Dahej Pratha Par Nibandh
प्रस्तावना
हिन्दू समाज विश्व की सभी जातियों में अति प्राचीन और श्रेष्ठ समाज है। समय समय पर हिन्दू समाज में अनेक उपयोगी प्रथाओं और परम्पराओं ने भी जन्म लिया, जो कभी समाज के लिए वरदान थी, किन्तु कालांतर में विकृत और रूढ़िबद्ध होकर वे ही प्रथाएं समाज के लिए अभिशाप बन गई।
हिन्दू समाज के पारिवारिक जीवन में कलह और अशांति को जन्म देने वाली दहेज प्रथा भी उनमें से एक हैं। इसने हिन्दू समाज की स्वाभाविक रूप से बहने वाली जीवन धारा को कुटिल, कलुषित और जटिल बना दिया है।
विवाह और दाय
गृहस्थ आश्रम को जीवन का महत्वपूर्ण अंग मानते हुए उसे हिन्दू धर्म में सामाजिक और आर्थिक मान्यता दी गई है। पुरुष तथा स्त्री के विकास के लिए तथा सामाजिक व्यवस्था को सुगठित चारित्रिक आधार देने के लिए विवाह को एक अनिवार्य संस्कार समझा गया है। इस अवसर पर कन्या को उसके माता पिता और संबंधियों की ओर से उपहार या भेंट देने की प्रथा प्रचलित हुई थी।
जिसे संस्कृत में यौतुक या दाय कहते हैं। दाय शब्द के अनेक अर्थों में एक अर्थ कन्या और जमाता को विवाह के समय दिया जाने वाला द्रव्य या उपहार है। दाय से दायाद्य शब्द बना, जिससे आगे चलकर दायज और उसी से दहेज बना।
दहेज का कारण
दहेज प्रथा का मूल कारण यह रहा होगा कि कन्या पति के घर जाकर वंश बंदिनी और गृह लक्ष्मी बनेगी, अन्नपूर्णा बनेगी। ऐसे में उसे खाली हाथ भेजना उचित नहीं। फिर इस यौतुक से कन्या अपनी नई गृहस्थी सुचारू रूप से चला सके और जामाता का भी उचित सम्मान हो जाए।
कालांतर में कन्या और जामाता को दिए जाने वाले ये उपहार दहेज के रूप में अपने कलेवर का विस्तार करने लगे और आज तो इस प्रथा ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि विवाह एक व्यवसाय बन गया है। जहां वर के माता पिता अपने पुत्र के रूप, गुण, विद्या आदि के लिए अलग अलग भाव निश्चित करते हैं और मन चाहा मूल्य प्राप्त करते हैं।
अभिशाप
दहेज की यह प्रथा आज समाज के लिए अभिशाप बन गई है। इसके कारण अनमेल विवाह होने लगे हैं, साथ ही सुरूप, सुशील और गुणवती कन्याओं का जीवन नरक बन जाता है। दहेज के अभाव में ही फूल सी सुकुमार, शिक्षित और गुणवती कन्याएं अशिक्षित, कुरूप और दुश्चरित्र युवकों के पल्ले बांध दी जाती हैं।
कहीं सभ्य, सुसंस्कृत और सुशिक्षित कन्याओं के माता पिता उनके लिए योग्य वर ढूंढने के लिए अपनी सामर्थ्य से भी अधिक व्यय करके जन्म भर ऋण भार से ग्रस्त हो दुःख भोगते हैं अन्यथा अल्प शिक्षित और अल्प गुण वाले तरूणों को ही दामाद बनाकर अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं।
तो कहीं ऐसा भी होता है कि अधिक दहेज पाने के लालच से वर के माता पिता अपने सुशील और सुंदर बेटे के लिए कुरूप बहू लेे आते हैं और ऐसे बंधन में बंधकर दोनों का ही जीवन नीरस हो जाता है।
इस दहेज प्रथा के कारण आज अनेक कन्याओं को अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ता है। दहेज कम लाने पर या ना लाने पर बहू को ससुराल वाले बात बात पर ताना देते हैं। कभी उसे कुलक्षणी तो कभी कुचरित्र बताने लगते हैं, कभी उसे भूखा प्यासा रखा जाता है, तो कभी उसका खुद का पति उससे बात नहीं करता है। ऐसे में लड़की मानसिक रूप से परेशान होकर मायके का रुख करती है।
जिसके चलते उसका सम्पूर्ण जीवन अंधकारमय हो जाता है। कहीं कहीं तो ससुराल वाले बहू के साथ इतना क्रूर व्यवहार करते हैं कि लड़की के पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। इतना ही नहीं दहेज के लोभी लड़की को जिंदा जलाने पर आमदा हो जाते हैं। इस प्रकार अनेक लड़कियां निरपराध होने के बावजूद दहेज के दानव की भेंट चढ़ जाती हैं।
इसके विपरित शिक्षिता, स्वाभिमानी और स्वावलंबिनी महिलाओं की संख्या बहुत कम है जोकि तलाक आदि का उपाय तलाशती हैं। जिसका कारण भी उनकी आर्थिक पराधीनता और लोक लाज की भावना है। हालांकि दहेज के इस दानव को समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों ने काफी प्रयास किया लेकिन कहावत के अनुसार, मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की।
उपसंहार
दहेज प्रथा वास्तव में एक घुन है, जो धीरे धीरे समाज को खाता जा रहा है। इस दुष्प्रथा को दूर करने के लिए पर्याप्त वातावरण बनाना पड़ेगा। समाज में नई चेतना का विकास करना होगा। दूसरी ओर इस पर रोक लगाने के लिए कन्या पक्ष को अपना मनोबल बढ़ाना होगा। साथ ही शिक्षित कन्याओं और शिक्षित युवकों को भी इसका विरोध करना होगा।
इतना ही नहीं युवक को अपने दहेज लोभी माता पिता को यह समझना चाहिए कि हम दहेज कदापि नहीं लेंगे। साथ ही समाज के विभिन्न संगठनों, धर्माचार्यों और समाज सुधारकों को इस ओर शीघ्र अतिशीघ्र प्रयत्न करना चाहिए। ताकि इस समस्या से समाज को मुक्ति मिले और लाखों कन्याओं और माता पिता का जीवन सुखी और चिंता मुक्त हो।
दहेज प्रथा पर निबंध 800 शब्द – Dahej Pratha Par Nibandh 800 words
प्रस्तावना
भारतीय समाज में प्राचीन काल से विभिन्न ऐसी प्रथाएं प्रचलित हैं जो 21 वी सदी में भी देश के कई क्षेत्रों में व्याप्त हैं। क्योंकि ये प्रथाएं आज भी विभिन्न भारतीय समाज के लोगों की मानसिकता में जीवित है।इन्हीं प्रथाओं में एक नाम शामिल है दहेज प्रथा का।
आज के आत्मनिर्भर युग में भी लोग शादी की रस्मों में दहेज की प्रथा को भी विशेष महत्व देते हैं। लेकिन जब दहेज जैसी पारंपरिक प्रथा लालच का रूप ले लेती है तब विवाहित कन्या के लिए दहेज प्रथा एक श्राप बन जाती है।
दहेज प्रथा का अर्थ
दहेज प्रथा से अभिप्राय उस प्रथा है से है, जब दुल्हन के घरवाले विवाह के दौरान दूल्हे के घरवालों को नवीन तोहफे, रुपए, आभूषण अथवा सम्पत्ति आदि दहेज के रूप में प्रदान करते हैं। उनके द्वारा यह दहेज इस उद्देश्य से प्रदान किया जाता हैं कि यह हमारी कन्या के नए जीवन के शुरुआत के लिए उपयोगी होगा। इस प्रथा के अन्तर्गत हर कन्या के घरवाले अपनी क्षमता के अनुसार दहेज देते हैं।
लेकिन जब दूल्हे के घरवालों की ओर से दहेज में अनुचित मांगें रखी जाती हैं। तब यह दहेज प्रथा एक कुप्रथा का रूप ले लेती है। जिससे महिलाओं अथवा नवविवाहित महिलाओं के लिए शादी करना जीवनपर्यंत एक जहर के पीने के समान हो जाता है।
दहेज प्रथा के कारण
दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न कानून बनाए गए लेकिन फिर भी यह प्रथा समाज का हिस्सा है। जिसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय समाज के लिए दहेज प्रथा एक परम्परा है। जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। विवाह के समय जैसे अन्य महत्वपूर्ण परम्पराओं को पूरा किया जाता है। उसी प्रकार दहेज प्रथा को पूरा करना एक परम्परा है।
इसके अतिरिक्त, समाज में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए भी दहेज प्रथा का सहारा लिया जाता है। लोगों की यह मानसिकता है कि जब विवाह के समय दुल्हन के घर से महंगी गाड़िया, तोहफें, आभूषण इत्यादि आयेंगे तो इससे उनके परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ावा मिलेगा।
दहेज प्रथा के नुक़सान
दहेज प्रथा का मुख्य रूप से प्रभाव कन्या तथा कन्या के परिवार के ऊपर पड़ता है। विवाह के समय कन्या के परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। दूल्हे के घरवालों द्वारा की जाने वाली मांगो को पूरा ना कर पाने पर परिवार के आत्म सम्मान को भी गहरा आघात पहुंचता है। इसके साथ ही वह कन्या जिसे विवाह के पश्चात् दहेज हेतु प्रताड़ित किया जाता है।
उसका जीवन नर्क से बदतर हो जाता है। नवविवाहित कन्या तथा महिलाओं को दहेज की मांग पूरी ना किए जाने के कारण असम्मान तथा मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। कहीं जगहों पर लोग दहेज के लालच में इतने अंधे हो जाते है कि महिलाओं को शारीरिक प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ता है। दहेज प्रथा के कारण ही विभिन्न अपराधों को जन्म मिलता है। समाज में कन्याओं के विवाह को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। दहेज प्रथा के कारण भूर्ण हत्या जैसे जगन्य अपराध भी बढ़ते जाते हैं।
दहेज प्रथा पर कानून
सरकार द्वारा दहेज के लिए किए जाने वाले अपराधों को दंडनीय घोषित किया जा चुका है। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार, दहेज की मांग करना एक दंडनीय अपराध है। जिसमें जुर्माना के साथ साथ कारावास की सजा भी निश्चित है। यदि किसी परिवार द्वारा दहेज की मांग की जाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही शुरू की जाएगी।
जिसके तहत 10,000 से 15,000 तक जुर्माना वसूला जाएगा। साथ ही कम से कम 5 वर्ष का कारावास भी दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, यह सजा दहेज में मांगी गई राशि के आधार पर भी तय की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, अनेक ऐसी महिलाओं जिन्हें उनके ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए भावनात्मक या मानसिक या शारीरिक रूप से कष्ट दिया जाता है। उनके लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत सुरक्षा के कानून बनाए गए हैं।
निष्कर्ष
अपनी स्वेच्छा से दहेज देने में कोई बुराई नहीं परंतु दहेज की मांग के कारण हो रहे है अपराधों को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस कुप्रथा को रोका जाएं। हालांकि सरकार द्वारा इस प्रथा को रोकने के लिए नियम बनाएं गए है। लेकिन इन्हें सख्त नियमों में बदलाव करना जरूरी है। इसके साथ ही हम सबका यह प्रयास होना चाहिए कि दहेज के लालचियों की विचारधारा में परिवर्तन लाया जाएं।
साथ ही कन्याओं को शिक्षित कर उन्हें आत्म निर्भर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। सदियों से चली आ रही इस प्रथा को एक साथ पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता, परंतु धीरे धीरे इसकी जड़ों को कमजोर कर इस प्रथा का अंत किया जा सकता है। इसके लिए महिलाओं को भी दहेज प्रथा के कारण हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठानी होगी।
दहेज प्रथा पर निबंध 300 शब्द – Dahej Pratha Par Nibandh 300 words
भारत देश में सदियों से विभिन्न प्रथाओं का अस्तित्व मौजूद रहा है। जैसे – बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा तथा दहेज प्रथा आदि। इन प्रथाओं को कुप्रथाओं का नाम तब दिया जाता है। जब इनसे मानवीय रिश्तों को हानि पहुंची है। इसी श्रेणी में व्याप्त दहेज प्रथा है। जिसके कारण मानवीय रिश्तों को ही नहीं अपितु देश के विकास में भी अवरोध उत्पन्न होता है।
दहेज प्रथा का सामान्य मतलब होता है कि, कन्या के विवाह के समय जब कन्या के घरवाले दूल्हे के घरवालों को सामान,धन व जेवर इत्यादि अपनी क्षमता के अनुसार देंते है, वह दहेज कहलाता है। लेकिन जब दूल्हे के घरवालों की तरफ से अनुचित मांगे रखी जाती हैं, जिन्हें पूरा कर पाने में कन्या के घरवाले सक्षम नहीं होते हैं तब यह प्रथा एक कुप्रथा का रूप ले लेती है।
क्योंकि दहेज के लालच में दूल्हे पक्ष के लोग कन्या पर अत्याचार करना शुरू कर देंते हैं। जिस कारण यह प्रथा समाज में मौजूद तमाम विवाहित कन्याओं के लिए एक श्राप जैसा बन जाता है।दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के कारण ही आर्थिक रूप से अस्वस्थ लोग बेटियों को जन्म देने से कतराते हैं।
उन्हें यह डर रहता है, कि भविष्य में बेटी के विवाह के समय मांग के अनुरूप यदि दहेज नहीं दे पाएं तो बेटी के साथ अत्याचार होगा तथा समाज में असम्मानित होना पड़ेगा। परंतु यह कुछ गांव तथा कस्बों में रहने वाले लोगों की मानसिकता है।
दहेज प्रथा के मामलों से कोर्ट, पुलिस स्टेशन की फाइलें भरी रहती है। देश में अधिकतर केस दहेज प्रथा से संबंधित होते है। जिनमें विवाहित स्त्रियों को दहेज ना देने पाने के कारण जला दिया जाता है। विवाहित स्त्रियों को दहेज प्रथा के दौरान मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है।
जिस कारण उनका अंतिम निर्णय आत्मदाह का हो जाता है।देश में, इस कुप्रथा को रोकने के लिए कानून बनाया जा चुका है। परंतु इसके बाबजूद भी दहेज प्रथा के इतने मामले है कि एक साथ इन्हें सुलझाया नहीं जा सकता है।इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाया जाएं साथ ही कन्या को विवाह से पूर्व आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
दहेज प्रथा पर निबंध 200 शब्द – Dahej Pratha Par Nibandh 200 words
दहेज प्रथा उन सामाजिक बुराइयों में से एक है जो आज के युग में भी विवाहिता स्त्रियों की मृत्यु का कारण बन रही है। इस कुप्रथा को अनेक महापुरुषों ने समाप्त करने के अभूतपूर्व कदम उठाएं। परंतु इसके पश्चात् भी आज दहेज प्रथा देश के विभिन्न गांव तथा कस्बों में व्याप्त है। दहेज प्रथा के अंतर्गत नवविवाहित स्त्रियों से विवाह के पश्चात अतिरिक्त धन की मांग की जाती है। ससुराल द्वारा की जाने वाली मांगों को पूरा ना कर पाने पर विवाहित स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है।
दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों से संबंधित विभिन्न केस प्रतिदिन अखबारों तथा समाचारों द्वारा सुनने को मिल जाते हैं। जिसमें यह देखने को मिलता है कि दहेज के लालच में लोग अपनी बेटी समान बहुओं को घर से निकाल देते हैं, जान से मारने की धमकियां देते हैं इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे केस देखने को मिलते हैं जहां दहेज ना दे पानी की वजह से विवाहित स्त्री को मौत के घाट उतार दिया जाता है।
इस प्रथा के चलते प्रताड़ित महिला खुदकुशी के मार्ग तक पर अग्रसर हो जाती है।हालांकि सरकार द्वारा दहेज प्रथा को दंडनीय घोषित किया जा चुका है परंतु फिर भी 21वीं सदी में भी दहेज प्रथा जैसी कुरीति को समाप्त नहीं किया जा सका है। जिसका कारण यह है कि दहेज प्रथा का समर्थन करने वाले लोगों द्वारा इसे पुराना रिवाज समझा जाता है।
अतः यदि हमें अपने देश से महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली कुप्रथा यानी कि दहेज प्रथा पूर्ण रूप से समाप्त करना है तो समाज के लोगों के विचारों को बदलना होगा तथा इस कुप्रथा के प्रति आवाज उठाने के लिए प्रताड़ित महिलाओं को जागरूक करना होगा।
इसके साथ ही हमारा आर्टिकल – Dahej Pratha Par Nibandh समाप्त होता है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य कई निबंध पढ़ने के लिए हमारे आर्टिकल – निबंध लेखन को चैक करें।