Kripacharya
कृपाचार्य हिन्दू शास्त्रों में वर्णित सात चिरंजीवियों में से एक हैं। जोकि पृथ्वी पर आदिकाल से अंतकाल तक विद्यमान रहेंगे। यह कौरवों और पांडवों के कुलगुरु के रूप में जाने जाते हैं। कृपाचार्य महाभारत युद्ध के अंत में कौरवों की ओर से बचे तीन लोगों में से एक थे। सावर्णि मनु के अनुसार, कृपाचार्य की गिनती सप्तऋषियों में होती है। ऐसे में महाभारत के पात्रों की श्रृंखला में आज हम आपको कृपाचार्य के जीवन के बारे में बताएंगे।
कृपाचार्य का संक्षिप्त परिचय
पूरा नाम | कृपा |
उपाधि | कौरवों और पांडवों के कुलगुरू |
पिता का नाम | ऋषि शरद्वान |
माता का नाम | जानपदी नामक देवकन्या |
संरक्षक | राजा शांतनु |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर |
बहन | कृपी (गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी) |
महाभारत युद्ध में दायित्व | कौरवों के प्रधान सेनापति |
योग्यता | वेदों और पुराणों के ज्ञाता, धनुर्धारी, अस्त्र शस्त्र विद्या में पारंगत |
वरदान | अमरत्व का वरदान |
उपाधि | सप्तऋषि |
कृपाचार्य का जन्म कैसे हुआ था? – Kripacharya Birth
कौरव और पांडवों के कुलगुरु कृपाचार्य के जन्म के पीछे एक अद्भुत कहानी है। माना जाता है कि महर्षि गौतम के पुत्र ऋषि शरद्वान धनुर्विद्या में निपुण थे। जिनकी क्षमता को देखकर स्वयं देवराज इंद्र घबरा गए थे। जिसपर उन्होंने ऋषि शरद्वान की तपस्या को भंग करने का उपाय सोचा। देवराज इंद्र ने जानपदी नामक देवकन्या को स्वर्ग से ऋषि शरद्वान के पास भेजा।
जिसे देखकर ऋषि शरद्वान के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उसी दौरान उनका शुक्रपात हो गया। कुछ समय बाद उसी शुक्रपात के कारण दो बच्चों ने जन्म लिया। जिनमें से एक लड़का और एक लड़की थी। कहते है कि जब हस्तिनापुर के राजा शांतनु वहां से गुजर रहे थे। तभी उनकी नजर इन बच्चों पर पड़ी और वह उन्हें अपने साथ ले आए।
राजा शांतनु ने बालक का नाम कृप और बालिका का नाम कृपी रखा। उनका मानना था कि ये दो बच्चे उन्हें ईश्वर की कृपा से मिले है। आगे चलकर कृप नामक बालक भी अपने पिता ऋषि शरद्वान की भांति श्रेष्ठ धनुर्धारी निकला।
जिन्हें भीष्म द्वारा कौरवों और पांडवों के प्रारंभिक आचार्य के रूप में नियुक्त किया गया। आपको बता दें कि कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य के साथ हुआ था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कृपाचार्य एक ओर कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। दूसरी ओर वह वीर योद्धा अश्वत्थामा के मामा भी थे।
जब कृपाचार्य ने दुर्योधन से कहीं थी युद्ध संधि की बात – Kripacharya in Mahabharat War
महाभारत युद्ध के दौरान जब कौरवों की सेना पर पांडव भारी पड़ने लगे थे। साथ ही जब पांडवों के हाथों कर्ण का वध हो गया था। तब कृपाचार्य ने दुर्योधन को समझाया था कि कौरवों को पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए।जिसपर दुर्योधन ने कृपाचार्य से कहा था कि उसके पास अब युद्ध में मरने के सिवा कोई रास्ता शेष नहीं बचा है।
उसके द्वारा किए गए अत्याचारों को पांडव भाई कभी नहीं भूला सकते हैं।
कृपाचार्य और अर्जुन के बीच हुआ था घमासान युद्ध महाभारत में कौरवों की ओर से भीष्म और गुरु द्रोण के बाद कृपाचार्य को ही सेनापति बनाया गया था।
तब कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा ने मिलकर पांडवों को युद्ध भूमि में पस्त कर दिया था। युद्ध भूमि पर कृपाचार्य और अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध हुआ था। कृपाचार्य ने अपनी श्रेष्ठ धनुर्विद्या के माध्यम से अर्जुन के हर बाण का करारा जवाब दिया था। लेकिन जब अर्जुन ने कृपाचार्य को शिकस्त देने के लिए गांडीव धनुष को कृपाचार्य के ऊपर चलाया। तब कृपाचार्य अपने स्थान से गिर पड़े।
हालांकि उस दौरान अर्जुन ने उन्हें संभलने का मौका दिया। फिर जैसे ही कृपाचार्य ने सफेद चील के पंखों से युक्त बाण को अर्जुन की ओर बढ़ाया। कि तभी अर्जुन ने तीखे भल्ले नामक बाण से कृपाचार्य के धनुष के टुकड़े कर दिए। तत्पश्चात् कुंती पुत्र अर्जुन ने कृपाचार्य के कवच को भी अपने प्रहार से भेद डाला। परन्तु उनके शरीर को कोई पीड़ा नहीं पहुंचाई।
जब कृपाचार्य को हुई थी ग्लानि
महाभारत के समय जब गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने पांचाली द्रौपदी के पांचों पुत्रों को सोते समय मार दिया था। उस दौरान कृपाचार्य बाहर पहरा दे रहे थे। तब माता गांधारी ने कृपाचार्य से कहा था कि आप हमारे कुलगुरु है। आपके होते हुए ये पाप कैसे हो गया? अश्वत्थामा ने जो पाप किया है उसमें आप भी भागीदार है। कृपाचार्य को अपनी इस ग़लती पर बहुत पछतावा हुआ था।
कृपाचार्य को मिला अमरत्व का वरदान – Kripacharya Boon
अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुराममश्च सप्तएतै: चिरजीविन:।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशंत सोपि सर्वव्याधिविवर्ज़ित।।
उपरोक्त श्लोक के अनुसार, अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और ऋषि मार्कण्डेय आदि अमर हैं।
कहा जाता है कि कृपाचार्य को अमरत्व का वरदान इसलिए मिला था क्योंकि उन्होंने महाभारत का युद्ध निष्पक्षता के साथ लड़ा था। हालांकि इस बात को लेकर कई प्रकार के मतभेद विद्यमान हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि कृपाचार्य आज भी जीवित हैं।
