शिव तांडव स्तोत्र – Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi

Shiv Tandav Stotram in Hindi

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को देवों के देव महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है। माना जाता है भगवान शिव की जिस पर दृष्टि होती है, उसको जन्म मृत्यु के चक्र से सदैव के लिए छुटकारा मिल जाता है।

ऐसे में शिव भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा के लिए परम शिवभक्त रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने को कहा जाता है। जोकि आपके जीवन को संकटों से बचाता है। इतना ही नहीं हिन्दू महाग्रंथों में शिव तांडव स्तोत्र को आवश्यक ग्रंथ माना गया है।

हालांकि शिव तांडव की भाषा काफी जटिल है लेकिन भगवान शिव की स्तुति का यह एकमात्र स्रोत है। इसमें मुख्यता अनुप्रास अलंकार और समास बहुल भाषा का प्रयोग किया गया है।

शिव तांडव की कहानी

कहा जाता है एक बार लंकापति रावण अपनी शक्ति के वशीभूत होकर सम्पूर्ण कैलाश पर्वत को उठाकर लंका की ओर लेकर जा रहे थे। ऐसे में भगवान शिव रावण से काफी क्रोधित हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को अवस्थित कर दिया, ऐसे में शिवभक्त रावण का हाथ उसके नीचे दब गया और फिर असहनीय पीड़ा के चलते रावण ने भगवान शिव से माफी मांगी।

साथ ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने शिव तांडव स्तोत्र करके उनकी स्तुति की। जिससे खुश होकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त रावण को संपत्ति और समृद्धि युक्त बना दिया। तब से भगवान शिव के भक्तों को शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने की सलाह दी जाती है। इसलिए आज हम आपके लिए जटिल भाषा में रचित शिव तांडव स्तोत्र को अर्थसहित लेकर आए हैं।

Times Music Spiritual – Shiv Tandav Stotram

शिव तांडव अर्थसहित – Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi

जटाटवीगलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजड्ंगतुड्ंगमालिकाम्।डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु ऩ शिवो शिवम्।। 1।।

अर्थ – भगवान शंकर जिनकी वनरूपी जटाओं से गंगा मईया की जल धाराएं प्रवाहित होकर उनके कंठ को सुशोभित करती है, जिनकी गर्दन में सर्पों की लंबी मालाएं लटक रही हैं। साथ ही जो हाथों में डमरू लेकर तांडव करते है, वह भगवान शंकर हम मनुष्यों का कल्याण करें।


जटाकटाहंसभम्रभम्रन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रति प्रतिक्षणं ममं ।। 2 ।।

अर्थ – भगवान शिव की जटाओं में विचरण करती माता गंगा की जल लहरें उनके सिर पर शोभायमान है, जिनके मस्तक पर अग्नि की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो रही है, ऐसे चंद्रमा को अपने बालों पर धारण किए भगवान शिव की आराधना से मेरे अनुराग में वृद्धि हो।


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोट मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि।। 3।।

अर्थ – माता पार्वती की रमणीय कटाक्षों में जो परम आनंदित स्वरूप विराज करते हैं, जिनके माथे पर सम्पूर्ण सृष्टि संचालित है, जिनकी कृपा दृष्टि के चलते ही उनके भक्तों की समस्त कठिनाइयों का सर्वनाश हो जाता है, ऐसे आसमान को वस्त्र रूप में ओढ़े भगवान शिव की स्तुति से मेरा चित्त सदैव आनंदित रहे।


ज़टाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमे मनोविनोदद्धुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि।। 4।।

अर्थ – हे भगवान शिव जी ! मैं सदा ही आपकी भक्ति में आनंदित रहना चाहता हूं क्योंकि आप मनुष्यों के प्राण रक्षक हैं। आपकी जटाओं में लिपटे सर्प की मणियों में व्याप्त  प्रकाश से चारों दिशाएं प्रकाशित होती हैं। 


सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभू ।
भूज़ंगराज़मालयानिबद्धजाटज़ूटक श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखर।। 5।।

अर्थ – भगवान शिव जिन्हें समस्त देवतागण अपने सर के फूल अर्पित करते हैं, जिनकी जटाओं पर लाल सर्प विद्यमान है, ऐसे  चन्द्रशेखर हमें लंबे समय के लिए संपत्ति का हक़ प्रदान करें।


ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिड्ंगभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुन।। 6।।

अर्थ – भगवान शिव जिनके आगे सभी देवता अपने अभिमानी सर को भी नतमस्तक कर लेते हैं। साथ ही जिन्होंने रूपों के देवता कामदेव को अपनी ज्वाला अग्नि से भस्म कर दिया था। जिनके माथे पर चंद्रमा और जटाओं में गंगा प्रवाहित होती है, वह शिव जी मुझे सिद्धि प्रदान करें।


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्राचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम।। 7।।

अर्थ – हे भगवान शिव! आपके माथे से निकली ज्वाला के आगे तो कामदेव भी नहीं टिक पाए। आपने समस्त प्रकृति का सृजन किया है। आपकी स्तुति में मेरी प्रीति अटल और अमर रहे।


नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतम: प्रबद्धबद्धकन्धर: ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुर: कलानिधानबंधुर: श्रियं जगंद्धुरंधर: ।। 8 ।।

अर्थ – भगवान शिव का कंठ काले बादलों से घिरी अमावस्या की रात के समान है जोकि चंद्रमा और गंगा से सुशोभित है। आप समस्त जगत के पालनहार है, आप हमें सभी प्रकार से संपन्नता से परिपूर्ण करें।


प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे।। 9।।

अर्थ – भगवान शिव का कंठ और कंधा नीलकमल की भांति स्यामल सुंदरता से ओत प्रोत है। आप अभिमानी देवताओं के अहंकार का सर्वनाश करने वाले, संसार के कष्ट हरने वाले, दक्ष यज्ञ विनाशक, गजासुर और अंधकासुर का अंत करने वाले, मृत्यु को वश में करने वाले हैं। मैं उन्हीं शिव भगवान को पूजता हूं। 


खर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

अर्थ – भगवान शिव कल्याणकारी, अविनाशी, समस्त कलाओं के ज्ञाता, कामदेव को भस्म करने वाले, दक्ष यज्ञ विंध्यवसक, गजासुर और यमस्वरूप हैं। मैं भगवान शिव की स्तुति करता हूं।


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अर्थ – आपकी जटाओं में भ्रमण कर रहे सर्पों से आपके मस्तक पर बढ़ी प्रचंड अग्नि की धीमी धीमी आवाज के साथ आपका तांडव नृत्य चारों  ओर शोभायमान है।


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुह्रद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

अर्थ – भगवान शिव कठोर सतह और कोमल शय्या, गले में मोतियों और सर्पों से बनी मालाओं, मिट्ठी और बहुकीमती रत्न, राजा और प्रजा, तिनकों और कमलों इत्यादि पर सामान नजर बनाए रखते हैं, ऐसे भगवान शिव को मैं पूजता हूं।


कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

अर्थ – हे भगवान शिव, मैं कब मां गंगा के कछारगुज में रहने वाले, निश्चल और अपने सिर पर अंजली धारण किए हुए विशाल नेत्रों और ललाट वाले शिव जी के मंत्रों का जाप करते हुए आनंद भोगूंगा।


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

अर्थ – देवी देवताओं के सिर से झड़ते फूलों की मनोहर सुगंध, शोभायुक्त भगवान शिव के शरीर की सुन्दरता समेत हमारे मन को प्रसन्न करती हैं।


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

अर्थ – प्रचंड शक्ति की भांति पापों का नाश करने वाली स्त्री, आठों महसिद्दियों समेत चंचल नेत्रों वाली देव कन्याओं के शिव विवाह गान के समय गाए जाने वाले शिव मंत्रों की मंगल ध्वनि से समस्त सांसारिक दुखों का नाश किया जाए।


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16॥

अर्थ – इस पवित्र और उत्तम शिव तांडव स्तोत्र को सुनने मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। वह भगवान शिव का अत्यंत प्रिय और भ्रमों की दुनिया से छुटकारा पा लेता है।


पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

अर्थ – शिव भक्ति के बाद शिव तांडव स्तोत्र के गान से भगवान शिव के आशीर्वाद से माता लक्ष्मी की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है, शिव भगवान अपने भक्तों को रथ, हाथी और घोड़ा इत्यादि से संपन्न रखते हैं।

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

शिव तांडव स्तोत्र से लाभ – Shiv Tandav Stotram Benefits in Hindi

कहते है जो भी भक्त भगवान शिव की पूजा के दौरान शिव तांडव स्तोत्र का जाप करता है, भोलेनाथ सदैव उस पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। ऐसे में चलिए आज हम जानते हैं कि शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता है? और इसे करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. शिव तांडव स्तोत्र का जाप करने से भगवान शंकर काफी प्रसन्न होते है। और वह अपने भक्त की हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

  2. इसका पाठ नियमित तौर से करने पर व्यक्ति की कुंडली में मौजूद शनि के दुष्प्रभावों से उसे छुटकारा मिलता है। 

  3. तांडव स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को काल सर्प दोष, पितृ और सर्प दोषों आदि का भी शीघ्र समाधान प्राप्त हो जाता है।

  4. जो भी व्यक्ति शिव तांडव स्तोत्र का जाप करता है, उसे ध्यान, योग और वाणी आदि सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।

  5. इसके अलावा शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की सभी आर्थिक और सामाजिक परेशानियों का अंत हो जाता है।

  6. शिव तांडव स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र और किए जाने वाले प्रत्येक कार्य में अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।

  7. यदि आप किसी प्रकार के  असाध्य रोग से पीड़ित हैं। तो आपको अवश्य ही भगवान शिव के तांडव स्तोत्र को पढ़ने की सलाह दी जाती है। 

  8. यह आपको शत्रु के व्यवहार से बचाने में भी सहायक है। यानि कोई आपके विरुद्ध तंत्र, मंत्र इत्यादि करने जा रहा है, तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ आपकी उससे रक्षा अवश्य करेगा।

  9. इसे नियमित तौर पर पढ़ने से आपको निश्चित ही तन, मन और चित्त के शांत होने की अनुभूति प्राप्त होती है। और मानसिक सुख का भी अनुभव होता है।

  10. शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव को अति प्रिय है। ऐसे में जो भी भक्त इसका जाप करता है। भगवान शिव उसे कभी भी निर्धन नहीं होने देते हैं और ना ही उसको जीवन में किसी प्रकार के कष्ट की प्राप्ति होती है।


ध्यान रखने योग्य बातें – Things to remember during Shiv Tandav Stotram in Hindi

  1. शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से पहले आपको भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को दूध या जल चढ़ाकर नहलाना चाहिए। उसके बाद भगवान शिव को हाथ जोड़कर प्रणाम करें। फिर धूपबती या दीपक जलाकर उन्हें नैवेद्य अर्पण करें। इसके बाद ही आपको शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना आरंभ करना चाहिए।

  2. व्यक्ति को शिव तांडव स्तोत्र का जाप सदा प्रात: काल के दौरान करना चाहिए। अन्यथा प्रदोष काल भी इसका पाठ करने के लिए अनुकूल समय माना जाता है। और जो व्यक्ति रात के समय इसका पाठ करते हैं उन्हें अपने शत्रुओं पर विजय हासिल होती है।

  3. आपको भगवान शिव की स्तुति करते समय गायन विद्या का प्रयोग करना चाहिए। यानि जब भी आप शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें तब गाकर ही करें। 

  4. इसका पाठ और शिव तांडव मुख्य रूप से पुरुषों को करने की सलाह दी जाती है।

  5. इसका पाठ करते समय व्यक्ति को अपनी समस्त गलतियों के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगनी चाहिए। और भगवान शिव की स्तुति करते वक्त किसी भी प्रकार का गलत ख्याल मन में नहीं लाना चाहिए।


शिव तांडव कब करें?

शिव तांडव एक प्रकार का नृत्य है, जिसे महिलाओं के लिए निषेध माना गया है। तांडव से तात्पर्य उछलना होता है। यानि तांडव के दौरान पुरुषों को अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा और शक्ति के साथ उछलना होता है। मूल रूप से तांडव नृत्य तभी करना चाहिए जब व्यक्ति के ग्रहों की स्थिति उसके विपरित हो। और उसके जीवन में शत्रुता अधिक बढ़ गई हो। साथ ही वह अपने जीवन में कुछ विशेष उपलब्धि पाना चाहता हो। ऐसी परिस्थितियों में शिव तांडव करना श्रेयष्कर माना जाता है।

इस प्रकार, शिव तांडव स्तोत्र रावण की समस्त रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसका पाठ करने से ना केवल व्यक्ति को बाहरी शक्ति प्राप्त होती है बल्कि वह भीतर से भी स्वयं को शक्तिशाली महसूस करता है। ऐसे में इसके चमत्कारी लाभों को लाने के उद्देश्य से आपको इसका अध्ययन अवश्य करना चाहिए। ताकि आप पर सदैव भगवान शिव का आशीर्वाद बना रहे।

॥ Shiv Tandav Stotram in Hindi Ends ॥


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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