भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध सभ्यता है। और यही कारण है कि दुनिया में अगर दर्शन की बात सबसे पहले कहीं की गयी तो वह क्षेत्र भारत है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों में दर्शन की अतुल्य समृद्धि दिखाई पड़ती है। भारत में निम्नलिखित भाँति-भाँति के दर्शनों का अपार भंडार मिलता है।
सबसे प्राचीन होने के कारण दर्शन के विषय को समझने और पढ़ने के लिए पहले भारतीय दर्शन को जानना और समझना बेहतर होता है। भारत के विद्वानों और विदुषियों के ज्ञान के भंडार को पढ़ने और उनकी गहराई को पूर्ण रूप से समझने के लिए बहुत धैर्य और एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
और इसलिए आज के इस लेख में हमने भारतीय दर्शन को विस्तार से समझाने का प्रयास किया है। अगर आप इस विषय में रुचि रखते हैं और इससे विषय और अपनी भारतीय सभ्यता और ज्ञान के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
भारतीय दर्शन का इतिहास
भारत में दर्शन की शुरुआत वैदिक काल से ही हो चुकी थी। और समस्त विद्वानों ने अपने विचारों और प्राकृतिक सिद्धांतों को शब्दों में पिरो कर कई ग्रंथों और किताबों के माध्यम से सभी लोगों और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए उपलब्ध कराया।
अगर विश्व के सबसे प्राचीन दर्शन की बात की जाये तो वह चार वेदों- ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में पाया जाता है। वेदों को मुख्यतः चार भागों में बाँटा गया है- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद जिसे वेदांत भी कहा जाता है। कुल उपनिषदों की संख्या 108 मानी जाती है जिनमें से 10 से 12 उपनिषद सबसे महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। ये हिन्दू दर्शन का पहला चरण था। इसके पश्चात दूसरे और तीसरे चरणों का आरंभ हुआ जो हैं नास्तिक और आस्तिक दर्शन।
आस्तिक दर्शन के अंतर्गत षटदर्शन सूत्रों के रूप में लिखे गए अर्थात सूत्रों के माध्यम से कम शब्दों में बहुत गहरी बातें कही गईं। इनका सूत्रों को आम जनता को समझाने के लिए आसान शब्दों में इनकी विस्तृत व्याख्याएँ की गईं और यह भारतीय दर्शन का चौथा चरण था। यह समय भारत में इस्लाम के आगमन से तकरीबन 200 से 300 वर्ष पूर्व का था।
सूत्रों की व्याख्याएँ करने हेतु प्रस्थानत्रयी (सभी मुख्य उपनिषद, गीता, और ब्रह्म/वेदांत सूत्र) पढ़ने की आवश्यकता थी। सबसे पहले यह कार्य आदि गुरु शंकराचार्य ने किया और अद्वैत वेदांत की रचना की। इसके बाद शंकराचार्य के विरोध में रामानुज आचार्य द्वारा वैष्णव वेदांत की रचना की गयी जो भगवानों विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति का अनुसरण करता है।
इन्हीं रामानुज आचार्य के शिष्य हुए रामानंद जो आगे चलकर कबीरदास के गुरु बने। फिर वल्लभ आचार्य द्वारा शुद्धाद्वैतवाद, निम्बार्क आचार्य द्वारा द्वैताद्वैतवाद, मध्वा आचार्य द्वारा द्वैतवाद और चैतन्य महाप्रभु द्वारा अचिन्त्य द्वैताद्वैत की रचना की गयी। इसके बाद भारत में सिख धर्म के रूप में एक और दर्शन का निर्माण गुरु नानक द्वारा किया गया।
इसके पश्चात ईसाई धर्म के भारत में आगमन के बाद सबसे प्रभावशाली दार्शनिक हुए नरेंदनाथ दत्त जो रामकृष्ण परमहंस के शिष्य हुए और जिन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाता है। इनके बाद महर्षि अरविंद, स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे कुछ दार्शनिक हुए जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अद्भुत भूमिका निभाई।
भारतीय दर्शन का विभाजन
भारतीय दर्शन के कुल नौ प्रकार पाए जाते हैं जिनमें से छह दर्शनों को एक साथ और उनसे अलग बाकी के तीन दर्शनों को एक साथ पढ़ा जाता है। प्राचीनकाल के भारतीय दर्शन को मुख्यतः छह भागों में विभाजित किया गया है और इसलिए इन्हें षटदर्शन कहा जाता है। कई वर्षों बाद इन छह दर्शनों के विरोध में अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा तीन दर्शन दिए गए। आइए इन सभी ज्ञानियों द्वारा प्रदान किए गए भारतीय दर्शन शास्त्र को और गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।
षटदर्शन नाम – रचयिता
1) सांख्य दर्शन – कपिल मुनि
2) योग दर्शन – पतंजलि ऋषि
3) न्याय दर्शन – गौतम ऋषि
4) वैशेषिक दर्शन – कणाद ऋषि
5) पूर्व मीमांसा – जैमिनी ऋषि
6) उत्तर मीमांसा (अद्वैत, वेदांत दर्शन) – बादरायण ऋषि
इन छह दर्शनों को षटदर्शन या हिन्दू दर्शन या सनातन दर्शन कहा जाता है।
ऊपर दिए गए दर्शन बहुत पुराने समय के ज्ञानियों द्वारा दिए गए हैं। इनके बाद भी भारत में दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में कई व्यक्तित्व जुड़े जिनके नाम नीचे दिए गए हैं।
दर्शन नाम – रचयिता
7) जैन दर्शन – महावीर
8) बौद्ध दर्शन – गौतम बुद्ध
9) चारवाक दर्शन (लोकायात या भौतिकतावादी दर्शन) – ऋषि बृहस्पति
इन सभी विभिन्न प्रकार के भारतीय दर्शनों को चार प्रमुख भागों में बाँटा गया है।
1) आस्तिक दर्शन – जो दर्शन वेदों में पूर्ण आस्था और विश्वास रखते हैं उन्हें आस्तिक दर्शन कहा जाता है। सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, पूर्व मीमांसा दर्शन, उत्तर मीमांसा (अद्वैत वेदांत दर्शन) ये सभी आस्तिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं।
2) नास्तिक दर्शन – जो दर्शन वेदों में लिखी बातों पर विश्वास नहीं रखते और वेदों को प्रमाण नहीं मानते उन्हें नास्तिक दर्शन कहा जाता है। जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, चारवाक दर्शन ये सभी नास्तिक दर्शन हैं।
3) ईश्वरवादी दर्शन – जो दर्शन ईश्वर के होने पर पूरा विश्वास रखते हैं उन्हें ईश्वरवादी दर्शन कहा जाता है। योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशे षिक दर्शन, उत्तर मीमांसा ये सभी ईश्वरवादी दर्शन हैं।
4) अनीश्वरवादी दर्शन – जो दर्शन ईश्वर नामक तत्व के होने पर विश्वास नहीं रखते उन्हें अनीश्वरवादी दर्शन कहा जाता है। सांख्य दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, चारवाक दर्शन, पूर्व मीमांसा ये सभी अनीश्वरवादी दर्शन हैं।
भारतीय दर्शन का महत्व
प्रकार के समस्त रहस्यों को सुलझाने का प्रयास करने वाले दार्शन शास्त्र का मानवीय जीवन में अत्यंत प्रभाव एवं महत्व माना जा सकता है। मनुष्य को चेतना मिलने का एक प्रयोजन यह भी है कि वह अपने आस-पास घटित हो रही क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं को या भूतकाल में हो चुकी घटनाओं को समझने का प्रयास करे। जब मनुष्य प्रशिक्षण करता है तब उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। और जीवन में इसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए दर्शन शास्त्र की शुरुआत की गयी थी।
भारतीय दर्शन का परम सत्य तथा प्रकृति के नियमों व उनके कारणों की विवेचना करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है जो सम्पूर्ण विश्व के लिए एक भेंट के समान है। जब विश्वास भर में महिलाओं को अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं दिया जाता था तब भारत की कई विदुषी स्त्रियों ने ऋगवेद जैसे ग्रंथ लिखने में अद्वितीय सहयोग दिया था।
भाँति-भाँति की परंपराओं, भाषाओं, रीतियों इत्यादि वाले भारत देश में विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों से दार्शनिकों ने जन्म लिया और अपने दृष्टिकोण तथा तर्कों के साथ जीवन की अर्थवत्ता की अलग-अलग परिभाषाएँ और अर्थ प्रदान किए। मानव के दुखों की निवृति के लिए और तत्व साक्षात्कार कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्ञानियों द्वारा माना जाता है कि शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब परम सत्य का दर्शन होता है।
सारांश
आज के इस लेख में हमने भारतीय दर्शन का अर्थ समझाने के साथ-साथ भारतीय दर्शन के प्रकार और उनके महत्त्व पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त हमने आपको इस विषय को और गहराई से समझाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के दर्शनों का उल्लेख भी किया है और साथ ही उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है।
आशा है इस लेख के माध्यम से भारतीय दर्शन के विषय में, आपके मन में उठ रहे अधिकांश प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गए होंगे। इस विषय पर और जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए आप वेदों, उपनिषदों और तमाम पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं और अपने पसंद के दार्शनिकों द्वारा लिखी पुस्तकें पढ़कर अपने ज्ञान में अवश्य ही वृद्धि कर सकते हैं।