तुलसीदास की जीवनी – Tulsidas Biography in Hindi

Tulsidas is Jivani

Tulsidas ki Jivani

15 वीं शताब्दी को अपने जन्म से पावन करने वाले हिन्दी साहित्य के महान् कवि तुलसीदास के बारे में कौन नहीं जानता होगा। तुलसीदास ने हिन्दुओं के महान् काव्यग्रंथ रामायण की रचना की। इतना ही नहीं महाकाव्य रामायण की लोकप्रियता के चलते इन्हें महर्षि वाल्मीकि का अवतार तक माना गया है। साथ ही तुलसीदास भारत देश के महान् कवियों में से एक हैं। 


महाकवि तुलसीदास का जन्म

पंद्रह सै चौवन विषै, कालिंदी के तीर।
सावन सुक्ला सप्तमी, तुलसी धरेउ शरीर।

रामायण महाकाव्य के रचयिता तुलसीदास जी के जन्म के संबंध में अनेकों मत प्रचलित है। लेकिन मूलगोसाई चरित तथ्यों के आधार पर 1511 ईसवी को इनका जन्मकाल माना जाता है। कहा जाता है कि इनका जन्म श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित राजापुर गांव में हुआ था।

उस वक़्त पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी के घर में जन्मा यह बालक जिसे देखकर किसी ने सोचा तक नहीं होगा। कि निकट भविष्य में यह एक लोकप्रिय महाकाव्य की रचना करेगा।

तुलसीदास जी के जन्म को लेकर एक अन्य रोचक बात कही गई है कि संभावित तौर पर छोटे बच्चे जन्म के समय पर रोते है। लेकिन तुलसीदास जी बिल्कुल भी नहीं रोए थे। और साथ ही इनके जन्म के दौरान ही इनके मुंह में पूरे 32 दांत मौजूद थे।

इतना ही नहीं इनकी राम भक्ति के बारे में तो सब बचपन में जान गए थे। क्यूंकि इन्होंने सबसे पहला जो शब्द बचपन में बोला था, वह था राम। जिससे इनका नाम रामबोला पड़ गया। हालांकि जन्म के कुछ समय पश्चात् ही इनकी मां का निधन हो गया। जिससे  माना जाता है कि तुलसीदास का बचपन काफी अभावों में व्यतीत हुआ। 


महाकवि तुलसीदास की शिक्षा 

कहते है कि रामबोला (तुलसीदास) नाम के चर्चित बालक की तलाश में जब श्री नरहर्यानन्द (श्री नरहरि बाबा) निकले, तब उन्होंने उस छोटे से बालक को खोजकर उसका विधि विधान से यज्ञोपवीत संस्कार कराया।

उस दौरान नन्हें से बालक के मुख से गायत्री मंत्र का जाप सुनकर सब अचंभित हो उठे थे। जिसके बाद श्री नरहरि बाबा ने ही रामबोला का नाम तुलसीदास रखा। साथ ही तुलसीदास को राम मंत्र की शिक्षा दीक्षा भी प्रदान की। 


तुलसीदास जी का विवाह

तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली से हुआ था। वह उनसे बेहद प्रेम करते थे। कहा जाता है कि एक बार जब उनकी पत्नी रत्नावली मायके चली गई थी, तो उनकी याद में वह उफनती यमुना नदी को पार कर अपने ससुराल अपनी पत्नी से मिलने आधी रात को पहुंच गए थे। लेकिन उनकी पत्नी को इस तरह से उनका आना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने तुलसीदास जी को खरी खोटी सुना दी। 

लाज न आई आपको, दौरे आएहु नाथ।

कहा जाता है इससे आहत होकर तुलसीदास जी ने वैराग्य जीवन को अपना उद्देश्य बना लिया और प्रभु श्री राम की खोज में निकल पड़े। और पत्नी से मोह त्यागने के पश्चात् उन्होंने एक रचना की।

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव- भीत।।

साथ ही तुलसीदास को अपनी पत्नी रत्नावली से तारक नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। 


तुलसीदास जी की राम भक्ति

कहा जाता है कि तुलसीदास के पत्नी से मोह त्याग के बाद वह 14 साल तक श्री राम की तलाश में दर दर भटकते रहे। लेकिन प्रभु प्राप्ति ना होने से क्षुब्ध होकर तुलसीदास जी ने जल भरे लोटे को एक पेड़ की जड़ में उलट दिया।

कहते है उन्होंने जिस पेड़ की जड़ में जल डाला था। उसमें एक आत्मा कई समय से फंसी हुई थी। और पवित्र जल गिरते ही वह बंधन से मुक्त हो गई और खुश होकर उसने तुलसीदास से उनकी नाराजगी का कारण पूछा। जिस पर तुलसीदास ने बताया कि वह प्रभु श्री राम की खोज में निकले है।

तब उस आत्मा ने उन्हें पास ही के एक हनुमान मंदिर का पता बताया। उसने कहा कि उस मंदिर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। और सुना है कि उस मंदिर में राम भक्त हनुमान कोढ़ी के वेश में आते है। तुम उनसे जाकर विनती करना कि वह तुम्हें भगवान राम के दर्शन करवा दें।

तुलसीदास ने उस आत्मा की बात का पालन कर वैसा ही किया। जिसके बाद उन्होंने मंदिर में राम भक्त हनुमान को ढूंढ कर उनके पांव पकड़ लिए। जिसके बाद हनुमान जी ने उनसे कहा कि जल्द ही उनकी भेंट प्रभु श्री राम से होगी। जिसके बाद तुलसीदास जी ने भगवान राम की प्रतीक्षा करना प्रारंभ कर दी।

कहते है एक बार जब तुलसीदास जी भगवान राम की मूर्ति पर चंदन कूट कर रहे थे कि तभी भगवान राम ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए। और भगवान राम ने स्वयं तुलसीदास को चंदन का तिलक लगाया। भगवान राम के दर्शन पाकर तुलसीदास धन्य हो गए। और इसी के बाद तुलसीदास जी ने रामायण समेत 12 महा ग्रंथों की रचना कर डाली। 

कहा जाता है कि तुलसीदास जी के महाकाव्य रामायण को लेकर काशी के पंडितों में द्वेष उत्पन्न हो गया। ऐसे में चोरों से रामायण की प्रति छुपाने के लिए उन्होंने इसे अकबर के नौ रत्नों में शामिल टोडरमल के पास रखवा दी। जिसके बाद उसी आधार पर उन्होंने रामायण की दूसरी प्रति लिख डाली।

जिसका प्रचार दूर दूर तक फैल गया। लेकिन काशी के पंडितों को हमेशा से तुलसीदास जी की यह रचना ना गवारी। जिसके चलते उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान विश्वनाथ के सामने सबसे पहले वेद, उसके नीचे शास्त्र, पुराण और सबसे नीचे रामचरितमानस को रखा।

लेकिन सुबह देखा तो सबमें से रामचरितमानस सबसे ऊपर रखी थी। जिसके बाद सभी पंडितों ने तुलसीदास जी से अपनी भूल की माफी मांगी।


महाकवि तुलसीदास की रचनाएं

तुलसीदास जी के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ के रूप में रामचरितमानस विद्यमान है। साथ ही इनकी रचनाओं को अवधी और ब्रज भाषा के आधार पर दो भागों में बांटा गया है। इस प्रकार नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा इनकी रचनाएं निम्न हैं-

वैराग्य-संदीपन, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका, गीतावली, सतसई, संकट मोचन, कुंडलिया रामायण, राम शलाका, श्री कृष्ण गीतावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, बरवे रामायण, रामलला नहछू आदि तुलसीदास जी की महत्वपूर्ण रचनाएं हैं।

तो वहीं तुलसीदास को रामचरितमानस को सरल शब्दों में वर्णित करने का श्रेय दिया जाता है। जिसे लिखने में तुलसीदास जी को करीब 2 साल, 7 महीने और 26 दिन लगे थे।


तुलसीदास जी की काव्यगत विशेषताएं

तुलसीदास ने अपनी काव्य रचनाओं में मुख्य रूप से अवधी और ब्रज भाषा का उपयोग किया है। साथ ही तुलसीदास के सभी काव्य में मूल रूप से करुण और शांत रस का प्रयोग हुआ है। इसके अलावा इनके काव्य में उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकार की झलक देखने को मिलती है।

साथ ही तुलसीदास जी को दोहा, चौपाई समेत सवैया आदि प्रिय थे। जिसके चलते उन्होंने उपयुक्त शैलियों और छन्दों का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। और इनकी भाषा ओज, प्रमाद और माधुर्य गुणों से युक्त है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तुलसीदास जी की रचनाओं में भक्ति, सामाजिक आदर्श, धार्मिक समन्वय आदि का भाव परिलक्षित होता है। और यही सारी खूबियां तुलसीदास जी को 15 वीं सदी का सफल कवि बनाने में उपयोगी सिद्ध हुई हैं।


Tulsidas ki Jivani

महाकवि तुलसीदास के दोहे

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्य वृत, राम भरोसे एक।।

तुलसीदास के अनुसार, मुश्किल और विपदा के समय मनुष्य का केवल यही चंद वस्तुएं साथ देती हैं, ज्ञान, विनम्रता, व्यवहार, अच्छे कर्म, सत्य और भगवान राम का नाम।

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह।।

तुलसीदास जी कहते है कि जिस जगह आपके जाने पर वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते हैं, और ना ही वहां के लोगों की आंखों में आपके लिए प्रेम और स्नेह है। तो वहां कदाचित नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां धन की वर्षा ही क्यों ना हो।

Tulsidas ke dohe

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूं जों चाहसि उजिआर।।

तुलसीदास जी कहते है कि यदि आप चाहते है कि आपके चारों ओर खुशहाली रहे। तो आप अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। साथ ही गलत बोलने की जगह राम नाम जपते रहे ताकि आप भी खुश रहे और आपके आस पास के लोग भी।

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भांग ते तुलसी तुलसीदास।।

तुलसीदास जी कहते है कि राम का नाम लेने से मन साफ रहता है। साथ ही कोई भी कार्य करने से पहले भगवान राम का नाम लें। क्यूंकि तुलसीदास जी स्वयं राम का नाम जपते जपते खुद को तुलसी के पौधे की तरह पवित्र मानने लगे थे।

तुलसी देखि सुबेषु भूल हीं मूढ़ न चतुर नर।
सुंदर केकेहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।।

जिस प्रकार से सुंदर मुख को देखकर ना केवल मूर्ख व्यक्ति बल्कि चतुर व्यक्ति भी धोखा खा जाते हैं। जैसे हम सबको मोर काफी खूबसूरत लगता है लेकिन असल में उसका भोजन सर्प है। इसलिए सिर्फ ऊपरी सतह से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

महाकवि तुलसीदास की मृत्यु

जिस तरह से महाकवि तुलसीदास जी के जीवन और जन्म स्थान को लेकर कई भ्रांतियां है। ठीक उसी प्रकार से उनकी मृत्यु को लेकर भी एक कहानी प्रचलित है कि एक बार तुलसीदास को कलियुग मूर्त रूप धारण कर कष्ट पहुंचा रहा था कि तभी तुलसीदास जी हनुमान जी का ध्यान करने लगे।

कहते है उस दौरान राम भक्त हनुमान ने तुलसीदास जी को प्रार्थना के पद की रचना करने को कहा। तत्पश्चात् तुलसीदास ने वैसा ही किया और अपनी अंतिम कृति विनय पत्रिका लिखी। कहते है इस कृति पर भगवान राम से स्वयं मोहर लगाई थी।

इस प्रकार जीवन पर्यन्त भगवान राम के चरणों में लीन मां भारती का यह सेवक 1623 ईसवी को शनिवार के दिन राम का नाम जपते हुए अपने शरीर का त्याग कर गया। ऐसे में तुलसीदास की मृत्यु को लेकर उपयुक्त दोहा प्रचलित है-

संवत् सोलह सो असी, असी गग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।

Tulisdas ki Jivani – एक दृष्टि में

जन्म वर्ष1511 ईसवी
मृत्यु वर्ष1623 ईसवी
जन्म स्थानबांदा जिले के राजापुर गांव
पिता का नामआत्माराम दुबे
माता का नामहुलसी
बचपन का नामरामबोला
गुरुनरहरि बाबा
जीवनसाथीरत्नावली
संतानपुत्र (तारक)
लोकप्रियताराम भक्त, कवि
भाषाअवधि और ब्रज
रचनारामचरितमानस

तुलसीदास की रचनाएं

रामलला नहछू
कुंडलिया रामायण
रामचरितमानस
वैराग्य संदीपन
दोहावली
कवितावली
गीतावली
सतसई
जानकी मंगल
संकट मोचन

इसके साथ ही – Tulisdas ki Jivani समाप्त होती है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आयी होगी। ऐसे ही अन्य कई जीवनी पढ़ने के लिए हमारी केटेगरी – जीवनी को चैक करें।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर कर रही हूं। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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1 thought on “तुलसीदास की जीवनी – Tulsidas Biography in Hindi”

  1. अंशिका जी आप बहुत ही अच्छी लेखक हैं आपकी कलम में जादू है युहीं लिखते रहिये हम आपको पढ़ते रहेंगे।
    जय हिंद

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