तू – कारणता सिद्धांत

3) देकार्त – संदेह पद्धति

4) स्पिनोजा – द्रव्य, सर्वेश्वरवाद

5) लाइब्नीत्ज – चीद्णुवाद

6) लॉक – ज्ञान मीमांसा

7) बर्कले – सत्ता अनुभव मूलक है

8) ह्यूम – संदेहवाद

9) कांट – समिक्षावाद

10) हेगल – द्वंदात्मक प्रत्ययवाद, बोध एवं सत्ता

11) मूर – वस्तुवाद

12) ए. जे. एयर – सत्यापन सिद्धांत

13) जॉन डीवी – व्यवहारवाद

14) सार्त्र – अस्तित्व वाद  

15) संत एंसेलम – ईश्वर सिद्धि हेतु सत्तामुलक तत्व

क्षेत्र संबंधित इस विभाजन के अतिरिक्त दर्शन शास्त्र को चार प्रमुख भागों में भी विभाजित किया गया है जिनके नाम हैं – 

1) आस्तिक दर्शन – जो दर्शन वेदों में पूर्ण आस्था और विश्वास रखते हैं उन्हें आस्तिक दर्शन कहा जाता है। सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, पूर्व मीमांसा दर्शन, उत्तर मीमांसा (अद्वैत वेदांत दर्शन) ये सभी आस्तिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं। 

2) नास्तिक दर्शन – जो दर्शन वेदों में लिखी बातों पर विश्वास नहीं रखते और वेदों को प्रमाण नहीं मानते उन्हें नास्तिक दर्शन कहा जाता है। जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, चारवाक दर्शन ये सभी नास्तिक दर्शन हैं।

3) ईश्वरवादी दर्शन – जो दर्शन ईश्वर के होने पर पूरा विश्वास रखते हैं उन्हें ईश्वरवादी दर्शन कहा जाता है। योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशे षिक दर्शन, उत्तर मीमांसा ये सभी ईश्वरवादी दर्शन हैं।

4) अनीश्वरवादी दर्शन – जो दर्शन ईश्वर नामक तत्व के होने पर विश्वास नहीं रखते उन्हें अनीश्वरवादी दर्शन कहा जाता है। सांख्य दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, चारवाक दर्शन, पूर्व मीमांसा ये सभी अनीश्वरवादी दर्शन हैं।

सारांश 

आज के इस लेख में हमने दर्शन का अर्थ समझाने के साथ-साथ दर्शन के महत्त्व पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त हमने आपको इस विषय को और गहराई से समझाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के दर्शनों का उल्लेख भी किया है और साथ ही उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। आशा है इस लेख के माध्यम से दर्शन के विषय में, आपके मन में उठ रहे अधिकांश प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गए होंगे। इस विषय पर और जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए आप अपने पसंद कर दार्शनिकों द्वारा लिखी पुस्तकें पढ़कर अपने ज्ञान में अवश्य ही वृद्धि कर सकते हैं। 

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