Sunderkand Path
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, किसी भी अच्छे कार्य की शुरुआत करने से पहले भगवान श्री राम का नाम लेना चाहिए। ठीक उसी प्रकार से हिंदुओ के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस की महत्ता है। महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामचरितमानस को 15 वीं सदी में महान् कवि गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा था। इसलिए इसे तुलसी रामायण भी कहते हैं।
वैसे तो महर्षि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखे रामायण महाकाव्य में त्रेतायुग में जन्मे भगवान विष्णु के अवतार श्री राम की कथा का विस्तृत वर्णन किया गया है। लेकिन दोनों की ही भाषा शैली में काफी अंतर है। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में मुख्य रूप से सात खंड है – बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड आदि।
इन सभी खंडों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के गुणों की व्याख्या की गई है। तो वहीं रामायण के पांचवें खंड सुंदरकांड में पवन पुत्र हनुमान की राम भक्ति और वीरता का वर्णन बड़ी सुंदरता से किया गया है। माना जाता है कि मात्र सुंदरकांड को पढ़ लेने से भगवान राम अपने भक्तों के समस्त दुखों को हर लेते हैं। इसलिए समस्त खंडों में से सुंदरकांड को विशेष रूप से पढ़ने के लिए कहा जाता है। तो चलिए प्रस्तुत है आगे सुंदरकांड के श्लोक अर्थसहित।
सुंदरकांड को मुख्यता कई सोपानों में बांटा गया है, जिसमें हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता माता से भेंट कर उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी आदि शामिल है।
विषय सूची
मंगलाचरण दोहा
अतुलितबलधाम हेमशेलाभदेहं, दनुजवनकृशानु ज्ञानिनामग्रगर्यम।।
सकलगुणनिधान वानरानामधीशं, रघुपतिप्रियभक्त वातजात नमामि।।
भावार्थ – हे ! अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कान्ति पूर्ण शरीर वाले, देत्य के लिए अग्नि समान, ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ, गुणों के निधान, वानरों के स्वामी और भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान जी को मैं कोटि कोटि प्रणाम करता हूं।
हनुमान जी का लंका को प्रस्थान
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सही दुख कंद मूल फल खाई।।
भावार्थ – हनुमान जी जम्बावन के मुख से सुंदर वचन सुनकर अति प्रसन्न हो गए और उनसे बोले, प्रिय भाई ! तुम दुःख सहकर और कंद मूल फल खाना और मेरी राह तकना।
जब लगि आवों सीतहि देखी। होइए काजु मोहि हरष बिसेशी।।
यह कहि नाइ सबन्हि कहूं माथा। चलेयू हरषि हियं धरि रघुनाथ।।
भावार्थ – जब तक मैं माता सीता को लेकर नहीं आ जाता। मैं इस कार्य को अवश्य पूरा करूंगा, क्योंकि ऐसा करने में मुझे हर्ष की अनुभूति होगी। इतना कहकर पवन पुत्र हनुमान भगवान राम का नाम लेकर वहां से विदा हो गए।
हनुमान जी का लंका में प्रवेश
नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।।
सैल बिसाल देखि एक आगे। ता पर धाई चढ़ेउ भय त्यागे।।
भावार्थ – हनुमान जी जैसे ही लंका पहुंचे तो उन्हें अपने चारों ओर फल और फूलों से लदे हुए वृक्ष दिखाई दिए। साथ ही पक्षी और पक्षियों की चहचाहट सुनकर उनका मन प्रसन्न हो गया। साथ ही एक पर्वत को देखकर हनुमान जी इतने उत्सुक हो गए कि बिना भय के सीधे कूदकर उसपर चढ़ गए।
हनुमान और विभीषण के बीच वार्तालाप
लंका निसिचर निकर निवासा। इहां कहां सज्जन बासा।।
मन महुं तरक करें कपि लागा। तेहि समय विभीषनु जागा।।
भावार्थ – लंका में प्रवेश करने के बाद हनुमान जी सोचने लगे कि लंका तो राक्षसों का घर है। यहां भला कोई सज्जन पुरुष कहां निवास करता होगा? हनुमान जी के इतना कहते ही विभीषण जाग उठे और हनुमान जी ने बोले, महोदय ! क्या है आपकी व्यथा।
हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता जी से मिलना
देखि मनहि महूं की प्रनामा। बैठीहिं बीति जात निसि जामा।।
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदय रघुपति गुन श्रेनी।।
भावार्थ -लंका पहुंचने के बाद जैसे ही हनुमान जी को सीता माता के दर्शन हुए। उन्होंने तुरंत उन्हें प्रणाम किया। सीता माता के चरणों में बैठे बैठे ही हनुमान जी चारों पहर बीता देते हैं। वह देखते है कि सीता माता दुबली हो गई हैं और सदैव भगवान श्री राम के गुणों का स्मरण करती रहती हैं।
माता सीता त्रिजटा संवाद
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपती संगिनी तें मोरी।।
तजों देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई।।
भावार्थ – संकट की घड़ी में माता सीता त्रिजटा से हाथ जोड़कर विनती करती हैं कि तू मेरी विपदा की साथी है। इसलिए आप जल्दी कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं अपना शरीर त्याग सकूं। अब भगवान श्री राम से विरह सहन नहीं होती है।
माता सीता और हनुमान संवाद
कपि करि हृदय विचार दीनहि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दिन्ह हरषि उठि कर गहेउ।।
भावार्थ – हनुमान जी ने भगवान श्री राम की अंगूठी जब माता सीता को दी। तब माता सीता ने खुशी से उसे अपने हाथों में ले लिया।
हनुमान जी द्वारा लंका विध्वंस
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।।
रहे तहां बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।।
भावार्थ – हनुमान जी माता सीता के पैर छूकर जब आगे बढ़े। तब वह लंका के बाग में जाकर वृक्षों पर से फल तोड़कर खाने लगे। साथ ही जो वहां पहरा दे रहे थे उन्हें भी मृत्यु शैय्या पर लिटा दिया। जिसके बाद राक्षसों ने जाकर लंका नरेश रावण से उन्हें बचाने की विनती की।
हनुमान रावण संवाद
कपिहि बिलोकी दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति किन्हि पुनि उपजा हृदय बिसाद।।
भावार्थ – हनुमान जी का उपद्रव देखकर रावण ने उन्हें सभा में उपस्थित होने के लिए बुलाया। हनुमान जी को देखकर रावण अपनी हंसी ना रोक पाया। लेकिन जैसे ही उसको अपने भाई की मौत का ख्याल आया। वह गुस्से से आग बबूला हो गया।
लंका दहन
पूंछ ही बनार तह जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई।।
भावार्थ – लंकेश रावण ने जब हनुमान जी को कैद कर लिया था। उसके बाद उन्होंने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने की सोची। साथ ही कहा कि यह बिना पूंछ का बंदर जब अपने मालिक के पास जाएगा। तो यह अपने मालिक को यहां ले आएगा। मैं भी देखूं कि इसने अपने जिन प्रभु की लीलाओं का वर्णन किया है, उनमें कितनी सामर्थ्य है।
लंका से हनुमान जी की विदाई
पूंछ बुझाई खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जन कसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।
भावार्थ – जब रावण ने हनुमान जी की पूंछ को जलाने का असफल प्रयास किया। तब उन्होंने लंका से हनुमान जी को विदा लेने के लिए कह दिया। जिसके बाद हनुमान जी अपनी पूंछ से आग शांत करके एक लघु रूप धारण करते हुए माता सीता के पास पहुंचे। और सिर झुकाकर उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया।
श्री राम हनुमान संवाद
हरषे सब बिलोकी हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।।
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। किन्हेसि रामचंद्र कर काजा।।
भावार्थ – जब पवन पुत्र हनुमान लंका से वापस लौटकर आए। तब उन्हें देखकर सब प्रसन्न हो गए। इसी दौरान वहां उपस्थित वानरों को मानो दूसरा जन्म मिल गया। सबने हनुमान जी के चेहरे पर विराजित तेज से यह अनुमान लगा लिया। की हनुमान जी अपने कार्य में सफल होकर लौटे हैं।
भगवान राम का वानर सेना के साथ समुन्द्र तट पर जाना
कपि पति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालू बरूथ।।
भावार्थ – जब भगवान राम ने समुन्द्र तट को पार करके लंका जाने की बात कही। तभी वानर राज सुग्रीव ने तुरंत ही वानरों की सेना को बुलाया और सुग्रीव के आदेश पर सभी वानरों का झुंड इक्कठा हो गया।
मंदोदरी रावण संवाद
जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएं पुर कवन भलाई।।
दूतिंनह सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।।
भावार्थ – हनुमान की आक्रमकता का शिकार हुए लंका वासी रावण की पत्नी मंदोदरी के पास पहुंचे। और बोले महारानी जिसके दूत के बल को देखकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। उनके प्रभु श्री राम के स्वयं चलकर लंका आने पर क्या होगा। लंका वासियों की दशा को सुनकर रानी मंदोदरी चिंतित हो उठी।
विभीषण का भगवान राम की शरण के लिए प्रस्थान
रामु सत्य संकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाऊं देहु जनि खोरि।।
भावार्थ – भगवान श्री राम के आगमन की खबर सुनते ही भगवान श्री राम दौड़े चले आए। उन्होंने कहा कि मैं श्री राम की शरण में जाता हूं, कृपया मुझे दोष ना देना।
श्री राम गुणगान की महिमा
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहि ते तरहि भव सिंधु बिना जलजान।।
भावार्थ – भगवान श्री राम का गुणगान सम्पूर्ण मंगल कार्यों की पूर्ति करने वाला है। जो भक्त इसे सम्मान से सुनेंगे वह बिना किसी परेशानी के जीवन की नैया को पार कर जाएंगे।
सुंदरकांड पढ़ने से लाभ
कहा जाता है कि भगवान राम के भक्त हनुमान जी आज भी धरती पर जीवित है। ऐसे में जहां भी सुंदरकांड के पाठ का आयोजन होता है, स्वयं पवन पुत्र हनुमान वहां प्रकट होते हैं। इसलिए हर मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने के लिए कहा जाता है।
साथ ही सुंदरकांड का पाठ करने से मनुष्य को अपने जीवन में धन, सुख, वैभव और यश की प्राप्ति होती है। तो वहीं नियमित तौर पर इस पाठ को करने से व्यक्ति को सभी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।
इसके अलावा सुंदरकांड का पाठ करने से व्यापार और नौकरी इत्यादि में आने वाली समस्त कठिनाइयों से व्यक्ति को छुटकारा मिल जाता है। कहते है यदि आपकी कुंडली में शनि का प्रभाव है, तो आपको नियमित तौर पर सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। साथ ही सुंदरकांड का पाठ करने से आसपास की नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है।
सुंदरकांड पढ़ने से पहले ध्यान रखने योग्य बातें
सुंदरकांड का पाठ करने से पहले व्यक्ति को कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ताकि हनुमान जी की उस पर कृपा बनी रहें। ध्यान रखें कि सुंदरकांड का पाठ करने से पहले इसकी पुस्तक को किसी चौकी या पटली पर कपड़ा बिछाकर रखें। उसके बाद एक दीपक जलाएं। सुंदरकांड का पाठ करते समय एकाग्रचित होकर ध्यान लगाए अन्यथा चौपाइयों का गलत उच्चारण हो सकता है। कोशिश करें कि पाठ का जाप करते समय बीच में बार बार उठना ना पड़े।
साथ ही सुंदरकांड के पाठ को या तो ब्रह्म मुहूर्त में या शाम के वक़्त करना चाहिए। पूर्णिमा और अमावस्या के समय सुंदरकांड का पाठ करना लाभकारी माना जाता है। तो वहीं सुंदरकांड का पाठ शुरू करने से पहले और बाद में हनुमान जी को जरूर ही स्मरण करना चाहिए।
इसके अलावा सुंदरकांड का पाठ अकेले करने की सलाह दी जाती है। सुंदरकांड को मुख्यता कई सोपानों में बांटा गया है, जिसमें हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता माता से भेंट कर उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी आदि शामिल है।
जय श्री राम ! श्री राम ! श्री राम !
