Adarsh Vidyarthi Par Nibandh
प्रस्तावना
भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने जीवन को सुव्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए उसे चार भागों में विभाजित किया था। जिसमें ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, संन्यास आश्रम आदि विशेष हैं। जहां ब्रह्मचर्य आश्रम में बालक पच्चीस वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गुरु के संरक्षण में अपने जीवन को संवारता है, जिसे ही विद्यार्थी जीवन कहा गया है। ऐसे में यही समय बालक के भावी जीवन की आधार शिला माना गया है। जीवन का यह समय एक नन्हे बढ़ते हुए पौधे के समान है, जिसे जिधर चाहे मोड़ सकते हैं। ऐसे में यदि छात्र वास्तव में अपना भविष्य स्वर्णिम बनाना चाहते हैं तो उन्हें शिक्षणकाल में ही आदर्श गुणों को ग्रहण करना चाहिए।
आदर्श विद्यार्थी के गुण
विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भविष्य जीवन का निर्माण काल है। इस समय अध्ययन में लगा रहना ही वह अपना परम ध्येय मानता है और उसे किसी प्रकार की चिंता भी नहीं रहती। विद्यार्थी का शाब्दिक अर्थ होता है, विद्या का अभिलाषी। इस समय उसका उद्देश्य मात्र विद्या प्राप्त करना ही नहीं अपितु शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सब प्रकार से उन्नति करना है। इन सबके लिए कठोर परिश्रम, सच्ची लगन, सच्चरित्रता और एकाग्रचित्तता जरूरी है।
आदर्श विद्यार्थी का चरित्र श्रेष्ठ होना चाहिए।ऐसे में चरित्र पर जीवन के प्रारंभ से ही ध्यान देना जरूरी है। समाज में मनुष्य को तभी आदर मिलता है, जबकि उसका चरित्र श्रेष्ठ हो। यदि किसी मनुष्य के पास विद्या का अपार भंडार हो, मगर चरित्र की आभा उसमें ना हो तो समाज सदा उसे हेय दृष्टि से देखता है। साथ ही उसे सादा जीवन और उच्च विचार वाले सिद्धांत को सदा अपने सम्मुख रखना चाहिए। विद्यार्थी को आत्मसंयमी भी होना चाहिए।
जिस प्रकार से आम के पेड़ पर जब फल लगते हैं तो उसकी टहनियां खुद ही झुक जाती हैं। ठीक उसी प्रकार से विद्या भी व्यक्ति को विनम्र बनाती है। इसलिए आदर्श विद्यार्थी को सदैव अपने मां बाप और गुरु का कहना मानना चाहिए। साथ ही जो विद्यार्थी विद्यालय के नियमों का पूरा पूरा पालन करता है तथा उसे अपने सहपाठियों से स्नेह और सहयोग का व्यवहार करता हो, असल में वही आदर्श विद्यार्थी कहलाता है।
इतना ही नहीं विद्या ग्रहण करना कोई आसान कार्य नहीं है इसलिए विद्यार्थी को सदा कठोरतम परिश्रम द्वारा विद्या ग्रहण करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। ऐसे में जो विद्यार्थी अपना मन पूर्ण रूप से विद्या में लगाएगा सफलता उसी के कदम चूमती है।
साथ ही यदि विद्यार्थी को अपना भविष्य सुंदर बनाना है तो उसे कुसंगाति से दूर रहना होगा। वैसे तो हर व्यक्ति इस संसार में अपने लिए ही आता है, लेकिन सच्चे अर्थों में जीवन वहीं जीता है जो दूसरे के भले की सोचता है। इस प्रकार विद्यार्थियों को हमेशा अपने सहपाठियों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
एक आदर्श विद्यार्थी को सदा अहंकार से बचना चाहिए। उसे मधुरभाषी और सत्यवादी होना चाहिए। साथ ही एक आदर्श विद्यार्थी के लिए जीवन में समय सबसे अधिक मूल्यवान होना चाहिए। आज का विद्यार्थी कल देश का कर्णधार होगा। साथ ही उसे समस्त मानव जाति का कल्याण करना होगा। इसी महान् उद्देश्य को सामने रखकर आगे बढ़ने वाला विद्यार्थी वास्तव में मानवता का सेवक होगा।
आदर्श विद्यार्थी का कर्तव्य
एक आदर्श विद्यार्थी का सबसे बड़ा कर्तव्य विद्या ग्रहण करना है। उसे अपना महत्वपूर्ण समय विद्या अर्जन में ही लगाना चाहिए। हालांकि इसका यह तात्पर्य नहीं कि आप किताबी कीड़ा ही बने रहें बल्कि एक आदर्श विद्यार्थी को नियमित रूप से खेल या व्यायाम में भाग लेना चाहिए। साथ ही समाज में होने वाली घटनाओं से अवगत रहना चाहिए। ऐसे में एक आदर्श छात्र को अपने सभी कार्यों को नियमित तौर पर संपन्न करना चाहिए।
उपसंहार
जैसे नागरिक देश के साथ जुड़ा है ठीक उसी प्रकार से आज का विद्यार्थी भी देश के निर्माण कार्यों और प्रगति में भविष्य के उत्तरदाई नागरिक के रूप में जुड़ा है। साथ ही यदि विद्यार्थी परिश्रम, अनुशासन, योग्यता, सच्चरित्रता, नम्रता आदि गुणों को ग्रहण करके अध्ययन में निहित रहेगा तो निश्चित ही वह एक अच्छा नागरिक बनेगा। जिसके तहत वह अपने समाज और देश का हित कर सकेगा।
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