पाण्डु महाभारत में | Pandu in Mahabharat

हिन्दुओं के महाकाव्य महाभारत में कई सारे महान् योद्धा थे। जिनमें से महाराज पाण्डु भी एक थे। जिन्होंने सदैव ही अपने पराक्रम और वीरता के बल पर हस्तिनापुर राज्य की रक्षा की। इसके अलावा पांचों पांडव भी महाराज पाण्डु के ही पुत्र थे। ऐसे में आज हम महाभारत पात्रों की श्रृंखला में महाराज पाण्डु के जीवन चरित्र के बारे में जानेंगे।


महाराज पांडु का संक्षिप्त परिचय

नामपांडु
जन्म स्थानहस्तिनापुर
पिता का नाममहर्षि वेदव्यास
माता का नामअंबलिका
व्यक्तित्वस्वास्थ्य से कमजोर बालक
निपुणतीरंदाज, अस्त्र शस्त्र के ज्ञाता, घुड़सवार, वेदों के जानकर
गुरुभीष्म पितामह, कृपाचार्य
वैवाहिक स्थितिविवाहित
जीवनसाथी का नामकुंती और माद्री
संतानयुधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव
भाईधृतराष्ट्र और विदुर
मृत्युऋषि किंदम का श्राप
दायित्वहस्तिनापुर नरेश

महाराज पाण्डु का जन्म कैसे हुआ? – Pandu’s Birth

महाभारत के समस्त पात्रों की भांति महाराज पाण्डु के जन्म की कहानी भी विचित्र है। धार्मिक स्रोतों के आधार पर, कुरु वंश के चौदहवें महाराज शांतनु और रानी सत्यवती के दो पुत्र थे। जिनके नाम क्रमशः चित्रांगद और विचित्रवीर्य थे।

महाराज शांतनु के बाद राजकुमार चित्रागंद को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया गया। लेकिन थोड़े समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद अनुज राजकुमार विचित्रवीर्य हस्तिनापुर के युवराज बनाए गए।

आगे चलकर विचित्रवीर्य के विवाह के लिए भीष्म पितामह ने काशी नरेश की दो कन्याओं को चुना। जिनका नाम राजकुमारी अंबिका और अंबलिका था। कुछ समय बाद विचित्रवीर्य भी मृत्युलोक को सिधार गए।

ऐसे में दोनों राजकुमारों की असमय मृत्यु के चलते हस्तिनापुर की राजगद्दी सूनी हो गई। तभी रानी सत्यवती ने अपने सन्यासी पुत्र महर्षि वेदव्यास को बुलाया। और उनसे तप व ज्ञान की शक्ति के आधार पर विचित्रवीर्य की दोनों रानियों को गर्भवती करने की बात कही।

रानी सत्यवती की बात मानकर महर्षि वेदव्यास दोनों रानियों अंबिका और अंबलिका दोनों को अपने पास बुलाते हैं। जहां महर्षि वेदव्यास को देखकर राजकुमारी अंबिका अपनी आंखे बंद कर लेती हैं। तो वहीं राजकुमारी अंबलिका का शरीर पीला पड़ जाता है।

उसी दौरान राजकुमारी अंबलिका के गर्भ से जिस बच्चे का जन्म हुआ, वह आगे चलकर महाराज पाण्डु के नाम से जाना गया।

महाराज पाण्डु राजा धृतराष्ट्र और विदुर के मंझले भाई थे। जिन्होंने भीष्म से अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था। साथ ही महाराज पाण्डु एक अच्छे तीरंदाज भी थे। हालांकि समस्त कुरू भाईयों में ज्येष्ठ होने के कारण राजा धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का महाराज बनाया जाना था।

लेकिन धृतराष्ट्र के अंधे होने की वजह से महाराज पाण्डु को हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी घोषित किया गया।


महाराज पाण्डु के दो विवाह – Pandu’s Wife

महाराज पाण्डु के हस्तिनापुर नरेश बनते ही उनका यश भारतवर्ष की चहूं दिशाओं में फैल चुका था। उसी दौरान महाराज कुंती भोज ने अपनी दत्तक पुत्री कुंती (प्रथा) के स्वंयवर का आयोजन किया। जिसका निमंत्रण महाराज पाण्डु के पास भी भेजा गया।

ऐसे में हस्तिनापुर औऱ यदुवंश के रिश्तों को मजबूत करने के उद्देश्य से राजकुमारी कुंती का विवाह महाराज पाण्डु से हो गया। जिसके बाद महाराज पाण्डु और कुंती के तीन पांडव पुत्र युधिष्टिर, भीम और अर्जुन हुए। दूसरी ओर, महाराज पाण्डु का युद्ध जब महाराज शल्य से हो रहा था।

तब उनकी मुलाकात महाराज शल्य की बहन माद्री से हुई थी। जिसके सौंदर्य से प्रभावित होकर महाराज पाण्डु ने माद्री से विवाह कर लिया। जिससे महाराज पाण्डु के दो पुत्र नकुल और सहदेव हुए।


महाराज पाण्डु को मिले श्राप से हुई थी उनकी मृत्यु – Pandu’s Death

यह बात उन दिनों की है जब महाराज पाण्डु अपने राजमहल से दूर वन में अपनी दोनों रानियों के साथ समय बिता रहे थे। उस दौरान वह समस्त भारतवर्ष पर अपनी जीत की जीत का जश्न माना रहे थे। कहते है तभी शिकार के लिए निकले महाराज पाण्डु और उनकी पत्नी माद्री को मृग का जोड़ा दिखा।

जिसपर रानी माद्री ने महाराज पाण्डु से उसका शिकार करने की बात कही। महाराज पाण्डु ने जैसे ही मृग का शिकार करने के लिए तीर चलाया। वैसे ही वह तीर ऋषि किंदम और उनकी पत्नी को लग गया। जो उस समय सहसवारत थे।

ऐसे में ऋषि किंदम ने महाराज पाण्डु को यह श्राप दे दिया कि जब भी वह अपनी किसी रानी के साथ सहसवारत करेंगे। ठीक उसी समय महाराज पाण्डु की मृत्यु हो जाएगी। ऐसे में महाराज पाण्डु कभी अपनी रानियों के साथ सहसवारत नही कर पाए और उनके समस्त पुत्र रानी कुंती को मिले वरदान से उत्पन्न हुए थे।

एक बार की बात है जब महाराज पाण्डु ध्यान मग्न थे कि तभी रानी माद्री नदी किनारे स्नान करने चली गई। ऐसे में जब महाराज पाण्डु ने अपनी आंखे खोली तब रानी माद्री को देखकर वह स्वंय पर नियंत्रण ना रख सके। इस दौरान वह जैसे ही रानी माद्री की ओर आकर्षित हुए। वैसे ही महाराज पाण्डु ने श्रापयुक्त होने के कारण अपने प्राण त्याग दिए।

इस प्रकार, महाराज पाण्डु का नाम महाभारत काल के उन सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारियों में लिया जाता रहेगा। जिन्होंने हस्तिनापुर राज्य और कुरु वंश का नाम भारत के गौरवशाली इतिहास में अमर कर दिया।


अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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