वर्तमान समय में समाज में कई प्रकार की समस्याएं पांव पसार चुकी है, जिनमें भ्रष्टाचार रूपी समस्या सबसे बड़ी है। यह पूर्ण रूप से किसी भी समाज की व्यवस्था को विष कीट के समान विषैला और घुन की तरह धीरे धीरे खोखला करती जाती है। भ्रष्टाचार से तात्पर्य दूषित आचरण से शीघ्र धनवान बनने की अभिलाषा से है। जहां शुद्ध आचरण से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र श्रेष्ठ बनते हैं तो वहीं भ्रष्टाचार से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का पतन निश्चित है।
भ्रष्टाचार का अर्थ
जब कोई व्यक्ति उसके पास जितना होता है, वह उससे तृप्त नहीं होता है। साथ ही तब उसके मन में लोभ, स्वार्थपरता और विलासिता आदि विचार आने लगते हैं। वह चाहने लगता है कि उसके पास अधिक से अधिक धन हो, ऐश्वर्यशाली जीवन हो, कोठी हो, आगे पीछे नौकर चाकर हो यानि रातों रात कुबेर का भंडार उसे मिल जाए। इतना ही नहीं इसके लिए उसको अधिक मेहनत भी ना करनी पड़े। ऐसे में वह जीविकोपार्जन के लिए नीति संगत मार्ग छोड़कर भ्रष्ट मार्ग अपना लेता है और यही से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है।
भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप
आज समाज में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां बेईमानी, रिश्वतखोरी और मिलावट रूपी भ्रष्टाचार ना हो। जहां बेईमानी हर जगह देखने को मिलती है तो वहीं मिलावट का काम भ्रष्ट व्यापारीगण कर रहे हैं और रिश्वत का काम सरकारी तंत्र में अधिकारी से लेकर नेता तक करते हैं। इतना ही नहीं सरकारी कार्यालयों में बाबू लोग अपने जीवन को अधिक सुविधापूर्ण बनाने के लिए जनता का काम ठीक समय पर नहीं करते।
उनकी फाइलें इधर- उधर तब तक पड़ी रहती हैं जब तक अधिकारियों को संबंधित व्यक्ति से परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से धन की प्राप्ति नहीं हो जाती। ऐसे में यदि जनता को रेल का टिकट आरक्षित करवाना हो, नगरपालिका में नक्शा पास करवाना हो, अपना बिल बनवाना हो, थाने में रपट लिखवाना हो आदि कई कामों में जब तक सरकारी व्यक्ति की जेब गरम ना कर दी जाए तब तक वह टस से मस नहीं होते। इतना ही नहीं कई बार तो यह तक देखा गया है कि अधिकारी वर्ग मोटी रिश्वत लेकर बड़ी बड़ी चोरियां, डकैती और हत्या तक के मामलों को दबा लेते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला चुका है। आज छात्र परिश्रम देने के स्थान पर नकल करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं। यदि उनके इस मार्ग में कोई निरीक्षक बाधक बनता है तो चाकू छुरी दिखाकर उसे धमकाया जाता है। तो वहीं कई लालची अध्यापक और निरीक्षक भी पैसा लेकर नकल करवाते हैं और यह सर्वविदित है कि परीक्षा परिषदों और विश्वविद्यालयों के बाबू रिश्वत लेकर क्या क्या नहीं करते। ऐसे में अनुत्तीर्ण छात्र उत्तीर्ण घोषित कर दिए जाते हैं और द्वितीय श्रेणी वाले प्रथम श्रेणी घोषित कर दिए जाते हैं।
राजनीतिक जगत से जुड़े लोग भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में सहायक हैं। जिसके चलते यह कुछ खबरें अखबार जगत की हेडलाइन बन गई थी। महाराष्ट्र के एक मुख्य मंत्री अब्दुल रहमान ने भ्रष्टाचार से करोड़ों रुपए विभिन्न ट्रस्टों के नाम से लिए। आंध्रप्रदेश के एक मंत्री के दामाद ने हजारों एकड़ भूमि हड़प ली और हिमाचल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रामलाल के संबंधियों ने करोड़ों रुपए की रिश्वत ली। ऐसे में रातों रात कुबेर का खजाना मिलने की लालसा में व्यक्ति कब भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने लग जाता है, इसका अंदाजा उसे खुद बाद में होता है।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय
आज भ्रष्टाचार की जड़े बहुत गहरी जा चुकी हैं। समाज इसकी जकड़ से छटपटा रहा है। ऐसे में जब तक यह बीमारी दूर नहीं होगी, तब तक राष्ट्र का कल्याण नहीं होगा। इसके लिए पहले सरकारी तंत्र और कानूनों को अत्यधिक कठोर बनाना होगा। ऐसे में मात्र कानून बना देने से ही नहीं बल्कि उनका दृढ़ता से पालन करना होगा। जिसके लिए सरकारी कानून बना देने मात्र से ही यह काम नहीं हो सकेगा।
बल्कि इसके लिए हमें समाज में नैतिकता और पवित्रता का वातावरण बनाना होगा क्यूंकि हम जानते है कि पाप के भय से और पुण्य के लोभ से ही व्यक्ति बुरे कर्मों से दूर रहता है। ऐसे में जब व्यक्ति सोचेगा की भ्रष्टाचार पाप है तभी वह इस पाप कर्म से विरत होगा। साथ ही सर्वे भवन्तु सुखिन की भावना जब हर मनुष्य के दिल में उत्पन्न हो जाएगी और तृष्णा के स्थान पर संतोष वृद्धि होगी तो समाज में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं बचेगी।