भीमराव आंबेडकर के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंग

B R Ambedkar Motivational Story in Hindi

पानी की एक बूंद जो समुद्र में मिल जाने के बाद अपना अस्तित्व खो देती है। लेकिन मनुष्य को समाज में रहकर अपना अस्तित्व नहीं खोना चाहिए। क्यूंकि व्यक्ति स्वतंत्र है, और उसका जन्म समाज के विकास के लिए नहीं, अपितु स्वयं के विकास के लिए हुआ है।

इस प्रकार के विचारों से भारतीयों के मन में चेतना जगाने वाले संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म  14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक दलित परिवार में हुआ था। ऐसे में बचपन से ही उनके मस्तिष्क में समाज में हो रहे भेदभाव, ऊंच नीच और दासता के प्रति क्रांति ने जन्म ले लिया था। जिसके चलते उन्होंने ना केवल समाज से छुआछूत का विरोध किया। बल्कि दलित जाति के उत्थान के लिए भी प्रयास किए।

साथ ही उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से देश की आज़ादी के लिए स्वतंत्रता आंदोलनों में भी बढ़ चढ़कर प्रतिभाग किया। ऐसे में डॉ. भीमराव आंबेडकर एक सफल राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता, समाजसुधारक और एक अर्थशास्त्री के रूप में प्रसिद्ध हुए। साथ ही उन्हें भारतीय गणराज्य और संविधान निर्माता के तौर पर भी जाना जाता है। और हम आज आपके लिए डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों के बारे में विस्तार से बताएंगे।

1. समाज का उद्धार ही मेरा कर्तव्य है।

साल 1943 में बाबासाहेब आंबेडकर को जब वायसराय काउंसिल में शामिल किया गया था। उस दौरान उनको श्रम मंत्रालय सौंप दिया गया था। और पी डब्ल्यू डी पर भी बाबासाहेब का ही नियंत्रण था। ऐसे में ठेकेदारों में इस विभाग का ठेका लेने के लिए द्वंद्व मचा पड़ा था।

जिसके चलते दिल्ली के एक नामचीन ठेकेदार ने अपने बेटे को बाबासाहेब के बेटे यशवंत राव से मिलने भेजा। और उनके बेटे के माध्यम से बाबासाहेब से एक पेशकश की। कि यदि बाबासाहेब उन्हें  यह ठेका दिलवा दें, तो वह उन्हें 25-30% तक कमीशन पर उनके साथ साझेदारी करने को तैयार हैं।

जिस पर बाबासाहेब के बेटे उस ठेकेदार की बातों में आकर अपने पिता के पास यह प्रस्ताव लेकर पहुंचते हैं। तो बाबासाहेब बहुत गुस्सा करते हैं, और अपने बेटे को भूखे पेट ही वापस यह कहकर लौटा दिया कि मैं यहां केवल समाज के उद्धार का ही उद्देश्य लेकर आया हूं। केवल अपनी संतान को पालना ही मेरा कर्तव्य नहीं है। और इस तरह के प्रलोभन मेरे उद्देश्य से मुझे पथभ्रष्ट नहीं कर सकते।

 2. जीवन में शिक्षा से बढ़कर कुछ नहीं होता।

भीमराव आंबेडकर ने अपने प्रारंभिक जीवन से लेकर अंत समय तक कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी किसी परेशानी को अपनी शिक्षा के बीच नहीं आने दिया। उनकी इसी मेहनत और ललक से खासा प्रभावित होकर बंगाल के साहू महाराज ने उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। इतना ही नहीं बाबासाहेब को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। जिसके चलते उनके पास स्वयं की एक लाइब्रेरी थी, जहां 50 हजार से अधिक किताबों का संग्रह हुआ करता था। साथ ही जब वह लदंन में थे, तब नियमित तौर से लाइब्रेरी जाया करते थे। एक बार वह लंच टाइम में लाइब्रेरी में ब्रेड खाते हुए पकड़े गए।

जिस पर लाइब्रेरियन ने उनकी मेंबरशिप खत्म करने की चेतावनी दे डाली। साथ ही उनको जुर्माना भरने के लिए कहा। जिस पर भीमराव आंबेडकर ने उस लाइब्रेरियन से माफी मांगी। और उसे बताया कि उनके पास कैफेटेरिया में जाकर खाने के पैसे नहीं हैं। जिस पर वह लाइब्रेरियन जोकि याहुदी था। वह उनसे बोला ठीक है कल से तुम मेरे साथ कैफेटेरिया चलना और मेरे साथ मेरा भोजन बांटकर खाना। कहते है तभी से बाबासाहेब यहूदियों को काफी सम्मान दिया करते थे।

3. व्यक्ति को जीवन में हमेशा अपने उद्देश्य के प्रति गंभीर रहना चाहिए।

जब भीमराव आंबेडकर अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय वह अक्सर लाइब्रेरी जाया करते थे। और सुबह लाइब्रेरी के खुलने से पहले ही पहुंच जाया करते थे। और देर रात तक वहीं बैठा करते थे। लाइब्रेरी में वह तब भी रहते थे जब अक्सर लोग लाइब्रेरी बंद होने के बाद घर चले जाते थे।

इतना ही नहीं कई बार लाइब्रेरी में अधिक समय तक बैठे रहने के लिए उन्हें अनुमति तक लेनी पड़ जाती थी। ऐसे में एक बार लाइब्रेरी के एक कर्मचारी ने उनसे पूछा कि तुम्हें अक्सर मैंने अधिक समय तक यही समय व्यतीत करते देखा है। तुम दिन भर किताबों के साथ ही क्यों रहते हो, अन्य लोगों की तरह बाहर जाकर मौज मस्ती क्यों नहीं करते। तो इस पर भीमराव आंबेडकर ने बड़े ही विनम्र स्वभाव से उनको उत्तर दिया कि यदि मैं भी वैसा ही करूंगा जैसा अन्य लोग कर रहे हैं। तो फिर मेरे लोगों का ख्याल कौन रखेगा,जोकि मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है।

4. संस्कृत भारतीय भाषाओं की जननी है।

एक बार जब डॉ. भीमराव आंबेडकर और लाल बहादुर शास्त्री जी के बीच किसी विषय पर चर्चा चल रही थी। तब वह दोनों संस्कृत भाषा में बातचीत कर रहे थे। जिस पर लोग डॉ. भीमराव आंबेडकर की संस्कृत भाषा पर पकड़ को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। क्यूंकि एक अनपढ़ दलित परिवार में जन्म होने के चलते लोग यह मानने को तैयार नहीं थे, कि उन्हें संस्कृत भाषा में महारथ हासिल है। 

हालांकि जब भीमराव आंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया था तो वह भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृति भाषा को एक महत्वपूर्ण दर्जा दिलवाना चाहते थे, लेकिन संविधान सभा के अन्य कई सदस्यों का उनको समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। जिसके चलते उनका संस्कृत भाषा के प्रति विकास का स्वप्न अधूरा ही रह गया।

5. व्यक्ति अपनी धर्म और जाति से नहीं बल्कि कर्मों से जाना जाता है।

डॉ. भीमराव आंबेडकर दलित परिवार में जन्मे थे। जिस वजह से उनका पूरा जीवन शोषितों और बेसहारा लोगों के हक की लड़ाई में ही व्यतीत हुआ। ऐसे में अपने बचपन के एक किस्से के बारे में वह लिखते है कि उन दिनों हर जगह दलित व्यक्ति को बड़ी हय दृष्टि से देखा जाता था। ऐसे में जब वह स्कूल जाया करते थे, तो उन्हें विद्यालय के अन्य बच्चों के साथ बैठने और पढ़ने की अनुमति तक नहीं थी।

इतना ही नहीं उन्हें प्यास लगने पर पानी भी नहीं मिलता था, क्यूंकि उन्हें स्वयं नल को छूने की अनुमति नही थी। और यदि स्कूल का चपरासी कहीं इधर उधर  चला जाता था। तो उन्हें पानी तक से मोहताज कर दिया जाता था, ऐसे में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपनी इस घटना को चपरासी नहीं तो पानी नहीं टाइटल देकर संबोधित किया था।

इस प्रकार डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म से अधिक उसके कर्मों को महत्व देना चाहिए। और यदि हम भीमराव आंबेडकर के दिखाए गए पदचिह्नों पर चलेंगे, तो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता हासिल करेंगे।

Dr. Ambedkar Image credit – Rajasekharan Parameswaran


इसके साथ ही हमारा आर्टिकल – Bheem Rao Ambedkar Motivational story in Hindi समाप्त होता है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आया होगा।

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अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर कर रही हूं। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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