Prajatantra par Nibandh
प्रस्तावना
मानव समाज ने जब राष्ट्र की कल्पना की होगी तो उस राष्ट्र को सुव्यवस्थित करने के लिए राज्य और शासन प्रणाली की कल्पना हुई होगी। राष्ट्र के समस्त प्रजा जन अपनी अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते हुए समाज और राष्ट्र की सेवा करते रहे तथा उनके मार्ग में कोई बाधक न बने, इसलिए शासन की आवश्यकता अनुभव की गई होगी और तभी अनेक प्रकार की शासन प्रणालियों का जन्म भी हुआ होगा।
भारत संसार का सबसे प्राचीन राष्ट्र है। ज्ञान सूर्य का उदय सर्वप्रथम इस देश में ही हुआ था। यहां के मनीषियों ने विचार कर शासन की कई प्रणालियों को निश्चित किया था। यहां सर्वप्रथम वह शासन प्रणाली थी जिसमें कोई राजा नहीं होता था, बल्कि सब लोग मिलकर ही अपना शासन प्रबंध करते थे। फिर ग्राम सभा, समिति आदि का निर्माण हुआ, जिनमें प्रजाजन अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करते थे। यह गणराज्य प्रणाली थी। महाभारत काल और बौद्ध काल में यहां अनेक गणराज्य थे। बहुत समय बाद निर्वाचन को छोड़ दिया और वंश परम्परागत राजा ही यहां अंग्रेजों के आने से पूर्व तक राज्य करते रहे। अंग्रेजों के आने के पश्चात् देश में स्वतंत्रता की लहर के साथ ही जनता के राज्य की भावना भी तीव्रता से बढ़ी और देश के स्वाधीन होने के अनंत्तर देश में गणतंत्र की स्थापना हुई। गणतंत्र को ही प्रजातंत्र भी कहा जाता है।
प्रजातंत्र के प्रकार आज के विश्व में मुख्यत तीन प्रकार की शासन प्रणालियां प्रचलित हैं। वे हैं प्रजातंत्रीय शासन प्रणाली, अधिनायक वादी शासन प्रणाली और वंशानुगत राजतंत्र प्रणाली। इनमें से वंशानुगत राजतंत्र प्रणाली हमारे पड़ोसी देश नेपाल और भूटान में प्रचलित है। अधिनायक वादी शासन प्रणाली साम्यवादी देशों रूस, चीन, पोलैंड और युगोस्लाविया में हैं। अधिनायकवादी शासन पद्धति वाले राष्ट्र यद्यपि अपने को गणतंत्र वादी कहते हैं, किन्तु वहां एक दल का और उस दल के शक्तिशाली प्रमुख का शासन होता है। प्रजा तंत्रीय शासन प्रणाली ही ऐसी प्रणाली है जिसमें जनता में ही सत्ता निहित होती है। जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि ही शासक होते हैं। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान आदि देशों में आज यही प्रणाली प्रचलित है। प्रजातंत्र को ही जनतंत्र या गणतंत्र कहा जाता है। प्रजा के हित के लिए जहां प्रजा के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा शासन चलाया जाता है, उसे ही प्रजातंत्र माना जाता है।
प्रजातंत्र और निर्वाचन
निर्वाचन और मताधिकार प्रजातंत्र की रीढ़ की हड्डी है। जब कहा जाता है कि यह जनता का शासन है तो उसका अभिप्राय होता है कि प्रजा द्वारा निर्वाचित जन प्रतिनिधि शासन चलाते हैं। निर्वाचन या चुनाव प्रजातंत्र शासन प्रणाली का आवश्यक अंग है। ये चुनाव कहीं चार वर्षों के लिए तो कहीं पांच वर्षों के लिए होते हैं, यदि चुनाव में निर्वाचित सरकार कभी निश्चित अवधि के मध्य में ही सदन में विश्वास मत प्राप्त न करने पर पराजित हो जाती है या अपनी किसी नीति को उचित सिद्ध करने के लिए त्याग पत्र दे देती है तो उस दशा में समय से पूर्व भी चुनाव हो जाते हैं। जिन्हें मध्यावधि निर्वाचन कहा जाता है।
प्रजातंत्र और राजनैतिक दल
किसी भी देश में उस देश का शासन चलाने के लिए अलग अलग नीति रखने वाले लोग होते हैं। इनमें प्राय समान विचार वाले लोग एक राजनैतिक दल बना लेते हैं। उस देश की एक नीति और निश्चित सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रम होते हैं। जिनके आधार पर वे काम करते हैं और शासन में आकर उनके माध्यम से देश की व्यवस्था को चलाने की चेष्टा करते हैं। भारत बहुत बड़ा और विविधताओं से भरा देश है। यहां भी अनेक राजनीतिक दल हैं। वर्तमान राजनीतिक दलों में भारतीय जनता पार्टी, जनता पार्टी, कांग्रेस, लोकदल, साम्यवादी, मार्क्सवादी साम्यवादी, प्रजातांत्रिक समाजवादी दलों आदि के साथ ही अनेक क्षेत्रीय दल भी मौजूद हैं, जोकि चुनावों में भाग लेते हैं। तो वहीं कुछ लोग स्वतंत्र रूप से भी चुनाव लड़ते है। निर्वाचनों की व्यवस्था के लिए देश में एक निर्वाचन आयोग है, जिसकी देख रेख में चुनावों की व्यवस्था होती है। निर्वाचन आयोग मतदाताओं की सूचियां बनवाता है, मतदान की तिथि निश्चित करता है और मतदान करवाता है। मतों की गणना और निर्वाचन प्रतिनिधि की घोषणा करता है।
उपसंहार
प्रजातंत्र में निर्वाचन महत्वपूर्ण होते हैं। इसमें जनता को अपने भाग्य विधाता का चयन करना होता है। सुयोग्य, चरित्रवान और कर्तव्यनिष्ठ प्रतिनिधियों के हाथ में ही राष्ट्र का भविष्य और अभ्युदय सुरक्षित रहता है। ऐसी में काफी सोच विचार करके और स्थायित्व, सुशासन के लिए अच्छे दलों और सुयोग्य प्रत्याशियों को ही मत प्रदान करना चाहिए।
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