भगवान विष्णु ने धरती पर आठवां अवतार भगवान श्री कृष्ण के रूप में लिया था। जिनके इस मनमोहक अवतार की लीलाएं विश्व में सर्वत्र फैली हुई हैं। और जब भी भगवान श्री कृष्ण की सुन्दरता का वर्णन किया जाता है।
तब कमल के समान नेत्र वाले, चेहरे पर सूर्य के समान तेज, सांवला रंग, अधरों पर शोभायमान मुरली, शरीर पर विराजित पितांबर वस्त्र और सिर पर सुसज्जित मोर मुकुट उनकी सुंदरता का बोध कराते हैं। इसलिए भगवान श्री कृष्ण को मुरलीधर, मुकुटधारी, कमलनयन, कंजलोचन, मयूर, केशव, मुरली मनोहर, श्यामसुंदर आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
परन्तु क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण अपने सिर पर मोर मुकुट क्यों धारण करते हैं? यदि नहीं। तो आज हम आपको इसके पीछे का रहस्य बताते हैं। क्योंकि धार्मिक स्रोतों के अनुसार, इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं।
कुंडली के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण अपने सिर पर मोर मुकुट इसलिए धारण करते हैं। क्योंकि उनकी कुंडली में काल सर्प दोष मौजूद है। जिसकी पुष्टि 1967 में एक जैन ज्योतिषी द्वारा की गई थी।
ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपनी कुंडली के दोषों का प्रभाव कम करने के लिए सिर पर मोर पंख से सुसज्जित मुकुट पहनते हैं। कहा जाता है यह काल सर्प योग का ही परिणाम था कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था। इसके अलावा काल सर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति अपनी आयु के 36 साल में ऐश्वर्य की प्राप्ति नहीं कर पाता है।
भगवान श्री कृष्ण के जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। ऐसे में हम कह सकते हैं कि भगवान को जब धरती पर मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। तो उनके जीवन पर भी ग्रहों के शुभ और अशुभ प्रभावों का असर पड़ा।
मोर की पवित्रता पर मोहित हो गए थे भगवान श्री कृष्ण
मोर एक ऐसा पक्षी है। जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करता है। यहां तक कि मोरनी भी मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है। ऐसे में मोर की पवित्रता से प्रसन्न होकर स्वयं जगत पालनहार ने श्री कृष्ण के अवतार के दौरान उसे अपने मस्तक के ऊपर स्थान दिया था। इसलिए भगवान श्री कृष्ण मोर मुकुट पहना करते थे।
शत्रुता को भुलाकर मित्रता का दिया था संदेश
भगवान श्री कृष्ण के भ्राता यानि दाऊ बलराम शेषनाग के अवतार थे। ऐसे में कहा जाता है कि नाग और मोर एक दूसरे के दुश्मन होते हैं। जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण परस्पर मैत्री भाव रखने के उद्देश्य से अपने सिर पर मोर मुकुट धारण करते थे।
राधा के प्रेम वश होकर धारण किया था मोर पंख
भगवान श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी तो आपको मालूम ही होगी। कहते है राधा जिस महल
में रहा करती थी। वहां मोर अधिक संख्या में थे। इतना ही नहीं राधा जब नृत्य किया करती थी, तब उनके साथ मोर भी नाचा करते थे। कहते हैं इसी दौरान किसी मोर का मोर पंख जमीन पर गिर पड़ा था। तभी भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपने मुकुट में स्थान दिया था। ताकि वह राधा जी को सदैव याद रख सकें। क्योंकि वह राधा को बहुत प्रेम करते थे।
मोर के पंखों में मौजूद रंगों से दिया एक खास उपदेश
भगवान श्री कृष्ण सदैव ही अपनी लीलाओं को लेकर चर्चा में बने रहते हैं। कहा जाता है कि इनके अपने मुकुट में मोर पंख लगाने के पीछे का उद्देश्य मोर के पंखों में मौजूद सात रंग हैं। मोर के पंख विभिन्न प्रकार के रंगों से सराबोर होते हैं। ऐसे में जिस प्रकार से हमारी जिंदगी में भी प्रत्येक समय अलग अलग रंगों की भांति आता है।
ठीक उसी प्रकार से, मोर के पंखों का रंग भी कहीं हल्का तो कहीं चमकीला होता है। इस प्रकार, भगवान श्री कृष्ण मोर मुकुट धारण करके समस्त मानव जाति को यह उपदेश देते हैं कि जीवन में सुख और दुख आते रहते हैं। मनुष्य को प्रत्येक स्थिति में खुद पर संतुलन बनाए रखना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त हुई थी गुरु दक्षिणा
बालपन में जब भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ जंगल में सो रहे थे। कि तभी मौसम सुहावना हो चला। जिससे प्रभावित होकर श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाना शुरू कर दिया। जिसकी मधुर आवाज सुनकर जंगल के सारे मोर बाहर आ गए और उन्होंने नाचना शुरू कर दिया।
जिसके बाद प्रसन्न होकर मोरों के राजा ने भगवान श्री कृष्ण को अपने पंख गुरु दक्षिणा में दे दिए। जिसपर भगवान श्री कृष्ण ने उन मोर पंखों को सदा के लिए अपने मुकुट में विराजित कर लिया।
भतीजे कार्तिकेय की मनोकामनाओं की पूर्ति था उद्देश्य
जैसा कि आप जानते है कि भगवान श्री कृष्ण विष्णु का अवतार है। ऐसे में भगवान विष्णु माता पार्वती के भाई है। जिन्होंने भगवान शिव से माता पार्वती के विवाह के लिए माता पार्वती की मदद की थी। ऐसे में भगवान शिव और माता पार्वती का बेटा कार्तिकेय भगवान विष्णु का भांजा हुआ। और कार्तिकेय देवता की सवारी मोर है।
ऐसे में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने भांजे की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मोर मुकुट पहनते थे।
त्रेतायुग से है भगवान श्री कृष्ण के मुकुट का संबंध
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने श्री राम का अवतार लिया था। तब एक बार मोरों के झुंड ने उनके लिए रास्ते का निर्माण किया था। कहते हैं तभी भगवान श्री राम ने मोरों से यह वादा किया था कि जब वह द्वापर युग में जन्म लेंगे। तब वह मोर मुकुट धारण करेंगे।
इस प्रकार, भगवान श्री कृष्ण के इसी श्रृंगार रूपी मोर मुकुट की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि….
बर्हापींड नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं,
बिभ्रद् वास: कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्।
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दैर्वृन्दाण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति:।।
तात्पर्य यह है कि ग्वालवालों के साथ भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में आ रहे हैं। जिनके सिर पर मोर मुकुट विद्यमान है। कानों में कनेर के पुष्प समान कुंडल शोभित हो रहे हैं। जिनके शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ऐसे लग रहे हैं, मानो सूर्य किरणें बिखेर रहा हो।
उनके गले में वैजयंती माला है, जोकि सुगंधित फूलों से बनाई गई है। उनके अधरों पर बांसुरी है, जिसे सुनकर ग्वालवाले प्रसन्नता का भाव चेहरे पर लिए बढ़े चले जा रहे हैं। इस प्रकार, भगवान श्री कृष्ण के वैकुंठ धाम से लेकर यहां वृदांवन तक सभी भक्त इनकी भक्ति में लीन है।
